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17) प्यारे भाइयो! आप लोग हमारे प्रभु ईसा मसीह के प्रेरितों की भविष्यवाणियाँ याद रखें।
20) किन्तु प्रिय भाइयो! आप अपने परमपावन विश्वास की नींव पर अपने जीवन का निर्माण करें। पवित्र आत्मा से प्रार्थना करते रहें।
21) ईश्वर के प्रेम में सुदृढ़ बने रहें और उस दिन की प्रतीक्षा करें, जब हमारे प्रभु ईसा मसीह की दया आप को अनन्त जीवन प्रदान करेगी।
22) कुछ लोगों का विश्वास दृढ़ नहीं है। उन पर दया करें
23) और उन्हें आग से निकाल कर उनकी रक्षा करें। आप कुछ लोगों पर दया करते समय सतर्क रहें और विषयवासना से दूषित उनके वस्त्र से भी घृणा करें।
24) जो आप को पाप से सुरक्षित रखने और आप को दोष-रहित और आनन्दित बना कर अपनी महिमा में प्रस्तुत करने में समर्थ है,
25) जो हमें हमारे प्रभु ईसा मसीह द्वारा मुक्ति प्रदान करता है, उसी एकमात्र इ्रश्वर को अनादि काल से, अभी और अनन्त काल तक महिमा, प्रताप, सामर्थ्य और अधिकार! आमेन!
27) वे फिर येरूसालेम आये। जब ईसा मन्दिर में टहल रहे थे, तो महायाजक, शास्त्री और नेता उनेक पास आ कर बोले,
28) “आप किस अधिकार से यह सब कर रहे हैं? किसने आप को यह सब करने का अधिकार दिया?“
29) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, “मैं भी आप लोगों से एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। यदि आप मुझे इसका उत्तर देंगे, तो मैं भी आप को बता दूँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब कर रहा हूँ।
30) बताइए, योहन का बपतिस्मा स्वर्ग का था अथवा मनुष्यों का?"
31) वे यह कहते हुए आपस में परामर्श करते थे- “यदि हम कहें, ’स्वर्ग का’, तो वह कहेंगे, ’तब आप लोगों ने उस पर विश्वास क्यों नहीं किया’।
32) यदि हम कहें, “मनुष्यों का, तो....।“ वे जनता से डरते थे। क्योंकि सब योहन को नबी मानते थे।
33) इसलिए उन्होंने ईसा को उत्तर दिया, “हम नहीं जानते"। इस पर ईसा ने उन से कहा,“ तब मैं भी आप लोगों को नहीं बताऊँगा कि मैं किस अधिकार से यह सब कर रहा हूँ"।
येसु का अपने विरोधियों का सामना करने का एक अनोखा और अधिकारपूर्ण तरीका था। प्रधान याजक, सदूकियों, और जनता के नेताओं ने उनके द्वारा किए गए महान कार्यों को देखा। उन्होंने पहले ही अपने मन को बंद कर लिया था। वे उनमें मौजूद अच्छाई को नहीं देख पा रहे थे। फिर भी वे उन महान कार्यों को नकार नहीं सकते थे जो उन्होंने उनकी आँखों के सामने किए थे। उनकी ईर्ष्या ने उन्हें उनका विरोध करने के अन्य कारण ढूंढने को मजबूर किया। उन्होंने येसु को सुसमाचार सुनाते, चंगा करते, दुष्टात्माओं को बाहर निकालते और महान अधिकार और शक्ति के साथ चमत्कार करते देखा। यह कोई भी पहचान सकता था। लेकिन यहूदी नेताओं ने उनके अधिकार के स्रोत पर सवाल उठाया। येसु के पास उनका सामना करने के अकल्पनीय तरीके थे। येसु जानते थे कि उन्होंने पहले ही योहन बपतिस्ता के महान उपदेशों को मन से नकार दिया था, जो साधारण लोगों के बीच इतने लोकप्रिय थे कि लोग उनके पास भागते रहते थे। येसु ने योहन बपतिस्ता के बारे में उनके विचारों पर सवाल उठाया। उन्होंने कूटनीतिक रूप से उस सवाल को टाल दिया। येसु ने उसी सिक्के में जवाब देते हुए उनके सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया। हम अपने आस-पास मौजूद अच्छाई के प्रति कितने खुले हैं? क्या हम उन लोगों से ईर्ष्या करते हैं जो अच्छा कर रहे हैं और लोकप्रिय हो गए हैं?
✍ - फादर फ्रांसिस स्करिया (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Jesus had a unique and authoritative way of confronting his opponents. The chief priests, the scribes, and the elders saw the great works he performed. They had already closed their minds. They were blind to the goodness in him. Yet they could not negate those great works which he performed before their eyes. Their jealousy made them look for other reasons to oppose him. They saw Jesus preaching, healing, casting out demons and working miracles with great authority and power. Anyone could recognize that. But the Jewish leaders came up, questioning the source of his authority. Jesus had unimaginable ways of confronting them. Jesus knowing that they had already closed their minds to the great preaching of John the Baptist who was so popular with the ordinary people who kept rushing to him, questioned their views about John’s Baptism. They diplomatically evaded that question. Jesus responding in the same coin refused to address their question. How open are we to goodness present around us? Are we jealous about those who are doing good and have become popular?
✍ -Fr. Francis Scaria (Bhopal Archdiocese)