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5) तब नगर के शासकों के सहयोग से गैर-यहूदियों तथा यहूदियों ने प्रेरितों पर अत्याचार तथा पथराव के लिए आंदोलन आरंभ किया।
6) प्रेरितों को इसका पता चला और वे लुकाओनिया के लुस्त्रा तथा देरबे नामक नगरों और उनके आसपास के प्रदेश की ओर भाग निकले
7) और वहाँ सुसमाचार का प्रचार करते रहें।
8) लुस्त्रा में एक ऐसा व्यक्ति बैठा हुआ था, जिसके पैरों में शक्ति नहीं थी। वह जन्म से ही लंगड़ा था और कभी चल-फिर नहीं सका था।
9) वह पौलुस का प्रवचन सुन ही रहा था कि पौलुस ने उस पर दृष्टि गड़ायी और उस में स्वस्थ हो जाने योग्य विश्वास देख कर
10) ऊँचे स्वर में कहा, "उठो और अपने पैरों पर खड़े हो जाओ"। वह उछल पड़ा और चलने-फिरने लगा।
11) जब लोगों ने देखा कि पौलुस ने क्या किया हैं, तो वे लुकाओनियाई भाषा में बोल उठे, "देवता मनुष्यों का रूप धारण कर हमारे पास उतरे हैं"।
12) उन्होंने बरनाबस का नाम ज्यूस रखा और पौलुस का हेरमेस, क्योंकि वह प्रमुख वक्ता था।
13) नगर के बाहर ज्यूस का मंदिर था। वहाँ का पुजारी माला पहने सांड़ों के साथ फाटक के पास आ पहुँचा और वह जनता के साथ प्रेरितों के आदर में बलि चढ़ाना चाहता था।
14) जब बरनाबस और पौलुस ने यह सुना, तो वे अपने वस्त्र फाड़ कर यह पुकारते हुए भीड़ में कूद पड़े,
15) भाइयो! आप यह क्या कर रहे हैं? हम भी तो आप लोगों के समान सुख-दुःख भोगने वाले मनुष्य हैं। हम यह शुभ संदेश देने आये हैं कि इस निःसार देवताओं को छोड़ कर आप लोगों को उस जीवंत ईश्वर की ओर अभिमुख हो जाना चाहिए, जिसने आकाश, पृथ्वी, समुद्र और उन में जो कुछ है, वह सब बनाया।
16) उसने पिछले युगों में सब राष्ट्रों को अपनी-अपनी राह चलने दिया।
17) फिर भी वह अपने वरदानों द्वारा अपने विषय में साक्ष्य देता रहता है - वह आकाश से पानी बरसाता और अच्छी फसलें उगाता है। वह भरूपूर अन्न प्रदान कर हमारा मन आनंद से भरता हैं।"
18) इन शब्दों द्वारा उन्होंने भीड़ को कठिनाई से अपने आदर में बलि चढ़ाने से रोका।
21) जो मेरी आज्ञायें जानता और उनका पालन करता है, वही मुझे प्यार करता है और जो मुझे प्यार करता है, उसे मेरा पिता प्यार करेगा और उसे मैं भी प्यार करूँगा और उस पर अपने को प्रकट करूँगा।
22) यूदस ने उन से कहा, "प्रभु! आप हम पर अपने को प्रकट करेगें, संसार पर नहीं- इसका कारण क्या है?
23) ईसा ने उसे उत्तर दिया यदि कोई मुझे प्यार करेगा तो वह मेरी शिक्षा पर चलेगा। मेरा पिता उसे प्यार करेगा और हम उसके पास आकर उस में निवास करेंगे।
24) जो मुझे प्यार नहीं करता, वह मेरी शिक्षा पर नहीं चलता। जो शिक्षा तुम सुनते हो, वह मेरी नहीं बल्कि उस पिता की है, जिसने मुझे भेजा।
25) तुम्हारे साथ रहते समय मैंने तुम लोगों को इतना ही बताया है।
26) परन्तु वह सहायक, वह पवित्र आत्मा, जिसे पिता मेरे नाम पर भेजेगा तुम्हें सब कुछ समझा देगा। मैंने तुम्हें जो कुछ बताया, वह उसका स्मरण दिलायेगा।
प्रत्येक ख्रीस्तीय के लिए, सबसे गहरे प्रश्नों में से एक यह है, "मैं ख्रीस्त के साथ एक गहरे, करीबी, अधिक घनिष्ठ संबंध का अनुभव कैसे कर सकता हूँ?" ख्रीस्तीय होने का मूल अर्थ ख्रीस्त की मृत्यु और पुनरुत्थान में विश्वास के माध्यम से उनके साथ व्यक्तिगत संबंध में प्रवेश करना है। उनकी आज्ञा मानने से हम ख्रीस्त को और अधिक गहराई से जानने लगते हैं। येसु अंतिम भोज के उपदेश में अपने शिष्यों के प्रति अपने प्रेम और अपने पिता के प्रेम के बारे में बात करते हैं। वे अपने शिष्यों को अपने पिता के पास लौटने के लिए आसन्न प्रस्थान के लिए तैयार करता है। वे ऐसा उन्हें उनकी वफादारी और उनके वचनों के प्रति आज्ञाकारिता के माध्यम से उनके प्रति अपना प्यार साबित करने के लिए प्रोत्साहित करते है। वे उन्हें पवित्र आत्मा के स्थायी निर्देश और सांत्वना का वादा करते है। पास्का के दिन प्रेरितों की प्रतीक्षा, ईश्वर की आत्मा के आने की उनकी प्रत्याशा को फिर से दर्शाते हैं। पवित्र आत्मा हमें ईश्वर और उनकी महान प्रेम के ज्ञान में बढ़ने में मदद करता है। आइए हम पवित्र आत्मा से प्रार्थना करें कि वह हमारे हृदय को ईश्वर और उनके वचन के प्रेम से भर दे।
✍ - फादर संजय कुजूर, एसवीडी
For every Christian, one of the deepest questions is, “How can I experience a deeper, closer, more intimate relationship with Christ?” At the heart of what it means to be a Christian is to enter into a personal relationship with Christ through faith in His death and resurrection. We grow to know Christ more intimately by obeying Him. In Jesus' last supper discourse he speaks of the love he has for his disciples and of his Father's love. He prepares his disciples for his imminent departure to return to his Father. He does it by exhorting them to prove their love for him through their loyalty and obedience to his word. He promises them the abiding instruction and consolation of the Holy Spirit. Easter days recreate the waiting of the early apostles, their anticipation of the coming of God's Spirit. The Holy Spirit helps us to grow in the knowledge of God and his great love. Let us ask the Holy Spirit to inflame our heart with the love of God and his word.
✍ -Fr. Sanjay Kujur SVD
इसमें कोई शक नहीं है कि ईश्वर हमें प्यार करते हैं और इसलिए तो उन्होंने अपने पुत्र को क्रूस पर बलिदान द्वारा अपने प्यार की सबसे बड़ी कीमत चुकाई । प्यार में कीमत चुकानी पड़ती है, त्याग करना पड़ता है, बलिदान देना पड़ता है। पौलुस और बरनाबस को लोग देवता मान लेते हैं, उन्हें कंधों पर उठा लेते हैं, उनके लिए बलि चढ़ाना चाहते । वे दोनों अगर चाहते तो देवता जैसे बनकर खूब मज़े की जिंदगी जी सकते थे, लेकिन उसके लिए उन्हें ईश्वर का रास्ता छोड़ना पड़ता। उनके लिए जीवन के सुख दुख से बढ़कर ईश्वर का प्रेम था। उसी के लिए उन्होंने अपना जीवन न्योछावर कर दिया था। फिर वे उसी के विरुद्ध कैसे जा सकते थे?
ईश्वर को प्यार करने का प्रमाण यही है कि हम उसकी आज्ञाओं पर चलें। अगर एक बच्चा अपने माता-पिता को प्यार करता है लेकिन उनकी बात नहीं मानता तो कैसे कह सकते हैं कि वह अपने माता-पिता को प्यार करता है? प्रभु येसु भी आज हमें यही याद दिलाते हैं, कि यदि हम उन्हें प्यार करते हैं तो हमें उनकी आज्ञाओं को मानना पड़ेगा। प्रभु येसु भी पिता ईश्वर को प्यार करते थे और इसलिए हर क्षण हर पल उनकी इच्छा पूरी करते थे। यहाँ तक कि अपने स्वर्गीय पिता की इच्छा पूरी करने को ही वह अपना भोजन मानते थे (देखें योहन 4:34)। प्रभु येसु क्रूस की मृत्यु तक आज्ञाकारी बने रहे (फिल 2:7-8)। क्या हम भी ईश्वर को इतना प्यार करते हैं कि हम अंत तक आज्ञाकारी बने रहें?
✍ - फ़ादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
There is no doubt that God loves us and that is why he paid the price of his love towards us by sending his son into this world and the son dying for the world . There is a cost involved in true love, there is sacrifice involved in true love . When people saw the miracle done by Paul and Barnabas they understand them as gods and lift them up and even the priests of Zeus want to offer a sacrifice for them. If Paul and barbers wanted they could have enjoyed their life by remaining there and being treated like gods, but for that they had to leave the path of God. The love of God for them was above everything else in their life. They had sacrificed everything for the love of God then how could they go against same God?
The proof of our love for God is that we obey his commandments. If a child says that he loves his parents but does not obey the parents then how can we say that the child loves the parents? Jesus reminds us today that if we love him then we have to obey his commandment. Jesus loved God the father and therefore every moment of his life he spent in fulfilling the will of God, even he understood his food as doing the will of God (Ref. John 4:34). He was obedient unto death, death on a cross. (Philippines 2:7-8) . Do we love God to the extent that we remain faithful and obedient to him unto death?
✍ -Fr. Johnson B. Maria (Gwalior Diocese)
प्रिय यीशु, आपके जैसे प्रेम करना कई बार कठिन हो सकता है। दुनिया में इतना आक्रोश और विभाजन है, लोगों के बीच लड़ाई और उत्पीड़न जारी है, जैसा कि गरीबी और अकाल है। हम प्राकृतिक आपदाओं और बीमारियों से त्रस्त हैं। मैं सपाट और पराजित, अनिश्चित और हारा हुआ महसूस कर सकता हूं। इन पालों में मैं प्रार्थना करता हूं: आओ पवित्र आत्मा, मेरे दिल, दिमाग और आत्मा के सहायक। मुझे सिखा और पिता परमेश्वर के मार्ग में मेरी अगुवाई कर। मैं यह चाहता हूँ। मुझे ले जाएं। मेरा नेतृत्व करें। मेरा मार्गदर्शक करो। पवित्र आत्मा आओ, मैं और अधिक गहराई से सुनना चाहता हूं और आपका अनुसरण करना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के प्रेम के लिए मेरा हृदय उपजाऊ और समृद्ध घर हो। अनेक उपहारों के लिए आपकी महिमा करता हूँ, और जो कुछ मैं कहता हूं, करता हूं, सोचता हूं और सपने देखता हूं, उसमें मेरी अगुवाई कर। आओ पवित्र आत्मा, मेरे हृदय में आपका स्वागत है। ईश्वर की सच्चाई, सुंदरता और भलाई आज और हमेशा बनी रहे। और मैं तेरी भलाई का जीता जागता चिन्ह बनूं। Amen।
✍ - फादर पायस लकड़ा
Nowadays, the word ‘love’ has been overused, abused and mis-used. But it is a fact that love is universally identified both as the primary need of people and the greatest lack of humankind.
As a result, the word ‘love’ occurs in great speeches and poetry more than any other word. But what kind of love are we dealing with here?
Today’s gospel, which is part of His Last Supper discourse, Jesus speaks of the love He has for His disciples and of His Father’s love. He exhorts them to prove their love for Him through their loyalty and obedience to His word. In commenting this love, Saint Augustine says: “The Lord loves each of us as if there were only one of us to love.”
God loves each one of us and this love is as real and tangible as the love of a mother for her child. It is because He makes us know Him personally and to grow in the knowledge of His great love for us. The Holy Spirit also opens our ears to hear and understand the word of God.
Let us ask the Holy Spirit to inflame our hearts with the love of God and His word.
✍ -Fr. Pius Lakra
अगर हम ईश्वर को प्यार करते हैं तो इसका यही प्रमाण है कि हम अपने जीवन में प्रभु येसु की आज्ञाओं का पालन करें; उनकी शिक्षाओं पर चलें। एक बच्चा कैसे साबित करेगा कि वह अपने माता-पिता को प्यार करता है? उनकी बात मानकर।हर माता-पिता अपने बच्चों को प्यार करते हैं क्योंकि उन्होंने उन्हें जन्म दिया है, उनका लालन-पालन किया है। इसी से उनके बच्चों के प्रति उनका प्रेम प्रमाणित होता है। उस प्रेम के बदले में उन बच्चों का फ़र्ज़ है कि वे अपने माँ-बाप की बात मानें, उनकी आज्ञा का पालन करें। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि जो बच्चे अपने माता-पिता के विरुद्ध जाते हैं वे वास्तव में अपने माता-पिता को प्यार नहीं करते।
प्रभु येसु ने अपने बलिदान द्वारा हमें नया जन्म दिया है। पिता ईश्वर ने हमें प्यार किया और अपने एकलौते पुत्र को भेजा और हमारे लिए अर्पित किया है। हमारे प्रति ईश्वर के प्यार में कोई संदेह नहीं। लेकिन परीक्षा तो इस बात की है कि क्या हम ईश्वर को प्यार करते हैं? प्रभु येसु अगर चाहते तो क्रूस पर इतना कष्ट ना सहते लेकिन उन्होंने हमारे प्यार की ख़ातिर और अपने पिता के प्यार की ख़ातिर ऐसा किया। वह पिता को प्यार करते हैं, इसलिए उनकी आज्ञा का पालन करते हैं। वे उनकी इच्छा पूरी करते हुए कहते हैं, “मेरे पिता ! यदि हो सके तो यह प्याला मुझ से टल जाए, फिर भी मेरी नहीं बल्कि तेरी ही इच्छा पूरी हो।” (मत्ती २६:३९)। क्या हम ईश्वर के प्यार का प्रत्युत्तर उनकी शिक्षाओं पर चलकर एवं उनकी आज्ञाएँ मानकर कर सकते हैं?
✍ - फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
We can say we love God only if we obey the commandments of God and follow the teachings of Jesus. How does a child express his love for his parents? By obeying them, by doing what they say. Every parent loves their child because they have brought the child into this world, they have taken care of the child and did everything within their capacity to keep the child happy. This is sufficient to prove their love towards their children that they do everything for their children. The children in return are to obey their parents and follow what they say. In other words if a child goes against the parents, it is clear that child has no love or regard for his parents.
Jesus has begotten us through sacrificing his life on the cross. God loved us so much that He sent and sacrificed His only son for us so that we can be saved. (Cf. Jn. 3:16). God’s love towards us has no place for doubt. But do we love God as he has loved us? If Jesus wanted he could avoid undergoing so much pain and suffering for us, yet he chooses to sacrifice himself for sake of the love for us and love for his Father. He loves the Father and that’s why he ready to suffer to do His will. He says, “My Father, if it is possible, let this cup pass from me; yet not what I want but what you want.” (Mt. 26:39). Do we respond to God’s love as Jesus responded - by seeking and doing His will in our life?
✍ -Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)