मई 22, 2024, बुधवार

सामान्य काल का सातवाँ सप्ताह

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📒 पहला पाठ : याकूब 4:13-17

13) आप लोग जो यह कहते हैं, "हम आज या कल अमुक नगर जायेंगे, एक वर्ष तक वहाँ रह कर व्यापार करेंगे और धन कमायेंगे", मेरी बात सुनें।

14) आप नहीं जानते कि कल आपका क्या हाल होगा। आपका जीवन एक कुहरा मात्र है- वह एक क्षण दिखाई दे कर लुप्त हो जाता है।

15) आप लोगों को यह कहना चाहिए, "यदि ईश्वर की इच्छा होगी, तो हम जीवित रहेंगे और यह या वह काम करेंगे"।

16) किन्तु आप अपनी धृष्टता पर घमण्ड करते हैं। इस प्रकार का घमण्ड बुरा है।

17) जो मनुष्य यह जानता है कि उसे क्या करना चाहिए, किन्तु नहीं करता, उसे पाप लगता है।

📙 सुसमाचार : मारकुस 9:38-40

38) योहन ने उन से कहा, "गुरुवर! हमने किसी को आपका नाम ले कर अपदूतों को निकालते देखा और हमने उसे रोकने की चेष्टा की, क्योंकि वह हमारे साथ नहीं चलता"।

39) परन्तु ईसा ने उत्तर दिया, "उसे मत रोको; क्योंकि कोई ऐसा नहीं, जो मेरा नाम ले कर चमत्कार दिखाये और बाद में मेरी निन्दा करें।

40) जो हमारे विरुद्ध नहीं है, वह हमारे साथ ही है।

📚 मनन-चिंतन

एक अनजान व्यक्ति प्रभु येसु के नाम से दुष्टात्मा को निकालता है जिसे देखर योहन इस पर आपत्ति उठाते हुए प्रभु के पास शिकायत करता है। प्रभु येसु की पाठशाला में योहन अभी एक विद्यार्थी है जिसे ईश्वर के राज्य की बहुत सारी व्यवस्थाओं को सीखना बाकि है। योहन की रिपोर्टिंग में थोड़ी जलन, थोड़ी स्वार्थता और थोड़ी अपरिपक्वता झलकती है। प्रभु येसु को लेकर उनकी सोच शायद अभी तक छोटी ही है। प्रभु येसु के उत्तर ने येसु नाम की उसकी समझ को और अधिक गहरा कर दिया। अब वो समझने लगा कि येसु का नाम अत्यंत शक्तिशाली है और इसका अर्थ बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह नाम उनके मनुष्य बनने, उनकी शक्ति और इस दुनियां में उनके आने के उद्देश्य का प्रतिनिधित्व करता है।

“उनका नाम सब नामों में श्रेष्ठ है।“ (फिलीपी 2:9)। जब हम इस नाम को सच्चे दिल से इसे पुकारते हैं, तो हम ईश्वर की सारी शक्ति, ज्ञान, ज्ञान, अनुग्रह, प्रेम और सत्य का आह्वान कर रहे होते हैं। इसलिए, प्रभु येसु का नाम चंगा करने और सशक्त बनाने, क्षमा करने और पुकारने वाले किसी भी व्यक्ति को उद्धार प्रदान करने के लिए सशक्त माध्यम है। ये नाम एकमात्र उद्धारकर्ता का नाम है (प्रे च 4:12)। ये नाम सब प्रकार की जातिगत, धार्मिक, और संस्कृतक सीमाओं के परे सबों के उद्धार के लिए उपलब्ध रहता है।

- फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत


📚 REFLECTION

An unknown person casts out a demon in the name of Jesus, seeing which John objects to it and complains to the Lord. John is still a student in the school of Lord Jesus who has yet to learn many laws of God’s Kingdom. There is a little irritation, a little selfishness, and a little immaturity in John’s reporting. His view of Jesus is probably still small. Jesus’ answer deepenes his understanding of the name Jesus. Now he began to understand that the name of Jesus is very powerful and its meaning is very important. The name represents His becoming a man, His power, and His purpose in coming into this world.

“His name is above all names.” (Philippians 2:9). When invoke this name with a true heart, we are invoking all of God’s power, wisdom, wisdom, grace, love, and truth. Therefore, the name of Lord Jesus is a powerful means to heal and empower, forgive, and deliver salvation to anyone who calls out. This name is the name of the only Savior (Ac 4:12). This name is available for the salvation of all beyond all of casts, creed religious, and cultural boundaries.

-Fr. Fr. Preetam Vasuniya - Indore Diocese

📚 मनन-चिंतन-2

सुसमाचार में, योहन किसी ऐसे व्यक्ति की कार्रवाई को रोकने की कोशिश करता है जो येसु का अनुयायी नहीं है। अहंकार और श्रेष्ठता की जटिलता हमें गुलाम बनाती है। कभी-कभी हम सोचते हैं कि येसु के बारे में ज्ञान हमारा एकाधिकार है। कभी-कभी हमारा आत्म-धार्मिक रवैया दूसरों को बाहर कर देता है। इसी तरह की घटना पुराने विधान में हुई जब मूसा ने सत्तर वयोवृद्धों को नियुक्त किया, जिन्हें ईश्वर ने भविष्यवाणी का वरदान दिया था।एलदाद और मेदाद सत्तर में से नहीं थे, फिर भी भविष्यवाणी करते थे। योशुआ ने एलदाद और मेदाद को रोकने के लिए मूसा को बुलाया, परन्तु मूसा ने उत्तर दिया, “क्या तुम मेरे कारण ईर्ष्या करते हो? अच्छा यही होता कि प्रभु सब को प्रेरणा प्रदान करता और प्रभु की सारी प्रजा भविष्यवाणी करती।” (गणना ११:२९)।हमारे दृष्टिकोण काफी संकीर्ण हो सकते हैं। येसु चाहता है कि उसके चेले अपने स्वयं के और दूसरों के वरदानो की सराहना करें। ईश्वर की दृष्टि में सभी समान हैं और हममें से किसी का भी अधिकार नहीं है। आइए हम अपने भाइयों और बहनों के प्रति सहिष्णु, विनम्र और कोमल बनें।

- फादर संजय कुजूर एस.वी.डी


📚 REFLECTION

In the gospel, John tries to stop the action of some one who is not the follower of Jesus. Arrogance and superiority complex enslave us. Sometimes we think that we have the monopoly of knowledge about Jesus. At times our self-righteous attitude excludes others. A similar incident took place in Old Testament when Moses appointed seventy elders, whom God then gave the gift of prophecy. Eldad and Medad were not among the seventy, but also prophesied. Joshua called Moses to stop Eldad and Medad, but Moses responded, “Are you jealous for my sake? I wish that all Yahweh’s people were prophets, that Yahweh would put his Spirit on them!” (Num 11:29). Our perspectives can be quite narrow. Jesus wants his disciples to appreciate their own gifts and gifts of others. Before the eyes of God all are equal and none of us have an upper hand. Let us be tolerant, humble and gentle towards our brothers and sisters.

-Fr. Sanjay Kujur SVD