काथलिक धर्मशिक्षा

माता मरियम की माला- विनती

माता मरियम के आदर में माला विनती की प्रथा कब से शुरू हुई – इस विषय में हमें कोई निश्चित जानकारी नहीं है। तीसरी और चौथी सदी में कुछ रेगिस्तानी मठवासी (Desert Fathers) रस्सियों में गठान बाँध कर उसे प्रार्थना के उपयोग में लाते थे। सन 431 की एफेसुस की महासभा के साथ मरियम-भक्ति को बढावा मिलने लगा। कुछ परम्परा के अनुसार सन 1214 में माता मरियम ने संत दोमिनिक को दर्शन दे कर उन्हें पवित्र माला प्रदान की थी।

सन 1569 में संत पापा पीयुस पाँचवें ने कलीसिया में औपचारिक रीति से माला विनती की शुरुआत की। सन 1571 में संत पापा पीयुस पाँचवें ने यूरोप के ख्रीस्तीय विश्वासियों से आग्रह किया कि वे लेपान्तो (Lepanto) की लड़ाई में विजय के लिए माला विनती की प्रार्थना करें। इस प्रार्थना के फलस्वरूप जब उन्हें विजय प्राप्त हुयी, तब उस विजय को उन्होंने अक्टूबर 7 तारीख को विजय की माता मरियम के त्योहार के रूप में मनाया। बाद में इस त्योहार का नाम बदल कर माला विनती की माता मरियम का त्योहार रखा गया।

सन 1883, सितंबर 1 तारीख को संत पापा लियो तेरहवें ने अपने लोक परिपत्र (encyclical) सुप्रेमी अपोस्तोलातुस ओफीचियो (Supremi Apostolatus Officio) में माला विनती को समाज को सतानेवाली बुराईयों का मुकाबला करने का सब से प्रभावशाली आध्यात्मिक हथियार बताया। उत्पत्ति 3:15 में ईश्वर कहते हैं, “मैं तेरे और स्त्री के बीच, तेरे वंश और उसके वंश में शत्रुता उत्पन्न करूँगा। वह तेरा सिर कुचल देगा और तू उसकी एड़ी काटेगा''। माला विनती संत योहन तेईसवें तथा संत योहन पौलुस द्वितीय की पसंदीदा प्रार्थना थी।

संत योहन पौलुस द्वितीय ने अपने लोक परिपत्र रोज़ारियुम विर्जिनिस मरिये (Rosarium Virginis Mariae) के द्वारा ज्योति के पाँच भेदों को माला विनती में शामिल किया।

माला विनती में हम येसु के पास्का रहस्यों को मनाते हैं। इस में गब्रिएल दूत के द्वारा माता मरियम को सन्देश देने की घटना से लेकर मुक्तिप्राप्त मानवजाति की प्रतिनिधि के रूप में माता मरियम के स्वर्गारोपण तथा मुकुटधारण तक की घटनाओं पर हम ध्यान-मनन करते हैं। हम माता मरियम के साथ मिल कर प्रभु येसु ख्रीस्त के रहस्यों पर ध्यान-मनन करते हैं। संत लूकस अपने सुसमाचार में दो बार हमें बताते हैं कि माता मरियम ने येसु के जीवन के रहस्यों को अपने हृदय में “संचित रखा” (लूकस 2:19, 51)। प्रेरित-चरित 1:12-15 में हम पाते हैं कि करीब 120 लोग प्रभु येसु के स्वर्गारोहण के बाद अटारी में माता मरियम के साथ पवित्र आत्मा की प्रतीक्षा में प्रार्थना कर रहे थे। तत्पश्चात्‍ पवित्र आत्मा उन सब पर उतरते हैं। जब कभी हम माला विनती करते हैं, हम उसी शिष्य-समुदाय के समान माता मरियम की चारों ओर एकत्र हो कर प्रार्थना करते हैं।

माला विनती में हम ईशवचन को दुहराते हैं। ’हे पिता हमारे’ प्रार्थना प्रभु की ही प्रार्थना है जिसे प्रभु ने अपने शिष्यों को सिखाया था। इसलिए हम इसे परिपूर्ण प्रार्थना कह सकते हैं। लूकस 1:28 के अनुसार स्वर्गदूत गब्रिएल ने माता मरियम को ’प्रणाम मरियम’ कह कर संबोधित किया था। यह पवित्र ग्रन्थ में एक असाधारण बात है कि किसी को भी स्वर्गदूत बडे आदर के साथ प्रणाम करते हैं। अकसर हम यह पाते हैं कि स्वर्गदूत को देख कर लोग भयभीत होते हैं और स्वर्गदूत गंभीरता से अपना सन्देश सुना कर चले जाते हैं। परन्तु माता मरियम के पास आकर स्वर्गदूत गब्रिएल उनको प्रणाम करते हैं। “प्रणाम मरिया, कृपापूर्ण प्रभु तेरे साथ है” – ये शब्द स्वर्गदूत के ही हैं। हम जानते हैं कि स्वर्गदूत ईश्वर के सन्देशवाहक होते हैं और ईश्वर की आज्ञा के अनुसार ही स्वर्गदूत अपने शब्दों का भी चयन करते हैं। पिता परमेश्वर ने ही स्वर्गदूत गब्रिएल को माता मरियम को इन शब्दों से संबोधित करने की आज्ञा दी थी।

“धन्य है तू स्त्रियों में और धन्य तेरे गर्भ का फल येसु” – ये एलिज़बेथ के शब्द हैं (लूकस 1:42)। स्वर्गदूत से सन्देश प्राप्त करने के बाद माता मरियम शीघ्रता से पहाडी प्रदेश में अपनी कुटुंबिनी एलिज़बेथ से मिलने जाती है। माता मरियम के अभिवादन सुन कर एलिज़बेथ यह कहती हैं। लूकस 1:41 से हमें यह भी मालूम पडता है कि यह बात एलिज़बेथ पवित्र आत्मा की प्रेरणा से कहती हैं।

इस प्रकार हमें यह मालूम होता है कि ’प्रणाम मरिया’ प्रार्थना का पहला भाग ईशवचन ही है। माला विनती में हम बार-बार ईशवचन को दुहराते हैं। इस प्रकार ईशवचन को दुहराने से क्या होता है? लूकस 6:45 कहता है, “अच्छा मनुष्य अपने हृदय के अच्छे भण्डार से अच्छी चीजे़ं निकालता है और जो बुरा है, वह अपने बुरे भण्डार से बुरी चीज़ें निकालता है; क्योंकि जो हृदय में भरा है, वहीं तो मुँह से बाहर आता है।” हम जिस ईशवचन को बार-बार दुहराते हैं, वे हमारे हृदय में एक अच्छा भण्डार बनते हैं। स्तोत्र 119:11 में पवित्र वचन कहता है, “मैंने तेरी शिक्षा अपने हृदय में सुरक्षित रखी, जिससे मैं तेरे विरुद्ध पाप न करूँ।” इस से यह साफ है कि पवित्र वचन को बार-बार दुहरा कर उस पर मनन चिंतन करने से हम पाप से दूर हो जाते हैं।

प्रणाम मरिया प्रार्थना के दूसरे भाग में हम माता मरियम की मध्यस्थता की याचना करते हैं। माता मरियम की मध्यस्थता की शक्ति हमें काना के विवाह-भोज (योहन 2:1-11) में देखने को मिलती है। माता मरियम के कहने पर प्रभु येसु अपना समय न आने पर भी पानी को अंगूरी में बदल कर अपना पहला चमत्कार करते हैं।

इस प्रकार हमें ज्ञात होता है कि माला विनती माता मरियम के साथ मिल कर प्रभु येसु के जीवन के रहस्यों पर ध्यान-मनन्‍ की प्रार्थना है। यह पवित्र वचन पर आधारित प्रार्थना है। यह आध्यात्मिकता में बढ़ने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है।


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