सोमवार, 11 मार्च, 2024

चालीसे का चौथा सप्ताह

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📒 पहला पाठ : इसायाह 65:17-21

17) “मैं एक नये आकाश और एक नयी पृथ्वी की सृष्टि करूँगा। पुरानी बातें भुला दी जायेंगी, उन्हें कोई याद नहीं करेगा।

18) मेरी उस सृष्टि में सदा आनन्द और उल्लास रहेगा। मैं येरुसालेम को आनन्दित और उसकी प्रजा को उल्लसित करूँगा।

19) तब येरुसालेम मुझे आनन्द प्रदान करेगा और मेरी प्रजा मेरे उल्लास का कारण बनेगी। उस में फिर न तो रुदन सुनाई देगा और न विलाप।

20) वहाँ न तो कोई ऐसा शिशु मिलेगा, जो थोड़े ही दिनों तक जीवित रहे और न कोई ऐसा वृद्ध, जो अपने दिन पूरे न कर पाये। हर युवक सौ वर्ष तक जीवित रहेगा- जो उस उमर तक नहीं पहुँचता, वह शापित माना जायेगा।

21) वे घर बनायेंगे और उन में निवास करेंगे; वे दाखबारियाँ लगायेंगे और उनके फल खायेंगे।

📙 सुसमाचार : सन्त योहन 4:43-54

43) उन दो दिनों के बाद वह वहाँ से विदा हो कर गलीलिया गये।

44) ईसा ने स्वयं यह कहा था कि अपने देश में नबी का आदर नहीं होता।

45) जब वह गलीलिया पहुँचे, तो लोगों ने उनका स्वागत किया; क्योंकि ईसा ने पर्व के दिनों येरुसालेम में जो कुछ किया था, वह सब उन्होंने देखा था। पर्व के लिए वे भी वहाँ गये थे।

46) वे फिर गलीलिया के काना नगर आये, जहाँ उन्होंने पानी को अंगूरी बना दिया था। कफरनाहूम में राज्य के किसी पदाधिकारी का पुत्र बीमार था।

47) जब उस पदाधिकारी ने सुना कि ईसा यहूदिया से गलीलिया आ गये हैं, तो वह उनके पास आया। उसने उन से यह प्रार्थना की कि वह चल कर उसके पुत्र को चंगा कर दें, क्यांकि वह मरने-मरने को था।

48) ईसा ने उस से कहा, ‘‘आप लोग चिन्ह तथा चमत्कार देखे बिना विश्वास नहीं करेंगे’’।

49) इस पर पदाधिकारी ने उन से कहा, ‘‘महोदय! कृपया चलिए, कहीं मेरा बच्चा न मर जाये’’।

50) ईसा ने उत्तर दिया, ‘‘जाइए, आपका पुत्र अच्छा हो गया है’’। वह मनुष्य ईसा के वचन पर विश्वास कर चला गया।

51) वह रास्ते में ही था कि उसके नौकर मिल गये और उस से बोले, ‘‘आपका पुत्र अच्छा हो गया है’’।

52) उसने उन से पूछा कि वह किस समय अच्छा होने लगा था। उन्होंने कहा कि कल दिन के एक बजे उसका बुख़ार उतर गया।

53) तब पिता समझ गया कि ठीक उसी समय ईसा ने उस से कहा था, ‘आपका पुत्र अच्छा हो गया है’ और उसने अपने सारे परिवार के साथ विश्वास किया।

54) यह ईसा का दूसरा चमत्कार था, जो उन्होंने यहूदिया से गलीलिया आने के बाद दिखाया।

📚 मनन-चिंतन

सुसमाचार के अनुसार प्रभु येसु कम से कम तीन लोगों को दूर से ही चंगाई प्रदान करते हैं। मारकुस 7:24-30 और मत्ती 15:21-28 में हम येसु को एक कनानी महिला की बेटी को चंगा करते हुए पाते हैं। उसकी बेटी अशुध्द आत्मा से पीडित थी। वह स्त्री अपनी बेटी को येसु के पास नहीं लाई थी, परन्तु वह येसु के सामने आकर अपने घर पर पडी अपनी बेटी की चंगाई के लिए विनती करती है। येसु उस महिला के विश्वास को देख कर उसकी बेटी को दूर से ही चंगा करते हैं। मत्ती 8:5-13 और लूकस 7:1-10 में हम पढ़ते हैं कि येसु ने एक शतपति के सेवक को चंगा किया जो उसके घर पर पडा हुआ था तथा मरणासन्न था। आज के पाठ में, योहन 4:46-54 में, हम सुनते हैं कि येसु ने किसी पदाधिकारी के बेटे को चंगा किया जो गंभीर रूप से बीमार था। वह अधिकारी गलीलिया के काना में येसु से अपने बेटे के लिए चंगाई की याचना करता है। उसका बीमार बेटा काफरनाहूम में है। येसु उसे दूर से केवल इन शब्दों से चंगा करते हैं "जाइए, आपका पुत्र अच्छा हो गया है"। इन तीनों उदाहरणों में, हम देखते हैं कि लोग अपने किसी बीमारी से पीड़ित प्रियजन के लिए येसु से याचना करते हैं और येसु ऐसे बीमार व्यक्तियों को दूर से ही अपने शब्द मात्र से ठीक करते हैं। दूरी येसु के लिए कोई सीमा नहीं है। वे सर्वव्यापी ईश्वर है। चंगाई के इन तीनों घटनाओं में बीमार व्यक्ति के विश्वास के बारे कुछ भी बताया नहीं गया है, बल्कि बीमार व्यक्ति के लिए याचना करने वाले के गहरे विश्वास का साक्ष्य दिया गया है। इनमें से कम से कम दो घटनाओं में, येसु ने उन्हें अनुकरण करने के लिए आदर्शों के रूप में प्रस्तुत किया। ये उदाहरण हमें हर जरूरत में दूसरों लिए विश्वास के साथ प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

- फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

We have narratives of at least three healings performed by Jesus from a distance. In Mk 7:24-30 and in Mt 15:21-28 we find Jesus healing the daughter of a Syrophoenician woman who had an unclean spirit. The woman had not brought her daughter to Jesus, but was at home. Jesus healed her. In Matthew 8:5-13 and Luke 7:1-10 we read about Jesus healing the centurion’s servant lying at the point of death. In today’s reading, in John 4:46-54, we hear about Jesus healing the son of an official who was ill and at the point of death. Jesus healed him from a distance with the mere words “Go, your son will live”. In all these three instances, we find persons pleading for their loved one suffering from some illness and Jesus healing such sick persons with his words from afar. The distance is no limitation for Jesus. He is omnipresent. These three healings do not speak about the faith of the sick person, but about the faith of the one pleading for the sick person. At least in the first two of these incidents, Jesus spoke of them as ideals to imitate. These instances encourage us to pray for everyone in every need.

-Fr. Francis Scaria

📚 मनन-चिंतन - 2

हम प्रार्थना करते हैं तथा अपनी प्रार्थनाओं में ईश्वर से ढेर सारे निवेदन भी करते हैं। हम जीवन की सारी जरूरतों जिन्हंे हम आवश्यक समझते हैं को ईश्वर से मांगते हैं। यह एक अच्छी बात भी है। यदि हमें ईश्वर से नहीं मांगंगे तो फिर किससे मांगगे। लेकिन समस्या तब उभर के सामने आती है जब हम घटनाओं को अपने इच्छानुसार निर्धारित समय और रीति से पूरी होने की आशा करते हैं। नबी इसायाह के द्वारा प्रभु हमें स्मरण कराते हैं कि ईश्वर की योजना हमारी सोच से भिन्न होती हैं। ’’तुम लोगों के विचार मेरे विचार नहीं हैं और मेरे मार्ग तुम लोगों के मार्ग नहीं हैं।’’ (इसायाह 55ः8) ईश्वर हमारे जीवन तथा अंतरत्तम की जॉच करता तथा जानता है कि हमें वास्तव किस चीज की किस समय जरूरत है। जब हम ईश्वर के मार्गो तथा समय को स्वीकारते हैं तो उसकी कृपा तीव्रता के साथ जीवन में बहने लगती है।

जब नबी एलीशा ने नामान से यर्दन नदी में सात बार डुबकी लगाने को कहा तो वह कुंठित एवं क्रोधित हो गया। उसने सोचा इतनी सरल और आसान बात को बता कर नबी ने मेरी तौहीन या बेइज्जती की है। किन्तु उसके सेवक द्वारा विवेकपूर्ण रूप से समझाने पर वह ऐसा करता है तथा जिस चंगाई को वह पाना चाहता है उसे प्राप्त करता है। (2 राजाओं 5ः8-14)

आज के सुसमाचार में पदाधिकारी अपने बीमार पुत्र की चंगाई की गुहार लगाता कि ’’वह चल कर उसके पुत्र को चंगा कर दें, क्योंकि वह मरने-मरने को था।’’ वह येसु को अपने घर ले जाना चाहता था किन्तु येसु ऐसा न करते हुये कहते हैं, ’’जाइए, आपका पुत्र अच्छा हो गया है।’’ उसने विश्वास किया और ठीक उसी समय उसका बेटा चंगा हो जाता है। उस पदाधिकारी के विश्वास की महानता इस बात में भी थी उसने येसु के तरीके में विश्वास किया।

चालीसे का समय हमारे पापमय जीवन को त्यागने का समय है। आइए हम भी येसु को अपने जिददी तथा पूर्वाग्रसित स्वाभाव को बदलने का अवसर दे तथा जिस किसी रूप एवं तरीके से वे अपनी कृपाये हमें देना चाहते हैं उसे ग्रहण करे।

- फादर रोनाल्ड वाँन


📚 REFLECTION

We pray and, in our prayers, we have many requests. We implore and expect God to do the things we consider really genuine and desperate. I believe it is a good thing to do. Afterall if not to God then to whom shall we go! However, the problem arises when we insist the things to happen in our own ways. Through Prophet Isaiah God reminds us that his plans and ways may not coincide with ours, “For my thoughts are not your thoughts, nor are your ways my ways.” (Is.55:8) He judges our hearts and knows when to give and how to give. If we are ready to let God be God in doing the things for us then the grace of God would flow into our life freely.

When Naaman was asked by Elisha to dip seven times in river Jorden he was angry and felt insulted at such a simple thing he was asked to do. However, when his servant persuaded him with the words of wisdom, he immersed himself in river Jorden as per the direction and received much desired healing. (See 2 Kings 5:8-14)

In today’s Gospel passage a court official went to the Lord Jesus and requested, “Sir, come down before my little boy dies.” He wanted the Lord to come to his house, perhaps to lay his hand on his dying little boy but the Lord merely said, “Go home, your son will live.” The greatness of this court official lays in believing in the power of Jesus as well as in his ways. He believed what the Lord had said and exactly at that time his son was healed.

Lent is a time of mending our wrongful ways. Let us allow God to melt our stubborn and stereotype mindset and welcome him in faith in the ways and manner he wants to come into our life.

-Fr. Ronald Vaughan