3) मूसा ने सीनई पर्वत से उतर कर प्रभु के सब वचन और आदेश लोगों को सुनाये। लोगों ने एक स्वर से इस प्रकार उत्तर दिया, ''प्रभु ने जो कुछ कहा है, हम उसका पालन करेंगे।''
4) मूसा ने प्रभु के सब आदेश लिख दिये और दूसरे दिन, भोर को, उसने पर्वत के नीचे एक वेदी बनायी और इस्राएल के बारह वंषों के लिए बारह पत्थर खड़े कर दिये।
5) उसने इस्राएली नवयुवकों को आदेश दिया कि वे होम-बलि चढ़ायें और शांतियज्ञ के लिए बछड़ों का वध करें।
6) तब मूसा ने पशुओं का आधा रक्त पात्रों में इकट्ठा किया और आधा वेदी पर छिड़का।
7) उसने विधान की पुस्तक ली और उसे लोगों को पढ़ सुनाया। लोगों ने उत्तर दिया, प्रभु ने जो कुछ कहा है, हम उसके अनुसार चलेंगे और उसका पालन करेंगे।
8) इस पर मूसा ने रक्त ले लिया और उसे लोगों पर छिड़कते हुए कहा, ''यह उस विधान का रक्त है, जिसे प्रभु ने उन सब आदेशों के माध्यम से तुम लोगों के लिए निर्धारित किया है।
11) किन्तु अब मसीह हमारे भावी कल्याण के प्रधानयाजक के रूप में आये हैं और उन्होंने एक ऐसे तम्बू को पार किया, जो यहूदियों के तम्बू से महान् तथा श्रेष्ठ है, जो मनुष्य के हाथ से नहीं बना और इस पृथ्वी का नहीं है।
12) उन्होंने बकरों तथा बछड़ों का नहीं, बल्कि अपना रक्त ले कर सदा के लिए एक ही बार परमपावन स्थान में प्रवेश किया और इस तरह हमारे लिए सदा-सर्वदा रहने वाला उद्धार प्राप्त किया है।
13) याजक बकरों तथा सांड़ों का रक्त और कलोर की राख अशुद्ध लोगों पर छिड़कता है और उनका शरीर फिर शुद्ध हो जाता है। यदि उस में पवित्र करने की शक्ति है,
14) तो फिर मसीह का रक्त, जिसे उन्होंने शाश्वत आत्मा के द्वारा निर्दोष बलि के रूप में ईश्वर को अर्पित किया, हमारे अन्तःकरण को पापों से क्यों नहीं शुद्ध करेगा और हमें जीवन्त ईश्वर की सेवा के योग्य बनायेगा?
15) मसीह पहले विधान के समय किये हुए अपराधों की क्षमा के लिए मर गये हैं और इस प्रकार वह एक नये विधान के मध्यस्थ हैं। ईश्वर जिन्हें बुलाते हैं, वे अब उसकी प्रतिज्ञा के अनुसार अनन्त काल तक बनी रहने वाली विरासत प्राप्त करते हैं।
12) बेख़मीर रोटी के पहले दिन, जब पास्का के मेमने की बलि चढ़ायी जाती है, शिष्यों ने ईसा से कहा, ’’आप क्या चाहते हैं? हम कहाँ जा कर आपके लिए पास्का भोज की तैयारी करें?’’
13) ईसा ने दो शिष्यों को यह कहते हुए भेजा, ’’शहर जाओ। तुम्हें पानी का घड़ा लिये एक पुरुष मिलेगा। उसके पीछे-पीछे चलो।
14) और जिस घर में वह प्रवेश करे, उस घर के स्वामी से यह कहो, ’गुरुवर कहते हैं- मेरे लिए अतिथिशाला कहाँ हैं, जहाँ मैं अपने शिष्यों के साथ पास्का का भोजन करूँ?’
15) और वह तुम्हें ऊपर सजा-सजाया बड़ा कमरा दिखा देगा वहीं हम लोगों के लिए तैयार करो।’’
16) शिष्य चल पड़े। ईसा ने जैसा कहा था, उन्होंने शहर पहुँच कर सब कुछ वैसा ही पाया और पास्का-भोज की तैयारी कर ली।
22) उनके भोजन करते समय ईसा ने रोटी ले ली, और आशिष की प्रार्थना पढ़ने के बाद उसे तोड़ा और यह कहते हुए शिष्यों को दिया, ’’ले लो, यह मेरा शरीर है’’।
23) तब उन्होंने प्याला ले कर धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और उसे शिष्यों को दिया और सब ने उस में से पीया।
24) ईसा ने उन से कहा, ’’यह मेरा रक्त है, विधान का रक्त, जो बहुतों के लिए बहाया जा रहा है।
25) मैं तुम से यह कहता हूँ- जब तक मैं ईश्वर के राज्य में नवीन रस न पी लूँ, तब तक मैं दाख का रस फिर नहीं पिऊँगा।’’
26) भजन गाने के बाद वे जैतून पहाड़ चल दिये।
येसु सारी मानवजाति को मुक्ति देने के लिए आए थे। पिता ने, मानवता के प्रति अपने प्रेम से, अपने इकलौते पुत्र येसु को दुनिया में भेजा, ताकि वह स्वयं का बलिदान दे, मानवता को मुक्ति दे सकें। येसु ने यूखरिस्तीय संस्कार की स्थापना करते हुए मृत्यु को प्राप्त किया। यूखरिस्त में वह हमें अपना शरीर और रक्त देते हैं। उन्होंने इस संस्कार की स्थापना करने के लिए मृत्यु को गले लगाया। वह हमारे प्रति प्रेम से मरने को तैयार थे। यूखरिस्त ईश्वर के प्रेम का संस्कार है। यूखरिस्त ईश्वर के प्रेम का आत्म-उपहार है। येसु हमें बताते हैं कि हमें एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए जैसे उन्होंने हमसे किया और वह यूखरिस्त में हमसे प्रेम करते रहते हैं। परमप्रसाद मंत हम इस प्रेम के संस्कार को प्राप्त करते हैं। हमें उसी तीव्रता से एक दूसरे से प्रेम करने का आह्वान किया जाता है। संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने अपने उद्बोधन ’साक्रमेन्तुम कारितातिस (नंबर 1) में कहते हैं, “प्रेम का संस्कार, पवित्र यूखरिस्त वह उपहार है जिसमें येसु मसीह स्वयं को हमें देते हैं। इस प्रकार वह हमारे लिए, हर एक पुरुष और महिला के लिए, ईश्वर के अनंत प्रेम को प्रकट करते हैं।” आइए हम यूखरिस्त से एक दूसरे से प्रेम करना सीखें।
✍ - फादर फ्रांसिस स्करिया (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Jesus came to die, to redeem the whole humanity. The Father, out of love for the humanity, sent his only son Jesus into the world, to sacrifice himself, to redeem the whole humanity. Jesus dies as he establishes the Sacrament of the Eucharist. In the Eucharist he gives us his own Body and Blood. He dies to establish this sacrament. He was ready to die out of love for us. The Eucharist is a Sacrament of God’s Love. The Eucharist is God’s self-gift of love. Jesus tells us to love one another as he loved us and he continues to love us in the Eucharist. In the Eucharistic Communion we receive this Sacrament of love. We are called upon to love one another with the same intensity. In his Post Synodal Exhortation, Sacramentum Caritatis, (no.1) Popo Benedict XVI says, “The sacrament of charity, the Holy Eucharist is the gift that Jesus Christ makes of himself, thus revealing to us God's infinite love for every man and woman”. Let us learn from the Eucharist to love one another.
✍ -Fr. Francis Scaria (Bhopal Archdiocese)
निर्गमन ग्रन्थ 24:3-8 इब्रानियों 9:11-15, मारकुस 14:12-16,22-26
आज हम प्रभु येसु के पवित्र शरीर व रक्त का पर्व मनाते हैं। पवित्र युख्ररिस्त या प्रभु येसु के शरीर और रक्त का त्यौहार हमारे ख्रीस्तिीय जीवन का अभिन्न अंग है क्योंकि प्रभु येसु ने इसे हमारे पापों की क्षमा एवं मुक्ति के लिए स्थापित किया है। इसमें प्रभु येसु हमें पूर्णतः अपने को हमारे लिए देते हैं। व हमारे लिए भोजन और बलि बन जाते हैं। यह त्यौहार हमारे लिए उनकी समृति में मनाया जाता है। उन्होंने हमें आज्ञा दी है कि हम इसे उनकी स्मृति मनाये। मानवीय पोषण के अध्ययन से हमें पता चलता है कि ’’जो हम खाते हैं वही बनते हैं और अच्छी खादय प्रदार्थ हमारे शरीर को पोषित करता है।’’ जैसे हम भौतिक भोजन अपने शरीर को जीवित रखने के लिए खाते हैं, वैसे ही हमारी अध्यात्मिक भोजन हमारी आत्मा को बचाने के लिए आवश्यक है। उसी प्रकार युख्ररिस्त हमारे शरीर और आत्मा को स्वास्थ्य रखता है।
आज के पहले पाठ में मूसा ने इस्रलियों को ईश्वर के आदेश और वचन को सुनाते हैं और लोगों ने एक स्वर से इस प्रकार उत्तर दिया, ’’प्रभु ने जो कुछ कहा है, हम उसका पालन करेंगें (निर्गमन 24:3)। मूसा ने प्रभु के सब आदेश लिख दिये और जोर से पढ़कर सुनाया, लोगों ने पुनः अपनी प्रतिज्ञाओं को दुहराया, प्रभु ने जो कहा है, हम उसके अनुसार चलेंगे और उसका पालन करेंगे। (निर्गमन 34:7)। स्तोत्र ग्रन्थ 116:18 प्रभु की सारी प्रजा के सामने प्रभु के लिए अपनी मन्नतें पुरी करूँगा।
आज का दूसरा पाठ और सुसमाचार हम ख्रीस्तीयों के लिए महिमामय आशा की सुचक है। युख्रीस्तीय संस्कार में प्रभु येसु को ग्रहण कर हम उनके साथ एक हो जाते हैं। प्रभु येसु हमें निमत्रंण देते हुए कहतें हैं, ’’ले लो, यह मेरा शरीर है।’’ (मारकुस 14:22) और पुनः कहते हैं, ’’यह मेरा रक्त है, विधान का रक्त, जो बहुतों के लिए बहाया जा रहा है।’’ (मारकुस 14:24) प्रभु येसु अपने प्रेम को एक पवित्र सहभागिता से पूर्ण करते है।
प्रभु येसु के पवित्र शरीर एवं रक्त के विषय में संत पिता योहन पौलुस द्वितीय ने कहा कि ’’हमारा विश्वास ईश्वर में शरीर धारण किया जिससे हम उनके मित्र बन सकें।’’ उन्हें हम हर जगह घोषित करें, विशेष करके हमारे घरों में, समाज में और हमारे संसार में।
✍फादर आइजक एक्काToday, we celebrate the feast of Holy Eucharist or Holy Body and Blood of Christ. The Eucharist is offered by believers, to the Heavenly Father together with Jesus for the remission of sins and as an offering of gratitude and thanksgiving. The Holy Eucharist is the indivisible part of our Christian life; Jesus instituted it for the forgiveness of our sins and salvation. In the Eucharist Jesus gives himself totally to us and he becomes our food and sacrifice. This feast is celebrated because he has given us the commandment that we celebrate in his memory. From the human nutrition study, it is known that, “we eat what we become,” and good food nourishes the body”. As physical food we eat nourishes the body, so the spiritual food nourishes our soul, and prepares and preserves for eternity, likewise Eucharist keeps our body and soul fit and healthy.
In the first reading today Moses tells to the people Lord’s words and ordinances, and the people respond it, “All the words that the Lord has spoken we will do.” Then Moses wrote down the words of the Lord and read it aloud and the people reaffirm it, “All that the Lord has spoken we will do, and we will be obedient.” We also find similar response of the people in Psalm 116:18, “I will pay my vows to the Lord in the presence of his people.”
Today’s second reading and the gospel is a reminder of his glorious hope of God’s blessing. After receiving the Eucharist we become one with Christ. And Jesus invites us and says, “Take; this is my blood”. And again Jesus said, “This is my blood of the covenant, which is poured out for many.” Jesus completely gives his body and blood for us to become his sons and daughters. St. John Paul II said, “Our faith in God took flesh in order to become our companion along the way need to be everywhere proclaimed, especially in our streets and homes, as an expression of our grateful love as an inexhaustible source of blessings.”
✍ -Fr. Isaac Ekka
योहन 15:13 में प्रभु येसु कहते हैं, “इस से बडा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने मित्रों के लिये अपने प्राण अर्पित कर दे”। प्रभु येसु यही सर्वोत्तम प्रेम क्रूस पर प्रस्तुत करते हैं जब वे कलवारी पहाडी पर क्रूस पर हमारे लिए, सारी मानव-जाति के लिए अपने प्राण अर्पित करते हैं। प्रेम के इस बलिदान को अटारी में शिष्यों के साथ अंतिम भोज के समय एक अमर चिह्न के रूप में प्रदान कर प्रभु ने यूखारिस्तीय संस्कार की स्थापना की। इसलिए यूखारिस्त सर्वोत्तम प्रेम का बलिदान है।
पुराने विधान में पशुओं के बलिदान चढाये जाते थे। परन्तु नये विधान में एक अनोखा बलिदान चढाया जाता है। इस संदर्भ में इब्रानियों के पत्र में प्रभु का वचन कहता है, “प्रधानयाजक ही, वर्ष में एक बार, पिछले कक्ष में वह रक्त लिये प्रवेश करता था, जिसे वह अपने और प्रजा के दोषों के लिए प्रायश्चित के रूप में चढ़ाता था।.... किन्तु अब मसीह हमारे भावी कल्याण के प्रधानयाजक के रूप में आये हैं और उन्होंने एक ऐसे तम्बू को पार किया, जो यहूदियों के तम्बू से महान् तथा श्रेष्ठ है, जो मनुष्य के हाथ से नहीं बना और इस पृथ्वी का नहीं है। उन्होंने बकरों तथा बछड़ों का नहीं, बल्कि अपना रक्त ले कर सदा के लिए एक ही बार परमपावन स्थान में प्रवेश किया और इस तरह हमारे लिए सदा-सर्वदा रहने वाला उद्धार प्राप्त किया है।“ (इब्रानियों 9:7, 11-12)
निर्गमन 24:6,8 में हम देखते हैं कि मूसा ने बलि-पशुओं का आधा रक्त लोगों पर छिड़कते हुए कहा, ''यह उस विधान का रक्त है, जिसे प्रभु ने उन सब आदेशों के माध्यम से तुम लोगों के लिए निर्धारित किया है”। अंतिम भोज के समय प्रभु येसु “ने प्याला लिया, धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और कहा, ‘‘इसे ले लो और आपस में बाँट लो; क्योंकि मैं तुम लोगों से कहता हूँ, जब तक ईश्वर का राज्य न आये, मैं दाख का रस फिर नहीं पिऊँगा’’। उन्होंने रोटी ली और धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ने के बाद उसे तोड़ा और यह कहते हुए शिष्यों को दिया, ‘‘यह मेरा शरीर है, जो तुम्हारे लिए दिया जा रहा है। यह मेरी स्मृति में किया करो’’। (लूकस 22:17-19) उसी आज्ञा के अनुसार आज भी दुनिया भर के गिरजाघरों में वही बलिदान प्रभु येसु की स्मृति में मनाया जाता है।
जब प्रभु इस्राएलियों को मिस्र देश से छुडाने पर थे, तब ईश्वर ने आज्ञा दी थी कि हर इस्राएली परिवार में एक मेमने का वध किया जाये और उसका रक्त घर के चौखटों पर पुताया जाये ताकि विनाशक दूत मेमने के रक्त से पुते इस्राएली घरों को कोई हानि नहीं पहुँचाये। इस्राएली लोग निर्गमन से संबंधित घटनाओं को याद करते हुए हर वर्ष पास्का त्योहार मनाते थे। प्रभु येसु नये विधान का मेमना है। संत योहन बपतिस्ता अपने शिष्यों को येसु से परिचित कराते हुए कहते हैं, “देखो-ईश्वर का मेमना, जो संसार का पाप हरता है” (योहन 1:29)। ह्म उन्हीं प्रभु के रक्त से खरीदे गये हैं, बचाये गये है। संत पेत्रुस कहते हैं, “आप लोग जानते हैं कि आपके पूर्वजों से चली आयी हुई निरर्थक जीवन-चर्या से आपका उद्धार सोने-चांदी जैसी नश्वर चीजों की कीमत पर नहीं हुआ है, बल्कि एक निर्दोष तथा निष्कलंक मेमने अर्थात् मसीह के मूल्यवान् रक्त की कीमत पर।” (1 पेत्रुस 1:18-19)
कलवारी पर प्रभु येसु के बलिदान की महानता की ओर इशारा करते हुए नबी इसायाह कहते हैं, “विश्वमण्डल का प्रभु इस पर्वत पर सब राष्ट्रों के लिए एक भोज का प्रबन्ध करेगाः उस में रसदार मांस परोसा जायेगा और पुरानी तथा बढ़िया अंगूरी। वह इस पर्वत पर से सब लोगों तथा सब राष्ट्रों के लिए कफ़न और शोक के वस्त्र हटा देगा, वह सदा के लिए मृत्यु समाप्त करेगा। प्रभु-ईश्वर सबों के मुख से आँसू पोंछ डालेगा। वह समस्त पृथ्वी पर से अपनी प्रजा का कलंक दूर कर देगा। प्रभु ने यह कहा है।” (इसायाह 25:6-8) इसी कारण इस बलिदान में बडी शक्ति है। राजाओं के पहले ग्रन्थ के अध्याय 19 में हम पढ़ते हैं कि नबी एलियाह ईश्वर के दिये हुए भोजन के बल पर चालीस दिन और चालीस रात चल कर ईश्वर के पर्वत होरेब तक पहुँच कर वहाँ ईश्वर के दर्शन करते हैं। आज विश्वासी लोग यूखारिस्तीय बलिदान से अपने दैनिक जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति पाते हैं। येसु के द्वारा रोटियों के चमत्कार तथा पानी को अंगूरी में बदलना यूखारिस्तीय संस्कार की ओर शिष्यों को ले चलने वाली घटनाओं के रूप में भी देखे जा सकते हैं। इस महानतम संस्कार को योग्य रीति से ग्रहण करने के विषय में संत पौलुस कहते हैं, “जो अयोग्य रीति से वह रोटी खाता या प्रभु का प्याला पीता है, वह प्रभु के शरीर और रक़्त के विरुद्ध अपराध करता है। अपने अन्तःकरण की परीक्षा करने के बाद ही मनुष्य वह रोटी खाये और वह प्याला पिये।” (1 कुरिन्थियों 11:27-28) आइए, हम इस बलिदान में भाग लेने योग्य बनने के लिए ईश्वर की कृपा माँगे।
✍फादर फ्रांसिस स्करिया