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23) ''हारून और उसके पुत्रों से कहो - इस्राएलियों को आशीर्वाद देते समय यह कहोगे :
24) 'प्रभु तुम लोगों को आशीर्वाद प्रदान करे और सुरक्षित रखे।
25) प्रभु तुम लोगों पर प्रसन्न हो और तुम पर दया करे।
26) प्रभु तुम लोगों पर दयादृष्टि करे और तुम्हें शान्ति प्रदान करे।'
27) वे इस प्रकार इस्राएलियों के लिए मुझ से प्रार्थना करें और मैं उन्हें आशीर्वाद प्रदान करूँगा।
5) जिससे वह संहिता क अधीन रहने वालों को छुड़ा सकें और हम ईश्वर के दत्तक पुत्र बन जायें।
6) आप लोग पुत्र ही हैं। इसका प्रमाण यह है कि ईश्वर ने हमारे हृदयों में अपने पुत्र का आत्मा भेजा है, जो यह पुकार कर कहता है -’’अब्बा! पिता!’’ इसलिए अब आप दास नहीं, पुत्र हैं और पुत्र होने के नाते आप ईश्वर की कृपा से विरासत के अधिकारी भी हैं।
7) इसलिए अब आप दास नहीं, पुत्र हैं और पुत्र होने के नाते आप ईश्वर की कृपा से विरासत के अधिकारी भी हैं।
17) उसे देखने के बाद उन्होंने बताया कि इस बालक के विषय में उन से क्या-क्या कहा गया है।
18) सभी सुनने वाले चरवाहों की बातों पर चकित हो जाते थे।
19) मरियम ने इन सब बातों को अपने हृदय में संचित रखा और वह इन पर विचार किया करती थी।
20) जैसा चरवाहों से कहा गया था, वैसा ही उन्होंने सब कुछ देखा और सुना; इसलिए वे ईश्वर का गुणगान और स्तुति करते हुए लौट गये।
21) आठ दिन बाद बालक के ख़तने का समय आया और उन्होंने उसका नाम ईसा रखा। स्वर्गदूत ने गर्भाधान के पहले ही उसे यही नाम दिया था।
हम स्वयं को बेथलहम में पाते हैं, जहां चरवाहे, स्वर्गदूतों से खुशी की खबर प्राप्त करने के बाद, नवजात उद्धारकर्ता को देखने के लिए दौड़ पड़ते हैं। जैसे ही वे पहुंचे, उन्होंने मरियम, यूसुफ़ और चरनी में लेटे हुए बच्चे को पाया, जैसा कि स्वर्गदूतों ने घोषणा की थी। जो चीज़ हमें प्रभावित करती है, वह है वातावरण की सरलता - एक विनम्र अस्तबल, एक युवा जोड़ा और येसु नाम का एक छोटा बच्चा। फिर भी, इस सरलता में, कुछ असाधारण घटना घटित हो रही है। ईश्वर का पुत्र दुनिया में आया है, किसी भव्य महल में नहीं, बल्कि एक चरनी की शांत सादगी में। चरवाहे, साधारण और सामान्य लोग, इस चमत्कारी घटना के पहले गवाह बने। उन्होंने बच्चे के बारे में समाचार फैलाया, और सभी ने सुना कि चरवाहों ने क्या बताया और उन्हें इस पर आश्चर्य हुआ। येसु का जन्म कोई रहस्य नहीं है जिसे रखा जाए बल्कि दुनिया के साथ साझा की जाने वाली खुशी है। हमें बालक येसु को दिए गए नाम के महत्व का पता चलता है। नाम का अर्थ है "ईश्वर बचाता है।" इस छोटे, कमज़ोर बच्चे में, मुक्ति के लिए ईश्वर की योजना प्रकट होती है। उद्धारकर्ता हमें पाप से बचाने, हमारे अंधकार में प्रकाश लाने और हमें अनन्त जीवन का उपहार देने के लिए आया है। बच्चे का नाम 'येसु' रखा गया है, यह नाम उसके गर्भधारण से पहले ही देवदूत ने दिया था। यह अधिनियम भगवान के वादे की पूर्ति और इस बच्चे के अस्तित्व के पीछे के दिव्य उद्देश्य पर जोर देता है। जैसे ही हम एक नया साल शुरू करते हैं, हम मरियम और यूसुफ़ की तरह, अपने दिल में इन बातों पर विचार करें। हम येसु के उपहार को संजोकर रखें और उसके प्रेम को हर दिन हमारा मार्गदर्शन करने दें। आइए हम खुले दिल से ईश्वर के उपहार को अपनाएं और उनके उद्धार की खुशी को अपने आसपास की दुनिया के साथ साझा करें।
✍ - फादर पॉल राज (भोपाल महाधर्मप्रान्त)
We find ourselves in Bethlehem, where the shepherds, after receiving the joyful news from the angels, hurry to see the newborn Savior. As they arrive, they find Mary, Joseph, and the baby lying in a manger, just as the angels had proclaimed. What strikes us is the simplicity of the setting - a humble stable, a young couple, and a tiny baby named Jesus. Yet, in this simplicity, something extraordinary is happening. God’s Son has come into the world, not in a grand palace, but in the quiet simplicity of a manger. The shepherds, simple and ordinary people, become the first witnesses to this miraculous event. They spread the news about the child, and all who heard marvelled at what the shepherds shared. The birth of Jesus is not a secret to be kept but a joy to be shared with the world. we encounter the significance of the name given to the child Jesus. The name means “God saves.” In this small, vulnerable baby, God’s plan for salvation unfolds. The Saviour has come to rescue us from sin, to bring light into our darkness, and to offer us the gift of eternal life. The child is named ‘Jesus’, the name given by the angel even before He was conceived. This act emphasizes the fulfilment of God’s promise and the divine purpose behind this child’s existence. As we start a new year, may we, like Mary and Joseph, ponder these things in our hearts. May we cherish the gift of Jesus and allow His love to guide us each day. Let us embrace God’s gift with open hearts and share the joy of His salvation with the world around us.
✍ -Fr. Paul Raj
आज सभी ख्रीस्तीय विश्वासी ख्रीस्त के देहधारण के अद्भुत रहस्य पर विचार करने तथा उसे हृदय में संजोये रखने के लिए बुलाये जाते हैं। चरवाहों ने अपनी प्रतिक्रिया ईश्वर के आगमन की उस महान घटना के लिए ईश्वर की महिमा और प्रशंसा करते हुए व्यक्त किया। आज कलीसिया उस विनम्र महिला पर विशेष ध्यान देती है जिसने अपने हृदय और गर्भ में असीम आनन्द के साथ ईश्वर को ग्रहण किया। उनका आनंद इतना महान था कि वह आत्मा से प्रभु की महिमा करने वाले एक गीत में परिणित हुआ। वह अपने भीतर ईश्वर के आनंदमय रहस्य का उत्सव मनाने से पीछे नही हट सकती थी। वह वास्तव में ईश्वर की माता है क्योंकि जिनको उन्होंने गर्भ में धारण किया, वह सच्चा ईश्वर ही है। इसलिए वह स्त्रियों में सबसे अधिक धन्य हैं। हम भाग्यशाली हैं कि हम नए साल की शुरुआत उनके साथ चरनी में लेटे दिव्य बालक पर नजर डालते हुए करते हैं। वह हम में से प्रत्येक के लिए आने वाले वर्ष में अपने प्यारे बेटे से प्रार्थना करती रहे।
✍ - फादर फ्रांसिस स्करिया
Today, all believers are called upon to ponder over and treasure in the heart the amazing mystery of the Incarnation of Christ. The instant response of the shepherds was to glorify and praise God for the great event of God coming down to be with human beings. Today the Church pays a special attention to the humble woman who received God in her heart and in her womb with immeasurable Joy. Her joy was so great that it broke into a song emerging from the soul glorifying God. She could not but celebrate the joyful mystery of God in her. She is truly the Mother of God because the son she conceived is true God. That is why she is the most blessed among women. We are fortunate to begin the New Year gazing at the divine child in the manger with her. May she intercede with her Son throughout the coming year for each one of us.
✍ -Fr. Francis Scaria
आज जब हम नए साल के पहले दिन की शुरुआत करते हैं तो हम पहले पाठ के शब्दों के साथ ईश्वर से पूरे साल पर आशीष माँगें। आज माता कलीसिया ईश माता मरियम का पर्व मनाती है. यह उचित है कि हम इस नए साल को माता मरियम की ममता की छांव तले शुरू करें। कलीसिया की शिक्षाओं द्वारा हमें माता मरियम के ईश माता होने का ज्ञान मिलता है। लेकिन सवाल उठ सकता है कि माता मरियम जो कि हमारी ही तरह नश्वर मनुष्य होते हुए, उस ईश्वर की जो अनश्वर है, जिसका आदि और अंत नहीं है, उस सृजनहार की माता कैसे कहला सकती है? एक मनुष्य जिसकी रचना स्वयं ईश्वर ने की हो वही अपने सृष्टिकर्ता और सर्वशक्तिमान ईश्वर की माता कैसे हो सकती है? इस सवाल का जवाब दूसरे सवाल के जवाब में छिपा है और वह सवाल है कि प्रभु येसु मनुष्य हैं, या ईश्वर हैं, या दोनों हैं?
ये सवाल और इसी तरह के अनेक सवाल कलिसिया के प्रारम्भ में उठे और उनका अध्ययन किया और कलिसिया के धर्मपिताओं एवं बड़े-बड़े विद्वानों ने यह घोषित किया कि प्रभु येसु पूर्ण मनुष्य और पूर्ण ईश्वर थे। (एफ़ेसुस की समिति ४३१ ईसवी)। वह अंशतः ईश्वर और अंशतः मनुष्य नहीं, अथवा कुछ समय के लिए ईश्वर और कुछ समय के लिए मनुष्य नहीं थे, बल्कि पूर्ण ईश्वर और पूर्ण मनुष्य थे। प्रभु येसु का मनुष्य स्वभाव और ईश्वरीय स्वभाव दोनों अभिन्न थे, क्योंकि उन्होंने हमें पूर्ण ईश्वर और पूर्ण मनुष्य होते हुए मुक्ति दिलाई। अगर वह केवल इंसान थे तो उनकी मृत्यु से मानवजाति को कोई लाभ नहीं, अगर वह सिर्फ़ ईश्वर थे, तो ईश्वर हमारे लिए मर नहीं सकता। चूँकि प्रभु येसु पूर्ण मनुष्य और पूर्ण ईश्वर थे, तभी वे हमारे मुक्तिदाता हो सकते हैं। यदि माता मरियम प्रभु येसु के मनुष्य रूप की माँ है तो वह उनके ईश्वरीय रूप की भी माँ है, क्योंकि ये दोनों अविभाजित और अभिन्न हैं। यदि प्रभु येसु ईश्वर हैं, और मरियम प्रभु येसु की माता है तो वह ईश्वर की माता भी कही जा सकती हैं।
आइए हम इस नव वर्ष को माता मरियम के द्वारा ईश्वर को चढ़ाएँ, वही माता जिसका पुत्र उसकी आज्ञा को कभी नहीं नकार सकता। ईश माता मरियम हमारे लिए प्रार्थना करती रहे, हमारी देख-भाल करती रहे और हमें अपने पुत्र, हमारे मुक्तिदाता की ओर आने की राह दिखाती रहे। आमेन।
✍ -फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)
Today as we begin the very first day of this new year, we ask the Lord to bless us through the words of blessing from the first reading. Today mother church celebrates the Feast of Mary - mother of God. It is most appropriate that we start this fresh new year in the motherly care of our beloved mother. We learn from the teachings of the church about Mary being mother of God. But question may arise, how Mary who is a mortal human being like you and me and God who is creator of all and who has no beginning or end, be God’s mother? How a human being created by God be the mother of creator and all powerful God? The answer to this question is hidden in the answer about whether Jesus is God or man or both?
These and many similar questions were raised and discussed during the early beginnings of the Church, where the church fathers and great scholars established that Jesus Christ was fully human and fully God, (Council of Ephesus 431 AD). He was not partially God and partially man or sometimes God and sometimes human. These both natures of God are inseparable because Jesus saved us being truly God and truly human. If he had only been fully human, his death would do nothing to help us, had he been entirely God, he could not have died for us. It is the very fact that Jesus was fully human and fully God that makes Jesus our saviour. So if mother Mary is the mother of human Jesus, then she is also mother of divine Jesus, because both are same and cannot be separated. And if Jesus is God and Mary is mother of Jesus then Mary is mother of God.
Let us offer this new year to God through Mother Mary, to whom he can never deny a favour. May mother of God continue to intercede for us and take care of us and continue to show the way to her Son Jesus our Saviour. Amen.
✍ -Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)
अगर आप साधारण विश्वासियों से पूछेंगे कि आप माँ मरियम को ईश्वर की माता क्यों मानते हैं, तो शिक्षित विश्वासी लोग शायद आप को जवाब देंगे कि माँ मरियम ने येसु को जन्म दिया; येसु ईश्वर हैं और इसलिए माँ मरियम ईश्वर की माँ हैं। लेकिन अगर हम प्रभु येसु से ही पूछते हैं कि आप माँ मरियम को अपनी माँ क्यों मानते हैं तो येसु हम से कहेंगे कि उन्होंने ईश्वर के वचन को विनम्रता से स्वीकार किया, उसे अपने हृदय में संचित रखा और उसका अपने जीवन में पालन किया। प्रभु कहते हैं, “मेरी माता और मेरे भाई वही है, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं (लूकस 8:21)।
दरअसल जब कभी कोई अपनी माता के बारे में सोचता है, शायद ही वह इस बात को याद करता है कि उसने मुझे जन्म दिया है, बल्कि माँ के प्यार, बलिदान की भावना, ममता तथा कुर्बानियों को ही याद करता है।
आज हम ईशमाता कुँवारी मरियम का त्योहार मना रहे हैं। यह त्योहार हमें यह बताता है कि ईश्वर कितने उदार है, कि ईश्वर की आज्ञाओं का विनम्रता के साथ पालन करने वालों को ईश्वर कितना ऊपर उठाते हैं। अपनी सृष्टि में से ही किसी को वे माँ कहते हैं और उन्हें आदर और सम्मान से विभूषित करते हैं। वे उन्हीं से सीखने और अन्य मानवों की तरह उनके गर्भ में नौ महीनों तक रहते हैं।
कई बार हम प्रार्थना करते हैं, “हे परमेशवर की पवित्र माँ हमारे लिए प्रार्थना कर, कि हम ख्रीस्त की प्रतिज्ञाओं के योग्य बन जायें”। माता मरियम अपने आप को प्रभु की दासी मानती हैं। यह उनकी विनम्रता का प्रमाण है। इस विनम्रता के कारण वे ईश्वर की प्रतिज्ञाओं के योग्य बन गयी। इसी कारण ईश्वर ने माँ मरियम को सभी मानवों में धन्य बनाया। माँ मरियम स्वयं यह घोषित करती हैं कि सर्वशक्तिमान ने ही उन्हें महान बना दिया है।
संत लूकस हमें बताते हैं कि प्रभु येसु के प्रवचन सुन कर, उससे प्रभावित हो कर “भीड़ में से कोई स्त्री उन्हें सम्बोधित करते हुए ऊँचे स्वर में बोल उठी, ’’धन्य है वह गर्भ, जिसने आप को धारण किया और धन्य हैं वे स्तन, जिनका आपने पान किया है!” (लूकस 11:27) लेकिन प्रभु की प्रतिक्रिया पर ध्यान दीजिए। उन्होंने उत्तर दिया, “ठीक है; किन्तु वे कहीं अधिक धन्य हैं, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं” (लूकस 11:28)।
हमें भी मातृत्व को गर्भधारण तथा स्तनपान कराने तक सीमित नहीं रखना चाहिए। मातृत्व एक काम नहीं है बल्कि एक संबंध है। हाँलाकि नाभिरज्जु (umbilical cord) बच्चे के जन्म के समय काट दिया जाता है, विश्वासी लोग ईशवचन के द्वारा जो संबंध स्थापित करते हैं, वह बना रहता तथा दिन प्रतिदिन मजबूत होता जाता है। माँ को केवल बच्चों तथा पति के लिए काम करते रहने वाली एक महिला के रूप में देखना एक बहुत ही संकुचित दृष्टिकोण है। आज के समाज की यह वास्त्तविकता है कि माताओं को वह स्थान नहीं दिया जाता है जो असल में उनका है।
माँ मरियम उन सब महिलाओं का प्रतीक है जो माँ होने के कारण बलिदान, उदारता, ममता तथा समर्पण का जीवन बिताती हैं। जब ईश्वर ने स्त्री की सृष्टि की थी, तब उन्होंने उसे एक ’उपयुक्त सहयोगी’ (उत्पत्ति 2:18) के रूप में सृष्ट किया था। हम भी दृढ़संकल्प करें कि हम भी माँ मरियम के समान विनम्र और उदार बनें ताकि उन्हीं के समान ईश्वर के कृपापात्र बन सकें।
- फादर फ्रांसिस स्करियाआज हम ईशमाता मरियम के साथ नए साल की शुरुआत कर रहे हैं। हम उन्हें ईश्वर के पवित्र वचन पर मनन करते हुए पाते हैं। यह किसी भी ख्रीस्तीय विश्वासी के लिए एक आदर्श है। यह केवल एक पल का कार्य नहीं है, बल्कि एक निरंतर स्वभाव है। स्तोत्रकार कहता है, “जो प्रभु का नियम हृदय से चाहता और दिन-रात उसका मनन करता है, वह उस वृक्ष के सदृश है, जो जलस्रोत के पास लगाया गया, जो समय पर फल देता है, जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। वह मनुष्य जो भी करता है, सफल होता है।” (स्तोत्र 1:2-3) विधि-विवरण 4:4 में प्रभु का वचन कहता है,"जो अपने प्रभु-ईश्वर के प्रति ईमानदार बने रहे, तुम सब-के-सब आज तक जीवित हो।"। वास्तव में जीवित रहने के लिए हमें जीवन के स्रोत ईश्वर से जुडे रहने की आवश्यकता है। यह वही है जो कुँवारी मरियम ने ईश्वर के वचन को अपने दिल में रखकर किया था। शारीरिक रूप से प्रभु येसु नौ महीने तक मरियम के कोख में थे, लेकिन आध्यात्मिक रूप से वे माता मरियम में हमेशा थे। जैसा कि हम नए साल की शुरुआत कर रहे हैं, आइए हम भी इस वर्ष के दौरान येसु से हमेशा जुड़े रहने का दृढ़संकल्प करें।
✍ -फादर फ्रांसिस स्करिया
Today we begin the New Year with Mary, the Mother of God. We find her pondering over the Word of God. This is a great disposition for any Christian. It is not just a one time action, but a continual disposition. The Psalmist says, “their delight is in the law of the Lord, and on his law they meditate day and night. They are like trees planted by streams of water, which yield their fruit in its season, and their leaves do not wither. In all that they do, they prosper.” (Ps 1:2-3) In Deut 4:4 the Word of God says, “those of you who held fast to the Lord your God are all alive today”. To be truly alive we need to be glued to God, the source of life. This is what our Lady did by treasuring the Word of God in her heart. Physically Jesus was in her for nine months, but spiritually He was in her all through her life. As we begin the New Year, let us resolve to be glued to Jesus during the course of this year.
✍ -Fr. Francis Scaria