1) इस्राएल जब बालक था, तो मैं उसे प्यार करता था और मैंने मिस्र देश से अपने पुत्र को बुलाया।
3) मैंने एफ्राईम को चलना सिखाया। मैं उन्हें गोद में उठाय करता था, किन्तु वे नहीं समझे कि मैं उनकी देखरेख करता था।
4) मैं उन्हें दया तथा प्रेम की बागडोर से टहलाता था। जिस तरह कोई बच्चे को उठा कर गले लगाता है, उसी तरह मैं भी उनके साथ व्यवहार करता था। मैं झुक कर उन्हें भोजन दिया करता था।
8) एफ्राईम! मैं तुम्हें कैसे त्याग दूँ? इस्राएल! मैं तुम्हें कैसे शत्रु के हाथों सौप दूँ? मैं तुम्हें अदमा के समान कैसे राख में मिला दूँ? मैं तुम्हें सबोयीम के समान कैसे भस्म कर दूँ? मेरा हृदय यह नहीं मानता, मुझ में दया उमड आती है।
9) मैं अपना क्रोध भडकने नहीं दूँगा, मैं फिर एफ्राईम का विनाश नहीं करूँगा, क्योंकि मैं मनुय नहीं, ईश्वर हूँ। मैं तुम्हारे बीच परमपावन प्रभु हूँ- मुझे विनाश करने से घृणा है।
8) मुझे, जो सतों में सब से छोटा हूँ, यह वरदान मिला है कि मैं गैर-यहूदियों को मसीह की अपार कृपानिधि का सुसमाचार सुनाऊँ
9) और मुक्ति-विधान का वह रहस्य पूर्ण रूप से प्रकट करूँ, जिसे समस्त विश्व के सृष्टिकर्ता ने अब तक गुप्त रखा था।
10) इस तरह, कलीसिया के माध्यम से स्वर्ग के दूत ईश्वर की बहुविध प्रज्ञा का ज्ञान प्राप्त करेंगे।
11) ईश्वर ने अनन्त काल से जो उद्देश्य अपने मन में रखा, उसने उसे हमारे प्रभु ईसा मसीह द्वारा पूरा किया।
12) हम मसीह में विश्वास करते हैं और इस कारण हम पूरे भरोसे के साथ निर्भय हो कर ईश्वर के पास जाते हैं।
14 (14-15) मैं उस पिता के सामने, जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर प्रत्येक परिवार का मूल आधार है, घुटने टेक कर यह प्रार्थना करता हूँ
16) कि वह अपने आत्मा द्वारा आप लोगों को अपनी अपार कृपानिधि से आभ्यन्तर शक्ति और सामर्थ्य प्रदान करें,
17) जिससे विश्वास द्वारा मसीह आपके हृदयों में निवास करें, प्रेम में आपकी जड़ें गहरी हों और नींव सुदृढ़ हो।
18) इस तरह आप लोग अन्य सभी सन्तों के साथ मसीह के प्रेम की लम्बाई, चैड़ाई, ऊँचाई और गहराई समझ सकेंगे।
19) आप लोगों को उनके प्रेम का ज्ञान प्राप्त होगा, यद्यपि वह ज्ञाने से परे है। इस प्रकार आप लोग, ईश्वर की पूर्णता तक पहुँच कर, स्वयं परिपूर्ण हो जायेंगे।
31) वह तैयारी का दिन था। यहूदी यह नहीं चाहते थे कि शव विश्राम के दिन कू्रस पर रह जाये क्योंकि उस विश्राम के दिन बड़ा त्यौहार पडता था। उन्होंने पिलातुस से निवेदन किया कि उनकी टाँगें तोड दी जाये और शव हटा दिये जायें।
32) इसलिये सैनिकों ने आकर ईसा के साथ क्रूस पर चढाये हुये पहले व्यक्ति की टाँगें तोड दी, फिर दूसरे की।
33) जब उन्होंने ईसा के पास आकर देखा कि वह मर चुके हैं तो उन्होंने उनकी टाँगें नहीं तोडी;
34) लेकिन एक सैनिक ने उनकी बगल में भाला मारा और उस में से तुरन्त रक्त और जल बह निकला।
35) जिसने यह देखा है, वही इसका साक्ष्य देता है, और उसका साक्ष्य सच्चा है। वह जानता है कि वह सच बोलता है, जिससे आप लोग भी विश्वास करें।
36) यह इसलिये हुआ कि धर्मग्रंथ का यह कथन पूरा हो जाये- उसकी एक भी हड्डी नहीं तोडी जायेगी;
37) फिर धर्मग्रन्थ का एक दूसरा कथन इस प्रकार है- उन्होंने जिसे छेदा, वे उसी की ओर देखेगें।
Jesus is all loving and lovable. The image of the Sacred Heart of Jesus manifests this fact of the unfathomable love of Jesus Christ. Jesus’ heart was moved with compassion for the crowd who were like sheep without a shepherd (cf. Mt 9:36). In Mt 11:29 he tells us” learn from me, for I am meek and humble”. He said to St. Margaret Mary, “My divine Heart is so passionately fond of the human race and of you, in particular, that it cannot keep back the pent-up flames of its burning charity any longer. They must burst out through you and reveal my Heart to the world, so as to enrich mankind with my treasures.” So the Sacred Heart of Jesus is not only to be admired and adored, but also to be followed. Our hearts should be molded according to the Heart of Jesus.
✍ - फादर फ्रांसिस स्करिया (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
येसु सर्व प्रेमी और प्रेमणीय हैं। येसु के पवित्र हृदय की तसवीर येसु मसीह के अथाह प्रेम के इस तथ्य को प्रकट करती है। भीड़ के लिए जो बिना चरवाहे के भेड़ों की तरह थे (देखें मत्ती 9:36), येसु का हृदय करुणा से भर गया था। मत्ती 11:29 में वे हमें बताते हैं “मुझसे सीखो, क्योंकि मैं हृदय से नम्र और विनीत हूँ”। उन्होंने संत मार्गरेट मैरी से कहा, “मेरा ईश्वरीय हृदय मानव जाति के प्रति और विशेष रूप से तुम्हारे प्रति इतना अथाह प्रेम रखता है कि वह अपनी जलती हुई परोपकारिता की दबी हुई लपटों को और अधिक नहीं रोक सकता। वे आपके माध्यम से फूटने चाहिए और मेरे हृदय को दुनिया के सामने प्रकट करने चाहिए, ताकि मानवता को मेरे खजानों से समृद्ध किया जा सके।” इसलिए येसु का पवित्र हृदय केवल प्रशंसा और आराधना के लिए ही नहीं है, बल्कि अनुसरण करने के लिए भी है। हमारे हृदयों को येसु के हृदय के अनुसार ढाला जाना चाहिए।
✍ -Fr. Francis Scaria (Bhopal Archdiocese)
आज हम प्रभु येसु के पवित्र हदय का पर्व मनाते हैं। प्रभु येसु के पवित्र हदय हम मानवों के लिए अथाह प्रेम का चिन्ह है। प्रभु येसु इसे अपने जीवन, दुःख भोग एवं मृत्यु द्वारा हमें प्रदर्शित करते हैं। यदि हमें प्रभु येसु के प्यार की गहराई को समझना है तो हमें उनके हदय जो हमारे लिए छेदा गया, उसेे देखना होगा। यही कारण था कि उन्होंने क्रूस पर से हमें पाप और उसकी गुलामी से मुक्त किया। सच्चा प्यार कभी कीमत पर निर्भर नहीं रहता, लेकिन सब कुछ सह लेता है। प्रभु येसु का पवित्र क्रूस उनके प्यार का चिन्ह है जो हमारे लिए छेदा गया। कौन ईश्वर के इस प्रेम के गहराई को समझ सकता है? वही समझ सकता है जो पश्चातापी हदय से ईश्वर की प्रेम को जो प्रभु येसु में देखता है। प्रभु हमें इस प्रेम को अपने जीवन को समर्पित करने एवं एक दूसरे के प्रेम से प्रदर्शित करने का निमत्रंण देते हैं।
पहले पाठ नबी होसेया बताते हैं, ईश्वर एक पिता की तरह अपने प्रिय पुत्र से बात करते हैं। उसे चलना सिखाता है, अपने गोद में लेता है और उनकी देखरेख करता है। ईश्वर सब कुछ हमारे लिए अपने प्रेम के कारण करता है।
दूसरे पाठ में संत पौलुस एफेसियों को बताते हैं कि ईश्वर का प्रेम हमारे लिए अपार कृपा निधि हैं। यह हमें ईश्वर के प्रेम को जानने में हमारी सहायता करता है। आज जब हम प्रभु येसु के अनन्त प्रेम का पर्व मनाते हैं, आइये हम उनके प्रेम को पहचानने का प्रयास करें और अपनी इच्छाओं को उनकी इच्छा के अनुरूप बना सकें।
✍फादर आइजक एक्काToday we celebrate the feast of the Sacred Heart of Jesus. Special love expressed through the life, sufferings and death of Jesus. If we want to fathom the love of God’s love, which was pierced with a lance for our sake, we have to gaze at his love. This is the reason why he went on the cross to redeem us from the slavery of sin and death. The true love does not count the cost, but gives everything for the beloved. The cross shows the love of Christ broken and pierced for our sake. Who can fathom the love of God? Only a broken and contrite heart can fathom the mercy of God revealed in Jesus Christ. The Lord Jesus calls us to lay down our lives in sacrificial love for one another.
In the first reading Hosea speaks that God speaks to us as a parent speaking to his son. He teaches him to walk, takes on his lap and looks after. God does everything for the sake of love. In the second reading, Paul speaks to the Ephesians that God’s love is a God’s gift of grace. This helps us to know the love of God and try to comprehend his will.
✍ -Fr. Isaac Ekka