शुक्रवार, 12 जनवरी, 2024

सामान्य काल का पहला सप्ताह

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पहला पाठ: समुएल का पहला ग्रन्थ 8 :4-7,10-22a

4) इस्राएल के सब नेता इकट्ठे हो गये और रामा में समूएल के पास आये।

5) उन्होंने उससे कहा, ‘‘आप बूढ़े हो गये हैं और आपके पुत्र आपके मार्ग का अनुसरण नहीं करते। इसलिए आप हमारे लिए एक राजा नियुक्त करें, जो हम पर शासन करें, जैसा कि सब राष्ट्रों में होता है।‘‘

6) उनका यह निवेदन कि आप हमारे लिए एक राजा नियुक्त करें, जो हम पर शासन करें, समूएल को अच्छा नहीं लगा और उसने प्रभु से प्रार्थना की।

7) प्रभु ने समूएल से कहा, ‘‘लोगो की हर माँग पूरी करो, क्योंकि वे तुम को नहीं, बल्कि मुझ को अस्वीकार कर रहे हैं। वे नहीं चाहते कि मैं उनका राजा बना रहूँ।

10) जिन लोगों ने समूएल से एक राजा की माँग की थी, समूएल ने उन्हें प्रभु की सारी बातें बता दीं।

11) उसने कहा, ‘‘जो राजा तुम लोगो पर शासन करेंगे, वह ये अधिकार जतायेंगे: वह तुम्हारे पुत्रों को अपने रथों तथा घोड़ों की सेवा में लगायेंगे और अपने रथ के आगे-आगे दौड़ायेंगे।

12) वह उन्हें अपनी सेना के सहस्रपति तथा पंचाषतपति के रूप में नियुक्त करेंगे, उन से अपने खेत जुतवायेंगे, अपनी फ़सल कटवायेंगे और हथियार तथा युद्ध-रथों का सामान बनवायेंगे।

13) वह मरहम तैयार करने, भोजन पकाने और रोटियाँ सेंकने के लिए तुम्हारी पुत्रियों की माँग करेंगे।

14) वह तुम्हारे सर्वोत्तम खेत, दाखबारियाँ और जैतून के बाग़ तुम से छीन कर अपने सेवकों को प्रदान करेंगे।

15) वह तुम्हारी फ़सल और दाख़बारियों की उपज का दशमांश लेंगे और उसे अपने दरबारियों तथा सेवको को देदेंगे।

16) वह तुम्हारे दास-दासियों को, तुम्हारे युवकों और तुम्हारे गधों को भी अपने ही काम में लगादेंगे।

17) वह तुम्हारी भेड़-बकरियों का दशमांश लेंगे और तुम लोग भी उनके दास बनोगे।

18) उस समय तुम अपने राजा के कारण, जिसे तुमने स्वयं चुना होगा, प्रभु की दुहाई दोगे, किन्तु उस दिन प्रभु तुम्हारी एक भी नहीं सुनेगा।’’

19) लोगों ने समूएल का अनुरोध अस्वीकार करते हुए कहा, ‘‘हमें एक राजा चाहिए!

20) तब हम सब अन्य राष्ट्रों के सदृश होंगे। हमारे राजा हम पर शासन करेंगे और युद्ध के समय हमारा नेतृत्व करेंगे।’’

21) समूएल ने लोगों का निवेदन सुन कर प्रभु को सुनाया और

22) उसने उत्तर दिया, ‘‘उनकी बात मान लो ओर उनके लिए एक राजा नियुक्त करो।’’

सुसमाचार : सन्त मारकुस 2:1-12

1) जब कुछ दिनों बाद ईसा कफ़रनाहूम लौटे, तो यह खबर फैल गयी कि वे घर पर हैं

2) और इतने लोग इकट्ठे हो गये कि द्वार के सामने जगह नहीं रही। ईसा उन्हें सुसमाचार सुना ही रहे थे कि

3) कुछ लोग एक अद्र्धांगरोगी को चार आदमियों से उठवा कर उनके पास ले आये।

4) भीड़ के कारण वे उसे ईसा के सामने नहीं ला सके; इसलिए जहाँ ईसा थे, उसके ऊपर की छत उन्होंने खोल दी और छेद से अद्र्धांगरोगी की चारपाई नीचे उतार दी।

5) ईसा ने उन लोगों का विश्वास देख कर अद्र्धांगरोगी से कहा, ’’बेटा! तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं’’।

6) वहाँ कुछ शास्त्री बैठे हुए थे। वे सोचते थे- यह क्या कहता है?

7) यह ईश-निन्दा करता है। ईश्वर के सिवा कौन पाप क्षमा कर सकता है?

8) ईसा को मालूम था कि वे मन-ही-मन क्या सोच रहे हैं। उन्होंने शास्त्रियों से कहा, ’’मन-ही-मन क्या सोच रहे हो?

9) अधिक सहज क्या है- अद्र्धांगरोगी से यह कहना, ’तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं’, अथवा यह कहना, ’उठो, अपनी चारपाई उठा कर चलो-फिरो’?

10) परन्तु इसलिए कि तुम लोग यह जान लो कि मानव पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार मिला है’’- वे अद्र्धांगरोगी से बोले-

11) ’’मैं तुम से कहता हूँ, उठो और अपनी चारपाई उठा कर घर जाओ’’।

12) वह उठ खड़ा हुआ और चारपाई उठा कर तुरन्त सब के देखते-देखते बाहर चला गया। सब-के-सब बड़े अचम्भे में पड़ गये और उन्होंने यह कहते हुए ईश्वर की स्तुति की- हमने ऐसा चमत्कार कभी नहीं देखा।

📚 मनन-चिंतन

येसु एक भीड़ भरे घर में हैं, और लोग उनकी बातें सुनने के लिए इकट्ठे होते हैं। उनमें से एक लकवाग्रस्त व्यक्ति है, जिसे चार दोस्त ले जा रहे हैं। ये दोस्त लकवाग्रस्त व्यक्ति को येसु के पास लाने के लिए कृतसंकल्प हैं, लेकिन घर इतना भरा हुआ है कि वे वहां नहीं पहुंच सकते। जब येसु ने लकवाग्रस्त व्यक्ति को देखा, तो उन्होंने कुछ अप्रत्याशित किया। उसकी शारीरिक स्थिति को तुरंत ठीक करने के बजाय, येसु ने पहले कहा, "बेटा, तुम्हारे पाप क्षमा कर दिए गए हैं।" यह घोषणा धार्मिक नेताओं के बीच कुछ बड़बड़ाहट पैदा करती है। वे पापों को माफ करने के येसु के अधिकार पर सवाल उठाते हैं। येसु, उनके विचारों को समझते हुए, एक गहन प्रश्न पूछते हैं, “अधिक सहज क्या है- अर्ध्दांगरोगी से यह कहना, ’तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हैं’, अथवा यह कहना, ’उठो, अपनी चारपाई उठा कर चलो-फिरो’?” फिर, अपना अधिकार दिखाने के लिए, येसु ने लकवे के मारे हुए व्यक्ति को अपनी खाट उठाकर घर जाने के लिए कहा। वह आदमी, जो एक बार लकवाग्रस्त हो गया था, खड़ा होता है, अपनी चटाई उठाता है, और सबके सामने बाहर चला जाता है। यह घटना हमें विश्वास और क्षमा के अंतर्संबंध के बारे में सिखाती है। दोस्तों का विश्वास लकवाग्रस्त व्यक्ति को येसु के पास लाने में सहायक था, और येसु ने शारीरिक उपचार और पापों की क्षमा दोनों के साथ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। अपने जीवन में, हम भी शारीरिक, भावनात्मक या आध्यात्मिक बोझ उठा सकते हैं। लकवाग्रस्त व्यक्ति की तरह, हमें येसु के उपचारात्मक स्पर्श की आवश्यकता है। आइए हम येसु पर अपने विश्वास की जाँच करें। क्या हम उनकी उपचार शक्ति पर भरोसा कर सकते हैं और अपने जीवन में क्षमा के महत्व को पहचान सकते हैं? विश्वास और क्षमा के माध्यम से, येसु पुनर्स्थापन और पूर्णता लाते हैं।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Jesus is in a crowded house, and people gather to hear Him speak. Among them is a paralyzed man, carried by four friends. These friends are determined to bring the paralyzed man to Jesus, but the house is so packed that they can’t get through. When Jesus sees the paralyzed man, He does something unexpected. Instead of immediately healing his physical condition, Jesus first says, “Son, your sins are forgiven.” This declaration stirs up some murmuring among the religious leaders, questioning Jesus’ authority to forgive sins. Jesus, perceiving their thoughts, asks a profound question Which is easier, to say to the paralytic, ‘Your sins are forgiven,’ or to say, ‘Rise, take up your bed and walk’? Then, to show His authority, Jesus tells the paralyzed man to take up his mat and go home. The man, once paralyzed, stands up, takes his mat, and walks out before everyone. This incident teaches us about the interconnectedness of faith and forgiveness. The friends’ faith was instrumental in bringing the paralyzed man to Jesus, and Jesus responded with both physical healing and forgiveness of sins. In our lives, we, too, may carry burdens physical, emotional, or spiritual. Like the paralyzed man, we need the healing touch of Jesus. Let us examine our faith and the faith we have in bringing others to Jesus. May we trust in His healing power and recognize the importance of forgiveness in our lives. Through faith and forgiveness, Jesus brings restoration and wholeness.

-Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)