12) धन्य है वह, जो विपत्ति में दृढ़ बना रहता है; परीक्षा में खरा उतरने पर उसे जीवन का वह मुकुट प्राप्त होगा, जिसे प्रभु ने अपने भक्तों को देने की प्रतिज्ञा की है।
13) प्रलोभन में पड़ा हुआ कोई भी व्यक्ति यह न कहे कि ईश्वर मुझे प्रलोभन देता है। ईश्वर न तो बुराई के प्रलोभन में पड़ सकता और न किसी को प्रलोभन देता है।
14) जो प्रलोभन में पड़ता है, वह अपनी ही वासना द्वारा खींचा और बहकाया जाता है।
15) वासना के गर्भ से पाप का जन्म होता है और पाप विकसित हो कर मृत्यु को जन्म देता है।
16) प्रिय भाइयो! आप गलती न करें।
17) सभी उत्तम दान और सभी पूर्ण वरदान ऊपर के हैं और नक्षत्रों के उस सृष्टिकर्ता के यहाँ से उतरते हैं, जिसमें न तो केाई परिवर्तन है और न परिक्रमा के कारण कोई अन्धकार।
18) उसने अपनी ही इच्छा से सत्य की शिक्षा द्वारा हम को जीवन प्रदान किया, जिससे हम एक प्रकार से उसकी सृष्टि के प्रथम फल बनें।
15) उस समय ईसा ने उन्हें यह चेतावनी दी, ’’सावधान रहो। फ़रीसियों के ख़मीर और हेरोद के ख़मीर से बचते रहो’’।
16) इस पर वे आपस में कहने लगे, ’’हमारे पास रोटियाँ नहीं है, इसलिए यह ऐसा कहते हैं’’।
17) ईसा ने यह जान कर उन से कहा, ’’तुम लोग यह क्यों सोचते हो कि हमारे पास रोटियाँ नहीं है, इसलिए यह ऐसा कहते है? क्या तुम अब तक नहीं जान सके हो? नही समझ गये हो? क्या तुम्हारी बुद्धि मारी गयी है?
18) क्या आँखें रहते भी तुम देखते नहीं? और कान रहते भी तुम सुनते नहीं? क्या तुम्हें याद नही है-
19) जब मैने उन पाँच हज़ार लोगों के लिए पाँच रोटियाँ तोड़ीं, तो तुमने टूकड़ों के कितने टोकरे भरे थे?’’ शिष्यों ने उत्तर दिया, ’’बारह’’।
20) ’’और जब मैंने चार हज़ार लोगों के लिए सात रोटियाँ तोड़ीं, तो तुमने टुकड़ों के कितने टोकरे भरे थे?’’ उन्होंने उत्तर दिया, ’’सात’’।
21) इस पर ईसा ने उन से कहा, ’’क्या तुम लोग अब भी नहीं समझ सके?’’
आज का सुसमाचार, मारकुस 8:14-21 हमें अपनी आध्यात्मिक यात्रा में विश्वास और समझ के महत्व के बारे में एक शक्तिशाली संदेश प्रस्तुत करता है। येसु अपने शिष्यों को “फरीसियों और हेरोद के खमीर” के बारे में चेतावनी देते हैं और इस रूपक का उपयोग करते हुए विकृत विश्वासों और गलत प्राथमिकताओं के संभावित खतरों को चित्रित करते हैं। खमीर पूरे आटे में फैल जाता है, उसकी पूरी पदार्थ को प्रभावित करता है। उसी तरह, हमारे विश्वास और रवैये हमारे दिल और दिमाग में घुस जाते हैं, जिससे हमारे जीवन को आकार मिलता है। येसु फरीसियों के खमीर के खिलाफ सावधानी बरतते हैं, जो पाखंड और क़ानून-परायता का प्रतिनिधित्व करते हैं, और हेरोद के खमीर के खिलाफ, जो सांसारिक चिंताओं और भौतिकवाद का प्रतीक हैं। हमारे दैनिक जीवन में, हम विभिन्न प्रभावों से भेंट करते हैं, जो हमारे दृष्टिकोण को आकार दे सकते हैं। क्या हम नकारात्मकता, अहंकार या भौतिकवाद के खमीर को अपने दिलों में घुसने दे रहे हैं? येसु हमें, अपने दिलों को उन विश्वासों और रवैयों से बचाते हुए, जो हमें ईश्वर के सत्य से दूर ले जा सकते हैं, जागरूक और विवेकी होने का आह्वान करते हैं। सुसमाचार में चार हजार लोगों को अद्भुत रूप से खिलाने की घटना का भी वर्णन किया गया है। येसु अपने शिष्यों को उनकी भूलने की बात को उभारते हुए पिछले रोटियों के चमत्कार की याद दिलाते हैं। “क्या तुम अभी तक नहीं समझते?” वह पूछते हैं। इसमें, हम आध्यात्मिक स्मृति के महत्व को देखते हैं - ईश्वर की कृपा और चमत्कारों को अपने जीवन में, विशेष रूप से कठिन समयों में, याद करने की क्षमता। जब हम इस सुसमाचार पर चिंतन करते हैं, आइए हम अपने दिलों की जांच करें और अपने आप से पूछें: मैं कौन सा खमीर अपने विश्वासों को आकार देने के लिए अनुमति दे रहा हूँ? क्या मैं अपनी आध्यात्मिक स्मृति को ईश्वर की भलाई और वफादारी से पोषित कर रहा हूं? आइए हम विश्वास, नम्रता और प्रेम के खमीर को अपनाने का प्रयास करें, इन गुणों को अपने जीवन के हर पहलू में घुसने देते हुए। जीवन की रोटी हमें पोषण और परिवर्तन करता है, ताकि हम ईश्वर के प्रेम की गहराई को सच्चाई से समझ सकें और उसे अपने साथ हर काम में ले जा सकें।
✍ - फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Today’s Gospel from Mark 8:14-21 presents us with a powerful message about the importance of faith and understanding in our spiritual journey. Jesus warns his disciples about the “leaven of the Pharisees and the leaven of Herod,” using this metaphor to illustrate the potential dangers of distorted beliefs and misplaced priorities. Imagine leaven as an ingredient that spreads throughout the dough, influencing its entire substance. In the same way, the beliefs and attitudes we hold can permeate our hearts and minds, shaping the way we live our lives. Jesus cautions against the leaven of the Pharisees, representing hypocrisy and legalism, and the leaven of Herod, symbolizing worldly concerns and materialism.
In our daily lives, we encounter various influences that can shape our perspectives. Are we allowing the leaven of negativity, pride, or materialism to infiltrate our hearts? Jesus calls us to be vigilant and discerning, guarding our hearts against beliefs and attitudes that can lead us away from God’s truth. The Gospel also recounts the miraculous feeding of the four thousand. Jesus reminds his disciples of the previous multiplication of loaves, highlighting their forgetfulness. “Do you not yet understand?” he asks. In this, we see the importance of spiritual memory the ability to recall God’s goodness and miracles in our lives, especially during challenging times. As we reflect on this Gospel, let us examine our hearts and ask ourselves: What leaven am I allowing to shape my beliefs? Am I nourishing my spiritual memory with the goodness and faithfulness of God? Let us strive to embrace the leaven of faith, humility, and love, allowing these virtues to permeate every aspect of our lives. the bread of life nourishes us and transforms us, so that we may truly understand the depth of God's love and carry it with us in all that we do.
✍ -Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)
येसु शिष्यो को फरीसियों के खमीर और हेरोद के खमीर से सावधान रहने को कहा। येसु ईश्वर के राज्य को स्थापित करने के लिए ईश्वर के हस्तक्षेप के बारे में कह रहे हैं। ऐसा होने के लिए जो आवश्यक है, वह ईश्वर प्रदान करेगा। खमीर चीजों को घटित करने का एक तरीका है। इससे आटा ऊपर उठता है। फरीसी इस्राएल के धार्मिक अभिजात वर्ग का और हेरोद नागरिक प्रतिष्ठान का प्रतिनिधित्व करते हैं। फरीसियों और राजा हेरोद की शक्ति अस्थायी है। यह टिकता नहीं है। जहाँ तक ईश्वर के राज्य का संबंध है, येसु कहते हैं, "दोनों पर भरोसा मत करो"। राज्य ईश्वर की शक्ति से आएगा। हमें इसकी आशा करनी होगी और, जैसा कि येसु ने हमें प्रभु की प्रार्थना में सिखाया है, हमें इसके लिए प्रार्थना करनी होगी। आइए हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह चीजों को वैसे ही देखने में हमारी सहायता करे जैसे ईश्वर उन्हें देखता है।
✍ - फादर संजय कुजूर एस.वी.डी
Jesus tells the disciples to beware of the leaven of the Pharisees and the leaven of Herod. Jesus is talking about God's intervention to establish God's kingdom. God will provide what is needed for that to happen. Leaven is one way to make things happen. It causes dough to rise. The Pharisees represent the religious elite of Israel and Herod for the civil establishment. The power of the Pharisees and King Herod is temporary. It doesn’t last. As far as God's kingdom is concerned, Jesus says "Don't count on either". The kingdom will come through God's power. We have to hope for it. And, as Jesus taught us in the Lord's Prayer, we have to pray for it. Lets us ask God to help us see things as God sees them.
✍ -Fr. Sanjay Kujur SVD