1) बेनयामीन प्रान्त में कीष नामक एक धनी मनुष्य रहता था। वह अबीएल का पुत्र था। अबीएल सरोर का, सरोर बकोरत का और बकोरत अफ़ीअह का पुत्र था।
2) कीष के साऊल नामक एक नौजवान और सुन्दर पुत्र था। इस्राएलियों में साऊल से सुन्दर कोई सुन्दर नहीं था। वह इतना लम्बा था कि उसका सिर और उसके कन्धे दूसरे लोगों के ऊपर हो जाते थे।
3) किसी दिन साऊल के पिता कीष की गदहियाँ भटक गयी थीं। उसने अपने पुत्र साऊल से कहा, ‘‘किसी नौकर के साथ गदहियों को खोजने जाओ।’’
4) साऊल ने एफ्ऱईम का पहाड़ी प्रदेश और शालिषा प्रान्त पार किया, किन्तु गदहियों का पता नहीं चला। इसके बाद वे शआलीम प्रदेश और बेनयामीन प्रदेश पार कर गये, किन्तु वहाँ भी गदहियाँ का पता नहीं चला।
17) समूएल ने जैसे ही साऊल को देखा, प्रभु ने उसे यह सूचना दी, ‘‘यह वही है, जिसके विषय में मैं तुमसे कह चुका हूँ। यही मेरी प्रजा का शासन करेगा।’’
18) साऊल ने फाटक पर समूएल के पास आ कर कहा, ‘‘कृपया मुझे यह बता दें कि दृष्टा का घर कहाँ है?’’
19) समूएल ने साऊल को उत्तर दिया, ‘‘मैं ही दृष्टा हूँ। मेरे आगे पहाड़ी पर चढों - तुम आज मेरे साथ भोजन करोगे मैं कल सबेरे तुम्हें विदा करूँगा और तुम जिसके बारे में चिन्ता कर रहे हो, वह भी तुम्हें बताऊँगा।
1) समूएल ने तेल की शीषी ले कर उसे साऊल के सिर पर उँढे़ला।
13) ईसा फिर निकल कर समुद्र के तट गये। सब लोग उनके पास आ गये और ईसा ने उन्हें शिक्षा दी।
14) रास्ते में ईसा ने अलफ़ाई के पुत्र लेवी को चुंगीघर में बैठा हुआ देखा और उस से कहा, ’’मेरे पीछे चले आओ’’, और वह उठ कर उनके पीछे हो लिया।
15) एक दिन ईसा अपने शिष्यों के साथ लेवी के घर भोजन पर बैठे। बहुत-से नाकेदार और पापी उनके साथ भोजन कर रहे थे, क्योंकि वे बड़ी संख्या में ईसा के अनुयायी बन गये थे।
16) जब फ़रीसी दल के शास्त्रियों ने देखा कि ईसा पापियों और नाकेदारों के साथ भोजन कर रहे हैं, तो उन्होंने उनके शिष्यों से कहा, ’’ वे नाकेदारों और पापियों के साथ क्यों भोजन करते हैं?’’
17) ईसा ने यह सुन कर उन से कहा, ’’निरोगियों को नहीं, रोगियों को वैद्य की ज़रूरत होती है। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।’’
येसु उन लोगों तक पहुँचते हुए दिखाई देते हैं जिन्हें समाज बाहरी मानता है- नाकेदार और पापी। लेवी, जिसे मैथ्यू के नाम से भी जाना जाता है, एक नाकेदार था, जिसे येसु ने अपने अनुगमन करने के लिए बुलाया था। और लेवी क्या करता है? वह येसु और कई अन्य लोगों को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित करता है। अब, फ़रीसी और शास्त्री, उस समय के धार्मिक नेता, आलोचना करने में तत्पर थे। उन्होंने सवाल किया कि येसु कर वसूलने वालों और पापियों के साथ भोजन क्यों करते हैं। येसु, उनकी चिंताओं को सुनकर, एक गहन सत्य के साथ उत्तर देते हैं: “निरोगियों को नहीं, रोगियों को वैद्य की ज़रूरत होती है। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।” इन शब्दों में, येसु अपने मिशन को प्रकट करते हैं - उन लोगों के लिए उपचार और दया लाना जो इसकी आवश्यकता को पहचानते हैं। वह उन लोगों से कतराते नहीं हैं जिन्हें समाज पापी मानता है; इसके बजाय, वह उन्हें प्यार से गले लगाते हैं और उन्हें अपना अनुगमन करने के लिए आमंत्रित करते हैं। यह संदेश आज हमारे लिए शक्तिशाली है। यह हमें याद दिलाता है कि कोई भी ईश्वर की दया की पहुंच से परे नहीं है। हम सभी के जीवन में टूटेपन और पापपूर्णता के क्षण आते हैं, लेकिन येसु, दिव्य चिकित्सक, हमें ठीक करने के लिए तैयार हैं। आइए अपने आप से पूछें कि क्या हम येसु के निमंत्रण के लिए तैयार हैं? क्या हम उसकी दया की आवश्यकता को स्वीकार करने को तैयार हैं? आइए हम याद रखें कि ईश्वर का प्रेम समावेशी है, यह हर किसी तक पहुंचता है, खासकर उन लोगों तक जो खुद को अयोग्य महसूस करते हैं।
✍ - फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
Jesus is seen reaching out to those whom society considers outsiders. The tax collectors and sinners. Levi, also known as Matthew, a tax collector, is called by Jesus to follow Him. And what does Levi do? He invites Jesus and many others to his home for a meal. Now, the Pharisees and scribes, the religious leaders of the time, were quick to criticize. They questioned why Jesus would dine with tax collectors and sinners. Jesus, hearing their concerns, responds with a profound truth: “Those who are well do not need a physician, but those who are sick. I came not to call the righteous, but sinners.” In these words, Jesus reveals His mission – to bring healing and mercy to those who recognize their need for it. He doesn’t shy away from those society deems as sinners; instead, He embraces them with love and invites them to follow Him. This message is powerful for us today. It reminds us that no one is beyond the reach of God’s mercy. We all have moments of brokenness and sinfulness, but Jesus, the Divine Physician, is ready to heal us. let’s ask ourselves Are we open to Jesus’ invitation? Are we willing to acknowledge our need for His mercy? Let’s remember that God’s love is inclusive, reaching out to everyone, especially those who feel unworthy.
✍ -Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)
येसु दयालु और पापियों के प्रति सहानुभूति रखने वाले थे। वे पापियों को बीमार मानते थे जिन्हें दयामय उपचार की आवश्यकता है। उनके दुनिया में आने का एक मुख्य उद्देश्य पापियों को स्वर्गिक पिता के साथ मेल-मिलाप कराना और उनके लिए ईश्वर की संतानों की खोई हुई गरिमा को पुन: प्राप्त करना था। येसु ने पापियों की निंदा नहीं की। इसके विपरीत, वे उन पर दया करते थे और उन्हें ईश्वर के प्रेम का अनुभव करने के लिए आमंत्रित करते थे। योहन 8:1-11 में, हम व्यभिचार में पकड़ी गई स्त्री के प्रति येसु के इस दृष्टिकोण को पाते हैं। इसी प्रकार के प्रेम से ही प्रभु येसु ने मत्ती नामक नाकेदार को एक उत्साही शिष्य में बदल दिया। कुरिन्थियों के नाम संत पौलुस के पहले पत्र के अध्याय 13 में प्रेम के रहस्य का विवरण है। हम लोगों को डांट और दंड के बजाय दयालुता तथा प्रेम से जीत सकते हैं।
✍ - फादर फ्रांसिस स्करिया
Jesus was compassionate and sympathetic towards sinners. He considered them as sick people who needed a merciful treatment. One of the main intentions of his coming into the world was to reconcile them with the Heavenly Father and to obtain for them the lost dignity of the children of God. Jesus did not condemn sinners. On the contrary, he was compassionate to them and invited them to experience the love of God. In Jn 8:1-11, we find this approach of Jesus towards the woman caught in adultery. It is with this love that Jesus could turn Matthew the tax-collector into a fervent disciple. The thirteenth chapter of the First Letter of St. Paul to Corinthians deals extensively with the power of the mystery of love. We can easily gain people by being kind and merciful to them rather than with scolding and punishments.
✍ -Fr. Francis Scaria
इस दुनिया में येसु के जीवन काल में नाकेदार समाज में अलोकप्रिय व्यक्ति थे। इस तथ्य के कारण उन्हें रोमन प्रशासन के साथ सहयोगियों के रूप में देखा जाता था। उन्होंने रोमन सम्राट के लिए लोगों से करों का संग्रह किया, साथ ही अपने लिए एक अतिरिक्त राशि भी एकत्र की। चूँकि वे बहुत पैसा लोगों से वसूल करते थे और रोमियों का साथ देते थे, लोग उन्हें नापसंद करते थे और कई लोग उन्हें पापी करार देते थे। फरीसी और सदूकी नाकेदारों को घृणा के दृष्टिकोण से देखते थे। प्रभु येसु ने नाकेदार लेवी या मत्ती को शिष्य बनने के लिए बुलाया और उन्होंने येसु के निमंत्रण को सहर्ष स्वीकार कर लिया। अपने आनंद में उन्होंने अपने सभी दोस्तों के साथ येसु को भोजन पर आमंत्रित किया। जब शास्त्रियों और फरीसियों ने कर संग्राहकों के साथ खाने के लिए येसु की आलोचना की, तब येसु ने कहा, “निरोगियों को नहीं, रोगियों को वैद्य की ज़रूरत होती है। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।” येसु उन लोगों को नहीं बचाते जो स्वयं को ईमानदार कहते हैं। दूसरे शब्दों में, जो अपने आप को ईमानदार मानते हैं, उन्हें येसु नहीं बचाते हैं। वे उन लोगों को बचाते हैं जो पापी होने का एहसास करते और उन्हें स्वीकार करते हैं। येसु शास्त्रियों और फरीसियों की मदद नहीं कर सकते थे क्योंकि उन्हें कभी येसु की मदद की जरूरत महसूस नहीं हुई। येसु उनके पापों को माफ नहीं कर सकते थे, क्योंकि उन्होंने खुद को पापी के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया था। वे अपने आप को धार्मिक मानते थे। आइए हम खुद को ईश्वर की कृपा के योग्य होने के लिए नम्र बनाएं।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Tax collectors were unpopular individuals in society, due to the fact they were seen as siding with the Roman administration. They collected taxes from the people for the Roman emperor, with an added amount collected for themselves. Since they extorted a lot of money and sided with the Romans, the people disliked them and many branded them as sinners. The Pharisees and the Scribes looked down upon the tax collectors. Jesus calls Matthew, the Tax Collector to be a disciple and he readily accepted the invitation. In his joy he invited Jesus to a dinner with all his friends. When the scribes and Pharisees criticized Jesus for eating with the tax collectors, Jesus said, “It is not the healthy who need the doctor, but the sick. I came to call not the upright, but sinners.” Jesus does not save those who think that they are upright. He saves those who are aware of their sinfulness. Jesus could not help the scribes and Pharisees because they never felt the need to be helped. Jesus could not forgive their sins, because they never accepted themselves as sinners. They were self-righteous people. Let us humble ourselves to be worthy of God’s grace.
✍ -Fr. Francis Scaria