मई 26, 2024, इतवार

पवित्र त्रित्व का महापर्व

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पहला पाठ : विधि-विवरण ग्रन्थ 4:32-34,39-40

32) ईश्वर ने जब पृथ्वी पर मनुष्य की सृष्टि की थी, तुम सब से ले कर अपने पहले के प्राचीन युगों का हाल पूछो। क्या पृथ्वी के एक छोर से दूसरे छोर तक कभी इतनी अद्भुत घटना हुई है?

33) क्या इस प्रकार की बात कभी सुनने में आयी है? क्या और कोई ऐसा राष्ट्र है, जिसने तुम लोगों की तरह अग्नि में से बोलते हुए ईश्वर की वाणी सुनी और जीवित बच गया हो?

34) ईश्वर ने आतंक दिखाकर, विपत्तियों, चिन्हों, चमत्कारों और युद्धों के माध्यम से, अपने सामर्थ्य तथा बाहुबल द्वारा तुम लोगों को मिस्र देश से निकाल लिया है - यह सब तुमने अपनी आँखों से देखा है। क्या और कोई ऐसा ईश्वर है, जिसने इस तरह किसी दूसरे राष्ट्र म

39) आज यह जान लो और इस पर मन-ही-मन विचार करो कि ऊपर आकाश में तथा नीचे पृथ्वी पर प्रभु ही ईश्वर है; उसके सिवा कोई और ईश्वर नहीं है।

40) मैं तुम लोगों को आज उसके नियम और आदेश सुनाता हूँ। तुम उनका पालन किया करो, जिससे जो देश तुम्हारा प्रभु-ईश्वर तुम्हें सदा के लिए देने वाला है, उस में तुम को और तुम्हारे पुत्रों को सुख-शांति तथा लम्बी आयु मिल सकें।“

दूसरा पाठ: रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 8:14-17

14) लेकिन यदि आप आत्मा की प्रेरणा से शरीर की वासनाओें का दमन करेंगे, तो आप को जीवन प्राप्त होगा।

15) जो लोग ईश्वर के आत्मा से संचालित हैं, वे सब ईश्वर के पुत्र हैं- आप लोगों को दासों का मनोभाव नहीं मिला, जिस से प्रेरित हो कर आप फिर डरने लगें। आप लोगों को गोद लिये पुत्रों का मनोभाव मिला, जिस से प्रेरित हो कर हम पुकार कर कहते हैं, ’’अब्बा, हे पिता!

16) आत्मा स्वयं हमें आश्वासन देता है कि हम सचमुच ईश्वर की सन्तान हैं।

17) यदि हम उसकी सन्तान हैं, तो हम उसकी विरासत के भागी हैं-हम मसीह के साथ ईश्वर की विरासत के भागी हैं। यदि हम उनके साथ दुःख भोगते हैं, तो हम उनके साथ महिमान्वित होंगे।

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 28:16-20

16) तब ग्यारह शिष्य गलीलिया की उस पहाड़ी के पास गये , जहाँ ईसा ने उन्हें बुलाया था।

17) उन्होंने ईसा को देख कर दण्डवत् किया, किन्तु किसी-किसी को सन्देह भी हुआ।

18) तब ईसा ने उनके पास आ कर कहा, ’’मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है।

19) इसलिए तुम लोग जा कर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो।

20) मैंने तुम्हें जो-जो आदेश दिये हैं, तुम-लोग उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ और याद रखो- मैं संसार के अन्त तक सदा तुम्हारे साथ हूँ।’’

📚 मनन-चिंतन

आज हम पवित्र त्रिएक ईश्वर का रविवार मनाते हैं। पवित्र त्रित्व का रहस्य ईश्वर के अस्तित्व का सबसे गहरा रहस्य है। जब हम पवित्र त्रित्व के बारे में बात करते हैं तो मैं इसकी शुरूआत संत योहन के पहले पत्र अध्याय 4:8 से करना उचित समझता हूँ। जहाँ पर संत योहन ईश्वर की परिभाषा इन शब्दों में पेश करते हैं - ‘‘ईश्वर प्रेम है।’’ ‘ईश्वर प्यार है’ यह दावा ही पवित्र त्रित्व को समझने व पहचानने का आधार है। ईश्वर प्यार है और ईश्वर त्रित्व है ये दोनों एक ही बात की और इंगित करते हैं।

ईश्वर का त्रिएक रूप में होना हमें क्या सिखलाता है? ईश्वर का त्रिएक अस्तित्व है याने प्रेम की परिपूर्णता का अस्तित्व है। अपने इसी स्वाभाव के कारण ईश्वर हमारी सृष्टि करता है और वही त्रियेक ईश्वर हमें अपने इस प्रेम में भागिदार होने के लिए बुलाता है। संत योहन 14:23 में प्रभु येसु कहते हैं - ‘‘यदि कोई मुझे प्यार करेगा तो वह मेरी शिक्षा पर चलेगा। मेरा पिता उसे प्यार करेगा और हम उसके पास आकर उसमें निवास करेंगे।’’तो यह है पवित्र त्रित्व में विश्वास करने का अंतिम उद्देश्य कि हम ईश्वर के इस असीम और अनन्त प्रेम के भागिदार बन जायें।

संत योहन 14:3 में प्रभु येसु अपनी ख़्वाहिश इन श्ब्दों में बयाँ करते हैं - "जिससे जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम भी रहो’’ प्रभु येसु कहाँ है इसके बारे में योहन 14:11 में येसु हमें बतलाते हैं - ‘‘मैं पिता में हूँ ओर पिता मुझमें हैं’’ इसका आशय यह हुआ कि पवित्र त्रिएक ईश्वर हमें अपने प्रेम में एक हो जाने के लिए बुलाता है। याने हम सब पिता पुत्र और पवित्र आत्मा के एकता में भागीदार होकर एक हो जाएँ।

येसु ख्रीस्त की शिक्षाओं पर चले बिना हम उनसे प्यार नहीं कर पायेंगे और न ही उनके प्यार के सहभागी बन पायेंगे। तो सबसे पहले हमें येसु ख्रीस्त को पहचानना उन्हें स्वीकार करना और उनकी आज्ञाओं को मानना होगा। तब हम उनसे प्यार कर पायेंगे और स्वयं पिता हमें प्यार करेगा और पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा हममें आकर निवास करेंगे (योहन 14:23) ।

- फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत


📚 REFLECTION

Today we celebrate the Holy Trinity Sunday. The mystery of the Holy Trinity is the deepest mystery of God’s existence. When we talk about the Holy Trinity, I think it appropriate to begin with 1 John 4:8, Where John defines God in these words – “God is love.” The claim that ‘God is love’ is the basis for understanding and recognizing the Holy Trinity. God is love and God is the Trinity, these two point to the same thing.

What does the Holy Trinity teach us? The Holy Trinity is the existence of the Three Divine Persons of Godhead in one perfect union of love. Because of this love in the Godhead that he created us and He calls us to share in His Divine love. In John 14:23, Jesus says, “Those who love me will keep my word, and my Father will love them, and we will come to them and make our home with them.’’ So this is the ultimate purpose of believing in the Holy Trinity, that we become partakers of this infinite love of God. In John 14:3, Jesus expresses his desire in these words: "So that where I am, there you may be also." We mush ask then where Jesus is and the answer is found in in John 14:11 – “I am in the Father, and the Father is in me” This means that the Truine God calls us to be one in His love. We are called to become one in union with the Father, the Son, and the Holy Spirit.

Without following the teachings of Jesus Christ, we will not be able to love him or share his love. So first of all, we have to know Jesus Christ, accept Him and keep His commandments. For the Word of God says - “Those who love me will keep my word, and my Father will love them, and we will come to them and make our home with them.

-Fr. Fr. Preetam Vasuniya - Indore Diocese

📚 मनन-चिंतन-2

हम सब ख्रीस्तीय पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर सभी कार्य करते है, विशेष रूप से प्रार्थना की शुरुआत और अंत। पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा तीन व्यक्ति है परंतु एक ईश्वर है और इसी त्रियेक ईश्वर का पर्व हम आज मनाते है, जिसे पवित्र त्रित्व के महापर्व से जाना जाता है।

मनुष्यों ने हमेशा से ही ईश्वर के बारे में जानने की कोशिश की है। प्रभु येसु और पवित्र आत्मा के द्वारा हमने ईश्वर और उनकी योजनाओं के बारे में कई रहस्य या सिद्धांत को समझा और जाना है परंतु जरूरी नहीं कि हम ईश्वर के हर रहस्य को समझ पाये। उनमें से एक रहस्य पवित्र त्रित्व का है जो हमारे इस क्षणिक दिमाग में कभी भी नहीं समा सकता।

आज के तीनों पाठ आज के पर्व के संदर्भ के अनुसार है। पहला पाठ में हमे शक्तिशाली पिता ईश्वर के विषय में बताया गया है जिसने इस अद्भुत सृष्टि की रचना की और महान चमत्कारों द्वारा इस्राएल को बचाया; वह पिता एक शक्तिशाली ईश्वर है और उसके सिवा कोई और ईश्वर नहीं है।

दूसरे पाठ में पवित्र आत्मा के विषय में बताया गया है। पवित्र आत्मा ईश्वर बाहर नहीं परंतु हमारे भीतर बसने वाला ईश्वर है क्योकि हमारा शरीर पवित्र आत्मा का मंदिर है। जो लोग ईश्वर के आत्मा से संचालित है उनमें ईश्वर के जीवन का संचार है और वह इस संसार से परे रहकर ईश्वर के पुत्र के मनोभाव के अनुसार जीवन बिताता है।

सुसमाचार में हम प्रभु येसु के अंतिम आदेश के बारे में जानते है जहॉं प्रभु येसु अपने शिष्यों से कहते है कि, ’’मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है। इसलिए तुम लोग जा कर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो।’’ प्रभु येसु जाते जाते पवित्र त्रित्व के नाम को उजागर कर के जाते है।

पवित्र त्रित्व का पर्व हमारे लिए त्रियेक ईश्वर को जानने का और प्रार्थना करने का सुंदर अवसर है परंतु इस रहस्य या सिद्धांत को पूर्ण रूप से समझना हमारे दिमाग के बस की बात नहीं। एक ईश्वर में तीन जन- इस रहस्य को समझाने के लिए कई विद्वानों ने कई उदाहरण देकर समझना चाहा परंतु किसी ने भी एक ठोस रूप से इसकी गहराई को समझा नहीं पाया है।

पवित्र त्रित्व का पर्व एकता का पाठ पढ़ाती है। जिस प्रकार पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा अलग अलग व्यक्ति है परंतु वे एक है। जिस प्रकार प्रभु येसु कहते है मै पिता में हूॅं और पिता मुझमें है ठीक उसी प्रकार पवित्र आत्मा भी पिता और पुत्र में हैं और वे पवित्र आत्मा में अर्थात् वे तीनों एक है। आज के पर्व की आशीष द्वारा हम भी ईश्वर में एक बनें रहें जिस प्रकार प्रभु येसु हमारे लिए चाह रखते है, ’’सब के सब एक हो जायें। पिता! जिस तरह तू मुझ में है और मैं तुझ में, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें’’ (योहन 17ः21)। आमेन!

फ़ादर डेनिस तिग्गा

📚 REFLECTION


We all Christians do all the works in the name of the Father and of the Son and of the Holy Spirit, especially before and after the prayer. Father, Son and Holy Spirit are three persons but one God and this triune God’s feast we are celebrating today which is popularly known as Feast of Holy Trinity.

Humans have always tried to know about God. Because of Jesus and the Holy Spirit we understood many mysteries or concept about God and his plans but it is not necessary that we may understand every mystery. Among those mystery is the mystery of Holy Trinity which our temporary minds cannot contain it.

Today’s all the three readings are based on today’s feast. First reading is about the Almighty Father who created this wonderful creation and with great miracles He rescued Israelites; The Father is Almighty God and there is no other.

Second Reading is about the Holy Spirit. Holy Spirit God is a God who wants to live not outside but inside of us because our body is the temple of the Holy Spirit. Those who are led by the Spirit in them God’s power flows and setting themselves apart they live according to the mind of children of God.

In the Gospel we read about the mandate of Jesus where Lord Jesus says to the disciples, “All authority in heaven and on earth has been given to me. Go therefore and make disciples of all nations, baptizing them in the name of the Father and of the Son and of the Holy Spirit.” Before going Jesus manifest the name of the Holy Trinity.

The feast of Holy Trinity is a beautiful opportunity to know about triune God and to pray to Him, but to understand the mystery or concept fully is out of our brain. Three persons in one God- to understand this mystery many scholars tried to understand through various examples but none of them have explained the depth of it in a concrete manner.

The feast of Holy Trinity teaches us the lesson of unity. As the Father, Son and the Holy Spirit are three different persons but they are united as one. As Lord Jesus says I am in the Father and Father is in me similarly Holy Spirit is also in the Father and the Son and they in the Holy Spirit that is to say they three are one. By the grace of today’s feast we also may remain one in God as Lord Jesus wants for us, “that they may be one, as you, Father, are in me and I am in you, may they also be in us.” Amen!

-Fr. Dennis Tigga

मनन-चिंतन -3

आज माता कलीसिया परम पवित्र त्रित्व का महापर्व मनाती है। कलीसिया की शिक्षायें हमें बताती हैं कि हमारे विश्वास का आधार ही पवित्र त्रित्व है। पवित्र त्रित्व के बारे में हमारा ज्ञान पवित्र धर्मग्रन्थ में वर्णित बातों पर आधारित है। हमारी धर्मशिक्षा में भी हमें सिखाया जाता है कि हमारे धर्म की चार बड़ी सच्चाइयों में से एक यह भी है कि केवल एक ईश्वर है और एक ईश्वर में तीन जन हैं- पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा। इस परम सच्चाई के बारे में यह भी सच है कि पवित्र त्रित्व के इस रहस्य को समझना टेढ़ी खीर है अर्थात् इसे समझना बहुत मुश्किल है, क्योंकि माता कलीसिया हमें सिखाती है कि तीनों एक ही ईश्वर हैं और तीनों सिर्फ एक ही नहीं बल्कि पूर्ण रूप से एक दूसरे से भिन्न व अलग-अलग जन हैं।

मनुष्य की सृष्टि ईश्वर ने की है। ईश्वर सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान एवं सर्वत्र है। वहीं दूसरी ओर मनुष्य का ज्ञान, शक्ति और क्षमता सीमित है। इस सीमित क्षमता के साथ उस असीम ईश्वर व सृष्टिकर्ता के रहस्य को पूर्ण रूप से समझना असम्भव है। पवित्र त्रित्व के रहस्य को समझने की कठिनाई के बारे में सन्त अगस्टीन की लोकप्रिय कहानी प्रचलित हैः सन्त अगस्टीन पवित्र त्रित्व के रहस्य को समझने के लिए तीस वर्षों तक अध्ययन करते रहे। एक बार वे समुन्द्र के किनारे इसी रहस्य को समझने के लिये मनन-चिन्तन में व्यस्त थे कि तभी उनकी नज़र एक छोटे बालक पर पड़ी जो समुन्द्र के किनारे पर एक छोटा सा गड्ढा बनाकर एक सीप के माध्यम से उस गड्ढे को भरने का प्रयास कर रहा था। सन्त अगस्टीन ने जब उससे पूछा कि वह क्या करना चाहता है तो बालक ने उत्तर दिया कि वह उस समुन्द्र के पूरे जल को उस छोटे से गड्ढे में भरना चाहता है। सन्त अगस्टीन को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ऐसा कैसे सम्भव है, इतना विशाल सागर उस छोटे से गड्ढे में कैसे समा सकता है। उस बालक ने उत्तर दिया कि तुम भी तो वही कर रहे हो, सर्वशक्तिमान ईश्वर के रहस्य को अपने छोटे से सीमित ज्ञान से समझने का प्रयास कर रहे हो। और यह बताकर वह बालक अन्तर्ध्यान हो गया।

पवित्र बाईबिल का अध्ययन करने पर हमें ऐसा प्रतीत होता है कि तीनों जन - पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा अलग-अलग हैं और अलग-अलग समय पर सक्रिय हैं। पुराने व्यवस्थान में सिर्फ पिता ईश्वर ही कार्य करते हुए दिखाई देते हैं। चाहे वह सृष्टि की रचना हो, इब्राहीम का बुलावा हो, या मिश्र की दासता से इस्रायलियों को बाहर निकालने का कार्य हो, अथवा नबियों को भेजकर लोगों को सही मार्ग पर लाने का कार्य हो। ऐसा प्र्रतीत होता है कि पुराने व्यवस्थान का युग पिता ईश्वर का युग है और पुत्र और पवित्र आत्मा कहीं स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते। उसी तरह चारों सुसमाचारों में हम मुख्य रूप से प्रभु येसु के बारे में पढते और सुनते हैं। हालांकि पिता और पवित्र आत्मा भी यदा-कदा दिखाई देते हैं। वहीं सुसमाचारों के बाद की पुस्तकों में हमें मुख्य रूप से पवित्र आत्मा की भूमिका दिखाई देती है। लेकिन सत्य तो यह है कि तीनों जन एक साथ, एक समान रूप से सदैव सक्रिय हैं। क्योंकि वे एक ही हैं, अलग नहीं हैं। जब प्रभु येसु क्रूस पर मरकर दुनिया को मुक्ति प्रदान करते हैं तो इसमें वे अकेले नहीं, बल्कि तीनों जन एक साथ हैं।

जब पिता ईश्वर इस दुनिया की रचना करते हैं तो हमें तीनों के दर्शन होते हैं। ’’... अथाह गर्त पर अन्धकार छाया हुआ था और ईश्वर का आत्मा सागर पर विचरता था।’’ (उत्पत्ति ग्रन्थ 1:2) आत्मा भी प्रारम्भ से विद्यमान था। सन्त योहन के सुसमाचार के प्रारम्भ में हम पढते हैं- ’’आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था, और शब्द ईश्वर था।’’ (योहन 1:1) आगे पढते हैं कि सब कुछ शब्द के द्वारा ही उत्पन्न हुआ। यानि कि सृष्टि के पहले कार्य से ही हर कार्य में वे एक साथ हैं। प्रभु येसु के मिशन के प्रारम्भ में भी हम तीनों को एक साथ देखते हैं। मत्ती 3:16-17 में हम पढते हैं कि बपतिस्मा के समय पवित्र आत्मा कपोत के रूप में उन पर उतरा और स्वर्ग से पिता ईश्वर की वाणी सुनाई दी, ’’यह मेरा प्रिय पुत्र है...।’’ बल्कि प्रभु येसु के हर कार्य में पवित्र आत्मा उनके साथ था। प्रभु येसु पिता का कार्य करते थे (देखें योहन 4:34) “मेरे पिता का कार्य करना ही मेरा भोजन है”। लूकस 4:18 में लिखा है - ’’प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है...।’’ पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा तीनों अलग होते हुए भी एक हैं और एक होते हुए भी अलग हैं।

पवित्र त्रित्व हमारे विश्वास का आधार है। हम पवित्र त्रित्व के नाम में ही बपतिस्मा ग्रहण कर ईश्वर की सन्तान व कलीसिया के सदस्य बनते हैं। पवित्र त्रित्व के ही नाम से हमारे सब कार्य प्रारम्भ और पूर्णता तक पहुँचते हैं। हमारी सारी प्रार्थनायें भी इसी पवित्र त्रित्व के नाम से प्रारम्भ होती हैं। आइये आज के इस पावन पर्व के अवसर पर हम प्रण लें कि पवित्र त्रित्व को हम अपने ख्रिस्तीय जीवन का आधार बनायेंगे और अपने जीवन में सर्वोच्च स्थान देंगे। जिस तरह पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा सदैव एक रहकर कार्य करते हैं उसी तरह हमारे परिवारों के सभी सदस्य सदा एक बने रहें। आमेन।

फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)