मई 16, 2024, गुरुवार

पास्का का सातवाँ सप्ताह

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📒 पहला पाठ : प्रेरित-चरित 22:30;23:6-11

30) दूसरे दिन कप्तान ने पौलुस के बन्धन खोल दिये और महायाजकों तथा समस्त महासभा को एकत्र हो जाने का आदेश दिया; क्योंकि वह यह निश्चित रूप से जानना चाहता था कि यहूदी पौलुस पर कौन-सा अभियोग लगाते हैं। तब उसने पौलुस को ले जाकर महासभा के सामने खड़ा कर दिया।

6) पौलुस यह जानता था कि महासभा में दो दल हैं-एक सदूकियों का और दूसरा फ़रीसियों का। इसलिए उसने पुकार कर कहा, ’’भाइयो! मैं हूँ फ़रीसी और फ़रीसियों की सन्तान! मृतकों के पुनरुत्थान की आशा के कारण मुझ पर मुकदमा चल रहा है।’’

7) पौलुस के इन शब्दों पर फ़रीसियों तथा सदूकियों में विवाद उत्पन्न हुआ और उन में फूट पड़ गयी;

8) क्योंकि सदूकियों की धारणा है कि न तो पुनरुत्थान है, न स्वर्गदूत और न आत्मा। परन्तु फ़रीसी इन पर विश्वास करते हैं।

9) इस प्रकार बड़ा कोलाहल मच गया। फ़रीसी दल के कुछ शास्त्री खड़े हो गये और पुकार कर कहते रहे, ’’हम इस मनुष्य में कोई दोष नहीं पाते। यदि कोई आत्मा अथवा स्वर्गदूत उस से कुछ बोला हो, तो .....।’’

10) विवाद बढ़ता जा रहा था और कप्तान डर रहा था कि कहीं वे पौलुस के टुकड़े-टुकड़े न कर दें; इसलिए उसने सैनिकों को आदेश दिया कि वे सभा में जा कर पौलुस को उनके बीच से निकाल लें और छावनी ले जायें।

11) उसी रात प्रभु पौलुस को दिखाई दिये और बोले, ’’धीर बने रहो। तुमने येरुसालेम में जिस तरह मेरे विषय में साक्ष्य दिया है, तुम को उसी तरह रोम में भी साक्ष्य देना है।’’

📙 सुसमाचार : सन्त योहन 17:20-26

20) मैं न केवल उनके लिये विनती करता हूँ, बल्कि उनके लिये भी जो, उनकी शिक्षा सुनकर मुझ में विश्वास करेंगे।

21) सब-के-सब एक हो जायें। पिता! जिस तरह तू मुझ में है और मैं तुझ में, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें, जिससे संसार यह विश्वास करे कि तूने मुझे भेजा।

22) तूने मुझे जो महिमा प्रदान की, वह मैंने उन्हें दे दी है, जिससे वे हमारी ही तरह एक हो जायें-

23) मैं उनमें रहूँ और तू मुझ में, जिससे वे पूर्ण रूप से एक हो जायें और संसार यह जान ले कि तूने मुझे भेजा और जिस प्रकार तूने मुझे प्यार किया, उसी प्रकार उन्हें भी प्यार किया।

24) पिता! मैं चाहता हूँ कि तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, वे जहाँ मैं हूँ, मेरे साथ रहें जिससे वे मेरी महिमा देख सकें, जिसे तूने मुझे प्रदान किया है; क्योंकि तूने संसार की सृष्टि से पहले मुझे प्यार किया।

25) न्यायी पिता! संसार ने तुझे नहीं जाना। परन्तु मैंने तुझे जाना है और वे जान गये कि तूने मुझे भेजा।

26) मैंने उन पर तेरा नाम प्रकट किया है और प्रकट करता रहूँगा, जिससे तूने जो प्रेम मुझे दिया, वह प्रेम उन में बना रहे और मैं भी उन में बना रहूँ।

📚 मनन-चिंतन

मैंने पूरी पवित्र बाइबिल को पृष्ठ डर पृष्ट पढ़ा है। और इससे मुझे एक बात समझ में आई है कि पवित्र बाइबिल मानव इतिहास की एक ऐसी कहानी है जिसका कथानक है – “ईश्वर मनुष्यों के साथ एक होकर रहना चाहता है।“ उसने अदन वाटिका में प्रथम मनुष्यों को इसी उद्देश्य से रखा था। परन्तु शैतान की इर्ष्या तथा मनुष्यों की अवज्ञा के कारण इन्सान ईश्वर से दूर होता चला गया। फिर भी ईश्वर अपनी इस योजना को रद्द नहीं करता। वो फिर से मनुष्यों को अपनी आदि संगती में लाना चाहता है। पुराने विधान में बादल, आग के खम्बे, विधान की मञ्जूषा, येरुसलेम मंदिर आदि प्रतीकों में ईश्वर मनुष्यों के बीच आकर रहता है। परन्तु नए विधान में वह स्वयं मनुष्य बनकर हमारे बीच निवास करता है। (योहन 1:14)। और जब अपना धरती पर का निवास समाप्त कर जब देहधारी शब्द पुनः पिता के पास जाता है, तो प्रार्थना करता है – “मैं न केवल उनके लिए विनती करता हूँ, बल्कि उनके लिए भी जो, उनकी शिक्षा सुन कर मुझ में विश्वास करेंगे। सब के सब एक हो जाए।” और वे आगे कहते हैं – “पिता मैं चाहता हूँ कि तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, वे जहाँ मैं हूँ, मेरे साथ रहे।”

मैं समझता हूँ कि हमारे जीवन का अंतिम उद्देश्य भी यही होना चाहिए कि जहाँ हमारे प्रभु येसु हैं वहीं हम सब भी रहें। हमारा दुनियाई जीवन उस स्थान की ओर हमारी एक यात्रा है। योहन 14:2-3 में प्रभु का वचन कहता है- मेरे पिता के यहाँ बहुत से निवास स्थान हैं। यदि ऐसा नहीं होता, तो मैं तुम्हें बता देता क्योंकि मैं तुम्हारे लिये स्थान का प्रबंध करने जाता हूँ। मैं वहाँ जाकर तुम्हारे लिये स्थान का प्रबन्ध करने के बाद फिर आऊँगा और तुम्हें अपने यहाँ ले जाउँगा, जिससे जहाँ मैं हूँ, वहाँ तुम भी रहो। आइये प्यारे भाइयों और बहनों हम प्रभु के साथ पुनः एक होकर जीने के लिए खुद को तैयार करें।

- फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत


📚 REFLECTION

I have read the entire Holy Bible from cover to cover, and I’ve come to realize that the Bible is a story of human history with a plot – ‘God wants to live in union with humans.’ In the beginning, He placed the first humans in the Garden of Eden for this very purpose. However, Satan’s envy and human disobedience caused a rift between God and humanity. But God never gave up on His plan. He wants to bring humans back into His original company. In the Old Testament, God lived among humans in symbols such as clouds, pillars of fire, the Ark of the Covenant, the Temple of Jerusalem, etc. But in the New Testament, He came to dwell among us as a man (John 1:14). After Jesus finished His work on earth and returned to the Father, He prayed for all believers, saying, “I pray not only for them but also for those who will believe in me through their message, that all of them may be one, Father, just as you are in me and I am in you. May they also be in us so that the world may believe that you have sent me” (John 17:20-21).

I believe that the ultimate goal of our lives should be to go and live where our Lord Jesus is. Our earthly life is a journey towards that place. John 14:2-3 says, “In my Father’s house there are many dwelling-places. If it were not so, would I have told you that I go to prepare a place for you? And if I go and prepare a place for you, I will come again and will take you to myself, so that where I am, there you may be also.” Therefore, let us prepare ourselves to live together with the Lord.

-Fr. Fr. Preetam Vasuniya - Indore Diocese

📚 मनन-चिंतन-2

आज प्रभु येसु अपने शिष्यों की एकता के लिए प्रार्थना करते हैं। जिस तरह से प्रभु येसु और पिता एक हैं उसी तरह से उनके शिष्य भी एक बनें। प्रभु येसु और पिता ईश्वर के एक होने की क्या खासियत है? हम जानते हैं कि पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा तीनों एक हैं, और बराबर हैं। जो पिता का है वह पुत्र का भी है। पिता ने अपना सब कुछ अपने पुत्र को दे दिया और पुत्र ने अपना सब कुछ पिता की इच्छा पूरी करने के लिए न्योछावर कर दिया। उसी तरह से अगर उनके शिष्यों को एक होना है तो एक दूसरे के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए तैयार रहना है।

लेकिन हमारे मानव स्वभाव में ऐसी बहुत सी बधायें हैं जो हमें एक होने से रोक सकती हैं। हम सब बराबर होते हुए भी एक दूसरे से भिन्न हैं। कोई बड़ा है, कोई छोटा है, कोई अमीर है, कोई गरीब है, कोई कमजोर है तो कोई बलवान है। ये सारी चीजें हमारे एक दूसरे से अलग होने का कारण बन सकती हैं। हम अलग-अलग कारणों से आपस में बँट सकते हैं, एक दूसरे के विरोधी हो सकते हैं। इसलिए प्रभु येसु पिता के साथ अपने संबंध को हमारे लिए एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

- फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Jesus prays for the unity among his disciples. As Jesus and the Father are one, so should be his disciples. What is special about the oneness of Jesus and the Father? We know Father, Son and the Holy Spirit are one and are co-equal. What is of the Father, belongs to the Son also. The Father has given all things to the Son and the Son has sacrificed himself for doing the will of the Father. Similarly, if his disciples have to be one and united, they must be ready to sacrifice themselves for each other.

There can be many hurdles that can pose threat and danger to our unity. Although we are one, we are divided and different from each other. Some are great, some are unimportant, some are rich and some are poor, some are strong and mighty, many are weak and downtrodden. These differences cause us to be divided. We can be lost and become against each other. Therefore, Jesus puts his oneness with the Father as an example for us.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन-3

आज के सुसमाचार में हम प्रभु येसु के महा पुरोहिताई प्रार्थना का अंतिम भाग पर मनन चिंतन करेंगे। प्रभु एक योजना के तहत इस संसार में आये और उस योजना को पूर्ण करते हुए इस संसार से चले गयें। जाने से पूर्व वे शिष्यों और विश्वासियों को आने वाले समय के लिए तैयार कर के गये और इस हेतु उन्होनें पिता ईश्वर से प्रार्थना भी की।

आज के अंश में प्रभु येसु न केवल अपने शिष्यों के लिए परंतु उन सभी के लिए भी प्रार्थना करते है जो उनकी शिक्षा सुनकर येसु में विश्वास करेंगे, जिसमें हम सभी विश्वासीगण शामिल हो जाते है। प्रभु येसु जाते जाते हम सभी के लिए यही प्रार्थना कर के जाते है कि हम सब एकता में जुड़े रहें जिस प्रकार प्रभु येसु पिता ईश्वर से जुड़े हुए है ठीक उसी प्रकार येसु चाहते है कि सभी विश्वासीगण ईश्वर में एक होकर जुडे़ं रहें।

प्रभु येसु के जाने के बाद बहुतों ने प्रभु येसु और उनकी शिक्षाओं पर विश्वास किया पर समय बीतने पर विश्वासियों के बीच मतभेद उत्पन्न हुआ; हालाकि सभी येसु में विश्वास करते है परंतु रीतियों में मतभेद उत्पन्न हो गये। आज जब हम प्रभु येसु की उस महापुरोहिताई प्रार्थना पर मनन चिंतन करते है तो हम भी यही प्रार्थना करें कि संसार भर में फैले सभी ख्रीस्तीय प्रभु ईश्वर में एक बने रहें जिस प्रकार पिता ईश्वर और पुत्र येसु एक है। आमेन!

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

In today’s gospel we will meditate on the last part of high priestly prayer of Jesus. Lord came in this world according to the plan and fulfilling that plan he departed from this world. Before leaving he prepared the disciples and believers for the coming times and for this he prayed to the Father Almighty.

In today’s part Lord Jesus not only prayed for his disciples but he also prayed for those who will believe in him through disciples’ word, in which we all the believers come under. Before leaving Lord Jesus prays for us that we all may be united with each other as Jesus and Father are one so also Jesus wants that all the believers may remain one with God.

After Jesus ascending to heaven many believed in Lord Jesus and his teachings but as the time past differences crept in between the believers; however all believe in Jesus but the differences arose in rituals. Today when we meditate on that high priestly prayer of Lord Jesus let’s also pray that every Christian all over the world may be one in God as the Father and Son are one. Amen!

-Fr. Dennis Tigga

📚 मनन-चिंतन - 4

आज के सुसमाचार में प्रभु येसु अपनी प्रार्थना की सीमा को और अधिक बढ़ाते हैं। वे उन लोगों के लिए भी प्रार्थना करते हैं जो उनके शिष्यों के कारण प्रभु येसु में विश्वास करेंगे, आने वाली पीढ़ियों के लिए। और सुरक्षा के बाद दूसरी महत्वपूर्ण ज़रूरत जिसके लिए प्रभु येसु प्रार्थना करते हैं, वह है- एकता, उनमें एकता जो प्रभु में विश्वास करेंगे।

आज के समय में भी यह एक ऐसी आवश्यकता है जिसके लिए हम सभी को प्रार्थना करने की ज़रूरत है। आज की दुनिया में लोगों में ऐसे सैकड़ों कारण हैं जिनसे उनमें फूट पड़ जाती है, लोग बँट जाते हैं, एक-दूसरे से दूर हो जाते हैं। परिवार टूट जाते हैं, समाज बँट जाते हैं, दोस्त ही दुश्मन हो जाते हैं, अपने ही लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। लोग धर्म के कारण बँट जाते हैं, जाति, विश्वास, आर्थिक स्थिति आदि के कारण बँट जाते हैं। वास्तव में हम ईश्वर को तभी अनुभव कर सकते हैं जब हम एक बनेंगे। हमें पवित्र तृत्व में एक होना है, एक दूसरे के साथ एक होना है। आइए हम प्रभु येसु के साथ मिलकर संसार में एकता के लिए प्रार्थना करें।आमेन।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Jesus in the gospel today expands his circle of the people for whom he prays. After praying for the disciples he also prays for the people who would believe in Jesus because of the disciples, even the future generations. And the second most needed thing for which Jesus prays is the unity, the unity among those who would believe in him.

Perhaps even in our times this is one of the most urgent need for which we need to pray. There are hundreds of reasons for which people get divided, separated. The families get shattered, the societies get divided, the friends turn into foes, the family members seek to destroy each other. People are divided because of religion, caste, creed, financila status etc. we can truly experience God only if we are united. We need to be united with Jesus, with the Father and Holy Spirit, and with each other. Let us join Jesus in praying for unity. Amen.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)