1) गिलआद के तिशबे-निवासी एलियाह ने अहाब से कहा, "इस्राएल के उस जीवन्त प्रभु-ईश्वर की शपथ, जिसका मैं सेवक हूँ! जब तक मैं नहीं कहूँगा, तब तक अगले वर्षों में न तो ओस गिरेगी और न पानी बरसेगा।"
2) इसके बाद एलियाह को प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई दी,
3) "यहाँ से पूर्व की ओर जाओ और यर्दन नदी के पूर्व करीत घाटी में छिपे रहो।
4) तुम नदी का पानी पिओगे। मैंने कौवों को आदेश दिया कि वे वहाँ तुम्हें भोजन दिया करें।"
5) प्रभु ने जैसा कहा, एलियाह ने वैसा ही किया। वह जा कर यर्दन के पूर्व करीत की घाटी में रहने लगा।
6) कौवे सुबह शाम उसे रोटी और मांस ला कर देते थे और वह नदी का पानी पीता था।
(1) ईसा यह विशाल जनसमूह देखकर पहाड़ी पर चढ़े और बैठ गए। उनके शिष्य उनके पास आये।
(2) और वे यह कहते हुए उन्हें शिक्षा देने लगेः
(3) "धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
(4) धन्य हैं वे जो नम्र हैं! उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा।
(5) धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं! उन्हें सान्त्वना मिलेगी।
(6) घन्य हैं, वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं! वे तृप्त किये जायेंगे।
(7) धन्य हैं वे, जो दयालू हैं! उन पर दया की जायेगी।
(8) धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल हैं! वे ईश्वर के दर्शन करेंगे।
(9) धन्य हैं वे, जो मेल कराते हैं! वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
(10) धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
(11) धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते हैं और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं।
(12) खुश हो और आनन्द मनाओ - स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी तरह अत्याचार किया।
येसु ने अपने शिष्यों को इस दुनिया में जीवन का सामना हमेशा अपनी आँखों के सामने ईश्वर को रखते हुए करने की चुनौती दी। संत पौलुस ने इसे बहुत सुंदरता से कहा, “मैं समझता हूँ कि हम में जो महिमा प्रकट होने को है, उसकी तुलना में इस समय का दुःख नगण्य है” (रोमियों 8:18)। संत याकूब कहते हैं, “धन्य है वह, जो विपत्ति में दृढ़ बना रहता है; परीक्षा में खरा उतरने पर उसे जीवन का वह मुकुट प्राप्त होगा, जिसे प्रभु ने अपने भक्तों को देने की प्रतिज्ञा की है” (याकूब 1:12)। हम प्रेरितों की सेवा के बारे में सुनते हैं, "वे शिष्यों को ढारस बँधाते और यह कहते हुए विश्वास में दृढ़ रहने के लिए अनुरोध करते थे कि हमें बहुत से कष्ट सह कर ईश्वर के राज्य में प्रवेश करना है। (प्रेरित-चरित 14:22)। येसु द्वारा पर्वत पर उपदेश के दौरान घोषित आशीर्वचन, जो आज के सुसमाचार में वर्णित हैं, हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन के अनुभवों को स्वर्गिक अनुभवों से जोड़ते हैं।
✍ - फादर फ्रांसिस स्करिया (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Jesus challenged his disciples to face life in this world, always keeping God before their eyes. St. Paul puts it so beautifully, “I consider that the sufferings of this present time are not worth comparing with the glory about to be revealed to us” (Rom 8:18) St. James says, “Blessed is anyone who endures temptation. Such a one has stood the test and will receive the crown of life that the Lord has promised to those who love him” (Jam 1:12). We hear about the ministry of the Apostles, “There they strengthened the souls of the disciples and encouraged them to continue in the faith, saying, “It is through many persecutions that we must enter the kingdom of God.” (Act 14:22) The beatitudes proclaimed during the Sermon on the Mount by Jesus, narrated in today’s Gospel, connect our day to day life experiences to the heavenly experiences.
✍ -Fr. Francis Scaria (Bhopal Archdiocese)
आशीर्वचन वे गुण है जो ईश्वर की प्रजा को चरित्रार्थ करते हैं। हालांकि हमारे इस आधुनिक युग में आशीर्वचन अप्रसांगिक लगे लेकिन उनमें परिवर्तन लाने की भारी संभावनायें छिपी हुयी है। आशीर्वचन व्यक्तियों तथा दुनिया के जीवन को बदल सकते हैं। विनम्रता, शुद्धता, धार्मिकता, दीनता, दयालुता, पवित्रता आदि हमारी शीघ्रता से अमानवीय बनती जा रही इस दुनिया को इंसानियत के पथ पर लाने वाले प्रभावशाली घटक है। जब जिसकी लाठी उसकी भैंस जैसी कहावत का बोलबाला हो, लोग स्वार्थता में डूबे हो, धार्मिकता व्यक्ति विशेष के अनुसार परिभाषित हो तब आशीर्वचन उनके समाज के समाने चुनौती तथा आशा का निमंत्रण प्रस्तुत करते हैं।
मार्टिन लूथर किंग, अब्राहिम लिंकन, नेल्सन मंडेला, गांधीजी, मदर तेरेसा जैसी शख्सियतों ने दुनिया तथा मानवता को बडे पैमाने पर प्रभावित किया है। उनके व्यक्तित्व तथा शैैली में आशीर्वचनों की उपस्थिति व्यापक तौर देखी जा सकती है। उनकी सफलता में ज्ञान, शक्ति, अवसरों से ज्यादा आशीर्वचनों ने अधिक योग्यदान दिया।
अपने मिशन के शुरूआती दिनों में मदर तेरेसा लोगों से दान मांगकर बच्चों की देखभाल किया करती थी। एक बार वे एक धनी सेठ के यहॉ गयी। सेठ ने उन्हें बहुत देर तक इंतजार कराया किन्तु जब वे नहीं गयी तो उसने मदर के चेहरे पर थूक दिया। मदर तेरेसा ने बडी ही शांति से थूक को पोछा और उस सेठ से कहा, ’यह तो आपने मेरे लिये दिया है। अब मेरे बच्चों के लिये भी दे दो।’’ मदर की विनम्रता तथा दीनता को देखकर वह सेठ भौचक्का रह गया। उसने कभी कल्पना नहीं की थी लोग इस प्रकार दीन और विनम्र व्यवहार कर सकते हैं। उस घटना ने उसका मदर तथा उनके मिशन कार्यों के प्रति दृष्टिकोण बदल दिया। वह इसके बाद बडी उदारता से उनकी मदद करने लगा।
किसी को दान देने के लिये हम मजबूर तो कर सकते हैं किन्तु उसको दिल से कार्य करने के लिये उसके दिल का स्पर्श करना अनिवार्य है। मदर ने अपनी विनम्रता तथा दीनता के द्वारा यह कार्य किया।
हिटलर ने भी दुनिया को बदलना चाहा। वह इस कार्य में सफल भी हुआ किन्तु उसकी सफलता नकारात्मक थी। हिटलर अपनी ताकत तथा बल-बूत के दम पर यह हासिल करना चाहता था। किन्तु इसमें वह विफल रहा। इसी प्रकार अनेक लोगों ने ताकत तथा धन-बल के द्वारा यह करना चाहा किन्तु वे दुनिया को बद से बदतर ही करते गये। यदि मानवता को छूना तथा समाज को सकारात्मक तौर पर बदलना हो तो आशीर्वचनों को अपनाइये।
✍ -फादर रोनाल्ड वाँन, भोपाल
The beatitudes are the qualities that characterise the people of God. Although the beatitudes sound very strange and irrelevant to the world we live in but they possess in them the potential of great magnitude. It has the potentials to transform the lives of the individuals and the world at large. Meekness, purity, righteousness, holiness, humility, etc. are very powerful components and the real game changer against the dehumanizing behaviour of the society. In a time when the mussel power, manipulation etc. rule the roost the beatitudes stand out as a challenge and hope to lead the world into peace and harmony.
The personalities such as Martin Luther King, Abraham Lincoln, Nelson Mandela, Mahatma Gandhi, Mother Theresa etc. have positively impacted the world and humanity enormously. The ingredients of the beatitudes are massively seen in their lives and approach. It was not power or intelligence that worked in their favour but the qualities of beatitudes.
In her initial days of mission Mother Theresa had gone to a rich man seeking help for the children. The rich man was arrogant and insensitive to her cause so he spat on her face. But to everyone’s surprise mother just wiped the spit and said, “It for me now give something for my children.’ That was the simplest example of meekness and humility. He rich man’s life and perspective about the mission changed forever. He later on became a generous benefactor to Mother Theresa’s cause. The beatitudes have the ingredients in them to change and transform the world. Hitler too tried to change the world order but inspite of all his power and determination he produced a horrific picture of the ruthlessness that has left a stigma on the face of the humanity.
✍ -Rev. Fr. Ronald Vaughan, Bhopal