मई 08, 2024, बुधवार

पास्का का छठवाँ सप्ताह

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📒 पहला पाठ : प्रेरित-चरित 17:15, 22-18:1

15) पौलुस के साथी उसे आथेंस ले चले और उसका यह सन्देश ले कर लौटे कि जितनी जल्दी हो सके, सीलस और तिमथी मेरे पास चले आयें।

22) परिषद् के सामने खड़ा हो कर पौलुस ने यह कहा, ’’आथेंस के सज्जनों! मैं देख रहा हूँ कि आप लोग देवताओं पर बहुत अधिक श्रद्धा रखते हैं।

23) आपके मन्दिरों का परिभ्रमण करते समय मुझे एक वेदी पर यह अभिलेख मिला- ’अज्ञात देवता को’। आप लोग अनजाने जिसकी पूजा करते हैं, मैं उसी के विषय में आप को बताने आया हूँ।

24) जिस ईश्वर ने विश्व तथा उस में जो कुछ है, वह सब बनाया है, और जो स्वर्ग और पृथ्वी का प्रभु है, वह हाथ से बनाये हुए मन्दिरों में निवास नहीं करता।

25) वह इसलिए मनुष्यों की पूजा स्वीकार नहीं करता कि उसे किसी वस्तु का अभाव है। वह तो सभी को जीवन, प्राण और सब कुछ प्रदान करता है।

26) उसने एक ही मूलपुरुष से मानव जाति के सब राष्ट्रों की सृष्टि की और उन्हें सारी पृथ्वी पर बसाया। उसने उनके इतिहास के युग और उनके क्षेत्रों के सीमान्त निर्धारित किये।

27) यह इसलिए हुआ कि मनुष्य ईश्वर का अनुसन्धान सकें और उसे खोजते हुए सम्भवतः उसे प्राप्त सकें, यद्यपि वास्तव में वह हम में से किसी से भी दूर नहीं है;

28) क्योंकि उसी में हमारा जीवन, हमारी गति तथा हमारा अस्तित्व निहित है। जैसा कि आपके कुछ कवियों ने कहा है, हम भी उसके वंशज हैं।

29) यदि हम ईश्वर के वंशज हैं, तो हमें यह नहीं समझना चाहिए कि परमात्मा सोने, चाँदी या पत्थर की मूर्ति के सादृश्य रखता है, जो मनुष्य की कला तथा कल्पना की उपज है।

30) ईश्वर ने अज्ञान के युगों का लेखा लेना नहीं चाहा, परन्तु अब उसकी आज्ञा यह है कि सर्वत्र सभी मनुष्य पश्चात्ताप करें;

31) क्योंकि उसने वह दिन निश्चित किया है, जिस में वह एक पूर्व निर्धारित व्यक्ति द्वारा समस्त संसार का न्यायपूर्वक विचार करेगा। ईश्वर ने उस व्यक्ति को मृतकों में से पुनर्जीवित कर सबों को अपने इस निश्चय का प्रमाण दिया है।’’

32) मृतकों के पुनरुत्थान की चर्चा सुनते ही कुछ लोगों ने उपहास किया और कुछ लोगों ने यह कहा, ’’इस विषय पर हम फिर कभी आपकी बात सुनेंगे’’।

33) इसलिए पौलुस उन्हें छोड़ कर चला गया।

34) फिर भी कई व्यक्ति उसके साथ हो लिये और विश्वासी बन गये: जैसे परिषद् का सदस्य दियोनिसियुस, दामरिस नामक महिला और अन्य लोग भी।

18:1) इसके बाद पौलुस आथेंस छोड़ कर कुरिन्थ आया।

📙 सुसमाचार : योहन 16:12-15

12) मुझे तुम लोगों से और बहुत कुछ कहना है परन्तु अभी तुम वह नहीं सह सकते।

13) जब वह सत्य का आत्मा आयेगा, तो वह तुम्हें पूर्ण सत्य तक ले जायेगा; क्योंकि वह अपनी ओर से नहीं कहेगा, बल्कि वह जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा और तुम्हें आने वाली बातों के विषय में बतायेगा।

14) वह मुझे महिमान्वित करेगा, क्योंकि उसे मेरी ओर से जो मिला है, वह तुम्हें वही बतायेगा।

15) जो कुछ पिता का है, वह मेरा है। इसलिये मैंने कहा कि उसे मेरी ओर से जो मिला है, वह तुम्हें वही बतायेगा।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में, येसु अपने शिष्यों से वादा करते हैं कि सत्य का आत्मा उन्हें पूर्ण सत्य तक ले जायेगा। प्रभु येसु के जाने की खबर ने उनके दिलों को दुःख और निराशा से भर दिया था। उन्होंने यीशु के जाने के साथ एक सांसारिक राज्य और उसकी शक्ति के अपने सपनों सिमटते देखा। और वे उनके द्वारा लाए गए पिता ईश्वर के दिव्य प्रकाशन को पूरी तरह से प्राप्त करने में असमर्थ रहे। परन्तु पेन्तेकोस्त के बाद तस्वीर बदल जाती है, जब पेत्रुस ने आत्मा से भरकर यह घोषित किया कि क्रूस पर चढ़ाये गये येसु ‘प्रभु और मसीह’ दोनों हैं।

आज के प्रभु येसु के अनुयायियों को अपनी इच्छाओं को शुद्ध करने, अपने भ्रमित विचारों को शुद्ध करने, मसीह के संदेश के सही अर्थ को समझने और उसकी गवाही देने के लिए पवित्र आत्मा के निरंतर मार्गदर्शन की आवश्यकता है। संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें के अनुसार, पवित्र आत्मा ‘हमें दुनिया को, दूसरों को, और खुद को ईश्वर की आंखों से देखना चाहिए।’ आइये हम पवित्र आत्मा की निगाह से सब कुछ देखना सीखें।

- फादर प्रीतम वसुनिया - इन्दौर धर्मप्रांत


📚 REFLECTION

In today’s Gospel, Jesus promises His disciples that the Spirit of truth will lead them to the whole truth. The news of Jesus’ departure filled their hearts with grief and despair. They saw their dreams of an earthly kingdom and His power shrink with the departure of Jesus. And they were unable to fully receive the divine revelation of God the Father brought by Jesus. But the picture changes after Pentecost, when Peter, filled with the Spirit, declared that Jesus who was crucified was ‘both Lord and Christ.’

Followers of Jesus today need the constant guidance of the Holy Spirit to purify their desires, to purify their confused thoughts, to understand and bear witness to the true meaning of Christ’s message. According to Pope Benedict XVI, the Holy Spirit ‘teaches us to see the world, others, and ourselves with God’s eyes.’ Let us learn to see everything through the eyes of the Holy Spirit.

-Fr. Fr. Preetam Vasuniya - Indore Diocese

📚 मनन-चिंतन-2

प्रभु येसु के जाने के बाद सत्य का आत्मा आने वाला था। लेकिन इस आत्मा के आने की जरूरत क्या थी? पुराने व्यवस्थान से ही हम देखते हैं कि ईश्वर सदा से मनुष्यों को अपने सानिध्य में रखना चाहते थे। मनुष्य के जीवन का वास्तविक अर्थ ईश्वर से जुड़े रहने में ही है। ईश्वर मनुष्यों से बातें करना चाहता था, उनका मार्गदर्शन करना चाहता था। प्रारंभ में वह स्वयं बिना किसी माध्यम के हमसे बात करता था। फिर नबियों और अन्य चुने हुए लोगों के द्वारा, और फिर अपने पुत्र के द्वारा हमसे बात करता है (देखें इब्रानीयों 1:2)। प्रभु येसु भी उस संवाद को जारी रखना चाहते हैं। आज के सुसमाचार में वे हमसे कहते हैं, “मुझे तुमसे और भी बहुत कुछ कहना है...” आज जब ईश्वर हमसे कुछ कहना चाहते हैं तो वह इसी सत्य के आत्मा के द्वारा कहना चाहते हैं, वही हमें भी ईश्वर से बात करना सिखाता है (देखिए रोमियों 8:26-27)। प्रभु येसु के ये शब्द न केवल अपने शिष्यों के लिए हैं बल्कि आज हमसे से प्रत्येक व्यक्ति के लिए हैं, प्रत्येक परिवार के लिए हैं - “मैं तुमसे बहुत कुछ कहना चाहता हूँ।” क्या हम प्रभु के पास से आए हुए सत्य के आत्मा द्वारा ईश्वर की वाणी को सुनने की कोशिश करते हैं, उनसे बात-चीत करने की कोशिश करते हैं।

- फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

After Jesus had been ascended the spirit of truth was to come to us. But what was the need of this spirit of truth to come? We see in the Old Testament that God wants to remain in constant union with the people. The real meaning of human life is to remain in communion with God. Without God there is no meaning in life. God wanted to communicate with humanity , wanted to lead them towards himself. In the beginning God communicated with them directly, later on through the prophets and other anointed people , and at the end he also spoke to us through his son (Ref Heb 1:2). Jesus wants to continue the same communication of God with humanity. In the gospel today he tells us “I have many things to tell you…” When God wants to speak to us he will speak to us through this spirit of truth. It is the spirit that teaches us to talk to God (Ref. Romans 8:26-27). The above words of Jesus are not only for his disciples, but Jesus means them for us, for every person, for every family, and those words are - “I want to tell you something more…” Do we try to listen to the words of the spirit of truth that has come from our Lord and try to remain in constant communication with God?

-Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)

📚 मनन-चिंतन- 3

हे प्रभु, मैं सत्य की आत्मा के लिए आपकी स्तुति करता हूं, वह अधिवक्ता जो मुझे अनन्त जीवन की ओर ले जाता है। मैं आपकी प्रशंसा करता हूं, हे परमेश्वर, विश्वास के उपहार के लिए, कि मेरा दिल आपके साथ गहरे संबंध में रहना चाहता है। मैं आपकी स्तुति करता हूं, हे परमेश्वर, सूर्य और चंद्रमा, महासागरों और जंगलों के लिए, प्रकृति के सभी तत्वों के लिए जो मेरे जीवन में सुंदरता और जीविका का साथन हैं। मैं आपकी स्तुति करता हूं, हे परमेश्वर, स्वच्छ हवा के उपहार के लिए, कि मैं आसानी से अंदर और बाहर सांस ले सकता हूं, और पूरी तरह से जीवन पा सकता हूं। मैं परिवार और दोस्तों के लिए आपकी स्तुति करता हूं, जो मेरे अस्तित्व के लिए ऐसा जीवन और आनंद और अर्थ लाते हैं। मैं आपकी स्तुति करता हूं, हे परमेश्वर, मेरे सामने आने वाले दुख और कठिनाइयों के लिए, क्योंकि वे मुझे मेरी भेद्यता और आपकी निरंतर आवश्यकता की याद दिलाते हैं। मैं आपकी स्तुति करता हूं, हे परमेश्वर, हमेशा मेरी तरफ रहने के लिए, इस गहरे ज्ञान के लिए कि मुझे प्यार किया जाता है, मैं कीमती हूँ और कभी अकेला नहीं। मैं आपकी स्तुति करता हूँ, हे परमेश्वर सदा सर्वदा

- फादर पायस लकड़ा


📚 REFLECTION

In today’s gospel reading, Jesus tells His disciples about the significant and special role of the Holy Spirit in the Church after the Ascension. That is, that the Holy Spirit of truth will guide them to all truth.

And the Holy Spirit is not a professor who teaches new things but He is like a tutor who will explain the things of Jesus Christ Himself.

The Spirit comes only to remind the disciples of the Father’s revelation in Jesus and to ensure a proper understanding of this revelation.

As Christians we must be on guard against the spirit of insincerity. No one who lives outside the truth can claim to be a disciple of Christ.

-Fr. Pius Lakra

📚 मनन-चिंतन -4

पवित्र आत्मा ख्रीस्तीय जीवन का एक अभिन्न अंग है। कलीसिया में 2000 वर्षों से पवित्र आत्मा कार्य कर रहा है। पवित्र आत्मा कलीसिया में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है लेकिन कई बार हम पवित्र आत्मा को नजर अंदाज कर देेते है शायद इसलिए क्योंकि पवित्र आत्मा अपने को न दिखाकर येसु को हमेशा प्रकाश में लाते है। आज के सुसमाचार में पवित्र आत्मा को सत्य का आत्मा के रूप में बताया गया है जो पूर्ण सत्य तक ले जायेगा। वह येसु को महिमान्वित करेगा, क्यांेकि उसे येसु की ओर से जो मिला है, वह हमें वहीं बतायेगा।

पवित्र आत्मा के बिना हम इस संसार में शैतान का सामना नहीं कर सकतें। यह पवित्र आत्मा ही है जो हमारे जीवन के हर क्षण में हमारी मदद करता है और अपने आप को कभी सामने प्रकट नहीं होने देता। बिना पवित्र आत्मा के हम अपने दैनिक और आध्यात्मिक जीवन में कभी भी आगे नहीं बढ़ पायेंगे। पवित्र आत्मा के बिना हम सांसरिक जीवन में ही सिमट कर रह जाएंगे, पवित्र आत्मा में दुबारा जन्म पाकर हमें एक नवीन जीवन प्राप्त होता है़। यह जीवन हमें प्रभु येसु से जुड़े रहने और प्रभु येसु से जुड़े महान रहस्य को समझने में मदद करता है। आइये हम सब आज के पाठों के द्वारा पवित्र आत्मा में दुबारा जन्म लेते हुए एक नवीन जीवन की शुरूआत करें। आमेन!

फ़ादर डेनिस तिग्गा

📚 REFLECTION


Holy Spirit is the intergral part of Christian life. Holy Spirit is being working in the Church since 2000 years ago. Holy Spirit has a very important place in the Church but manier times we neglect the Holy Spirit, it may be because Holy Spirit doesn’t hightlight himself but always focuses on Jesus. In today’s gospel Holy Spirit is being called as the Spirit of Truth who will guide into all the truth. He will glorify Jesus because he will take what is Jesus and declare it to us.

Without Holy Spirit we cannot face the Satan in this world. It is the Holy Spirit only who helps us each and every moment of our lives and doesn’t allow himself to be known to us. Without Holy Spirit we will never be able to go forward in our daily and spiritual lives. Without the Holy Spirit we will be limited to the worldly lives, we receivie the new live after being Reborn in the Holy Spirit. This new life helps to remain united with Jesus and to understand the mysteries related to Jesus. Through today’s readings let’s be reborn in the Holy Spirit and start a new life. Amen!

-Fr. Dennis Tigga