4) जब सुलेमान बूढ़ा हो गया, तो उसकी पत्नियों ने उस से अन्य देवताओं की उपासना करवायी। वह अपने पिता दाऊद की तरह प्रभु के प्रति पूर्ण रूप से ईमानदार नहीं रहा ।
5) वह सीदोनियों की देवी अश्तारता और अम्मोनियों के घृणित देवता मिलकोम की उपासना करता था।
6) उसने वह काम किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है और वह अपने पिता की तरह प्रभु के प्रति ईमादार नहीं रहा।
7) उस समय सुलेमान ने येरुसालेम के पूर्व की पहाड़ी पर मेाआबियों के घृणित देवता कमोश के लिए और अम्मनियों के घृणित देवता मोलेक के लिए एक-एक मन्दिर बनवाया।
8) उसने अपनी दूसरी पत्नियों के लिए भी वही किया और वे अपने-अपने देवताओं को धूप और बलि दान चढ़ाया करती थीं।
9) इसलिए प्रभु सुलेमान पर क्रुद्ध हुआ, क्योंकि वह इस्राएल के प्रभु-ईश्वर के प्रति ईमानदार नहीं रहा। ईश्वर सुलेमान को दो बार दिखाई दिया।
10) और उसने उस अवसर पर उसे अन्य देवताओं की उपासना करने से मना किया था; किन्तु उसने उस आदेश का पालन नहीं किया था।
11) प्रभु ने सुलेमान से कहा, ‘‘तुमने यह काम किया- तुमने मेरे विधान और मेरे दिये आदेशों का पालन नहीं किया, इसलिए मैं तुम से राज्य छीन कर तुम्हारे सेवक को दे दूँगा।
12) किन्तु तुम्हारे पिता दाऊद के कारण मैं तुम्हारे जीवनकाल में ऐसा नहीं करूँगा। मैं उसे तुम्हारे पुत्र के हाथ से छीन लूँगा।
13) मैं सारा राज्य भी नहीं लूँगा। मैं अपने सेवक दाऊद और अपने चुने हुए नगर येरुसालेम के कारण तुम्हारे पुत्र को एक ही वंश प्रदान करूँगा।
24) ईसा वहाँ से विदा हो कर तीरूस और सिदोन प्रान्त गये। वहाँ वे किसी घर में ठहरे और वे चाहते थे कि किसी को इसका पता न चले, किन्तु वे अज्ञात नहीं रह सके।
25) एक स्त्री ने, जिसकी छोटी लड़की एक अशुद्ध आत्मा के वश में थी, तुरन्त ही इसकी चर्चा सुनी और वह उनके पास आ कर उनके चरणों पर गिर पड़ी।
26) वह स्त्री ग़ैर-यहूदी थी; वह तो जन्म से सूरुफि़नीकी थी। उसने ईसा से विनती की कि वे उसकी बेटी से अपदूत को निकाल दें।
27) ईसा ने उस से कहा, ’’पहले बच्चों को तृप्त हो जाने दो। बच्चों की रोटी ले कर पिल्लों के सामने डालना ठीक नहीं है।’’
28) उसने उत्तर दिया, ’’जी हाँ, प्रभु! फिर भी पिल्ले मेज़ के नीचे बच्चों की रोटी का चूर खाते ही हैं’’।
29) इस पर ईसा ने कहा, ’’जाओ। तुम्हारे ऐसा कहने के कारण अपदूत तुम्हारी बेटी से निकल गया है।’’
30) अपने घर लौट कर उसने देखा कि बच्ची खाट पर पड़ी हुई है और अपदूत उस से निकल चुका है।
आज हम मारकुस 7:24-30 पर विचार करते हैं, जहां एक गैर-यहूदी महिला अपनी अपदूत-ग्रस्त बेटी को ठीक करवाने के लिए येसु के पास आती है। पहली नजर में, येसु का जवाब कड़वा लग सकता है, जैसा कि उन्होंने कहा कि बच्चों का भोजन लेकर कुत्तों को फेंकना ठीक नहीं है। हालांकि, महिला का जवाब विनम्र और अटूट विश्वास से भरा हुआ है। अपने जवाब में, वह अपनी जगह को एक गैर-यहूदी के रूप में स्वीकार करती है, फिर भी वह चतुराई से इशारा करती है कि मेज के नीचे के कुत्ते भी बच्चों की रोटी का चूर खाते ही हैं। यह चतुर जवाब येसु का ध्यान आकर्षित करता है, उनके मिशन और उनके दयालु स्वभाव के बारे में उसकी गहरी समझ और विश्वास को उजागर करता है। येसु इस पर जोर देते हुए कि उसकी बेटी उसके कारण ही ठीक हो गई है, उसके विश्वास की प्रशंसा करते हैं। यह मुलाकात हमें अटूट विश्वास की शक्ति और ईश्वर के प्रेम की समावेशिता का पाठ पढ़ाती है। महिला की विनम्रता, उसके बहादुर विश्वास के साथ मिलकर, रुकावटों को तोड़ती है और सांस्कृतिक सीमाओं को पार करती है। अपने जीवन में, हम अक्सर ऐसी चुनौतियों का सामना करते हैं, जो असंभव लगती हैं। उस गैर-यहूदी महिला की तरह, आइए हम भी अटूट विश्वास के साथ येसु के पास जाएं, यह पहचानते हुए कि उनका प्रेम हर सीमा से बाहर है। उनकी दया पर विश्वास रखते हुए, विनम्र दृढ़ता से हमारी प्रार्थना, चमत्कारी परिवर्तनों के लिए दरवाजा खोलती है। जैसे हम आज आगे बढ़ते हैं। उस गैर-यहूदी महिला के विश्वास से प्रेरित होकर, आइए हम याद रखें कि ईश्वर का प्रेम सबके लिए है, रुकावटों को पार करता है और हम सबको खुले हाथों से गले लगाता है।
✍ - फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Today, we reflect on Mark 7:24-30, where a Gentile woman approaches Jesus, seeking healing for her possessed daughter. At first glance, Jesus’ response may seem harsh, as He mentions that it’s not right to take the children’s food and throw it to the dogs. However, the woman’s reply is both humble and filled with unwavering faith. In her response, she acknowledges her place as a Gentile, yet she cleverly points out that even dogs under the table eat the children’s crumbs. This astute reply captures Jesus’ attention, highlighting her deep understanding of His mission and her trust in His compassionate nature. Jesus commends her faith, emphasizing that her daughter is healed because of it. This encounter teaches us the power of persistent faith and the inclusivity of Go’s love. The woman’s humility, combined with her bold faith, breaks down barriers and transcends cultural boundaries.
In our own lives, we often face challenges that may seem impossible. Like the Gentile woman, let us approach Jesus with unwavering faith, recognizing that His love knows no bounds. Our humble persistence in prayer, coupled with trust in His mercy, opens the door to miraculous transformations. As we go forth today, inspired by the faith of the Gentile woman, may we remember that God’s love is for all, transcending barriers and embracing each of us with open arms.
✍ -Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)
सुसमाचार, हमें एक बहादुर और दृढ़निश्चयी माँ को प्रस्तुत करता है। उसने अपनी बीमार बेटी को बचाने के लिए अपने स्वाभिमान और गरिमा को खतरे में डाल दिया। वह अपनी जरूरतों को पूरा करने की आशा के साथ येसु पर अपनी ध्यान केंद्रित करती है। वह येसु के साथ संवाद करती है और लगातार उसमे बनी रहती है। प्रार्थना करने के तरीके के बारे में अपनी शिक्षा में, येसु ने हमें बताया कि हमें आग्रह करना है। “मैं तुम से कहता हूं, मांगो और तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढो और तुम्हे मिल जायेगा; खटखटाओ और तुम्हारे लिये खोला जाएगा" (लुका ११:९)। उसके विश्वास से प्रेरित होकर, येसु ने एक चमत्कार किया। सच्चा विश्वास लोगों को यह एहसास कराता है कि उन्हें ईश्वर की दया की सख्त जरूरत है। सच्चा विश्वास ईश्वर के पास जाने और अनुरोध करने के लिए साहस और आशा प्रदान करता है।
✍ - फादर संजय कुजूर एस.वी.डी
The Gospel presents to us a brave and determined mother. She risked her self-respect and dignity to save her sick daughter. She is focused intensely on Jesus with a hope to get her needs fulfilled. She dialogues with Jesus and is persistent. In his teaching about how to pray, Jesus told us that we are to be insistent. “ I say to you, Ask, and it will be given to you; search, and you will find; knock and the door will be opened for you” (Luke 11:9). Moved by her faith, Jesus worked a miracle. Genuine faith brings people to realize that they are in desperate need of God’s mercy. Genuine faith provides courage and hope to approach and make requests of God.
✍ -Fr. Sanjay Kujur SVD
आज हम एक सूरुफि़नीकी महिला को येसु के पास अशुद्ध आत्मा से पीड़ित अपनी छोटी बेटी को लेकर आते हुए पाते हैं। येसु कुछ कठोर शब्दों का उपयोग करते नजर आते हैं, जब वे कहते हैं, “पहले बच्चों को तृप्त हो जाने दो। बच्चों की रोटी ले कर पिल्लों के सामने डालना ठीक नहीं है।” इन शब्दों को सुनने पर भी उस महिला को बुरा नहीं लगा, बल्कि अपने गहरे विश्वास का प्रमाण देते हुए उसने कहा, “जी हाँ, प्रभु! फिर भी पिल्ले मेज़ के नीचे बच्चों की रोटी का चूर खाते ही हैं"। यह सुनकर येसु ने उसकी बेटी को चंगा किया। येसु पहले से ही उसके दिल और गहरे विश्वास को जानते थे। वास्तव में, प्रतीत होता है कि येसु निर्दय होने का स्वांग रच कर उसे अपने गहरे विश्वास को प्रदर्शित करने का एक अवसर दे रहे थे। येसु और इस महिला के बीच की बातचीत हमें गहरे विश्वास की जरूरत पर ध्यान देने की आवश्यकता पर गंभीरता से विचार करने को मजबूर करती है। उसका विश्वास “हाँ” के बिना किसी भी जवाब को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। अंत में वह सफल हुई।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Today we find a Syro-Phoenician woman approaching Jesus to have her little daughter cleansed of an unclean spirit. Jesus seems to be unkindly when he says, “The children should be fed first, because it is not fair to take the children’s food and throw it to little dogs”. The woman did not take offence at these words, but expressed her deep faith by saying, “Ah yes, sir, but little dogs under the table eat the scraps from the children”. Hearing this Jesus healed her. Jesus already knew her heart and the deep faith seated there. In fact, by seemingly being unkind to her Jesus was trying to give her an opportunity to demonstrate her faith. The conversation between Jesus and this woman gives us food for thought about the kind of faith we should have. Her faith was unwilling to take ‘no’ for an answer. She succeeded.
✍ -Fr. Francis Scaria