9) प्रभु-ईश्वर ने आदम से पुकार कर कहा, ''तुम कहाँ हो?''
10) उसने उत्तर दिया, ''मैं बगीचे में तेरी आवाज सुन कर डर गया, क्योंकि में नंगा हूँ और मैं छिप गया''।
11) प्रभु ने कहा, ''किसने तुम्हें बताया कि तुम नंगे हो? क्या तुमने उस वृक्ष का फल खाया, जिस को खाने से मैंने तुम्हें मना किया था?''
12) मनुष्य ने उत्तर दिया, ''मेरे साथ रहने कि लिए जिस स्त्री को तूने दिया, उसी ने मुझे फल दिया और मैंने खा लिया''।
13) प्रभु-ईश्वर ने स्त्री से कहा, ''तुमने क्या किया है?'' और उसने उत्तर दिया, ''साँप ने मुझे बहका दिया और मैंने खा लिया''।
14) तब ईश्वर ने साँप से कहा, ''चूँकि तूने यह किया है, तू सब घरेलू तथा जंगली जानवरों में शापित होगा। तू पेट के बल चलेगा और जीवन भर मिट्टी खायेगा।
15) मैं तेरे और स्त्री के बीच, तेरे वंश और उसके वंश में शत्रुता उत्पन्न करूँगा। वह तेरा सिर कुचल देगा और तू उसकी एड़ी काटेगा''।
<12) प्रेरित जैतून नामक पहाड़ से येरूसालेम लौटे। यह पहाड़ येरूसालेम के निकट, विश्राम-दिवस की यात्रा की दूरी पर है।
13) वहाँ पहुँच कर वे अटारी पर चढ़े, जहाँ वे ठहरे हुए थे। वे थे-पेत्रुस तथा योहन, याकूब तथा सिमोन, जो उत्साही कहलाता था और याकूब का पुत्र यूदस।
14) ये सब एकहृदय हो कर नारियों, ईसा की माता मरियम तथा उनके भाइयों के साथ प्रार्थना में लगे रहते थे।
25) ईसा की माता, उसकी बहिन, क्लोपस की पत्नि मरियम और मरियम मगदलेना उनके कू्रस के पास खडी थीं।
26) ईसा ने अपनी माता को और उनके पास अपने उस शिष्य को, जिसे वह प्यार करते थे देखा। उन्होंने अपनी माता से कहा, "भद्रे! यह आपका पुत्र है"।
27) इसके बाद उन्होंने उस शिष्य से कहा, "यह तुम्हारी माता है"। उस समय से उस शिष्य ने उसे अपने यहाँ आश्रय दिया।
28) तब ईसा ने यह जान कर कि अब सब कुछ पूरा हो चुका है, धर्मग्रन्थ का लेख पूरा करने के उद्देश्य से कहा, "मैं प्यासा हूँ"।
29) वहाँ खट्ठी अंगूरी से भरा एक पात्र रखा हुआ था। लेागों ने उस में एक पनसोख्ता डुबाया और उसे जूफ़े की डण्डी पर रख कर ईसा के मुख से लगा दिया।
30) ईसा ने खट्ठी अंगूरी चखकर कहा, "सब पूरा हो चुका है"। और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिये।
31) वह तैयारी का दिन था। यहूदी यह नहीं चाहते थे कि शव विश्राम के दिन कू्रस पर रह जाये क्योंकि उस विश्राम के दिन बड़ा त्यौहार पडता था। उन्होंने पिलातुस से निवेदन किया कि उनकी टाँगें तोड दी जाये और शव हटा दिये जायें।
32) इसलिये सैनिकेां ने आकर ईसा के साथ क्रूस पर चढाये हुये पहले व्यक्ति की टाँगें तोड दी, फिर दूसरे की।
33) जब उन्होंने ईसा के पास आकर देखा कि वह मर चुके हैं तो उन्होंने उनकी टाँगें नहीं तोडी;
34) लेकिन एक सैनिक ने उनकी बगल में भाला मारा और उस में से तुरन्त रक्त और जल बह निकला।
कल पेन्तेकोस्त के दिन हमने कलीसिया का जन्मदिन मनाया और आज हम कलीसिया की माता मरियम का पर्व मना रहे हैं। जिस माँ ने संसार के मुक्तिदाता को जन्म दिया वह माँ पेन्तेकोस्त के दिन प्रभु येसु के उन अनुयायों के साथ अटारी में मौजूद थी जिनकी माँ के रूप में उनके प्यारे बेटे ने अब उन्हें उनके सुपुर्द किया था। इसलिए अब वो प्रभु के सारे अनुयायों अर्थात् सारी कलीसिया की माँ है।
आइए हम अपनी स्वर्गीय माता से आज दो बातें सीखें: मातृत्व और कोमलता। माँ मरियम के मातृत्व पर सभी सुसमाचारों में जोर दिया गया है, और कलीसिया उनसे इस सदगुण को आत्मसात करती है। जब-जब कलीसिया से मातृत्व का गुण अनुपस्थित होता है, तब तब वह अपनी मौलिक पहचान खो देती है और एक महज धर्मार्थ-संगठन या फुटबॉल टीम की तरह बन कर रह जाती है। अपने बेटे को जन्म देने और उसकी देखभाल करने में हम माता मरियम की कोमलता के दर्शन करते हैं। संत पापा फ्राँसिस कहते हैं कि कलीसिया जो कि एक माँ की तरह है, वह एक माँ के रूप में माता मरियम की कोमलता का अनुसरण करने के लिए बुलाई गई है । इसलिए, आइये आज कलीसिया की माँ मरियम से प्रेरित होकर हम सब कलीसिया के सदस्य ऐसे लोग बने जो कि सौम्य, कोमल, मुस्कुराते हुए और प्रेम से भरे हों।
✍ - फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत
Today as we celebrate the feast of Mary the mother of the Church. Let us learn two things from our heavenly mother today: motherliness and tenderness. Mary’s motherliness is stressed throughout the Gospels, and the Church receives this attitude from her. When motherliness is absent, the Church loses its identity and becomes like a charitable organization or a football team, but not the Church.
The tenderness of Mary was especially visible when she gave birth to her son and cared for him. Pope Francis says that a Church which is like a mother follows the path of tenderness. Therefore, the members of the Church, influenced by the Mother of the Church, must be people who are gentle, tender, smiling, and full of love.
✍ -Fr. Fr. Preetam Vasuniya - Indore Diocese
3 मार्च 2018, शनिवार के दिन सन्त पापा फ्रांसिस ने कलिसिया की माता मरियम के इस पर्व की घोषणा की थी। कल हमने पेंटेकोस्ट का महापर्व मनाया था जिसमें हमें याद किया कि किस तरह से सभी प्रेरितों पर प्रार्थना करते समय पवित्र आत्मा उतरा और उसके बाद माता कलिसिया का जन्म हुआ। लेकिन कुछ लोग इस बात को अनदेखा कर देते हैं कि उन प्रेरितों को प्रार्थना में एकसूत्र बाँधे रखने वाली माता मरियम ही थी। जब प्रभु येसु स्वर्गारोहित कर लिए गए तो शिष्यों को ढारस बँधाने के लिए माता मरियम एक ममतामयी माता के रूप में सदा उनके साथ थीं। जब प्रभु येसु क्रूस पर आखिरी सांसें ले रहे थे तो उन्होंने अपनी माता को अपने प्रिय शिष्य के हवाले कर दिया ताकि वह उनको संभाले और अपने शिष्य को माता मरियम के हवाले कर दिया ताकि वह उसकी माँ बनकर उसकी देख-भाल करे। वह प्रिय शिष्य अन्य शिष्यों का बल्कि सारी कलिसिया का प्रतिनिधित्व करता है। प्रभु येसु ने अपनी माता को सम्पूर्ण कलिसिया के लिए एक माँ के रूप में प्रदान किया है और इसलिए वह आज भी सारी कलिसिया को एक माँ के रूप में संभालती हैं और अपनी जिम्मेदारी निभाती हैं। लेकिन क्या हम माता मरियम के सच्चे पुत्र-पुत्रियाँ होने का फ़र्ज़ निभाते हैं?
✍ - फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Pope Francis declared this day as the Feast of Mary Mother of the Church on on Saturday of March 3, 2018. Yesterday we celebrated the Solemnity of Pentecost where we recalled how the Spirit descended upon the apostles when they all gathered and praying in the upper room. The Church was born soon after the descent of the Holy Spirit. But we often ignore the fact that the apostles were kept united in prayer by their and our Mother. When Jesus was taken up into heaven, it was mother Mary who consoled and kept the disciples together in her maternal care. When Jesus was hanging on the cross in his agony, he gave his mother to his beloved disciple and entrusted the disciple to the care of his loving mother. Now on she was his mother and he was her son. That beloved disciple not only represented the disciples then, but also represents the whole Mother Church today. Jesus has given his mother to the whole Church and Mother Mary takes care of us as she took care of Jesus, her son. Do we understand our responsibility of loving and listening to our beloved Mother?
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
आज हमारे समक्ष मॉं मरियम का पर्व है जिसे हम माता मरियम, कलीसिया की माता के रूप में मनाते है। मॉं मरियम को यह सौभाग्य प्राप्त हुआ कि वह येसु-ईश्वर की माता बन सकें। स्वर्गदूत गाब्रिएल मरियम के पास संदेश देेते है कि उनके द्वारा मुक्तिदाता का जन्म होगा। गाब्रिएल के उस कथन पर अपनी सहमति देने के बाद मरियम येसु की माता बनती है-येसु अर्थात् ईश्वर की माता। जब प्रभु येसु कू्रस पर थे तब येसु ने अपनी माता मरियम को हम सभी के लिए मॉं के रूप में दिया, यह सब उस कू्रस के पास हुआ जब येसु ने मॉं मरियम से कहा, ‘‘भद्रे! यह आपका पुत्र है’’ तथा संत योहन से कहा, ‘‘यह तुम्हारी माता है’’।
आज का पर्व हमें बताता है कि मॉ मरियम न केवल हमारी माता है परंतु कलीसिया की भी माता है। प्रभु येसु जो ‘शरीर अर्थात् कलीसिया के शीर्ष है’ (कलो. 1ः18) और हम सब मिलकर मसीह का शरीर हैं (1 कुरिंथ. 12ः27)। यदि मॉं मरियम शरीर के शीर्ष अर्थात् येसु की मॉं है तब वे कलीसिया रूपी शरीर के सभी अंगों की मॉं है। कलीसिया की स्थापना प्रभु येसु ने की तथा यह कलीसिया पेंतेकोस्त के दिन पवित्र आत्मा के आगमन से सामर्थ्य से भर गई। जिस दिन कलीसिया पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गई उस समय मॉं मरियम उस कलीसिया के साथ थी। इस हेतु हर साल पेंतेकोस्त के पर्व के दूसरे दिन ही हम कलीसिया की मॉं मरियम का पर्व मनाते है।
प्रभु येसु के स्वर्गारोहण के बाद मॉं मरियम ने कलीसिया को सहारा दिया और उस कलीसिया को उस महान शक्ति पवित्र आत्मा को ग्रहण करने के लिए प्रार्थना में संजोय रखा। मॉं मरियम का कलीसिया को सम्भालने, आगे बढ़ाने, प्रार्थना में समय बिताने में अहम् भूमिका रही है। इस हेतु भी मॉं मरियम कलीसिया की मॉं है।
आज जब हम यह पर्व को मनाते है तो हम मॉ मरियम से प्रार्थना करें कि वह सदा अपनी कलीसिया को अपने आश्रय में रखें और निरंतर प्रभु येसु के पथ चिन्हांे पर चलने में मदद करें। आमेन!
✍फ़ादर डेनिस तिग्गाToday we have the feast of Mother Mary celebrated as Mary, the mother of the Church. It was the blessed fortune of Mother Mary to become the mother of Jesus. Angel Gabriel gave the message to Mary that through him the Saviour will be born. Giving the consent on the sayings of Gabriel Mary becomes the Mother of Jesus i.e Mother of God. When Jesus was crucified on the cross Jesus gave her mother to be our mother, all this happened near the cross when Jesus said to Mary, “Woman, here is your son” and to John he said, “Here is your mother.”
Today’s feast tells us that Mother Mary is not only our mother but also the Mother of the Church. Lord Jesus who is the ‘head of the body, the church’ (Col 1:18) and ‘we are the body of Christ and individually members of it’ (1Cor 12:27). If the Mother Mary is the mother of the head then she is the mother of body-the Church too. Church was established by Jesus and was empowered by the Holy Spirit on the day of Pentecost. When the Church was empowered by the Holy Spirt that time Mother Mary was with the Church. Due to this every year the feast of Mary the Mother of Church is being celebrated the next day to the feast of Pentecost.
After the Ascension of Lord Jesus Mother Mary gave the support to the Church and gathered the Church in prayer to receive the Holy Spirit. The role of Mother Mary in caring the, in the growth of the Church and leading the Church in prayer was eminent. For this reason too she is also the mother of the Church.
When we are celebrating today’s feast Let’s pray to Mother Mary that she may always keep the Church in her shelter and help continually to walk in the path of Jesus Christ. Amen!
✍ -Fr. Dennis Tigga