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1 (1-2) मैं सब से पहले यह अनुरोध करता हूँ कि सभी मनुष्यों के लिए, विशेष रूप से राजाओं और अधिकारियों के लिए, अनुनय-विनय, प्रार्थना निवेदन तथा धन्यवाद अर्पित किया जाये, जिससे हम भक्ति तथा मर्यादा के साथ निर्विघ्न तथा शान्त जीवन बिता सकें।
3) यह उचित भी है और हमारे मुक्तिदाता ईश्वर को प्रिय भी,
4) क्योंकि वह चाहता है कि सभी मनुष्य मुक्ति प्राप्त करें और सत्य को जानें।
5) क्योंकि केवल एक ही ईश्वर है और ईश्वर तथा मनुष्यों के केवल एक ही मध्यस्थ हैं, अर्थात् ईसा मसीह,
6) जो स्वयं मनुष्य हैं और जिन्होंने सब के उद्धार के लिए अपने को अर्पित किया। उन्होंने उपयुक्त समय पर इसके सम्बन्ध में अपना साक्ष्य दिया।
7) मैं सच कहता हूँ, झूठ नहीं बोलता। मैं इसी का प्रचारक तथा प्रेरित, गैर-यहूदियों के लिए विश्वास तथा सत्य का उपदेशक नियुक्त हुआ हूँ।
8) मैं चाहता हूँ कि सब जगह पुरुष, बैर तथा विवाद छोड़ कर, श्रद्धापूर्वक हाथ ऊपर उठा कर प्रार्थना करें।
31) जिन यहूदियों ने उन में विश्वास किया, उन से ईसा ने कहा, "यदि तुम मेरी शिक्षा पर दृढ़ रहोगे, तो सचमुच मेरे शिष्य सिद्ध होगे।
32) तुम सत्य को पहचान जाओगे और सत्य तुम्हें स्वतन्त्र बना देगा।"
33) उन्होंने उत्तर दिया, "हम इब्राहीम की सन्तान हैं, हम कभी किसी के दास नहीं रहे। आप यह क्या कहते हैं- तुम स्वतन्त्र हो जाओगे?"
34) ईसा ने उन से कहा, "मै तुम से यह कहता हूँ - जो पाप करता है, वह पाप का दास है।
35) दास सदा घर में नहीं रहता, पुत्र सदा रहता है।
36) इसलिए यदि पुत्र तुम्हें स्वतन्त्र बना देगा, तो तुम सचमुच स्वतन्त्र होगे।
37) "मैं जानता हूँ कि तुम लोग इब्राहीम की सन्तान हो। फिर भी तुम मुझे मार डालने की ताक में रहते हो, क्योंकि मेरी शिक्षा तुम्हारे हृदय में घर नहीं कर सकी।
38) मैंने अपने पिता के यहाँ जो देखा है, वही कहता हूँ और तुम लोगों ने अपने पिता के यहाँ जो सीखा है, वही करते हो।" उन्होंने उत्तर दिया, "इब्राहीम हमारे पिता हैं"।
39) इस पर ईसा ने उन से कहा, "यदि तुम इब्राहीम की सन्तान हो, तो इब्राहीम-जैसा आचरण करो।
40) अब तो तुम मुझे इसलिए मार डालने की ताक में रहते हो कि मैंने जो सत्य ईश्वर से सुना, वह तुम लोगों को बता दिया। यह इब्राहीम-जैसा आचरण नहीं है।
41) तुम लोग तो अपने ही पिता-जैसा आचरण करते हो।" उन्होंने ईसा से कहा, "हम व्यभिचार से पैदा नहीं हुए। हमारा एक ही पिता है और वह ईश्वर है।"
42) ईसा ने यहूदियों से कहा, "यदि ईश्वर तुम्हारा पिता होता, तो तुम मुझे प्यार करते, क्योंकि मैं ईश्वर से उत्पन्न हुआ हूँ और उसके यहाँ से आया हूँ। मैं अपनी इच्छा से नहीं आया हूँ, मुझे उसी ने भेजा है।
येसु अपने 72 शिष्यों को एक मिशन पर भेजते हैं, और यह हमारे लिए विचार करने के लिए सुंदर सबक हैं। पहली बात, येसु उन्हें जोड़ों में भेजते हैं। यह हमें साथीदारी और प्रेम का संदेश फैलाने के लिए साथ काम करने की महत्ता के बारे में सिखाता है। हमें अकेले सफर नहीं करना चाहिए हमारा विश्वास एक साझा अनुभव है। जब शिष्य अपने मिशन पर निकलते हैं, तो येसु उन्हें आदेश देते हैं कि वे कोई पैसे का थैला, कोई पिटारी, और कोई चप्पल न लें। यह अजीब लग सकता है, लेकिन यह ईश्वर की व्यवस्था पर निर्भरता पर जोर देता है। शिष्यों को ईश्वर के प्रबन्ध पर पूरी तरह से भरोसा करने के लिए कहा जाता है, जो सुसमाचार फैलाने के लिए आवश्यक सादगी और विश्वास को दर्शाता है। येसु आगे कहते हैं, “जो भी घर तुम प्रवेश करो, पहले कहो, इस घर को शांति।” यह हमें याद दिलाता है कि हमारा मिशन केवल एक संदेश पहुंचाने के बारे में नहीं है बल्कि हम जहां भी जाएं, वहाँ ईश्वर की शांति लाने के बारे में भी है। हमारे शब्द और कार्य ईश्वर की शांति के साधन होने चाहिए, एक दुनिया में जो अक्सर अशांति से भरी होती है। इसके अलावा, येसु शिष्यों को प्रोत्साहित करते हैं कि वे जो कुछ उनके सामने रखा जाता है, उसे खाएं, जो कृतज्ञता और स्वीकार की भावना पर जोर देता है। यह हमें दूसरों की मेहमाननवाजी की कद्र करना और उनकी दयालुता में ईश्वर के आशीर्वाद को पहचानना सिखाता है। मसीह के शिष्य होने के नाते, हम जहां भी जाते हैं, उम्मीद और उद्धार का संदेश लेकर जाते हैं। हमारा मिशन है कि हम अपने शब्दों, कार्यों, और जो प्यार हम बांटते हैं, के माध्यम से दूसरों को ईश्वर के राज्य के करीब लाएं। येसु के शब्द हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपने मिशन को खुशी और प्यार के साथ अपनाएं, जानते हुए कि परमेश्वर का राज्य नजदीक है।
✍ - फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
✍ -Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)
आज हम अपने देश की आज़ादी को महसूस करने का पर्व मनाते हैं, वही आज़ादी जिसे ना जाने कितने ही शहीदों के त्याग और बलिदान के फलस्वरूप हमने पाया है। उन्हें ग़ुलामी का दर्द मालूम था, जब हमारा देश विदेशी ताक़तों के वश में था और हम स्वतंत्र नागरिक नहीं कहलाते थे। लेकिन आज हम एक आज़ाद देश के आज़ाद नागरिक कहलाते हैं, और यह आज़ादी हमें हमारा संविधान देता है। इसलिए आज हमारे देश के नेताओं और शासकों के लिए प्रार्थना करने का दिन है, जिनके कंधों पर इस महान राष्ट्र की बाग-डोर है।
यदि हमारी सांसारिक स्वतंत्रता हमारे लिए इतनी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे हमने तमाम त्याग और बलिदान के बाद पाया है, तो हमारी आध्यात्मिक स्वतंत्रता हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण होनी चाहिए जिसे हमने कलवारी के बलिदान के बाद पाया है। इसके लिए क्रूस पर पवित्र लहू बहाया गया है। हमें पाप की ग़ुलामी से आज़ाद करने के लिए प्रभु येसु ने खुद को क्रूस पर क़ुर्बान कर दिया। क्या हमें इस आज़ादी की क़ीमत मालूम है? प्रभु ने हमको ईश्वर की सन्तानें और स्वर्गीय राज्य के नागरिक बना दिया है। आइए हम इस स्वतंत्रता को ज़िम्मेदारी के साथ जिएँ और प्रभु से सामना होने तक सुरक्षित बनाए रखें। आमेन।
✍ -फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today we celebrate the freedom of our country that we have received after lot of sacrifices of great martyrs. They knew the pain of not being free, our country was under the control of the foreign powers and we were not called free citizens. But today we are called the free citizens of a free country and this freedom is ensured in our constitution. Therefore, today is also the day to pray for the leaders of the country who are entrusted with such a great responsibility of leading this great nation.
If our worldly freedom is so precious because we have attained it after great sacrifices, then how much important is our spiritual freedom that is gained by such a great sacrifice on the Calvary, most precious blood is shed for this freedom. Jesus has died on the cross to make us free from the bondage of sin. Do we realise the price of this freedom? He has made us the children of God, the citizens of the heavenly kingdom. Let us use this freedom with responsibility and safeguard it till we meet the Lord face-to-face.
✍ -Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)