8) प्रधानयाजक हिलकीया ने सचिव षाफ़ान से कहा, ‘‘मुझे प्रभु के मन्दिर में संहिता का ग्रन्थ मिला है’’। हिलकीया ने षाफ़ान को वह ग्रन्थ दिया और इसने उसे पढ़ा।
9) इसके बाद सचिव षाफ़ान ने राजा के पास जा कर कहा ‘‘आपके सेवकों ने प्रभु के मन्दिर की चाँदी गला कर उसे उन कारीगरों को दिया जो प्रभु के मन्दिर में हो रहे काम का निरीक्षण करते हैं’’।
10) सचिव षाफ़ान ने राजा से यह भी कहा कि याजक हिलकीया ने मुझे एक ग्रन्थ दिया है। शफ़ान ने उसे राजा को पढ़ कर सुनाया।
11) जब राजा ने सुना कि संहिता के ग्रन्थ में क्या लिखा है, तो उसने अपने वस्त्र फाड़ कर
12) याजक हिलकीया, षाफ़ान के पुत्र कहीक़ाम, मीकाया के पुत्र अकबोर, सचिव षाफ़ान और अपने दरबारी असाया को यह आदेश दिया,
13) ‘‘तुम लोग जाओ। जो ग्रन्थ हमें मिल गया है, उसके विषय में मेरी, जनता और समस्त यूदा की ओर से प्रभु से परामर्श करो। हमारे पुरखों ने उस ग्रन्थ की आज्ञाओं का पालन नहीं किया और उस में जो कुछ लिखा है, उसके अनुसार आचरण नहीं किया, इसलिए प्रभु का बड़ा क्रोध हम पर भटक उठा।"
1) राजा ने यूदा और येरुसालेम के नेताओं को बुला भेजा और वे उसके पास एकत्र हो गये।
2) राजा प्रभु के मन्दिर गया। यूदा के सब पुरुष, येरुसालेम के सब निवासी, याजक और नबी, और छोटों से ले कर बड़ों तक, सभी लोग राजा के साथ थे। उसने विधान का ग्रन्थ, जो प्रभु के मन्दिर में पाया गया था, पूरा-पूरा पढ़ सुनाया।
3) राजा मंच पर खड़ा हो गया और उसने प्रभु के सामने यह प्रतिज्ञा की कि हम प्रभु के अनुयायी बनेंगे। हम सारे हृदय और सारी आत्मा से उसके आदेशों, नियमों और आज्ञाओं का पालन करेंगे और इस प्रकार इस ग्रन्थ में लिखित विधान की सब बातें पूरी करेंगे। सारी जनता ने विधान का आज्ञापालन करना स्वीकार किया।
15) ’’झूठे नबियों से सावधान रहो। वे भेड़ों के वेश में तुम्हारे पास आते हैं, किन्तु वे भीतर से खूँखार भेडि़ये हैं।
16) उनके फलों से तुम उन्हें पहचान जाओगे। क्या लोग कँटीली झाडि़यों से अंगूर या ऊँट-कटारों से अंजीर तोड़ते हैं?।
17) इस तरह हर अच्छा पेड़ अच्छे फल देता है और बुरा पेड़ बुरे फल देता है।
18) अच्छा पेड़ बुरे फल नहीं दे सकता और न बुरा पेड़ अच्छे फल।
19) जो पेड़ अच्छा फल नहीं देता, उसे काटा और आग में झोंक दिया जाता है।
20) इसलिए उनके फलों से तुम उन्हें पहचान जाओगे।
आज के सुसमाचार भाग का छोटा अंश हमें अच्छे फल उत्पन्न करने के महत्वपूर्ण पहलू के बारे में बताता है। एक अच्छे पेड़ को उसके अच्छे फलों से पहचाना जाता है। यह संदेश येसु ने मत्ती 21:18-22 और मारकुस 11:12-14 में दिया है। दोनों वर्णनों में, सुसमाचार लेखक यह स्पष्ट करता है कि अंजीर का पेड़ “पत्तेदार” था, यानी फलदायक प्रतीत होता था। फिर भी जब येसु ने फल की तलाश की, तो उन्हें कोई नहीं मिला। येसु ने कहा, “कोई भी तुमसे फिर कभी फल न खाए” (मारकुस 11:14)। केवल अच्छा दिखना पर्याप्त नहीं है, बल्कि हमें वास्तव में अच्छा होना चाहिए। इसीलिए येसु पाखंड को सहन नहीं करते थे और जब भी उन्हें शास्त्रियों और फरीसियों में यह मिलता था, वे इसके खिलाफ बोलते थे। फलदायी होना बहुत आवश्यक है। संत पौलुस बताते हैं कि ख्रीस्तीय विश्वासियों को कौन से फल उत्पन्न करने चाहिए। “आत्मा का फल है - प्रेम, आनन्द, शान्ति, सहनशीलता, मिलनसारी, दयालुता, ईमानदारी, सौम्यता और संयम।” (गलातियों 5:22-23)। ये वे फल हैं जो ख्रीस्तीय विश्वासियों को चिह्नित करने चाहिए।
✍ - फादर फ्रांसिस स्करिया (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
The short passage of today’s Gospel tells us about the important aspect of bearing good fruits. A good tree is recognized by good fruits. This message is acted out by Jesus in Mt 21:18-22 and Mk 11:12-14. In both the descriptions, the evangelist makes it clear that the fig tree was “in leaf”, that is to say ‘seemingly productive’. Yet when Jesus looked for figs, he found none. Jesus said, “May no one ever eat fruit from you again” (Mk 11:14). It is not enough to appear to be good, but we should in reality be good. That is why Jesus would not tolerate hypocrisy and would talk against it whenever he found it in the Scribes and Pharisees. Being fruitful is very essential. St. Paul explains the fruits Christian believers should produce. “The fruit of the Spirit is love, joy, peace, patience, kindness, generosity, faithfulness, gentleness, and self-control” (Gal 5:22-23). These are the fruits that should mark Christians.
✍ -Fr. Francis Scaria (Bhopal Archdiocese)
प्रभु येसु आज के सुसमाचार में हमें झूठे नबियों से सावधान रहने के लिए कहते है। झूठे नबि से प्रभु का तात्पर्य उन लोगों से है जो बाहरी तौर से तो बहुत अच्छे लगते है परंतु उनके भीतर छल और कपट भरा हुआ है। अक्सर हम इंसान के बाहरी तौर तरीकों, बाहरी रूप से बातचीत, बाहरी सुंदरता को देखकर उनकी ओर आकर्षित हो जाते है। अब सवाल या उठता है कि हम उन्हे कैसे पहचाने जिससे हम उन से सावधान रह सकें। प्रभु येसु ख्रीस्त इसका बहुत ही सरल उपाय बताते हैं और वह है उनके फल से। भले ही इंसान का बाहरी तौर कुछ भी हो जो व्यक्ति आंतरिक रूप से अच्छा होगा उसका फल भी अच्छा ही होगा और जो आंतरिक रूप से बुरा होगा उसका फल भी बुरा ही होगा। आइये हम सच्चे नबियों का अनुसरण करें।
✍ - फादर डेन्नीस तिग्गा
Lord Jesus tells us in today's gospel to beware of false prophets. By false prophet, Lord means those people who seem to be very good from outside but from within they are full of deceit and malice. Often we get attracted towards human beings by looking at their external ways, external interactions, external beauty.Now the question arises that how do we recognize them so that we can beware of them. Lord Jesus Christ gives a very simple solution for this and that is from their fruit. Whatever may be the outward appearance of a person, the person who is good internally will also bear good fruit and those who are bad internally will bear bad fruit. Let us follow the true prophets.
✍ -Fr. Dennis Tigga