मई 15, 2024, बुधवार

पास्का का सातवाँ सप्ताह

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

📒 पहला पाठ : प्रेरित-चरित 20:28-38

28) आप लोग अपने लिए और अपने सारे झुण्ड के लिए सावधान रहें। पवित्र आत्मा ने आप को झुण्ड की रखवाली का भार सौंपा है। आप प्रभु की कलीसिया के सच्चे चरवाहे बने रहें, जिसे उन्होंने अपना रक्त दे कर प्राप्त किया।

29) मैं जानता हूँ कि मेरे चले जाने के बाद खूंखार भेडि़ये आप लागों के बीच घुस आयेंगे, जो झुण्ड पर दया नहीं करेंगे।

30) आप लोगों में भी ऐसे लोग निकल आयेंगे, जो शिष्यों को भटका कर अपने अनुयायी बनाने के लिए भ्रान्तिपूर्ण बातों का प्रचार करेंगे।

31) इसलिए जागते रहें और याद रखें कि मैं आँसू बहा-बहा कर तीन वर्षों तक दिन-रात आप लागों में हर एक को सावधान करता रहा।

32) अब मैं आप लोगों को ईश्वर को सौंपता हूँ तथा उसकी अनुग्रहपूर्ण शिक्षा को, जो आपका निर्माण करने तथा सब सन्तों के साथ आप को विरासत दिलाने में समर्थ है।

33) मैंने कभी किसी की चाँदी, सोना अथवा वस्त्र नहीं चाहा।

34) आप लोग जानते हैं कि मैंने अपनी और अपने साथियों की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए अपने इन हाथों से काम किया।

35) मैंने आप को दिखाया कि इस प्रकार परिश्रम करते हुए, हमें दुर्बलों की सहायता करनी और प्रभु ईसा का कथन स्मरण रखना चाहिए कि लेने की उपेक्षा देना अधिक सुखद है।’’

36) इतना कह कर पौलुस ने उन सबों के साथ घुटने टेक कर प्रार्थना की।

37) सब फूट-फूट कर रोते और पौलुस को गले लगा कर चुम्बन करते थे।

38) उसने उन से यह कहा था कि वे फिर कभी उसे नहीं देखेंगे। इस से उन्हें सब से अधिक दुःख हुआ। इसके बाद वे उसे नाव तक छोड़ने आये।

📙 सुसमाचार : सन्त योहन 17:11b-19

11) परमपावन पिता! तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, उन्हें अपने नाम के सामर्थ्य से सुरक्षित रख, जिससे वे हमारी ही तरह एक बने रहें।

12) तूने जिन्हें मुझे सौंपा है, जब तक मैं उनके साथ रहा, मैंने उन्हें तेरे नाम के सामर्थ्य से सुरक्षित रखा। मैंने उनकी रक्षा की। उनमें किसी का भी सर्वनाश नहीं हुआ है। विनाश का पुत्र इसका एक मात्र अपवाद है, क्योंकि धर्मग्रन्थ का पूरा हो जाना अनिवार्य था।

13) अब मैं तेरे पास आ रहा हूँ। जब तक मैं संसार में हूँ, यह सब कह रहा हूँ जिससे उन्हें मेरा आनन्द पूर्ण रूप से प्राप्त हो।

14) मैंने उन्हें तेरी शिक्षा प्रदान की है। संसार ने उन से बैर किया, क्योंकि जिस तरह मैं संसार का नहीं हूँ उसी तरह वे भी संसार के नहीं हैं।

15) मैं यह नहीं माँगता कि तू उन्हें संसार से उठा ले, बल्कि यह कि तू उन्हें बुराई से बचा।

16) वे संसार के नहीं है जिस तरह मैं भी संसार का नहीं हूँ।

17) तू सत्य की सेवा में उन्हें समर्पित कर। तेरी शिक्षा ही सत्य है।

18) जिस तरह तूने मुझे संसार में भेजा है, उसी तरह मैंने भी उन्हें संसार में भेजा है।

19) मैं उनके लिये अपने को समर्पित करता हूँ, जिससे वे भी सत्य की सेवा में समर्पित हो जायें।

📚 मनन-चिंतन

प्रभु येसु ने पिता से प्रार्थना की कि वह अपने शिष्यों को संसार की शत्रुता से बचाए और संभाले रखे। वे जानते थे कि संसार का विरोध और नफरत अंततः उनके शिष्यों को प्रभावित करेगा, जो कि इस संसार के नहीं हैं। प्रभु येसु ने अपने शिष्यों के लिए दीर्घ आयु, समृद्धि या अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना नहीं की, न ही उन्होंने विरोध और घृणा से भरे संसार से उन्हें बाहर निकालने के लिए प्रार्थना की। इसके बजाय, उन्होंने प्रार्थना की कि वे दुनिया में बने रहें, यहां तक कि उत्पीड़न और खतरे के बीच भी, तथा वे प्रेम और क्षमा से खुद को और संसार परिवर्तित करें।

प्रभु येसु के गवाह के रूप में, उनके शिष्य संसार से भाग नहीं सकते; उन्हें तमाम विषम और विकट परिस्थितियों में भी डटे रहना है तथा अपने प्यार और क्षमा से सकारात्मक प्रभाव डालकर अपने विरोधियों को भी प्रभु येसु के करीब लाना है।

- फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत


📚 REFLECTION

Jesus prayed to the Father to protect and preserve his disciples from the hostility of the world. He knew that the world’s opposition and hatred would eventually affect his disciples, who are not of the world. Jesus did not pray for his disciples to be blessed with long life, prosperity, or good health, neither did he pray for them to be taken out of the world full of opposition and hatred. Instead, he prayed that they remain in the world, even amid persecution and danger, and be transformed by love and forgiveness.

As witnesses of Jesus, his disciples cannot run away from the world; they must stay and make a positive impact with their love and forgiveness.

-Fr. Fr. Preetam Vasuniya - Indore Diocese

📚 मनन-चिंतन-2

प्रभु येसु इस संसार में शायद सबसे अधिक प्रेम अपने शिष्यों को ही करते थे। उन्हें अपने शिष्यों की बड़ी चिन्ता थी। मनुष्य का स्वभाव ही ऐसा है कि जो कोई उसको सबसे प्रिय है वह उसकी चिन्ता करता है। प्रभु येसु जब अपने पिता से प्रार्थना करते हैं तो उस प्रार्थना का एक बड़ा हिस्सा शिष्यों की सलामती के लिए है। प्रभु येसु नहीं चाहते थे कि उनके जाने के बाद उनके शिष्य कमजोर पड़ जाएं या तितर-बितर हो जाएं। उन्हें मालूम था कि संसार में शिष्य लोग और उनके बाद उनके अनुयायी किस तरह के वातावरण का सामना करने वाले थे।

हम भी पिता ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, कुछ लोग समाज के या समूह के साथ मिलकर प्रार्थना करते हैं, कुछ लोग अपने परिवार के साथ या व्यक्तिगत रूप से प्रार्थना करते हैं। क्या हम सिर्फ अपनी चिंताएं या परेशानियाँ ही प्रभु के समक्ष रखते हैं या हमारे आस-पास जो लोग हैं उनके लिए भी हम प्रार्थना करते हैं। जब हम दूसरों के लिए प्रार्थना करते हैं तो उनके दुख-दर्द में एक हो जाते हैं। उसी तरह से प्रभु येसु अपने शिष्यों की चिन्ता एवं परेशानियों में एक होना चाहते थे, उनका साथ देना चाहते थे।

- फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Jesus loved his disciples the most of all the people around him. He was greatly concerned about the ones he loved. It is our human nature to be worried and concerned about the people whom we love. When Jesus prays to the Father, a big portion of his prayer consists of prayer for his disciples. Jesus did not want that, when he goes away to his heavenly Father, his disciples should not be lost in the world. He knew what the world had for them. They do not belong to the world.

We all pray to the Father, some pray together with the community, some pray with their family, some even pray alone in private. While praying are we only concerned about our own worries and tensions or we also think about the people around us, those who need our prayers. When we pray for others, we join them in their pain and suffering. Jesus wanted to be one with his disciples through prayer. Today he prays for us and wants to join us in our sufferings.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन-3

आज का सुसमाचार प्रभु येसु के उस महापुरोहिताई प्रार्थना के अंश से लिया गया है जो प्रभु येसु इस संसार में अपनी अंतिम घटनाओं से पूर्व करते है। आज के उस प्रार्थना के अंश में हम पाते है कि येसु अपने उन शिष्यों के लिए विशेष प्रार्थना करते है जो उनके जाने के बाद इस संसार में ईश्वर के कार्यो को आगे बढ़ायेंगे।

जब तक शिष्य उनके साथ थे वे सुरक्षित थे, प्रभु येसु ईश्वर से शिष्यों के लिए प्रार्थना करते है कि ईश्वर उन्हे बुराई से बचा। और जिस प्रकार पिता ने पुत्र को इस संसार में भेजा, उसी प्रकार पुत्र ने शिष्यों को इस संसार में भेजा है और प्रभु येसु चाहते कि वे भी येसु के समान सत्य की सेवा में समर्पित हो जायें।

प्रभु येसु का अपने शिष्यों के लिए प्रार्थना करना हम सबको यह बताता है कि वे अपने शिष्यों से कितना प्रेम करते थे और एक भले चरवाहे के रूप में उनकी देखरेख करते थे। प्रभु येसु के बाद शिष्यों ने ईश्वर का सेवा कार्य पूरी लगन और ईमानदारी से सम्पन्न किया और जिस कार्य के लिए वे चुने गये थे उस कार्य को अपनी अंतिम सास तक पूर्ण किया। हम ईश्वर और उसकी योजनाओं के लिए धन्यवाद देते हुए उस कार्य को जारी रखने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें। आमेन!

- फादर डेन्नीस तिग्गा


📚 REFLECTION

Today’s gospel is taken from that part of high priestly prayer which Lord Jesus prayed before his last events in this world. In the part of that prayer today we find that Lord Jesus specially pray for the disciples who will carry forwad the work of God after him.

Till the time when the disciples were with him, he protected them. Lord Jesus prays for the disciples to God for their protection; and as the Son is being sent by the Father into the world, so also Son has sent them into the world and Lord Jesus wants that they also may be sanctified in truth.

Praying for the disciples by Jesus tells us that how much He loved the disciples and he took care of them like the good Shepherd. After Jesus the disciples carry forward the work of God with full dedication and honesty and for the work which they were being chosen they fulfilled it till their last breath. Thanking God and his plans let’s pray that the work of God may continue to go on. Amen!

-Fr. Dennis Tigga

📚 मनन-चिंतन - 4

जब हम अपने प्रियजनों के लिए प्रार्थना करते हैं तो उनके लिए सबसे अधिक ज़रूरत वाली चीज़ के लिए प्रार्थना करते हैं। आज के सुसमाचार में हम प्रभु येसु को शिष्यों के लिए प्रार्थना करते हुए देखते हैं। शिष्यों के लिए उस समय सबसे आवश्यक वस्तु थी उनकी सुरक्षा, रास्ते से भटक ना जायें, इसके लिए सुरक्षा, और तितर-बितर ना हो जाएँ उससे सुरक्षा। वे प्रभु येसु के लिए पिता ईश्वर द्वारा प्रदत्त उपहार थे और प्रभु येसु इस उपहार को सदा सुरक्षित रखना चाहते थे। वे संसार के नहीं थे, वे ईश्वर के थे। जब हम ईश्वर के हो जाते हैं तो हमें और भी अधिक सुरक्षा की ज़रूरत होती है - संसार के दूषण से सुरक्षा, बुराइयों से सुरक्षा, छल-कपट से सुरक्षा।

पिता ईश्वर ने हमें हमारे आस-पास बहुत सारे लोगों को प्रदान किया है- हमारा परिवार, हमारे मित्र, हमारे सगे-सम्बन्धी और हमारे साथी या सहकर्मी। क्या हमने कभी उनकी सबसे ज़रूरी आवश्यकता को महसूस किया है और उनके लिए प्रार्थना की है? आइए हम अपने आस-पास के प्रिय लोगों के लिए पिता ईश्वर को धन्यवाद दें, और प्रार्थना करें वे पिता ईश्वर की देख-भाल में सदा सुरक्षित रहें। आमेन।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

When we pray for our loved ones, we pray for what is most urgent for them. We see Jesus praying to the Father for the need of the disciples. The most urgent thing needed at the time for the disciples was their protection, protection from being lost, from being scattered. They were gift of God the Father to Jesus and he always protected them and wants they should be always protected. They did not belong to the world, they belonged to God. We need more protection when we belong to God, we need protection from the impurities of the world, the evils of the world, the traps of the world.

God the Father has given us many people around us as a gift, our family, our friends, our relatives and our colleagues. Do I sense their most urgent need and pray for them? Let us thank the Father for gift of the loving people around us and pray for them that they may be protected in the divine care the Father. Amen.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)