शुक्रवार, 02 फरवरी, 2024

बालक येसु का मन्दिर मे समर्पण

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📒 पहला पाठ: मलआकी का ग्रन्थ 3:1-4

1) प्रभु-ईश्वर यह कहता है, “देखो, मैं अपने दूत भेजूँगा, जिससे वह मेरे लिए मार्ग तैयार करे। वह प्रभु, जिसे तुम खोजते हो, अचानक अपने मन्दिर आ जायेगा। देखो, विधान का वह दूत, जिस के लिए तुम तरसते हो, आ रहा है।

2) कौन उसके आगमन के दिन का सामना कर सकेगा? जब वह प्रकट होगा, तो कौन टिकेगा? क्योंकि वह सुनार की आग और धोबी के खार के सदृश है।

3) वह चाँदी गलाने वाले और शोधन करने वाले की तरह बैठ कर लेवी के पुत्रों को शुद्ध करेगा और सोने-चाँदी की तरह उनका परिष्कार करेगा।

4) तब वे योग्य रीति से ईश्वर को भेंट चढ़ायेंगे और प्रभु-ईश्वर प्राचीन काल की तरह यूदा और यरूसलेम की भेंट स्वीकार करेगा।

अथवा 📕 पहला पाठ : इब्रानियों 2:14-18

14) परिवार के सभी सदस्यों का रक्तमास एक ही होता है, इसलिए वह भी हमारी ही तरह मनुष्य बन गये, जिससे वह अपनी मृत्यु द्वारा मृत्यु पर अधिकार रखने वाले शैतान को परास्त करें

15) और दासता में जीवन बिताने वाले मनुष्यों को मृत्यु के भय से मुक्त कर दें।

16) वह स्वर्गदूतों की नहीं, बल्कि इब्राहीम के वंशजों की सुध लेते हैं।

17) इसलिए यह आवश्यक था कि वह सभी बातों में अपने भाइयों के सदृश बन जायें, जिससे वह ईश्वर -सम्बन्धी बातों में मनुष्यों के दयालु और ईमानदार प्रधानयाजक के रूप में उनके पापों का प्रायश्चित कर सकें।

18) उनकी परीक्षा ली गयी है और उन्होंने स्वयं दुःख भोगा है, इसलिए वह परीक्षा में दुःख भोगने वालों की सहायता कर सकते हैं।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 2:22-40

22) जब मूसा की संहिता के अनुसार शुद्धीकरण का दिन आया, तो वे बालक को प्रभु को अर्पित करने के लिए येरुसालेम ले गये;

23) जैसा कि प्रभु की संहिता में लिखा है: हर पहलौठा बेटा प्रभु को अर्पित किया जाये

24) और इसलिए भी कि वे प्रभु की संहिता के अनुसार पण्डुकों का एक जोड़ा या कपोत के दो बच्चे बलिदान में चढ़ायें।

25) उस समय येरुसालेम में सिमेयोन नामक एक धर्मी तथा भक्त पुरुष रहता था। वह इस्राएल की सान्त्वना की प्रतीक्षा में था और पवित्र आत्मा उस पर छाया रहता था।

26) उसे पवित्र आत्मा से यह सूचना मिली थी कि वह प्रभु के मसीह को देखे बिना नहीं मरेगा।

27) वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से मन्दिर आया। माता-पिता शिशु ईसा के लिए संहिता की रीतियाँ पूरी करने जब उसे भीतर लाये,

28) तो सिमेयोन ने ईसा को अपनी गोद में ले लिया और ईश्वर की स्तुति करते हुए कहा,

29) ’’प्रभु, अब तू अपने वचन के अनुसार अपने दास को शान्ति के साथ विदा कर;

30) क्योंकि मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है,

31) जिसे तूने सब राष़्ट्रों के लिए प्रस्तुत किया है।

32) यह ग़ैर-यहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति है और तेरी प्रजा इस्राएल का गौरव।’’

33) बालक के विषय में ये बातें सुन कर उसके माता-पिता अचम्भे में पड़ गये।

34) सिमेयोन ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उसकी माता मरियम से यह कहा, ’’देखिए, इस बालक के कारण इस्राएल में बहुतों का पतन और उत्थान होगा। यह एक चिन्ह है जिसका विरोध किया जायेगा।

35) इस प्रकार बहुत-से हृदयों के विचार प्रकट होंगे और एक तलवार आपके हृदय को आर-पार बेधेगी।

36) अन्ना नामक एक नबिया थी, जो असेर-वंशी फ़नुएल की बेटी थी। वह बहुत बूढ़ी हो चली थी। वह विवाह के बाद केवल सात बरस अपने पति के साथ रह कर

37) विधवा हो गयी थी और अब चैरासी बरस की थी। वह मन्दिर से बाहर नहीं जाती थी और उपवास तथा प्रार्थना करते हुए दिन-रात ईश्वर की उपासना में लगी रहती थी।

38) वह उसी घड़ी आ कर प्रभु की स्तुति करने और जो लोग येरुसालेम की मुक्ति की प्रतीक्षा में थे, वह उन सबों को उस बालक के विषय में बताने लगी।

39) प्रभु की संहिता के अनुसार सब कुछ पूरा कर लेने के बाद वे गलीलिया-अपनी नगरी नाज़रेत-लौट गये।

40) बालक बढ़ता गया। उस में बल तथा बुद्धि का विकास होता गया और उसपर ईश्वर का अनुग्रह बना रहा।

📚 मनन-चिंतन

आज हम मूसा की संहिता के अनुसार, जब मरियम और यूसुफ ने बालक येसु को मंदिर में प्रस्तुत किया, उस सुंदर पल पर विचार करते हैं। एक विनम्र जोड़े के रूप में, जो आश्चर्य से भरे हुए थे, अपने अनमोल बच्चे को एक पवित्र परंपरा को पूरा करने के लिए लाते हुए - उस दृश्य को कल्पना करें। मरियम की बाहों में, येसु मंदिर में प्रवेश करता है, जहां उन्हें एक महान विश्वासी सिमियोन द्वारा स्वागत किया जाता है। पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित होकर, सिमियोन ने सादगी में पाले गए मसीह को पहचाना। उनका दिल आनंद और शांति से भर जाता है, जब वह वादा किए गए उद्धार को आलिंगन करता है। यह मुलाकात हमें याद दिलाती है कि ईश्वर की योजना हमारे जीवन के सामान्य क्षणों में खुलती है। जैसे सिमियोन ने मंदिर में येसु को पहचाना, वैसे ही ईश्वर हमें अप्रत्याशित तरीकों से जिनसे हम मिलते हैं, उन लोगों के चेहरों में, हर रोज के सादे पलों में, अपने आप को प्रकट करता है।

नबिया अन्ना, उत्सव में शामिल होती हैं, और जो मुक्ति आई है, उसके लिए धन्यवाद देती हैं। उनकी भक्ति हमें अपने विश्वास की यात्रा में धैर्य और दृढ़ता का महत्व सिखाती है। अन्ना की तरह, आइए हम भी ईश्वर के वादों की पूर्ति का इंतजार करते हुए प्रार्थना में दृढ़ रहें। येसु के प्रस्तुतिकरण में, हम परंपरा और ईश्वर की योजना की पूर्ति के बीच एक संबंध पाते हैं। आज, आइए हम अपनी विश्वास की परंपराओं को कृतज्ञता के साथ अपनाएं, जानते हुए कि वे हमें ईश्वर के करीब ले जाती हैं।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today, we reflect on the beautiful moment when Mary and Joseph presented the infant Jesus in the temple, as prescribed by the Law of Moses. Imagine the scene of a humble couple, filled with awe, bringing their precious child to fulfill a sacred tradition. In the arms of Mary, Jesus enters the temple, greeted by the devout Simeon, a man of great faith. Simeon, moved by the Holy Spirit, recognizes the Messiah, cradled in simplicity. His heart overflows with joy and peace as he embraces the promised salvation. This encounter reminds us that God’s plan unfolds in the ordinary moments of our lives. Just as Simeon recognized Jesus in the temple, God reveals Himself to us in unexpected ways in the faces of those we meet, in the kindness we receive, and in the simplicity of everyday moments.

Anna, the prophetess, joins in the celebration, offering thanks for the redemption that has come. Her devotion teaches us the importance of patience and steadfastness in our faith journey. Like Anna, let us persevere in prayer, awaiting the fulfillment of God’s promises. In the presentation of Jesus, we find a connection between tradition and the fulfillment of God’s plan. Today, let us embrace our faith traditions with gratitude, knowing that they lead us closer to the divine.

-Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन- 2

आज हम प्रभु का समपर्ण का पर्व मनाते हैं जो मंदिर में बालक येसु का समपर्ण की याद दिलाता है। आज के सुसमाचार में हम देखते हैं, मरियम और यूसुफ येसु को मूसा की संहिता की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मंदिर ले गए, जिसमें कहा गया था कि पहलौठे बालक को प्रभु के लिए समर्पित किया जाना चाहिए। मंदिर में, वे सिमेयोन से मिले, जिसे पवित्र आत्मा ने वादा किया था कि वह मसीह को देखे बिना नहीं मरेगा। सिमेयोन ने येसु को वादा किए गए मसीहा के रूप में पहचाना और उसे आशीर्वाद दिया, जबकि अन्ना नाम की एक वृद्ध भविष्यवक्ता ने भी येसु को पहचाना और उसके लिए ईश्वर की प्रशंसा की। इस घटना को पुराने नियम की भविष्यवाणियों की पूर्ति और येसु को मसीहा के रूप में मान्यता के रूप में देखा जाता है।

यह पर्व हमें सिमेयोन के साथ जश्न मनाने के लिए आमंत्रित करता है कि सभी भविष्यवाणी पूरी हो गई है, जबकि साथ ही, यह हमें यह याद रखने के लिए आमंत्रित करता है कि येसु का जन्म हमारे पापों के लिए बलिदान के रूप में मरने के लिए हुआ था। यह पर्व हमें इस बात पर भी विचार करने के लिए आमंत्रित करता है कि कैसे धन्य माता ने ईमानदारी से मूसा की संहिता का पालन किया और अपने बालक के साथ शुद्ध होने के लिए मंदिर गई।

सदियों से आज के पर्व को कैंडलमास भी कहा जाता रहा है, प्रकाश (या मोमबत्तियों) का उत्सव। परंपरागत रूप से इस दिन मोमबत्तियों को आशीर्वाद दिया जाता है, इसके बाद एक अंधेरे चर्च में जुलूस निकाला जाता है, जो हमें सिमेयोन के शब्दों की याद दिलाता है कि क्रिसमस के दिन पैदा हुआ बालका ‘‘राष्ट्रों का प्रकाश’’ है।

यह पर्व येसु को प्रकाश के रूप में पहचानने के लिए आमंत्रित करता है जो पाप और मृत्यु को नष्ट करने के लिए अंधेरे में आया है।

स्वयं का बलिदान हमें प्रभु के प्रकाश की मोमबत्तियाँ बनने में मदद करें, ताकि मसीह का प्रकाश हम में उज्ज्वल रूप से चमक सके।

-फादर डेन्नीस तिग्गा (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION


Today we celebrate the Feast of The Presentation of the Lord which commemorates the presentation of Jesus at the Temple. In today’s Gospel we see, Mary and Joseph took Jesus to the Temple to fulfill the requirements of the Law of Moses, which stated that firstborn males must be consecrated to the Lord. At the Temple, they met Simeon who had been promised by the Holy Spirit that he would not die before seeing the Messiah. Simeon recognized Jesus as the promised Messiah and blessed him, while an old prophetess named Anna also recognized Jesus and praised God for him. This event is seen as a fulfillment of Old Testament prophecies and a recognition of Jesus as the Messiah.

This feast invites us to celebrate with Simeon that all prophecy has been fulfilled, while at the same time, it invites us to remember that Jesus was born to die as a sacrifice for our sins.

This feast also invites us to ponder how the Blessed Mother faithfully followed the Law of Moses and went to the Temple with her son to be purified.

Today’s feast has also been called Candlemass throughout the centuries, a celebration of light (or candles). Traditionally candles are blessed on this day, followed by a procession in a darkened church, reminding us of Simeon’s words, that the child born on Christmas day is the “light of the nations.”

This feast invites to recognize Jesus as the light that has come into the darkness to destroy sin and death.

May the Lord help us to be candles of his light, dying to ourselves, so that the light of Christ may shine brightly in us.

-Fr. Dennis Tigga (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन - 3

आज हम मिलन के रहस्य का उत्सव मना रहे हैं। यह मसीह और इस्राएल के बीच एक मिलन है। यह उन्हें ईश्वर और मानव के बीच का समझौता को नवीनीकृत करने का अवसर देता है। यह वचन और व्यवस्था के बीच एक मिलन है। यह ईश्वर की प्रतिज्ञा के आधार पर ईश्वर और मनुष्य के बीच संबंधों में एक नई व्यवस्था उत्पन्न करने के लिए है। यह नबी और संस्था के बीच एक मिलन है। आखिरकार, यह एक तनाव की ओर ले जाता है जो नबी की मृत्यु और संस्था के विनाश में समाप्त होगा। ये दोनों कार्य आत्मा में मिलन और प्रतिक्रिया के एक नए जीवन की ओर ले जाते हैं। यह लौ और बाती के बीच एक मिलन है। यह धीरे-धीरे प्रकाश की एक उज्ज्वल अभिव्यक्ति की ओर ले जाता है जो दुनिया को चमक से घेर लेगा। अंत में यह ईश्वर और मानव के बीच एक मिलन है जो मानवता के गठन की ओर अग्रसर है।

- फादर संजय कुजूर एस.वी.डी


📚 REFLECTION

Today, we are celebrating the mystery of encounter. It is an encounter between the Messiah and Israel. It gives them the occasion to renew the covenant. It is an encounter between the Word and the Law. This is meant to produce a new order in the relationship between God and human based on the promise of God. It is an encounter between prophet and institution. Eventually, It leads to a tension that will end up in death of the prophet and the destruction of the institution. Both these acts lead to a new life of encounter and response in the Spirit. It is an encounter between the flame and the wick. It gradually leads towards a bright manifestation of the light that will engulf the world in radiance. Finally it is an encounter between God and human leading towards the formation of a humanity.

-Fr. Sanjay Kujur SVD

📚 मनन-चिंतन - 4

ईश्वर के ज्ञान प्राप्त करने में हमारी सीमाएँ हैं। हम ईश्वर के बारे में केवल उतना ही जानते हैं जितना वे हमंभ प्रकट करने की कृपा करते हैं। इस तरह के रहस्योद्घाटन प्राप्त करने में सक्षम होने के लिए हमें खुद को उसी के अनुरूप बनाने की आवश्यकता है। जब बालक येसु को मंदिर में लाया गया तो दो महान व्यक्ति थे जिन्होंने उपवास और प्रार्थना में मसीह का इंतजार किया - सिमयोन और अन्ना। उन्होंने मसीह को पहचान लिया क्योंकि वे ईश्वर के कार्यों के लिए खुले थे। वे प्रभु के लिए समर्पित थे और मंदिर, प्रभु के घर से जुड़े हुए थे। वे प्रभु की खोज करने के लिए पर्याप्त बुद्धिमान थे। स्तोत्रकार कहता है, "ईश्वर यह जानने के लिए स्वर्ग से मनुष्यों पर दृष्टि दौड़ाता है कि उन में कोई बुद्धिमान हो, जो ईश्वर की खोज में लगा रहता हो"। (स्तोत्र 14:2; 53:2) प्रभु किसी को भी निराश नहीं करते हैं जो उन्हें चाहता है। वे उन लोगों का परित्याग नहीं करते, जो उनकी खोज में लगे रहते हैं। (देखें स्तोत्र 9:10)। आइए हम हर समय प्रभु की तलाश करना सीखें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

We have our limitations in the knowledge of God. We know about God only as much as He is pleased to reveal to us. To be able to receive such revelation we need to tune ourselves to God. When child Jesus was brought to the temple there were two great souls who awaited the Messiah in fasting and prayer – Simeon and Anna. They recognized the Messiah because they were open to the works of God. They were consecrated to God and were attached to the temple, the house of God. They were wise enough to seek God. Psalmist says, “The Lord looks down from heaven on humankind to see if there are any who are wise, who seek after God” (Ps 14:2; 53:2). Simeon and Anna were wise persons who constantly sought God. God does not disappoint anyone who seeks him. “And those who know your name put their trust in you, for you, O Lord, have not forsaken those who seek you” (Ps9:10). Let us learn to seek God at all times.

-Fr. Francis Scaria