1) धनियो! मेरी बात सुनो। आप लोगों को रोना और विलाप करना चाहिए, क्योंकि आप पर विपत्तियाँ पड़ने वाली हैं।
2) आपकी सम्पत्ति सड़ गयी है। आपके कपड़ों में कीड़े लग गये हैं।
3) आपकी सोना-चांदी पर मोरचा जम गया है। वह मोरचा आप को दोष देगा; वह आग की तरह आपका शरीर खा जायेगा। यह युग का अन्त है और आप लोगों ने धन का ढेर लगा लिया है।
4) मजदूरों ने आपके खेतों की फसल लुनी और आपने उन्हें मजदूरी नहीं दी। वह मजदूरी पुकार रही है और लुनने वालों की दुहाई विश्वमण्डल के प्रभु के कानों तक पहुँच गयी है।
5) आप लोगों ने पृथ्वी पर सुख और भोग-विलास का जीवन बिताया है और वध के दिन के लिए अपने को हष्ट-पुष्ट बना लिया है।
6) आपने धर्मी को दोषी ठहरा कर मार डाला है और उसने आपका कोई विरोध नहीं किया।
41) "जो तुम्हें एक प्याला पानी इसलिए पिलायेगा कि तुम मसीह के शिष्य हो, तो मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वह अपने पुरस्कार से वंचित नहीं रहेगा।
42) "जो इन विश्वास करने वाले नन्हों में किसी एक के लिए भी पाप का कारण बनता है, उसके लिए अच्छा यही होता कि उसके गले में चक्की का पाट बाँधा जाता और वह समुद्र में फेंक दिया जाता।
43 (43-44) और यदि तुम्हारा हाथ तुम्हारे लिए पाप का कारण बनता है, तो उसे काट डालो। अच्छा यही है कि तुम लुले हो कर ही जीवन में प्रवेश करो, किन्तु दोनों हाथों के रहते नरक की न बुझने वाली आग में न डाले जाओ।
45 (45-46) और यदि तुम्हारा पैर तुम्हारे लिए पाप का कारण बनता है, तो उसे काट डालो। अच्छा यही है कि तुम लँगड़े हो कर ही जीवन में प्रवेश करो, किन्तु दोनों पैरों के रहते नरक में न डाले जाओ।
47) और यदि तुम्हारी आँख तुम्हारे लिए पाप का कारण बनती है, तो उसे निकाल दो। अच्छा यही है कि तुम काने हो कर ही ईश्वर के राज्य में प्रवेश करो, किन्तु दोनों आँखों के रहते नरक में न डाले जाओ,
48) जहाँ उन में पड़ा हुआ कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती।
49) "क्योंकि हर व्यक्ति आग-रूपी नमक द्वारा रक्षित किया जायेगा।
50) "नमक अच्छी चीज़ है; किन्तु यदि वह फीका पड़ जाये, तो तुम उसे किस से छौंकोगे? "अपने में नमक बनाये रखो और आपस में मेल रखो।"
प्रभु येसु अपने शिष्यों से कहते हैं कि एक प्रामाणिक मसीही जीवन जीना बहुत ही महत्वपूर्ण है, इसके आभाव में हम समाज में एक कलंक और पाप का कारण बन सकते हैं। प्रभु येसु ने ख्रीस्तीय जीवन में इस चीज़ को हासिल करने के लिए आज के सुसमाचार में तीन रास्ते दिखाए हैं: सबसे पहले, उनके अनुयायियों को जरूरतमंद लोगों के प्रति दयालु और धर्मार्थ होना चाहिए। यहां तक कि छोटे कार्य, जैसे कि किसी के लिए प्याला पानी की पेशकश, भी प्रभु येसु के लिए किया गया काम माना जायेगा। दूसरा, चूंकि वे पृथ्वी के नमक हैं, इसलिए उन्हें समाज के हर क्षेत्र में प्रवेश करना तथा उसे मसीही प्रेम और क्षमा के माध्यम से बदलना चाहिए। और अंत में, उनकी एकता और शांतिपूर्ण जीवनशैली मसीह के प्रति उनकी विश्वासयोग्यता को प्रदर्शित करेगी। आईये हम अपने जीवन को अनुकरणीय बनायें न कि गलत राह दिखाना वाला। क्योंकि दूसरों के लिए पाप का कारण बनने वाले प्रभु की निगाह में घृणित और श्रापित हैं।
✍ - फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत
Jesus emphasized the importance of his disciples leading an authentic Christian life, as it could cause scandal and sin otherwise. Pope Francis refers to this as Christian consistency and explains that it entails thinking, feeling, and acting like a Christian in every aspect of life.
Jesus provided three hints for achieving this consistency. Firstly, his followers should be kind and charitable towards those in need. Even small acts, such as offering a cup of water, are considered to be given to Jesus. Secondly, since they are the salt of the earth, they should penetrate society and transform it through love and forgiveness. Finally, their unity and peaceful way of life will demonstrate their faithfulness to Christ.
✍ -Fr. Fr. Preetam Vasuniya - Indore Diocese
आज का सुसमाचार हमें आत्मचिंतन करने के लिए कह रहा है। येसु हमें भीतर देखने के लिए कह रहे हैं। हमें दो सवालों के जवाब देने हैं। पहला, क्या हम दूसरों के लिए बाधा का कारण बन गए हैं। दूसरा, क्या हम खुद के लिए बाधा का कारण बन गए हैं।सबसे बड़ा बाधा हमारे बाहर नहीं बल्कि हमारे भीतर है। मेरे भीतर क्या है जैसे क्रोध, बदला, पूर्वाग्रह, हमारे व्यवहार आदि दूसरों को और हमें गिराने का कारण बनते हैं। हमारी जिम्मेदारी न केवल अपने लिए बल्कि दुसरो के लिए भी जिम्मेदारी है । उनकी छवि को आगे बढ़ाना भी एक जिम्मेदारी है। हमें इस गरिमा के साथ जीना चाहिए और दूसरों को उस छवि के योग्य जीवन दिखाना चाहिए जो हम अपने भीतर रखते हैं।येसु के चेलों को एक-दूसरे की सेवा करनी है और एक-दूसरे की मदद करना है कि वे येसु का अधिक विश्वासपूर्वक अनुसरण करें। इसलिए, यह येसु के अनुयायियों को चेतावनी देने और प्रेरित करने के लिए है कि हम जो कुछ भी हैं उनके साथ उनका अनुसरण करें और दूसरों को भी ऐसा करने में मदद करें।
✍ - फादर संजय कुजूर एस.वी.डी
Today’s gospel is asking us to to be self-reflective. Jesus is asking us to look within. We have to answer two questions. First, whether we have become a stumbling block to others. Second, whether we have become a stumbling block to ourselves. The greatest stumbling blocks are not outside us but within us. What is within me like anger, revenge, prejudice, our behaviors etc. cause others and us to fall. We have a responsibility not only for ourselves but also for others.To carry his image is also a responsibility. We must live up to this dignity and show to others a life worthy of the image we carry within. The disciples of Jesus are to serve each other and help each other follow Jesus more faithfully. Therefore, it is to warn and motivate the followers of Jesus to pursue Him with all that we are and to help others do the same.
✍ -Fr. Sanjay Kujur SVD