समूहों में चर्चा कीजिए।
इस घटना को पढ़िए और निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
एक पुरोहित ने अपने चर्च में एक इतवार के दिन विश्वासियों को बताया कि अगले इतवार को मैं आप लोगों को स्वर्ग के बारे में प्रवचन दूँगा। उस सप्ताह उन्हें एक बूढ़े बीमार व्यक्ति की चिट्ठी मिली। उसमें ऐसा लिखा गया था।
“मैंने सुना कि अगले इतवार को आप स्वर्ग के बारे में प्रवचन देने वाले हैं। मुझे इस विषय में बहुत रुचि है क्योंकि पिछले पचास सालों से वहाँ थोड़ी-सी सम्पत्ति मेरे नाम है। मैंने उसे नहीं खरीदा था। वह मुझे बगैर पैसे, बगैर कीमत दी गई थी। लेकिन जिसने मुझे वह ज़मीन दिलाई, उन्होंने बड़े बलिदान से मेरे लिए उसे खरीदा था। उसका अधिकार-पत्र हस्थान्तरणीय (transferable) नहीं है। वह खाली भी नहीं। पिछले पचास साल से मैं वहाँ के मेरे नये घर के निर्माण के लिए सामग्री भेजते आ रहा हूँ जिनसे विश्व के सबसे बड़े वास्तुकार मेरे लिए एक ऐसे निवासस्थान का निर्माण कर रहे हैं जिसे कभी मरम्मत करने की या नवीनीकृत करने की ज़रूरत नहीं होगी। वह घर कभी पुराना नही होगा। उसको दीमक नहीं खा सकता क्योंकि वह बहुत ही पुराने तथा मज़बूत पत्थर पर बना हुआ है। उसे आग या बाड़ से कोई नुकसान नहीं होगा। उसके दरवाज़ों पर किसी भी प्रकार का ताला या चटखनी नही लगती क्योंकि वहाँ कुकर्मी प्रवेश नहीं कर सकता है।
मेरा घर लगभग तैयार ही है जहाँ सुरक्षित तथा निड़र होकर अनन्तकाल तक मैं रह सकता हूँ। मुझे कभी उसमें से निष्कासित होने का डर नहीं है। मेरे अभी के निवासस्थान तथा स्वर्ग के मेरे नये निवास स्थान के बीच एक गहरी अन्धकारमय घाटी है। मैं इस अन्धकारमय घाटी से गुजरे बिना उस स्वर्णिम शहर में पहुँच नहीं सकता। लेकिन मुझे डर नहीं लगता क्योंकि मेरे परमप्रिय मित्र ने उस घाटी को पार करते समय वहाँ के अन्धकार को दूर किया था। पचपन साल पुरानी हमारी दोस्ती में उसने कभी भी, सुख-दुख में मेरा साथ नहीं छोडा। उसने मुझे लिखित में एक शपथपत्र भी दिया कि वह मुझे अकेला कभी नहीं छोडेगा। जब मैं उस गहरी घाटी से होकर चलूँगा तब भी वह मेरा साथ नहीं छोडे़गा। इसलिए मुझे भटकने या कुछ हानि पहुँचने का डर बिलकुल नहीं है। मुझे अगले इतवार को आपका प्रवचन सुनने की बडी इच्छा है, परन्तु मैं शायद ही वहाँ आ पाऊँगा क्योंकि मेरे टिकट में कोई तारीख नहीं डाली गई है, मुझे कभी भी बुला लिया जायेगा। यह टिकट सिर्फ जाने का है, वापस आने का नहीं और कोई भी सामान साथ में ले जाने की अनुमति नहीं है। मैं मेरी यात्रा के लिए तैयार हूँ। इसलिए अगले इतवार को चर्च में स्वर्ग के बारे में आपका प्रवचन सुनने के लिए मैं नहीं आ पाऊँगा, लेकिन एक दिन मैं वहाँ पर आपसे जरूर मिलने की आशा रखता हूँ।”
प्रश्न:-
1. इस कहानी में किन-किन बातों का ज़िक्र किया गया है? प्रत्येक बिन्दु पर प्रकाश डालिए।
2. आप स्वर्ग के बारे में क्या जानते है?
3. स्वर्ग और नरक के बारे में आप के क्या विचार हैं?
रविन्द्र नाथ टैगौर ने एक बार कहा था, “मरण प्रकाश को बुझाना नही, बल्कि भोर होने पर दीप को बुझाना है”। जीवन में हम बढ़ते और बूढे हो जाते हैं। इस दुनिया में मृत्यु हमारे जीवन का सामान्य अन्त है। मृत्यु हमें याद दिलाती है कि इस लोक में हमारे जीवन का समय सीमित है। मृत्यु का विचार हमें सीमित समय में ही अपने क्षणभंगुर जीवन को सार्थक बनाने की प्रेरणा देता है। पाप के कारण मृत्यु ने दुनिया में प्रवेश किया (देखिए रोमियों 5:12)। हम विश्वास करते हैं कि जिस प्रकार ख्रीस्त मृतकों में से जी उठे, उसी प्रकार सभी मनुष्य मृत्यु के बाद जी उठेंगे। धर्मियों को स्वर्ग में अनन्त सुख प्राप्त होगा और पापी नरक में अनन्त दण्ड भोगेंगे।
पुराने व्यवस्थान में भी पुनरुथान की आशा झलकती है। नबियों के ग्रन्थों में हम पुनरुथान के बारे में पढ़ते हैं। नबी इसायाह कहते हैं, “तेरे मृतक फिर जीवित होंगे, उनके शरीर फिर खड़े हो जायेंगे। तुम जो मिट्टी में सो रहे हो, जाग कर आनन्द के गीत गाओगे; क्योंकि तेरी ओस ज्योतिर्मय है और पृथ्वी के मृतकों को पुनर्जीवित कर देगी।” (इसायाह 26:19) दानिएल कहते हैं, “जो लोग पृथ्वी की मिट्टी में सोए हुए थे, वे बड़ी संख्या में जाग जायेंगे, कुछ अनंत जीवन के लिए और कुछ अनंत काल के लिए तिरस्कृत और कलंकित होने के लिए।” (दानिएल 12:2) मक्काबियों के दूसरे ग्रन्थ में हम देखते हैं कि इसी आशा को लेकर एक माँ के सात पुत्र ईश्वर में उनके विश्वास के खातिर अपने आप को मृत्यु के लिए समर्पित करते हैं। (पढ़िए 2 मक्काबियों 7:9-14)
सुसमाचार में हम पढ़ते हैं कि येसु ने कुछ व्यक्तियों को अपना शारीरिक जीवन लौटा दिया। (देखिए योहन 11; मत्ती 9:18-20; लूकस 7:11-15) ये लोग अपने शारीरिक जीवन में लौट आये थे और उन्हें कुछ समय बाद मृत्यु को स्वीकार करना पड़ा। परन्तु प्रभु येसु ने अपनी मृत्यु के द्वारा मृत्यु पर ही विजय पायी। सन्त पौलुस सवाल करते हैं, “मृत्यु कहाँ है तेरी विजय? मृत्यु कहाँ है तेरा दंश? (1 कुरिन्थियों 15:55)”
हम सब हमारी मृत्यु के बाद पुनर्जीवित होंगे। संत पौलुस कुरिन्थियों को लिखते हुए कहते हैं, “यदि हमारी शिक्षा यह है कि मसीह मृतकों में से जी उठे, तो आप लोगों में कुछ यह कैसे कह सकते हैं कि मृतकों का पुनरुत्थान नहीं होता? यदि मृतकों का पुनरुत्थान नहीं होता, तो मसीह भी नहीं जी उठे। यदि मसीह नहीं जी उठे, तो हमारा धर्मप्रचार व्यर्थ है और आप लोगों का विश्वास भी व्यर्थ है।” (1 कुरिन्थियों 15:12-14) इसी संदर्भ में सन्त पौलुस यह भी कहते हैं कि मृत्यु के बाद पुनरुत्थान के समय ईश्वर हम में से हरेक व्यक्ति को अपनी इच्छा के अनुसार एक अनश्वर शरीर प्रदान करते हैं। सन्त पौलुस सिखाते हैं कि अंतिम तुरही बजते ही हम सब के सब पुनर्जीवित होकर रूपान्तरित हो जायेंगे (देखिए 1 कुरिन्थियों 15:52)।
इस दुनिया में जन्म लेते समय प्रभु येसु ने मानव स्वभाव अपनाया। इसी कारण उनको अन्य मनुष्यों के समान ही मृत्यु का भी सामना करना पड़ा। उन्होंने मृत्यु को अपने पावन पिता की इच्छा तथा मानव मुक्ति का मार्ग मानकर स्वीकार किया। आज्ञापालन के द्वारा उन्होंने मृत्यु के शाप को आषिष में बदल दिया। प्रभु येसु के कारण हमारी मृत्यु को एक सकारात्मक अर्थ प्राप्त हुआ है। संत पौलुस कहते हैं, “मेरे लिए तो जीवन है- मसीह, और मृत्यु है उनकी पूर्ण प्राप्ति” (फिलिप्पियों 1:21)।
ख्रीस्तीय विश्वासी पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते हैं। “मनुष्यों के लिए एक ही बार मरना और इसके बाद उनका न्याय होना निर्धारित है” (इब्रानियों 9:27)। कलीसिया हमें सिखाती है कि हम अच्छी मृत्यु के लिए अपने को तैयार करें। ’प्रणाम मरिया’ प्रार्थना में हम माता मरियम से हमारी मृत्यु के समय हमारे लिए प्रार्थना करने की अर्जी करते हैं। परम्परा के अनुसार, सन्त यूसुफ की मृत्यु के समय माता मरियम और प्रभु येसु उनके पास थे। इससे अच्छी मृत्यु किसको प्राप्त हो सकती है? प्रभु येसु एवं माता मरियम की उपस्थिति में मृत्यु को अपनाना- इससे अच्छा सौभाग्य किसे प्राप्त हो सकता है? विश्वासी गण इसी कारण संत यूसुफ को अच्छी मृत्यु के संरक्षक सन्त मानते हैं। जहाँ तक संभव हो कलीसिया विश्वासियों की मृत्यु के समय उन्हें परम प्रसाद देती है। इस परम प्रसाद को वियातिकुम (Viaticum) कहते हैं जिसका अर्थ “यात्रा के लिये रसद”। यह बात इस सच्चाई की पुष्टि करती है कि हमारी मृत्यु जीवन का विनाश नहीं बल्कि विकास है। इस दुनिया में अपनी तीर्थ यात्रा का एक पड़ाव पूरा करके मृत्यु के समय हम दूसरे पड़ाव को शुरू करते हैं।
बाइबिल के अनुसार मृत्यु पाप का फल है। “पाप का वेतन मृत्यु है, किन्तु ईश्वर का वरदान है- हमारे प्रभु ईसा मसीह में अनन्त जीवन” (रोमियों 6:23)।
हमारी मृत्यु के समय हमारी आत्मा हमारे शरीर से अलग हो जाती है। बाइबिल हमें यह ज्ञात कराती है कि प्रत्येक व्यक्ति के मरने के समय एक व्यक्तिगत न्याय होता है। अमीर और लाज़रुस के दृष्टान्त में प्रभु कहते हैं, “वह कंगाल एक दिन मर गया और स्वर्गदूतों ने उसे ले जाकर इब्राहीम की गोद में रख दिया” (लूकस 16:22) इसी प्रकार अमीर मर कर नरक पहुँच जाता है। लूकस के सुसमाचार 23:43 में हम देखते हैं कि प्रभु येसु क्रूस पर उनके साथ चढ़ाये गये कुकर्मी को आश्वासन देते हैं, “मैं तुम से यह कहता हूँ, तुम आज ही परलोक में मेरे साथ होगे”। इस प्रकार हम देखते हैं कि एक व्यक्ति के मरने के समय ही उसका व्यक्तिगत न्याय होता है। फ्लाॅरेन्स की महासभा (1431-1439) में यह सिखाया गया कि मृत्यु के तुरन्त बाद ही व्यक्तिगत न्याय होता है और आत्मा तुरन्त ही स्वर्ग, शोधन-स्थान अथवा नरक में प्रवेश करती है।
स्वर्ग ईश्वर का निवास है जहाँ भले लोग अपने पुनर्जीवित शरीर में सन्तों और स्वर्गदूतों के साथ ईश्वर के दर्शन के आनन्द का अनुभव करते हैं। स्वर्ग ईश्वर से जुड़े रहने का वह आनन्दप्रद अनुभव है जो प्रभु येसु हमें दिलाते हैं। सिर्फ पवित्र और निष्कलंक लोग ही स्वर्ग में प्रवेश पा सकते हैं। जो मृत्यु पर शुद्ध पाये जाते हैं या शोधन-स्थान में शुद्ध किये गये हैं, उनके स्वर्ग-प्रवेश में विलंब नहीं होता। नरक वह अवस्था है जहाँ अपने घोर पापों पर पश्चात्ताप न करने वाले पापी मनुष्य अनन्त दण्ड़ भोगते हैं। वहाँ लोग न केवल ईश्वर की उपस्थिति तथा सामिप्य से वंचित रहते हैं, बल्कि पीड़ा का अनुभव भी करते हैं। प्रभु येसु ने अपनी शिक्षा में नरक के बारे में स्पष्ट शब्दों में सिखाया था। मत्ती 5:22 में प्रभु कहते हैं, “... यदि वह कहे, ’रे नास्तिक! तो वह नरक की आग के योग्य ठहराया जायेगा”। मत्ती 5:29 में प्रभु कहते हैं, “यदि तुम्हारी दाहिनी आँख तुम्हारे लिए पाप का कारण बनती है, तो उसे निकाल कर फेंक दो। अच्छा यही है कि तुम्हारे अंगों में एक नष्ट हो जाये, किन्तु तुम्हारा सारा शरीर नरक में न डाला जाये।” मत्ती 10:28 में प्रभु कहते हैं कि हमें सिर्फ उनसे डरना चाहिए जो शरीर और आत्मा, दोनों का नरक में सर्वनाश कर सकता है।
स्वर्ग और नरक के बीच की वह मध्यवर्ती अवस्था को शोधन-स्थान कहा जाता है, जहाँ मनुष्य जिसकी आत्मा ईश्वर से मिलने के योग्य नहीं पाई जाती है, मृत्यु के बाद वह दण्ड भोगता है जिसके द्वारा स्वर्ग के अनंत सुख में प्रवेश करने के लिए वह तैयार किया जाता है। इसी कारण हम मृतकों की आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। हमारी प्रार्थनाएं तथा प्रायष्चित्त-कार्य शोधन-स्थान में रहने वाली आत्माओं को मददगार साबित हो सकते हैं।
हमारे प्रियजनों तथा संबंधियों की मृत्यु पर हम शोक तो अवष्य मनाते हैं। लेकिन संत पौलुस का कहना है, “कहीं ऐसा न हो कि आप उन लोगों की तरह शोक मनायें, जिन्हें कोई आशा नहीं है।... जो ईसा में विश्वास करते हुए मरे, ईश्वर उन्हें उसी तरह ईसा के साथ पुनर्जीवित कर देगा।” (1 थेसलनीकियों 4:13-14)
कलीसिया सिखाती है कि प्रभु येसु के दूसरे आगमन पर अन्तिम न्याय होगा। प्रभु येसु मत्ती के सुसमाचार, अध्याय 25, वाक्य 34 से 46 तक में इस का विवरण देते हैं। तब मानव पुत्र सब स्वर्गदूतों के साथ अपनी महिमा में आयेंगे और अपने महिमामय सिंहासन पर विराजमान होकर सारी मानव जाति का न्याय करेंगे। उस समय सभी मृतकों का पुनरुथान होगा। भले और बुरे, सभी ईश्वर के सिंहासन के सामने एकत्र किये जायेंगे। प्रभु के अनुसार हमारे न्याय का मानदण्ड भूखों, प्यासों, नंगों, बीमारों, परदेसियों तथा बंदियों की सेवा पर आधारित है। संत पेत्रुस का यह कहना है कि प्रभु की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नये आकाश और नई पृथ्वी की प्रतीक्षा कर रहे हैं (देखिए 2 पेत्रुस 3:13)। सन्त पौलुस कहते हैं, “समस्त सृष्टि उत्कण्ठा से उस दिन की प्रतीक्षा कर रही है, जब ईश्वर के पुत्र प्रकट हो जायेंगे” (रोमियों 8:19)।
प्रश्न:-
1. बाइबिल पुनरुथान के बारे में क्या कहती है?
2. मृत्यु के बाद के जीवन को याद कर हमें उस जीवन के लिए किस प्रकार अपने आप को तैयार करना चाहिए?
3. हमें इस संसार की वस्तुओं का किस प्रकार उपयोग करना चाहिए?
4. मृतकों के लिए हमें क्यों प्रार्थना करना चाहिए?
5. अंतिम न्याय के बारे में मत्ती 25:34-46 क्या शिक्षा देता है?