गुरुवार, 11 जनवरी, 2024

सामान्य काल का पहला सप्ताह

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📒 पहला पाठ: समुएल का पहला ग्रन्थ 4 :1-11

1) समूएल की बात इस्राएल भर में मान्य थी। उन दिनों फ़िलिस्ती इस्राएल पर आक्रमण करने के लिए एकत्र हो गये और इस्राएली उनका सामना करने निकले। उन्होंने एबेन-एजे़र के पास पड़ाव डाला और फ़िलिस्तियों ने अफ़ेद मे।

2) फ़िलिस्ती इस्राएलियों के सामने पंक्तिबद्ध हो गये। घमासान युद्ध हुआ और इस्राएली हार गये। फ़िलिस्तियों ने रणक्षेत्र में लगभग चार हजार सैनिकों को मार डाला।

3) जब सेना पड़ाव में लौट आयी, तो इस्राएली नेताओं ने कहा, ‘‘प्रभु ने आज हमें फ़िलिस्तियों से क्यों हारने दिया? हम षिलो जा कर प्रभु की मंजूषा ले आयें। वह हमारे साथ चले और हमें हमारे शत्रुओं के पंजे से छुड़ाये।’’

4) उन्होंने मंजूषा ले आने कुछ लोगों को षिलों भेजा। यह विश्वमण्डल के प्रभु के विधान की मंजूषा है, जो केरूबीम पर विराजमान है। एली के दोनों पुत्र होप़नी और पीनहास ईश्वर के विधान की मंजूषा के साथ आये।

5) जब प्रभु के विधान की मंजूषा पड़ाव में पहुँची, तो सब इस्राएली इतने ज़ोर से जयकार करने लगे कि पृथ्वी गूँज उठी।

6) फ़िलिस्तियों ने जयकार का वह नाद सुन कर कहा, ‘‘इब्रानियों के पड़ाव में इस महान् जयकार का क्या अर्थ है?’’ जब उन्हें यह पता चला कि प्रभु की मंजूषा पड़ाव में आ गयी है,

7) तो वे डरने लगे। उन्होंने कहा, ‘‘ईश्वर पड़ाव में आ गया है।

8) हाय! हम हार गये! उस शक्तिशाली ईश्वर के हाथ से हमें कौन बचा सकता है? यह तो वही ईश्वर है, जिसने मिस्रियों को मरुभूमि में नाना प्रकार की विपत्तियों से मारा।

9) फ़िलिस्तियों! हिम्मत बाँधों और शूरवीरों की तरह लड़ो! नहीं तो तुम इब्रानियों के दास बनोगे, जैसे कि वे तुम्हारे दास थे। शूरवीरों की तरह लड़ो!’’

10) फ़िलिस्तियों ने आक्रमण किया। इस्राएली हार कर अपने तम्बूओं में भाग गये। यह उनकी करारी हार थी। इस्राएलियों के तीस हज़ार पैदल सैनिक मारे गये,

11) ईश्वर की मंजूषा छीन ली गयी और एली के दोनों पुत्र होप़नी और पीनहास भी मार दिये गये।

📒 सुसमाचार : सन्त मारकुस 1:40-45

40) एक कोढ़ी ईसा के पास आया और घुटने टेक कर उन से अनुनय-विनय करते हुए बोला, ’’आप चाहें तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं’’।

41) ईसा को तरस हो आया। उन्होंने हाथ बढ़ाकर यह कहते हुए उसका स्पर्श किया, ’’मैं यही चाहता हूँ- शुद्ध हो जाओ’’।

42) उसी क्षण उसका कोढ़ दूर हुआ और वह शुद्ध हो गया।

43) ईसा ने उसे यह कड़ी चेतावनी देते हुए तुरन्त विदा किया,

44) ’’सावधान! किसी से कुछ न कहो। जा कर अपने को याजकों को दिखाओ और अपने शुद्धीकरण के लिए मूसा द्वारा निर्धारित भेंट चढ़ाओ, जिससे तुम्हारा स्वास्थ्यलाभ प्रमाणित हो जाये’’।

45) परन्तु वह वहाँ से विदा हो कर चारों ओर खुल कर इसकी चर्चा करने लगा। इस से ईसा के लिए प्रकट रूप से नगरों में जाना असम्भव हो गया; इसलिए वह निर्जन स्थानों में रहते थे फिर भी लोग चारों ओर से उनके पास आते थे।

📚 मनन-चिंतन

कुष्ठ रोग से पीड़ित एक व्यक्ति चंगाई की तलाश में येसु के पास आता है। कुष्ठ रोग न केवल एक शारीरिक बीमारी थी, बल्कि यह एक सामाजिक कलंक भी थी, जो इससे पीड़ित लोगों को अलग-थलग कर देती थी। फिर भी, यह बहादुर आदमी येसु के पास आने का साहस करता है, घुटने टेकता है और कहता है, "यदि आप चाहें, तो आप मुझे शुद्ध कर सकते हैं।" इसके बाद जो होता है उससे पता चलता है कि हमारे दयालु प्रभु का हृदय दया से भर गया, उन्होंने उस आदमी को छुआ और घोषणा की, "मैं चाहता हूँ शुद्ध हो जाओ।" तुरन्त, मनुष्य का कुष्ठ रोग दूर हो जाता है, और वह पुनः स्वस्थ हो जाता है। यह मुलाकात हमें येसु और हमारे प्रति उनके प्रेम के बारे में गहन सबक सिखाती है। येसु जरूरतमंदों से मुंह नहीं मोड़ते। इसके बजाय, वह अछूतों तक पहुंचते हैं, उन्हें छूते हैं और चंगाई प्रदान करते हैं। उनकी करुणा की कोई सीमा नहीं है, उन्होंने सामाजिक बाधाओं को तोड़कर न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि गरिमा और अपनेपन को भी बहाल किया। आइए हम स्वयं को कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति में देखें। हम सभी के पास दृश्यमान या छुपे हुए घाव होते हैं, जिनके भरने की हम इच्छा करते हैं। येसु हमें अपनी कमजोरियों के साथ उनके पास आने, उनकी करुणा और हमें संपूर्ण बनाने की शक्ति पर भरोसा करने के लिए आमंत्रित करते हैं। उनका प्यार हमें ठीक करने और पुनर्स्थापित करने के लिए तैयार है।

- फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

A man with leprosy approaches Jesus, seeking healing. Leprosy was not only a physical ailment but also carried a social stigma, isolating those who suffered from it. Yet, this brave man dares to come to Jesus, kneels, and says, “If you will, you can make me clean.” What happens next reveals the heart of our compassionate Lord moved with pity, touches the man, and declares, “I will be clean.” Instantly, the leprosy leaves the man, and he is restored to health. This encounter teaches us profound lessons about Jesus and His love for us. Jesus doesn’t turn away from those in need. Instead, He reaches out, touches the untouchable, and brings healing. His compassion knows no bounds, breaking through social barriers to restore not only physical health but also dignity and belonging. let’s see ourselves in the man with leprosy. We all carry wounds, whether visible or hidden, that we long to be healed. Jesus invites us to approach Him with our vulnerabilities, trusting in His compassion and power to make us whole. His love is ready to heal and restore.

-Fr. Paul Raj (Bhopal Archdiocese)

📚 मनन-चिंतन-2

आज के सुसमाचार में हम सबसे अच्छी प्रार्थनाओं में से एक पाते हैं। कोढ़ी येसु से कहता है, "आप चाहें तो मुझे शुद्ध कर सकते हैं"। एक आदर्श प्रार्थना में हम ईश्वर की इच्छा के आगे आत्म-समर्पण करते हैं। गतसमनी की वाटिका में, येसु ने प्रार्थना की, “मेरे पिता! यदि हो सके, तो यह प्याला मुझ से टल जाये। फिर भी मेरी नही, बल्कि तेरी ही इच्छा पूरी हो।" (मत्ती 26:39)। माता मरियम ने भी ईश्वर की इच्छा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और कहा, "देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।" (लूकस 1:38)। हमारे प्रभु जानते हैं कि हमें किस चीज़ की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। वे हमें हम से ज्यादा जानते हैं। यिरमियाह 29:11 में हम पढ़ते हैं, "मैं तुम्हारे लिए निर्धारित अपनी योजनाएँ जानता हूँ“- यह प्रभु की वाणी है- “तुम्हारे हित की योजनाएँ, अहित की नहीं, तुम्हारे लिए आशामय भविय की योजनाएं।” जब हमारे सर्वज्ञ ईश्वर के पास हमारे लिए इतनी बड़ी कल्याणकारी योजनाएं हैं, तो क्या हमारे लिए उनकी इच्छा के आगे आत्मसमर्पण करना बुद्धिमानी नहीं है?

- फादर फ्रांसिस स्करिया


📚 REFLECTION

In today’s Gospel we find one of the best prayers one can make. The leper tells Jesus, “If you choose, you can make me clean”. In an ideal prayer we surrender to the will of God. In the garden of Gethsemane, Jesus prayed, “My Father, if it is possible, let this cup pass from me; yet not what I want but what you want” (Mt 26:39). Our lady too surrendered before the will of God and said, “Here am I, the servant of the Lord; let it be with me according to your word” (Lk 1:38). The Lord knows what we need most. He knows us more than we ourselves do. In Jer 29:11 we read, “For surely I know the plans I have for you, says the Lord, plans for your welfare and not for harm, to give you a future with hope”. When our omniscient God has such great welfare plans for us, is it not wise for us to surrender to his will?

-Fr. Francis Scaria