12) प्रभु यह कहता है, "अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुए, पूरे हृदय से मेरे पास आओ"।
13) अपने वस्त्र फाड कर नहीं, बल्कि हृदय से पश्चात्ताप करो और अपने प्रभु-ईश्वर के पास लौट जाओ; क्योंकि वह करूणामय, दयालु, अत्यन्त सहनशील और दयासागर है और वह सहज की द्रवित हो जाता है।
14) क्या जाने, वह द्रवित हो जाये और तुम्हें आशीर्वाद प्रदान करे। तब तुम लोग अपने प्रभु-ईश्वर को बलि और तर्पण चढाओगे।
15) सियोन पर्वत पर तुरही बजाओ। उपवास घोषित करो।
16) सभा की बैठक बुलाओ जनता की इकट्ठा करो; बूढ़ों बालकों और दुधमुँहे बच्चों को भी बुला लो। दुलहा और दुलहिन अपना कमरा छोड कर चले आयें।
17) प्रभु-ईश्वर की सेवा करने वाले याजक मन्दिर में वेदी के सामने रोते हुए इस प्रकार प्रार्थना करे, "प्रभु! अपनी प्रजा पर दया कर। अपने लोगों का अपमान न होने दे, राष्टों में उनका उपहास न होने दे गैर-यहूदी यह न कहने पायें कि उनका ईश्वर कहा रह गया"।
18) तब प्रभु ने अपने देश की सुध ली और अपनी प्रजा को बचा लिया।
5:20) इसलिए हम मसीह के राजदूत हैं, मानों ईश्वर हमारे द्वारा आप लोगों से अनुरोध कर रहा हो। हम मसीह के नाम पर आप से यह विनती करते हैं कि आप लोग ईश्वर से मेल कर लें।
21) मसीह का कोई पाप नहीं था। फिर भी ईश्वर ने हमारे कल्याण के लिए उन्हें पाप का भागी बनाया, जिससे हम उनके द्वारा ईश्वर की पवित्रता के भागी बन सकें।
6:1) ईश्वर के सहयोगी होने के नाते हम आप लोगों से यह अनुरोध करते हैं कि आप को ईश्वर की जो कृपा मिली है, उसे व्यर्थ न होने दे;
2) क्योंकि वह कहता है - उपयुक्त समय में मैंने तुम्हारी ुसुनी; कल्याण के दिन मैंने तुम्हारी सहायता की। और देखिए, अभी उपयुक्त समय है, अभी कल्याण का दिन है।
1) "सावधान रहो। लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने धर्मकार्यो का प्रदर्शन न करो, नहीं तो तुम अपने स्वर्गिक पिता के पुरस्कार से वंचित रह जाओगे।
2) जब तुम दान देते हो, तो इसका ढिंढोरा नहीं पिटवाओ।ढोंगी सभागृहों और गलियों में ऐसा ही किया करते हैं, जिससे लोग उनकी प्रशंसा करें। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं।
3) जब तुम दान देते हो, तो तुम्हारा बायाँ हाथ यह न जानने पाये कि तुम्हारा दायाँ हाथ क्या कर रहा है।
4) तुम्हारा दान गुप्त रहे और तुम्हारा पिता, जो सब कुछ देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।
5) "ढोगियों की तरह प्रार्थना नहीं करो। वे सभागृहों में और चैकों पर खड़ा हो कर प्रार्थना करना पंसद करते हैं, जिससे लोग उन्हें देखें। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं।
6) जब तुम प्रार्थना करते हो, तो अपने कमरें में जा कर द्वार बंद कर लो और एकान्त में अपने पिता से प्रार्थना करो। तुम्हारा पिता, जो एकांत को भी देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।
16 ढोंगियों की तरह मुँह उदास बना कर उपवास नहीं करो। वे अपना मुँह मलिन बना लेते हैं, जिससे लोग यह समझें कि वे उपवास कर रहें हैं। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- वे अपना पुरस्कार पा चुके हैं।
17) जब तुम उपवास करते हो, तो अपने सिर में तेल लगाओ और अपना मुँह धो लो,
18) जिससे लोगों को नहीं, केवल तुम्हारे पिता को, जो अदृश्य है, यह पता चले कि तुम उपवास कर रहे हो। तुम्हारा पिता, जो अदृश्य को भी देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा।
आज, जब हम इस राख बुधवार को इकट्ठे होते हैं, तो हमें मत्ती के सुसमाचार (6:1-6, 16-18) द्वारा सच्ची भक्ति और यथार्थ पश्चाताप के लिए गहरी आवाज सुनाई देती है। येसु, अपने उपदेशों में, हमें विश्वास के केवल बाहरी अभिव्यक्तियों से परे जाने और अपने दिलों की गहराइयों में उतरने का आग्रह करते हैं। सुसमाचार के पहले भाग में, येसु धर्म के कार्यों के बारे में बात करते हैं - दान, प्रार्थना और उपवास। वह हमें इन कार्यों को लोगों की प्रशंसा के लिए नहीं, बल्कि अपने दिलों की सच्चाई से ईश्वर को समर्पण के रूप में करने का प्रोत्साहन देते हैं। हमारे कार्यों के पीछे का इरादा ही मूल है। हमारी भक्ति दूसरों के लिए एक प्रदर्शन नहीं होनी चाहिए, बल्कि ईश्वर के प्रति अपने प्रेम और श्रद्धा का एक यथार्थ अभिव्यक्ति होनी चाहिए। राख बुधवार उपवास के मौसम की शुरुआत का संकेत है - चिंतन, पश्चाताप और नवीकरण के लिए एक समय। जब हम अपने माथे पर राख प्राप्त करते हैं, तो उसे अपनी प्रतिबद्धता का एक दृश्यमान चिन्ह होने दें, जो हमारे पाप से मुड़ने और ईश्वर के करीब आने का संकेत है। हालांकि, राख स्वयं-धर्मीता का प्रतीक नहीं है, बल्कि हमारी मृत्यु और ईश्वर की कृपा की आवश्यकता का एक नम्र स्वीकार है। सुसमाचार के दूसरे भाग में, येसु उपवास के अभ्यास के बारे में बात करते हैं। वह हमें अपने उपवास का एक तमाशा न बनाने, बल्कि एक पश्चात्तापपूर्ण दिल के साथ चुपचाप करने की सलाह देते हैं। उपवास, जब सच्चाई के साथ किया जाता है, तो वह हमें सांसारिक व्याकुलताओं से अलग करता है, आध्यात्मिक विकास और ईश्वर के साथ अपने संबंध को गहरा करने के लिए जगह बनाता है। हम इस मौसम को एक ऐसा अवसर बनाएं, जिससे हम नम्रता और अपने सृष्टिकर्ता के साथ एक यथार्थ संबंध की भावना को विकसित कर सकें। हमारी प्रार्थनाएं, दान के कार्य और उपवास हमारे आंतरिक परिवर्तन के प्रतिबिंब हों, जो हमें मसीह के दिल के करीब ले जाएं।
✍ - फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Today, as we gather on this Ash Wednesday, we are reminded by the Gospel of Matthew (6:1-6, 16-18) of the profound call to authentic piety and genuine repentance. Jesus, in His teachings, urges us to go beyond mere outward expressions of faith and delve into the depths of our hearts.
In the first part of the Gospel, Jesus speaks about acts of righteousness charitable deeds, prayer, and fasting. He encourages us to perform these acts not for public praise but as offerings to God from the sincerity of our hearts. The essence lies in the intention behind our actions. Our devotion should not be a performance for others but a genuine expression of our love and reverence for God.
Ash Wednesday marks the beginning of the season of Lent a time for reflection, repentance, and renewal. As we receive ashes on our foreheads, let them serve as a visible sign of our commitment to turn away from sin and draw closer to God. However, the ashes are not a symbol of self-righteousness but a humble acknowledgment of our mortality and need for God’s mercy. In the second part of the Gospel, Jesus addresses the practice of fasting. He advises us not to make a spectacle of our fasting, but rather to do it quietly, with a contrite heart. Fasting, when done with sincerity, helps us detach from worldly distractions, creating space for spiritual growth and deepening our relationship with God. Let this season be an opportunity to cultivate a spirit of humility and an authentic connection with our Creator. May our prayers, acts of charity, and fasting be reflections of our inner transformation, drawing us nearer to the heart of Christ.
✍ -Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)
राख बुधवार चालीसे काल की शुरुआत का प्रतीक है, यह समय पश्चाताप, उपवास और आध्यात्मिक विकास का समय है। यह हमारे लिए अपने स्वयं के जीवन पर विचार करने, अपने पापों से दूर होने और ईश्वर की ओर मुड़ने का समय है।
राख बुधवार के दिन में उपयोग की जाने वाली राख पश्चाताप और विनम्रता का प्रतीक है। वह हमें अपनी नश्वरता और पाप से दूर होकर ईश्वर की ओर मुड़ने की आवश्यकता की याद दिलाती हैं। जैसे ही राख हमारे माथे पर एक क्रूस के आकार में लगाई जाती है, हमें एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता तथा येसु द्वारा क्रूस पर हमारे लिए दिये गए बलिदान की याद दिलाई जाती है।
जब हम आज चालीसा के इस काल में प्रवेश करते हैं, आइए हम अपने जीवन पर चिंतन करने और अपने पापों से दूर होने के लिए समय निकालें। आइए हम उपवास करें और प्रार्थना करें, ईश्वर से क्षमा और मार्गदर्शन मांगें। और आइये हम उस बलिदान को याद करें जो येसु ने हमारे लिए क्रूस पर दिया था, और वह प्रेम को भी याद करें जो ईश्वर हम में से प्रत्येक के ऊपर उड़ेलता है।
आज का दिन यह भी याद रखने का समय है कि हम मिट्टी हैं, और मिट्टी में ही हम लौट जाएँगे। यह एक अनुस्मारक है कि जीवन क्षणभंगुर है और हमें इसे ईश्वर के लिए जीकर इसका अधिकतम लाभ उठाना चाहिए।
जैसे हम आज चालीसा काल की शुरुआत कर रहे हैं, आइए हम अपने दिल और दिमाग को ईश्वर की कृपा और दया के लिए खोलें। आइए हम अपने पापों को स्वीकार करें और उनसे दूर हो जाएं, और अपने जीवन को इस प्रकार से जीने का प्रयास करें जिस के द्वारा ईश्वर का सम्मान हो और उसके नाम को महिमा मिले।
यह राख बुधवार हम सभी के लिए नवीनीकरण और पश्चाताप का समय हो। हम अपने पापों से दूर हो और ईश्वर की ओर मुड़ें, और हम चालीसे के इस काल में अनुग्रह और पवित्रता में बढ़ें। आमेन।
✍ -फादर डेन्नीस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Ash Wednesday marks the beginning of the season of Lent, a time of repentance, fasting, and spiritual growth. It is a time for us to reflect on our own lives and to turn away from our sins and towards God.
The ashes used on Ash Wednesday are a symbol of repentance and humility. They remind us of our own mortality and the need to turn away from sin and towards God. As the ashes are imposed on our foreheads in the shape of a cross, we are reminded of our need for a savior and the sacrifice that Jesus made for us on the cross.
As we enter this season of Lent, let us take the time to reflect on our own lives and to turn away from our sins. Let us fast and pray, seeking God's forgiveness and guidance. And let us remember the sacrifice that Jesus made for us on the cross, and the love that God has for each and every one of us.
It's also a time to remember that we are dust, and to dust we shall return. It's a reminder that life is fleeting and we should make the most of it, by living it for God.
As we begin this season of Lent, let us open our hearts and minds to God's grace and mercy. Let us confess our sins and turn away from them, and let us strive to live our lives in a way that honors God and brings glory to his name.
May this Ash Wednesday be a time of renewal and repentance for us all. May we turn away from our sins and towards God, and may we grow in grace and holiness during this season of Lent. Amen.
✍ -Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)
प्रार्थना, दान और उपवास अच्छे कर्म होते हैं। फिर भी इन अच्छे कार्यों का परिणाम इस तरह के कार्यों को करने के हमारे इरादे पर निर्भर रहता है। यदि हम इस संसार में मान्यता और प्रशंसा के लिए ये कार्य करते हैं, तो हमें इस दुनिया में प्राप्त मान्यता और प्रशंसा से ही संतुष्ट होना होगा। इसके विपरीत यदि हम इन कार्यों को ईश्वर के सामने गुप्त रूप से करते हैं, तो हमें अनन्त पुरस्कार प्राप्त होंगे। येसु ने आश्वासन दिया, "तुम्हारा पिता, जो अदृश्य को भी देखता है, तुम्हें पुरस्कार देगा"। दान के बारे में येसु कहते हैं, "तुम्हारा बायाँ हाथ यह न जानने पाये कि तुम्हारा दायाँ हाथ क्या कर रहा है"। प्रभु येसु नहीं चाहते कि हम अपनी दया के कार्यों पर गर्व करें। इसके बजाय हमें प्रभु के सामने विनम्र बने रहने की जरूरत है। जो कुछ भी अच्छा है, उसे हम अपना कर्तव्य समझ कर करें। संत याकूब सुन्दर शब्दों में कहते हैं, "जो मनुष्य यह जानता है कि उसे क्या करना चाहिए, किन्तु नहीं करता, उसे पाप लगता है।" (याकूब 4:17)। आइए हम हर संभव अच्छा करने के संकल्प के साथ चालीसा काल में प्रवेश करें।
✍ - फादर फ्रांसिस स्करिया
Prayer, almsgiving and fasting are good actions. Yet the outcome of these good actions will depend on our intention of carrying out such actions. If we do these actions for recognition and praise in this world, we will have to be satisfied solely with recognition and praise gained in this world. On the contrary if we carry out these actions secretly before God, we shall have eternal rewards. Jesus assures, “your father who sees you in secret will reward you”. Regarding almsgiving Jesus says, “do not let your left hand know what your right hand is doing”. Jesus does not want us to be proud of our own acts of mercy. Instead we need to remain humble before the Lord doing whatever good we can considering it as our essential duty. St. James puts it beautifully, “anyone, then, who knows the right thing to do and fails to do it, commits sin” (Jam 4:17). Let us enter into the season of Lent with a determination to do whatever good possible.
✍ -Fr. Francis Scaria
आज हमारे माथे पर राख लगाते हुए हम चालीसा के पुण्य काल में प्रवेश कर रहे हैं। पोप संत योहन तेईसवें कहते थे कि स्वर्ग के दो फाटक हैं। पहला, मासूमियत या निष्कलंकता का फाटक है। यदि हमने अपने बचपन की मूल निष्कलंकता को बनाए रखा है, तो हम इस द्वार से स्वर्ग में प्रवेश कर सकते हैं। लेकिन अगर हमने अपने पापों के कारण अपनी निर्दोषता खो दी है, तो हम निर्दोषता के इस द्वार से प्रवेश नहीं कर सकते हैं। फिर भी हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि स्वर्ग का एक और द्वार है - पश्चाताप का द्वार। अगर हम अपने पापों पर पश्चाताप करते हैं और प्रभु की ओर लौटते हैं, तो वे हमारा स्वागत करने के लिए तैयार रहते हैं। तब हम पश्चाताप के द्वार से स्वर्ग में प्रवेश करेंगे। नबी योएल के माध्यम से आज के पहले पाठ में, प्रभु हमसे कहते हैं, “अब तुम लोग उपवास करो और रोते तथा शोक मनाते हुए, पूरे हृदय से मेरे पास आओ"। अपने वस्त्र फाड कर नहीं, बल्कि हृदय से पश्चात्ताप करो और अपने प्रभु-ईश्वर के पास लौट जाओ; क्योंकि वह करूणामय, दयालु, अत्यन्त सहनशील और दयासागर है और वह सहज की द्रवित हो जाता है।” (योएल 2: 12-13)। आइए हम अपने आप को प्रभु के सामने रखें, ताकि वे हमें शुद्ध कर सकें और हमें अपने दयालु प्रेम के योग्य बना सके।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Today with ash smeared on our forehead we enter into the holy season of Lent. Pope St. John XXIII used to say that there are two gates to heaven. The first is the gate of innocence. If we have kept our original innocence of our childhood, we can enter heaven through this gate. But if we have lost our innocence through our sins, we cannot enter through this gate of innocence. Yet we need not be disappointed, because there is another gate to heaven – the gate of repentance. If we repent on our sins and turn back to God, he is ready to welcome us. Then we shall enter heaven through the gate of repentance. In today’s First Reading, through Prophet Joel, the Lord tells us, “return to me with all your heart, with fasting, with weeping, and with mourning; rend your hearts and not your clothing” (Joel 2:12-13). Let us dispose ourselves to the Lord, so that he may cleanse us and make us worthy of his merciful love.
✍ -Fr. Francis Scaria