जून 03, 2024, सोमवार

वर्ष का नौवाँ सामान्य सप्ताह

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📒 पहला पाठ : 2 पेत्रुस 1:2-7

2) आप लोगों को हमारे ईश्वर और प्रभु ईसा के ज्ञान द्वारा प्रचुर मात्रा में अनुग्रह और शान्ति प्राप्त हो!

3) उनके ईश्वरीय सामर्थ्य ने हमें वह सब प्रदान किया, जो भक्तिमय जीवन के लिए आवश्यक है और हम को उनका ज्ञान प्राप्त करने योग्य बनाया है, जिन्होंने हमें अपनी महिमा और प्रताप द्वारा बुलाया।

4) उन्होंने उस महिमा और प्रताप द्वारा हमारे लिए अपनी अमूल्य और महती प्रतिज्ञाओं को पूरा किया है। इस प्रकार आप उस दूषण से बच गये, जो वासना के कारण संसार में व्याप्त है और आप ईश्वरीय स्वभाव के सहभागी बन गये हैं।

5) इसलिए आप पूरी लगन से प्रयत्न करते रहें कि आपका विश्वास सदाचरण से, आपका सदाचरण ज्ञान से,

6) आपका ज्ञान संयम से, आपका संयम र्धर्य से, आपका धैर्य भक्ति से,

7) आपकी भक्ति मातृ-भाव से और आपका भ्रातृ-भाव प्रेम से युक्त हो।

📒 सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 12:1-12

1) वह लोगों को दुष्तान्तों में शिक्षा देने लगे- ‘‘किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगवायी, उसके चारों ओर घेरा बनवाया, उस में उस का कुण्ड खुदवाया और पक्का मचान बनवाया। तब उसे असामियों को पट्टे पर दे कर वह परदेश चला गया।

2) समय आने पर उसने दाखबारी की फ़सल का हिस्सा वसूल करने के लिए असामियों के पास एक नौकर को भेजा।

3) असामियों ने नौकर को पकड़ कर मारा-पीटा और खाली हाथ लौटा दिया।

4) उसने एक दूसरे नौकर को भेजा। उन्होंने उसका सिर फोड़ दिया और उसे अपमानित किया।

5) उसने एक और नौकर को भेजा और उन्होंने उसे मार डाला। इसके बाद उसने और बहुत -से नौकरों को भेजा। उन्होंने उन में से कुछ लोगों को पीटा और कुछ को मार डाला।

6) अब उसके पास एक ही बच गया- उसका परममित्र पुत्र। अन्त में उसने यह सोच कर उसे उनके पास भेजा कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे।

7) किन्तु उन असामियों ने आपस में कहा, ‘यह तो उत्तराधिकारी है। चलो, हम इसे मार डालें और इसकी विरासत हमारी हो जायेगी।’

8) उन्होंने इसे पकड़ कर मार डाला और दाखबारी के बाहर फेंक दिया।

9) दाखबारी का स्वामी क्या करेगा? वह आ कर उन असामियों का सर्वनाश करेगा और अपनी दाखबारी दूसरों को सौंप देगा।

10) ‘‘क्या तुम लोगों ने धर्मग्रन्थ में यह नहीं पढ़ा?- कारीगरों ने जिस पत्थर को बेकार समझ कर निकाल दिया था, वही कोने का पत्थर बन गया है।’’

11) यह प्रभु का कार्य है। यह हमारी दृष्टि में अपूर्व है।’’

12) वे समझ गये कि ईसा का यह दृष्टान्त हमारे ही विषय में है और उन्हें गिरफ़्तार करने का उपाय ढूँढ़ने लगे। किन्तु वे जनता से डरते थे और उन्हें छोड़ कर चले गये।

📚 मनन-चिंतन

हमारे सामने प्रस्तुत दृष्टांत में, येसु एक दाखबारी की बात करते हैं जो अच्छी तरह से बनाया गया है और सभी आवश्यक व्यवस्थाओं के साथ सुरक्षित है। जिन असामियों को इस अंगूर के बाग की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, वे अच्छी आजीविका और लाभ कमा सकते थे। लेकिन वे इतने महत्वाकांक्षी थे कि वे बाग के मालिक के अधिकारों को नकारना चाहते थे। इसलिए वे उसे उत्पादन का हिस्सा नहीं देना चाहते थे। वे अपनी निर्दयता में और भी आगे बढ़ गए और मालिक द्वारा भेजे गए सेवकों का अपमान, हमला और यहाँ तक कि हत्या भी कर दी। मालिक ने अपने धैर्य और क्षमा के साथ बाद में अपने बेटे को भेजा जिसे उन्होंने मार डाला और अंगूर के बाग से बाहर फेंक दिया। अब मालिक ने अपने अधिकार का प्रयोग किया, आसाअमियों को नष्ट कर दिया और अंगूर के बाग को अन्य आसामियों को सौंप दिया। यहूदी नेताओं को पता था कि येसु उन्हीं के बारे में बात कर रहे थे। हम भी अक्सर ईश्वर के अधिकारों को नकारते हैं। मत्ती 18:23-35 में क्षमा न करने वाले सेवक के दृष्टांत के माध्यम से, हमारी ईश्वर के प्रति ऋणी होने की स्थिति स्पष्ट रूप से वर्णित है। मलआकी 1:6 में, प्रभु पूछते हैं, “एक पुत्र अपने पिता का सम्मान करता है, और सेवक अपने स्वामी का। यदि मैं पिता हूँ, तो मेरा सम्मान कहाँ है? और यदि मैं स्वामी हूँ, तो मेरा आदर कहाँ है?”

- फादर फ्रांसिस स्करिया (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

In the parable before us, Jesus speaks of a vineyard that is well-made and well-secured with all arrangements required. The tenants who were entrusted with this vineyard could have made a good livelihood and profits. But they were very over-ambitious that they wanted to deny the owner his rights over the vineyard. Therefore they did not want to give him his share of the produce. They go further in their atrocity by insulting, attacking and even killing the servants sent by the owner. The owner in his patience and forgiveness later sent his own son whom they killed and threw out of the vineyard. Now the owner asserted his authority, destroyed the tenants and handed over the vineyard to other tenants. The Jewish leaders knew that Jesus was speaking about them. We too often deny the rights of God. In Mt 18:23-35 through the parable of the unforgiving servant, our indebtedness to God is clearly described. In Malachi 1:6, the Lord asks, “A son honors his father, and servants their master. If then I am a father, where is the honor due me? And if I am a master, where is the respect due me? ”

-Fr. Francis Scaria (Bhopal Archdiocese)