26) यूरोबआम ने अपने मन में यह कहा, ‘‘मेरा राज्य फिर दाऊद के घराने के अधिकार में आ जायेगा।
27) यदि वह प्रजा प्रभु के मन्दिर में बलि चढ़ाने के लिए येरुसालेम जाती रहेगी, तो उसका हृदय उसके स्वामी, यूदा के राजा रहबआम की ओर आकर्षित हो जायेगा। ये लोग मेरी हत्या करेंगे और यूदा के राजा रहबआम के पास लौटेंगे।’’
28) इस बात पर विचार करने के बाद राजा ने सोने के दो बछड़े बनवाये और लोगों से कहा, ‘‘तुम लोग बहुत समय तक येरुसालेम जाते रहे। इस्राएलियों! ये ही वे देवता हैं, जो तुम लोगों को मिस्र से निकाल लाये।’’
29) उसने एक मूर्ति बेतेल में स्थापित की और दूसरी मूर्ति दान में।
30) यह लोगों के लिए पाप का कारण बना; क्योंकि वे उन मूर्तियों की उपासना करने के लिए बेतेल और दान जाया करते थे।
31) राजा ने पहाड़ियों पर भी पूजास्थान बनवाये और उनके लिए जनसाधारण में ऐसे लोगों को पुरोहित के रूप में नियुक्त किया, जो लेवीवंशी नहीं थे।
32) यरोबआम ने आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन एक पर्व का भी प्रवर्तन किया, जो यूदा में होने वाले पर्व के सदृश था। उस अवसर पर उसने अपने द्वारा बेतेल में स्थापति वेदी पर उन बछड़ों की बलि चढ़ायी, जिन्हें उसने बनवाया था। उसने पहाड़ियों पर बनवाये पूजास्थानों के पुरोहितों को बेतेल में नियुक्त किया।
33) फिर भी यरोबआम ने अपना पापाचरण नहीं छोड़ा। वह पहाड़ी पूजास्थानों के लिए जनसाधारण में से पुरोहितों को नियुक्त करता जाता था। जो भी चाहता था, यरोबआम उसका किसी पहाड़ी पूजास्थान के पुरोहित के रूप में अभिशेक करता था।
34) यही यरोबआम के घराने के लिए पाप का अवसर बना और यही कारण है कि आगे चल कर उसके राज्य का पतन हुआ और पृथ्वी पर से उसका अस्तित्व मिला दिया गया है।
1) उस समय फिर एक विशाल जन-समूह एकत्र हो गया था और लोगों के पास खाने को कुछ भी नहीं था। ईसा ने अपने शिष्यों को अपने पास बुला कर कहा,
2) ’’मुझे इन लोगों पर तरस आता है। ये तीन दिनों से मेरे साथ रह रहे हैं और इनके पास खाने को कुछ भी नहीं है।
3) यदि मैं इन्हें भूखा ही घर भेजूँ, तो ये रास्ते में मूच्र्छित हो जायेंगे। इन में कुछ लोग दूर से आये हैं।’’
4) उनके शिष्यों ने उत्तर दिया, ’’इस निर्जन स्थान में इन लोगों को खिलाने के लिए कहाँ से रोटियाँ मिलेंगी?’’
5) ईसा ने उन से पूछा, ’’तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?’’ उन्होंने कहा, ’’सात’’।
6) ईसा ने लोगों को भूमि पर बैठ जाने का आदेश दिया और वे सात रोटियाँ ले कर धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी, और वे रोटियाँ तोड़-तोड़ कर शिष्यों को देते गये, ताकि वे लोगों को परोसते जायें। शिष्यों ने ऐसा ही किया।
7) उनके पास कुछ छोटी मछलियाँ भी थीं। ईसा ने उन पर आशिष की प्रार्थना पढ़ी और उन्हें भी बाँटने का आदेश दिया।
8) लोगों ने खाया और खा कर तृप्त हो गये और बचे हुए टुकड़ों से सात टोकरे भर गये।
9) खाने वालों की संख्या लगभग चार हज़ार थी। ईसा ने लोगों को विदा कर दिया।
10) वे तुरन्त अपने शिष्यों के साथ नाव पर चढ़े और दलमनूथा प्रान्त पहॅुँचे।
मारकुस 8:1-10 से लिये गये आज के सुसमाचार में, हम एक साधारण साझा करने के कार्य के माध्यम से ईश्वर की प्रचुरता का एक शक्तिशाली प्रदर्शन देखते हैं। येसु, अपनी करुणा में, सात रोटियां और कुछ छोटी-छोटी मछलियां लेते हैं, और कृतज्ञता के साथ, उन्हें बढा कर एक बड़ी भीड़ को खिलाते हैं। यह चमत्कार हमें यह सिखाता है कि ईश्वर हमारे निर्धन उपहारों को बडी आशिष में बदल सकते हैं। जैसे शिष्यों ने भीड़ को खिलाने की संभावना पर संदेह किया, हम भी अपने छोटे-छोटे दया के कार्यों के प्रभाव पर संदेह कर सकते हैं। हालांकि, ईश्वर हमें उनकी क्षमता पर भरोसा करने के लिए बुलाते हैं, जो हमारे विनम्र प्रयासों को कुछ असाधारण में बदल सकते हैं। यहां का तर्क सरल है, जब हम अपने पास जो भी है, उसे उदार हृदय से प्रभु के सामने पेश करते हैं, तब ईश्वर हमारे इशारों को हमारी कल्पना से परे बढ़ा देते हैं। इसके अलावा, बची हुयी रोटियों की सात टोकरियां ईश्वर की बहुतायत की कृपा को दर्शाती हैं। ईश्वर न केवल हमारी जरूरतों को पूरा करते हैं; वह उन्हें पार करते हैं। यह हमें अपने संदेहों और डरों को पुनर्विचारित करने की चुनौती देता है, यह पहचानते हुए कि ईश्वर की व्यवस्था असीम है। जब हम अपने दैनिक जीवन बिताते हैं, आइए हम याद रखें, कि प्रेम, दया, और उदारता के हर छोटे कार्य में दूसरों के जीवन में प्रचुरता की लहरें पैदा करने की क्षमता है। आइए हम अपने और अपने आस-पास के लोगों के जीवन में ईश्वर के आशीर्वादों के चमत्कारी बहाव की गवाही दें।
✍ - फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
In today’s Gospel from Mark 8:1-10, we witness a powerful display of God’s abundance through a simple act of sharing. Jesus, in His compassion, takes seven loaves and a few small fish, and with gratitude, multiplies them to feed a multitude. This miracle teaches us that God can transform our meager offerings into abundant blessings. Just as the disciples doubted the possibility of feeding the crowd, we too may doubt the impact of our small acts of kindness. However, God calls us to trust in His ability to turn our humble efforts into something extraordinary. The logic here is simple, when we offer what little we have with a generous heart, God magnifies our gestures beyond our imagination. Moreover, the seven baskets left over signify God’s overflowing grace. God never just meets our needs. He exceeds them. This challenges us to reconsider our doubts and fears, recognizing that God’s providence is limitless.
As we navigate our daily lives, let us remember that every small act of love, kindness, and generosity has the potential to create ripples of abundance in the lives of others. Let us witness the miraculous overflow of God's blessings in our lives and the lives of those around us.
✍ -Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)
चार हजार लोगो को खिलाना, येसु की करुणा, येसु के प्रावधान और येसु की संतुष्टि का वर्णन करता है। यह करुणा की कहानी है। यह एक बहुतायत कहानी है जिसमें ईश्वर प्रदाता है। ईश्वर हमारी अपेक्षाओं से अधिक है और हमारी आवश्यकताओं को पर्याप्त रूप से प्रदान करता है। यह चमत्कार इस बात की याद दिलाता है कि हमारी समस्याएं ईश्वर के लिए बहुत बड़ी नहीं हैं। येसु लोगों के भोजन का उपयोग करता है। यह दर्शाता है कि हमारी संपत्ति और क्षमताएं ईश्वर की सेवा करने के लिए कभी भी बहुत छोटी नहीं होती हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम क्या सामना करते हैं, हम एक महान ईश्वर की सेवा करते हैं। हमें विश्वास करना चाहिए कि ईश्वर हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा। ईश्वर अपने लोगों के माध्यम से कार्य करना चाहता है। हमारा प्रारंभिक बिंदु यह नहीं है कि हमारे संसाधन क्या हैं, बल्कि यह है कि आवश्यकता क्या है। हमें उन जरूरतों को पूरा करने की इच्छा रखने की जरूरत है।
✍ - फादर संजय कुजूर एस.वी.डी
The Feeding of the four thousand narrates the compassion of Jesus, the provision of Jesus and the satisfaction of Jesus. It is a compassion story. It is an abundance story in which God is the provider. God exceeds our expectations and sufficiently provide for our needs. This miracle is a reminder that our problems are not too big for God. Jesus chose to use the food from the people. This demonstrates that our possessions and abilities are never too small to serve God. No matter what we face, we serve a big God. We must trust that God will provide for our needs. God chooses to work through his people. Our starting point is not to be what our resources are, but rather what the need is. We need to have a willingness to meet those needs.
✍ -Fr. Sanjay Kujur SVD
येसु को भीड़ पर तरस आया और वे अपनी करुणा से रोटियों का चमत्कार करते हैं। शून्य से एक चमत्कार करने के बजाय, वे उनसे मांग करते हैं कि उनके पास जो कुछ भी है वे उसे आगे लायें। सात रोटियों और कुछ छोटी मछलियों के साथ येसु ने चार हजार से अधिक लोगों को भोजन कराया। सात रोटियां और कुछ छोटी मछलियां सिर्फ एक या दो व्यक्तियों को खिलाने के लिए पर्याप्त होती। लेकिन जब उन्हें ईश्वर के हाथों में रखा जाता है, तो यह पूरी भीड़ के लिए पर्याप्त होता है। बचे हुए टुकड़ों से सात टोकरियाँ भरी गयी। पाँच रोटियों और दो मछलियों के चमत्कार में भी हम येसु को शिष्यों से माँग करते हुए पाते हैं कि उनके पास जो कुछ भी है उसे बाहर लायें। काना में जब येसु ने चमत्कार किया, तो वे चाहते थे कि नौकर पानी से मटके भरें। जब मानवीय उदारता ईश्वरीय प्रबंध से मिलती है, तो चमत्कार होता ही है। आइए हम ईश्वर और दूसरे लोगों के प्रति उदार बनें ताकि हम अपने दैनिक जीवन में चमत्कारों का अनुभव कर सकें।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Jesus had compassion for the crowd and that compassion makes him multiply bread for them. Instead of working a miracle from nothing, he demands them to bring forward whatever they had. With seven loaves and a few small fishes Jesus fed over four thousand people. Seven loaves and a few small fishes would have been just enough to feed one or two persons. But when they are placed in the hands of God, it is sufficient for the whole crowd. The leftovers filled seven baskets. In the multiplication of the five loaves and two fish too we find Jesus demanding the disciples to bring out whatever they have. At Cana when Jesus worked the miracle, he wanted the servants to fill the jars with water. When human generosity meets divine providence, there is a miracle. Let us be generous to God and His people so that we can experience miracles in our daily lives.
✍ -Fr. Francis Scaria