गुरुवार, 25 जनवरी, 2024

सन्त पौलुस का मन परिवर्तन

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📒 पहला पाठ: प्रेरित-चरित 22:3-16

3) ‘‘मैं यहूदी हूँ। मेरा जन्म तो किलिकिया के तरसुस नगर में हुआ था, किन्तु मेरा पालन-पोषण यहाँ इस शहर में हुआ। गमालिएल के चरणों में बैठ कर मुझे पूर्वजों की संहिता की कट्टर व्याख्या के अनुसार शिक्षा-दीक्षा मिली। मैं ईश्वर का वैसा ही उत्साही उपासक था, जैसे आज आप सब हैं।

4) मैंने इस पन्थ को समाप्त करने के लिए इस पर घोर अत्याचार किया और इसके स्त्री-पुरुषों को बाँध-बाँध कर बन्दीगृह में डाल दिया।

5) प्रधानयाजक तथा समस्त महासभा मेरी इस बात के साक्षी हैं। उन्हीं से पत्र ले कर मैं दमिश्क के भाइयों के पास जा रहा था, जिससे वहाँ के लोगों को भी बाँध कर येरुसालेम ले आऊँ और दण्ड दिलाऊँ।

6) जब मैं यात्रा करते-करते दमिश्क के पास पहुँचा, तो दोपहर के लगभग एकाएक आकाश से एक प्रचण्ड ज्योति मेरे चारों ओर चमक उठी।

7) मैं भूमि पर गिर पड़ा और मुझे एक वाणी यह कहते हुए सुनाई दी, ‘साऊल! साऊल! तुम मुझ पर क्यों अत्याचार करते हो?’

8) मैंने उत्तर दिया ‘प्रभु! आप कौन हैं!’ उन्होंने मुझ से कहा, ‘मैं ईसा नाज़री हूँू, जिस पर तुम अत्याचार करते हो’।

9) मेरे साथियों ने ज्योति तो देखी, किन्तु मुझ से बात करने वाले की आवाज़ नहीं सुनी।

10) मैने कहा, ‘प्रभु! मुझे क्या करना चाहिए?’ प्रभु ने उत्तर दिया, ‘उठो और दमिश्क जाओ। तुम्हें जो कुछ करना है, वह सब तुम्हें वहाँ बताया जायेगा।’

11) उस ज्योति के तेज के कारण मैं देखने में असमर्थ हो गया था, इसलिए मेरे साथी मुझे हाथ पकड़ कर ले चले और इस प्रकार मैं दमिश्क पहुँचा।

12) ‘‘वहाँ अनानीयस नामक सज्जन मुझ से मिलने आये। वे संहिता पर चलने वाले भक्त और वहाँ रहने वाले यहूदियों में प्रतिष्ठित थे।

13) उन्होंने मेरे पास खड़ा हो कर कहा, ‘‘भाई साऊल! दृष्टि प्राप्त कीजिए’। उसी क्षण मेरी आँखों की ज्योति लौट आयी और मैंने उन्हें देखा।

14) तब उन्होंने कहा, ‘हमारे पूर्वजों के ईश्वर ने आप को इसलिए चुना कि आप उसकी इच्छा जान लें, धर्मात्मा के दर्शन करें और उनके मुख की वाणी सुनें;

15) क्योंकि आपको ईश्वर की ओर से सब मनुष्यों के सामने उन सब बातों का साक्ष्य देना है, जिन्हें आपने देखा और सुना है।

16) अब आप देर क्यों करें? उठ कर बपतिस्मा ग्रहण करें और उनके नाम की दुहाई दे कर अपने पापों से मुक्त हो जायें’।

📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 16:15-18

15) इसके बाद ईसा ने उन से कहा, ’’संसार के कोने-कोने में जाकर सारी सृष्टि को सुसमाचार सुनाओ।

16) जो विश्वास करेगा और बपतिस्मा ग्रहण करेगा, उसे मुक्ति मिलेगी। जो विश्वास नहीं करेगा, वह दोषी ठहराया जायेगा।

17) विश्वास करने वाले ये चमत्कार दिखाया करेंगे। वे मेरा नाम ले कर अपदूतों को निकालेंगे, नवीन भाषाएँ बोलेंगे।

18) और साँपों को उठा लेंगे। यदि वे विष पियेंगे, तो उस से उन्हें कोई हानि नहीं होगी। वे रोगियों पर हाथ रखेंगे और रोगी स्वस्थ हो जायेंगे।“

📚 मनन-चिंतन

मारकुस के सुसमाचार का 16वीं अध्याय, 15-18 के पद। इन पदों में, येसु अपने शिष्यों को, और उसके द्वारा, हम सब को एक स्पष्ट और शक्तिशाली संदेश देते हैं। येसु कहते हैं, “जाओ पूरी दुनिया में और सम्पूर्ण सृष्टि को सुसमाचार सुनाओ।” ये शब्द एक कार्य के लिए आह्वान हैं, ईश्वर के प्रेम की अच्छी खबर को हमारे सामने आने वाले हर व्यक्ति के साथ साझा करने का निमंत्रण है। हम गवाह बनने के लिए बुलाए गए हैं, दूसरों को येसु मसीह में मिलने वाले प्रेम, दया और उद्धार के बारे में बताते हुए। येसु उन चिन्हों को उजागर करके आगे बढ़ते हैं, जो उनके साथ होंगे जो विश्वास करते हैं। ये चिन्ह अपदूतों को निकालना, नई भाषाओं में बोलना, सांपों को उठाना, और यदि वे कोई जहरीली चीज पीते हैं, तो उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा आदि हैं। अब, ये चिन्ह कोई जादू के टुकड़े नहीं हैं बल्कि विश्वास की शक्ति और ईश्वर की रक्षा के प्रतीक हैं। इस अंश का सार यह है कि मसीह के अनुयायी होने के नाते, हमें अच्छी खबर को अपने आप में नहीं रखना चाहिए। हमें इसे साहस और आत्मविश्वास के साथ साझा करने के लिए बुलाया गया है। यह हमारे परिवारों, कार्यस्थलों, स्कूलों, और समुदायों में हो सकता है। जहाँ भी हम हैं, हमें ईश्वर के प्रेम और अनुग्रह के गवाह बनने के लिए बुलाया गया है। जबकि हम में से कई बडे-बडे चमत्कार नहीं कर सकते हैं या असाधारण चिन्हों का अनुभव करते हैं। अक्सर सबसे शक्तिशाली गवाही प्रेम, दया, और करुणा के सरल कार्यों से आती है। येसु की शिक्षाओं को अपने दैनिक जीवन में जीते हुए, हम ईश्वर के प्रेम की परिवर्तनशील शक्ति के जीवित गवाह बनते हैं। तो, आइए हम इस आह्वान पर विचार करें कि सुसमाचार का प्रचार करें। क्या हम अपने चारों ओर के लोगों के साथ मसीह का प्रेम सक्रिय रूप से साझा कर रहे हैं? क्या हमारे कार्य और शब्द येसु को जानने से आने वाले आनंद और आशा को दर्शाते हैं? आइए हम गवाह बनने के लिए आह्वान को अपनाएं। हमारे शब्द और कार्य ईश्वर के प्रेम का प्रचार करें, और दूसरों को येसु मसीह के जीवन-परिवर्तक संदेश से मिलने का निमंत्रण दें।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

p>The Gospel of Mark, chapter 16: 15-18. In these verses, Jesus gives a clear and powerful message to His disciples, and by extension, to all of us. Jesus says, “Go into all the world and proclaim the gospel to the whole creation.” These words are a call to action, an invitation to share the good news of God’s love with everyone we encounter. We are called to be witnesses, telling others about the love, mercy, and salvation found in Jesus Christ. Jesus continues by highlighting the signs that will accompany those who believe. These signs include casting out demons, speaking in new tongues, picking up serpents, and if they drink any deadly thing, it will not harm them. Now, these signs are not magic tricks but symbolic expressions of the power of faith and the protection of God. The essence of this passage is clear as followers of Christ, we are not meant to keep the good news to ourselves. We are called to share it boldly and confidently. This might happen in our families, workplaces, schools, and communities. Wherever we are, we are called to be witnesses of God’s love and grace. While not all of us may perform miracles or experience extraordinary signs, the most powerful witness often comes from simple acts of love, kindness, and compassion. By living out the teachings of Jesus in our daily lives, we become living testimonies of the transformative power of God’s love. So, let’s reflect on this call to proclaim the gospel. Are we actively sharing the love of Christ with those around us? Are our actions and words reflecting the joy and hope that come from knowing Jesus? Let’s embrace the call to be witnesses. May our words and deeds proclaim the love of God, inviting others to encounter the life-changing message of Jesus Christ.

-Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन-2

आज का पहला पाठ प्रारंभिक कलीसिया की प्रमुख घटनाओं में से एक को दर्शाता है - साऊल की दमिश्क के रास्ते में प्रभु येसु से मुलाकात। साऊल जो पहले ख्रीस्तीय विश्वासियों पर अत्याचार करते थे, मसीह के एक कट्टर शिष्य के रूप में परिवर्तित हो गये, जिसने पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली रूप से सुसमाचार की घोषणा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संत पौलुस अपने दृढ़ विश्वास और उत्साह के लिए जाने जाते हैं। ईश्वर के देहधारण और मसीह के पास्का रहस्य के बारे में संत पौलुस का विश्वास बहुत ही गहरा था। उनके ज्ञान को पुनर्जीवित ईश्वर के महान निर्विवाद अनुभव के साथ मजबूत किया गया था। वे येसु और उसके सुसमाचार के बारे में उत्साहित था। उसके लिए जीना मसीह है और मरना लाभ (देखिए फिलिप्पियों 1;21)। वे समय और असमय पर मसीह का प्रचार करने के लिए उत्साहित थे (देखिए 2तिमथी 4:2)। वे राजाओं और राज्यपालों के सामने भी मसीह की घोषणा करने और मसीह के लिए मरने में निडर थे।

- फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

Today’s first reading depicts one of the major events in the early Church – Saul having had an encounter with Jesus on the way to Damascus is converted to be a staunch disciple of Christ who then left no stone unturned in proclaiming the Gospel more powerfully than ever. St. Paul is known for his conviction and excitement. St. Paul had deep conviction about the Incarnation and the Paschal Mystery of Christ. His knowledge was solidified with the great unquestionable experience he had of the Risen Lord. He was excited about Jesus and his Gospel. For him to live is Christ and dying is gain (cf. Phil 1;21). He was excited to preach Christ in season and out of season (cf. 2Tim 4:2). He was fearless in proclaiming Christ even in front of kings and governors and in dying for Christ.

-Fr. Francis Scaria

📚 मनन-चिंतन -3

बाइबिल की एक ही पुस्तक में तीन बार सुनाई गई एक मात्र घटना संत पौलुस का मन-परिवर्तन है। इस घटना को प्रेरित-चरित, अध्याय 9, 22 और 26 में वर्णित किया गया है। मेरा मानना है कि यह प्रारंभिक कलीसिया में इस घटना के महत्व के कारण है। आज के पहले पाठ में हम प्रेरित-चरित, अध्याय 22 का वर्णन सुनते हैं। साऊल ईसाईयों को प्रताड़ित करते रहते थे। एक दिन जब वे खीस्तीय भाई-बहनों को सताने तथा उन्हें कैदी बनाने के ल्क्षय से अपने धार्मिक नेताओं अनुमति ले कर दमिश्क की ओर जा रहे थे, उन्हें रास्ते में पुनर्जीवित प्रभु का अनुभव एक विशेष अनुभव हुआ। उसी के साथ उनका पूरा जीवन ही बदल गया। इस मन-परिवर्तन के बाद वे येसु मसीह के शुभ समाचार का एक दूत बन गये। वे गहरे विश्वास और बड़े उत्साह के व्यक्ति थे। उनका जन्म तार्सुस में हुआ था और उन्होंने महान यहूदी शिक्षक गामालियल के अधीन रह कर यहूदी धर्म तथा धर्मग्रन्थ का अध्ययन किया। वे एक कट्टर यहूदी थे। उनके धर्म परिवर्तन के बाद वे येसु के सुसमाचार के एक प्रभावशाली सन्देशवाहक बन गये। उनकी मिशनरी यात्राएं हमारे सामने उस उत्साह को प्रकट करती हैं जो उन्होंने सुसमाचार के प्रचार के लिए उन्होंने दर्शाया था। उन्होंने बहुत से ख्रीस्तीय समुदायों की स्थापना की तथा बड़ी लगन से गैर यहूदियों के बीच प्रेरिताई कार्य किया। वे ईश्वर का वास्तविक साधक थे जिसने ईश्वर को ढूंढा और पाया। आइए हम भी ईश्वर की खोज करते रहें।

-फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

An incident narrated three times in the same book of the Bible is the Conversion of St. Paul. This incident is narrated in Acts, chapters 9, 22 and 26. This, I believe, is due to its importance in the early Church. In today’s first reading we have the second narration. Saul who was a persecutor of Christians was converted by an experience of the Risen Lord while he was on his way to persecute and imprison them. After conversion he became a staunch messenger of the Good News of Jesus Christ. He was a man of deep conviction and great excitement. He was born in Tarsus and educated under the great Jewish teacher Gamaliel. He was a staunch Jew. After his conversion he became a staunch Christian. His missionary journeys reveal to us the enthusiasm he had for the preaching of the Gospel. He became an Apostle to the gentiles founding many Christian communities far and wide. He was a genuine seeker of God who found God who sought him. Let us genuinely seek God every day.

-Fr. Francis Scaria