6) प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः ’’इस्राएल के असंख्य अपराधों के कारण मैं उसे अवश्य ही दण्डित करूँगा। वे चाँदी के सिक्के से निर्दोष को बेचते है और जूतों की जोडी के दाम कंगाल को।
7) वे दरिद्रों का सिर पृथ्वी की धूल में रौंदते हैं और दीनों पर अत्याचार करते हैं। पिता और पुत्र, दोनों एक ही लौण्डी के पास जाते हैं और इस प्रकार मेरे पवत्रि नाम को अपवत्रि करते हैं।
8) वे गिरवी रखे कपडों का बिछा कर वेदियों के पास लेट जाते हैं और अपने ईश्वर के मन्दिर में जुरमाने के पैसे से खरीदी हुई मदिरा पीते हैं।
9) मैंने ही उनकी आंखों के सामने अमोरियों का सर्वनाश किया। वे देवदार की तरह ऊँचे और बलूत की तरह तगडे थे। फिर भी मैंने ऊपर उनके फलों को और नीचे उनकी जडों को नष्ट कर डाला।
10) मैंने ही तुम को मिस्र से निकालकर चालीस बरस तक मरुभूमि में तुम्हारा पथप्रदर्शन किया और तुम्हें अमोरियों का देश प्रदान किया।
13) देखो! पूलों से लदी हुई गाडी जिस तरह चीज़ों को रौंदती है, उसी तरह में तुम लोगों को कुचल दूँगा।
14) तब दौड़ कर भागने से कोई लाभ नहीं होगा। बलवान् की शक्ति व्यर्थ होगी। वीर योद्धा अपने प्राणों की रक्षा नहीं कर सकेगा।
15) धनुर्धारी नहीं टिकेगा, तेज दौडने वाला नहीं बच सकेगा और कोई भी घुडसवार अपनी जान बचाने में समर्थ नहीं होगा।
16) योद्धाओं में जो सब से शूरवीर है, वह उस दिन नंगा हो कर भाग जायेगा।’’ यह प्रभु की वाणी है।
18) अपने को भीड़ से घिरा देख कर ईसा ने समुद्र के उस पार चलने का आदेश दिया।
19) उसी समय एक शास्त्री आ कर ईसा से बोला, ’’गुरुवर! आप जहाँ कहीं भी जायेंगे, मैं आपके पीछे-पीछे चलूँगा’’।
20) ईसा ने उस से कहा, ’’लोमडियों की अपनी माँदें हैं और आकाश के पक्षियों के अपने घोसलें, परन्तु मानव पुत्र के लिए सिर रखने को भी अपनी जगह नहीं है’’।
21) शिष्यों में किसी ने उन से कहा, ’’प्रभु! मुझे पहले अपने पिता को दफनाने के लिए जाने दीजिए’’।
22) परन्तु ईसा ने उस से कहा, ’’मेरे पीछे चले आओ; मुरदों को अपने मुरदे दफनाने दो’।
क्या आप हमेशा ईश्वर प्रदत्त प्रतिभाओं या उपहारों के प्रति उदार होते हैं जो आपके पास हैं? सुसमाचार के पहले वाक्य में ऐसा प्रतीत होता है कि येसु उस भीड़ से बचने की कोशिश कर रहे थे जो चंगाई के लिए उनके पीछे आ रही थी। लेकिन नहीं, स्थिति वैसी नहीं है जैसी यह प्रतीत होती है बल्कि यह येसु के लिए समय था कि वह आगे बढ़े और अपने प्रचार और उपचार के उपहार को अन्य स्थानों के साथ साझा करे। येसु एक उपदेशक और मरहम लगाने वाला है; जितना संभव हो सके वह अपने कई अलौकिक उपहारों को अधिक से अधिक लोगों के साथ साझा करना चाहते है। यही वजह है कि वह जितना हो सके दूसरी जगहों पर जाना चाहते हैं। इस कारण से कि येसु बदले में कुछ भी उम्मीद किए बिना अपनी प्रतिभा साझा करना चाहते हैं। आइए हम उदारतापूर्वक अपना आशीर्वाद साझा करें, हम इसे अपने लिए जमा न करें।
✍ - फादर अल्फ्रेड डिसूजा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Are you always generous with the God given talents or gifts that you have? In the first sentence of the gospel it would appear that Jesus was trying to evade the crowd that has been following Him for healing. But no the situation is not as what it appears it was rather time for Jesus to move on and share His gift of preaching and healing with other places. Jesus is a preacher and healer; as much as possible He wants to share His many super natural gifts with as many people as He can. This is the reason why He wants to go to other places as much as He can. For the reason that Jesus’ wants to share His talents without expecting anything in return. Therefore, let us generously share our blessings let us not hoard it for ourselves.
✍ -Fr. Alfred D’Souza (Bhopal Archdiocese)
आज के सुसमाचार में पुनः हमारे सामने प्रभु का अनुसरण करने के लिए जिन बातों की आवश्यकता है उसे प्रस्तुत किया गया है। प्रभु का अनुसरण करने के लिए बहुत से लोग आगे आते है परंतु उनका सच्चा अनुसरण बहुत ही कम लोग कर पाते। और जो कर पाते है वे आज के सुसमाचार में बताये गये मापदण्डों पर खरें उतरते है। प्रभु का अनुसरण करने के लिए कष्टों का सामना करने के लिए तैयार रहना, अपने लगाव और असक्ताओं पर लगाम लगाते हुए ही प्रभु का अनुसरण करने के लिए हम अपने आप को काबिल बना पायेंगे। हम प्रभु का सच्चा अनुसरण करें।
✍ - फादर डेन्नीस तिग्गा, भोपाल
In today's gospel, we are presented again with what is needed to follow the Lord. Many people come forward to follow the Lord, but very few can truly follow Him. And those who are able to do so meet the criteria set forth in today's gospel. Being prepared to face hardships to follow GOD, curbing our attachments and weaknesses will enable us to follow GOD. Let us truly follow the Lord.
✍ -Fr. Dennis Tigga, Bhopal