मई 09, 2024, गुरुवार

पास्का का छठवाँ सप्ताह

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📒 पहला पाठ : प्रेरित-चरित 18:1-8

1) इसके बाद पौलुस आथेंस छोड़ कर कुरिन्थ आया,

2) जहाँ आक्विला नामक यहूदी से उसकी भेंट हुई। आक्विला का जन्म पोन्तुस में हुआ था। वह अपनी पत्नी प्रिसिल्ला के साथ इटली से आया था, क्योंकि क्लौदियुस ने यह आदेश निकला था कि सब यहूदी रोम से चले जायें। पौलुस उन से मिलने गया

3) और उनके यहाँ रहने तथा काम करने लगा; क्योंकि वह एक ही व्यवसाय करता था- वे तम्बू बनाने वाले थे।

4) पौलुस प्रत्येक विश्राम के दिन सभागृह में बोलता और यहूदियों तथा यूनानियों को समझाने का प्रयत्न करता था।

5) जब सीलस और तिमथी मकेदूनिया से पहुँचे, तो पौलुस वचन के प्रचार के लिए अपना पूरा समय देने लगा और यहूदियों को यह साक्ष्य देता रहा कि ईसा ही मसीह हैं।

6) किन्तु जब वे लोग पौलुस का विरोध और अपमान कर रहे थे, तो उसने अपने वस्त्र की धूल झाड़ कर उन से यह कहा, ’’तुम्हारा रक्त तुम्हारे सिर पड़े! मेरा अन्तःकरण शुद्ध है। मैं अब से ग़ैर-यहूदियों के पास जाऊँगा।’’

7) वह उन्हें छोड़ कर चला गया और तितियुस युस्तुस नामक ईश्वर-भक्त के यहाँ आया, जिसका घर सभागृह से लगा हुआ था।

8) सभागृह के अध्यक्ष क्रिस्पुस ने अपने सारे परिवार के साथ प्रभु में विश्वास किया। बहुत-से कुरिन्थी भी पौलुस की बातें सुन कर विश्वास करते और बपतिस्मा ग्रहण करते थे।

📙 सुसमाचार : योहन 16:16-20

16 थोडे ही समय बाद तुम लोग मुझे नहीं देखोगे और फिर थोडे ही समय बाद मुझे देखोगे।

17) इस उनके कुछ शिष्यों ने आपस में यह कहा, ’’वह हम से यह क्या कहते हैं- थोडे ही समय बाद तुम मुझे नहीं देखोग और फिर थोडे ही समय बाद तुम मुझे देखोगे, और क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ?’’

18) इसलिये वे कहते थे, ’’वह जो ’थोडा समय’ कहते हैं इस का अर्थ क्या है? हम उनकी बात नहीं समझ पा रहे हैं।’’

19) ईसा ने यह जानकर कि वे मुझ से प्रश्न पूछना चाहते हैं, उन से कहा, ’’तुम आपस में मेरे इस कथन के अर्थ पर विचार विमर्श कर रहे हो कि ’थोडे ही समय बाद तुम मुझे नहीं देखोगे और फिर थोड़े ही समय बाद मुझे देखोगे।

20) मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ ’’तुम रोओगे और विलाप करोगे, परंतु संसार आनंद मनायेगा। तुम शोक करोगे किन्तु तुम्हारा शोक आनन्द बन जायेगा।

📚 मनन-चिंतन

प्रभु येसु के समय में उनके पुनरुत्थान के बारे में सुनने वालों द्वारा अनुभव किए गए भ्रम को समझना हमारे लिए आसान है, लेकिन उस समय, यह अकल्पनीय था। सदूकियों को छोड़कर यहूदियों का यह विश्वास था कि समय के अन्त में सभी का पुनरुत्थान होगा। उन्होंने इस अंतिम घटना से पहले मृतकों में से किसी भी वापसी की उम्मीद नहीं की थी।

यद्यपि, शिष्यों की प्रभु येसु को लेकर धीमी समझ सभी सुसमाचारों में एक सामान्य कारक है। सह्दर्शी सुसमाचारों में कैसरिया फ़िलिपी में पेत्रुस द्वारा उन्हें मसीह घोषित किये जाने से पहले प्रभु येसु तीन बार विश्वास की कमी के लिए उनकी आलोचना करते है। तथा इसके बाद, वे तीन बार इस संदेश को समझने में असफल रहते हैं कि ख्रीस्त दुखभोग और मृत्यु के माध्यम से ही अपनी महिमा में प्रवेश करेंगे तथा उनके शिष्यों को अपना क्रूस उठाकर इसमें सहभागी होना है। यद्यपि योहन के सुसमाचार में इस पर कम जोर दिया गया है, फिर भी कई स्थानों पर संदेह देखने को मिलता है - (‘क्या नासरत से कुछ अच्छी चीज़ आ सकती है?’) और जीवन की रोटी के प्रवचन के बाद कई उन्हें छोड़कर चले जाते हैं (योहन 6:66)। गेथसेमनी बाग़ में भी, पेत्रुस ये सोचता है कि प्रभु येसु को तलवार से बचाया जा सकता है (योहन 18.10)।

हम भी हमारे जीवन में प्रभु येसु के व्यवहार के महत्व, हमारे जीवन से उनकी स्पष्ट अनुपस्थिति, और हमारी कई अनसुनी प्रार्थनाओं की निराशा में उनको समझने में विफल हो जाते हैं। इसमें पवित्र आत्मा ही हमारी मदद कर सकता है क्योकिं प्रभु ने स्वयं कहा है कि वह सहायक आत्मा तुम्हें सब कुछ सिखा देगा।

- फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत


📚 REFLECTION

It is easy for us to understand the confusion experienced by those who heard about Jesus’ resurrection, but at that time, it was unimaginable. The Jews, except for the Sadducees, held the belief that all would be resurrected at the end of time. They did not expect any return from the dead before this final event.

However, the disciples’ slow comprehension of Jesus is a common factor in all the Gospels. They are criticized for their lack of faith three times before Peter’s breakthrough at Caesarea Philippi in the synoptic Gospels. After that, they fail three times to understand the message that the Messiah can come to his glory only through suffering and death and that his disciples must share in taking up their own cross. Although this is less emphasized in the Gospel of John, they still start with healthy skepticism (‘Can anything good come from Nazareth?’) and some of them defect on the way after the Bread of Life Discourse (John 6:66). Even in the Garden of Gethsemane, Peter thinks Jesus can be defended with a sword (John 18:10).

In our own times, followers of Jesus may struggle to comprehend the significance of his behaviour, his apparent absences from our lives, and the disappointment of prayer without response. Only the Holy Spirit can help us in this because the Lord Himself has said that He will teach you everything.

-Fr. Fr. Preetam Vasuniya - Indore Diocese

📚 मनन-चिंतन-2

आज का सुसमाचार न केवल प्रभु के शिष्यों को निरुत्तर कर देता है, बल्कि हमें भी आश्चर्य में डाल सकता है। प्रभु येसु कहते हैं कि “थोड़े ही समय बाद तुम लोग मुझे नहीं देखोगे और फिर थोड़े ही समय बाद मुझे देखोगे।” आखिर इन शब्दों का क्या अर्थ है, प्रभु इन शब्दों के द्वारा अपने शिष्यों से क्या कहना चाहते हैं? क्या इसका तात्पर्य प्रभु की मृत्यु के बाद तीन दिन से है, या फिर इसका अर्थ पुनरुत्थान के बाद अपने पिता के पास जाने के बाद आत्मा के आने तक का समय है? या फिर इसका तात्पर्य उनके पुनः इस दुनिया का न्याय करने के संसार के अंत में आने से है? प्रभु येसु संकेत देते हैं कि “तुम रोओगे लेकिन संसार आनंद मनाएगा, तुम शोक मनाओगे लेकिन तुम्हारा शोक आनंद में बदल जाएगा।” प्रभु को प्यार करने वाले लोग कब रोते या शोक मनाते हैं? जब वे प्रभु से दूर हो जाते हैं, जब प्रभु के साथ उनका रिश्ता खतरे में पड़ जाता है। यानि कि जब पाप का पर्दा हमारी आँखों पर पड़ जाता है, तो हम ईश्वर को नहीं देख पाते हैं, हमारी अंतरात्मा शोक मनाती है, दुखी होती है, लेकिन जब हम पश्चाताप के द्वारा ईश्वर से मेल-मिलाप कर लेते हैं तो उन्हें फिर महसूस करने लगते हैं। हमारा मन आनंद मनाता है।

- फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

The gospel today not only leaves the disciples of Jesus confused, but also it can surprise us. Jesus says, “a little while after you will not see me and a little while after you will see me.” What do these words mean ? What does Jesus want to say to his disciples through these words? Does it mean that after his death three days they will not see him Or does it mean the time that after resurrection and going back to the father till the spirit comes ? Or does it mean the time when Jesus will come again to judge the world at the end? Jesus himself gives us a sign to understand these words, he says “you will mourn but the world will rejoice , you will be filled with sorrow but your sorrow will change into rejoicing.” When do the people who love God feel sorrow or mourn, certainly when they are away from God,, when their relationship with God is in danger. When sin blocks our sight then we cannot see God for a little while And our spirit within us mourns, it becomes sad. When we repent and reconcile with God and again start feeling him and loving him in our life then our heart rejoices.

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन- 3

मुझे आश्चर्य होता है कि प्रेरितों के लिए यीशु के स्वर्गारोहण को देखना कैसा था। सुसमाचार इस प्रकार संकेत देता है: 'और उन्होंने उसकी पूजा की और बहुत खुशी के साथ येरुसलेम लौट आए और वे लगातार मंदिर में परमेश्वर की स्तुति करते थे'। यह भी यीशु द्वारा अपने स्वर्गारोहण से पहले दिया गया वादा था, जिसने शिष्यों के लिए गहरा विश्वास और आश्वासन प्रदान किया: 'जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम शक्ति प्राप्त करोगे।' संत लुकास हमें बताता है कि यीशु उन्हें आशीर्वाद दे रहा था जैसे जैसे वह स्वर्गरोहित हो रहे थे । पवित्र आत्मा की शक्ति, मसीह का आशीर्वाद हमें आगे बढ़ाए। पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य की घोषणा करने में, मसीह के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए ही हमें शिष्य बनने के लिए बुलाया गया है। जैसा कि मसीह हमें आशीर्वाद देता है, उसी प्रकार हम सभी को दूसरों के लिए एक आशीर्वाद बन जाना हैं।

- फादर पायस लकड़ा


📚 REFLECTION

The statement of Jesus ‘a little while,’ mikron in Greek, is used seven times in this short passage. Something is about to happen soon, but they don’t know what. This is the way to be scared. They can tell that It has something to do with death: the word here for ‘mourn’ is a word that is used for grief at a death.

When Jesus is saying, ‘a little while’, He is referring to His impending death. He predicts that His death makes His followers experience great sorrow but this delights all those who have joined forces against Him.

However, that situation is soon to be reversed by the Resurrection. For then, the disciples will experience a deep and abiding joy, whereas the soldiers guarding the tomb will be terrified (Mt 28:4) and the chief priests will be compelled to buy the soldiers’ silence (Mt 28:11-15). It is a reversal situation.

Our Christian life is somewhat patterned after what Jesus says, ‘a little while,’ that is, as a cycle of disappearances and reappearances endlessly repeated.

Like for example, when we pray, there are times that Jesus is not felt as real or as present in our hearts when we want to experience intimacy with Him. This is what we call desolation in prayer. But if we persevere in prayer and if we continue living our Christian life as best we can, invariably there comes a time when the presence of Jesus is again felt. And this is what we called consolation in prayer. These alternating desolations and consolations are the warp and woof forming the very fabric of our Christian life. They are meant to make us constantly grow in faith and trust. After a while however, faith becomes so strong that Jesus is somehow always “seen” and not felt by a kind of special eyesight of the soul. Then the Christian’s joy is practically permanent.

-Fr. Pius Lakra

📚 मनन-चिंतन -4

प्रभु येसु ने अपने आर्शीवचन में हम सभी को कई सांत्वना भरे वचन दिये है उनमें से एक वचन है, ‘‘धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, उन्हें सान्त्वना मिलेगी’’ (मत्ती 5ः5)। प्रभु येसु का यह वचन हम सब के लिए एक आशावान वचन है जो हम सभी को सांत्वना प्रदान करता है। प्रभु हम सभी से कहना चाहते है कि जो प्रभु और प्रभु के राज्य के लिए शोक मनाता है उसे आगे चलकर सांत्वना प्राप्त होगी।

आज के सुसमाचार में प्रभु येसु अपने विषय में बताते है कि वे किस प्रकार थोड़े समय के लिए शिष्यों को दिखाई नहीं देंगे और फिर थोड़े समय बाद वे दिखाई देंगे। आगे चल कर येसु कहते है कि तुम शोक करोगे किन्तु तुम्हारा शोक आनन्द बन जायेगा। हमारा प्रभु शोक को आनन्द में बदलने वाला प्रभु है।

हमारे जीवन में कई ऐसे क्षण आते है जो हमें शोक से भर देते है-जैसे जब हमारे किसी परिजन की मृत्यु होती है तो हम शोक से भर जाते है; जब हम प्रभु के मार्ग पर चलने की वजह से हम पर दुख, संकट, अत्याचार या अपमान किया जाता है तो हमारा ह्दय शोक से भर जाता है; जब हम दुष्टों को फलते फूलते देखते है तथा हमारे चारों ओर दुख, अंधेरे के बादल को घिरा हुआ पाते है तथा हमें कोई जवाब नहीं मिलता है तो हम शोक से भर जाते है। प्रभु येसु हम से कहते है कि तुम्हारा शोक आनन्द में बदल जायेगा, जिस प्रकार शिष्य प्रभु येसु के कू्रस मरण के बाद शोक में डूब गये थे परंतु पुनरुत्थान के बाद उनका शोक आनन्द में बदल गया; ठीक उसी प्रकार प्रभु हमारे शोक के बादल को आनन्द की किरणों से दूर कर देंगे। आईये हम प्रार्थना करें इस संसार में जो भी लोग शोक में डूबे हुए है वे सब प्रभु के पास आये जिससे उनका शोक आनन्द में बदल जाये। आमेन!

फ़ादर डेनिस तिग्गा

📚 REFLECTION


Lord Jesus has given many comforting words in his beatitudes, among them one is, “Blessed are those who mourn, for they will be comforted.” (Mt 5:4). These words of Lord Jesus are words of hope for us which gives comfort. Lord wants to tell us that those who mourn for the Lord and for the Lord’s Kingdom they will be comforted in future.

In today’s Gospel Jesus speaks about himself that for a little while the disciples will no longer see him and after a little while they will see him. He tells further that you will weep and mourn, but your pain will turn into joy. Our Lord is the Lord who turns mourning into joy.

In our lives many moments come when we are filled with mourning- for instances when some relatives die in the family we are filled of mourning; when pain, problems, persecution and insults are executed on us for being walking in the way of the Lord then our hearts are filled with mourning; when we see the wicked prospering and finding oneself surrounded by clouds of sorrow and darkness and when we doesn’t receive any answer then we are filled with grief or mourning. Lord Jesus tells us that your mourning will turn into joy, as the disciples were in grief when Jesus died on the cross but after the resurrection their mourning turned into joy; similarly Lord will remove the cloud of mourning through the rays of Joy. Let’s pray that those who are in grief in this world may come to Jesus so that their grief may turn to Joy. Amen!

-Fr. Dennis Tigga