अपने प्रवचन के दौरान लोगों के संदेहों को दूर करते हुये संत योहन बपतिस्ता ने उन्हें यह समझाया कि वह स्वयं मसीह नहीं है, बल्कि मसीह के लिये मार्ग तैयार करने वाला है। उन्होंने मसीह के विषय में कहा, ’’वह तुम लोगों को पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देंगे।’’ (लूकस 3:16) संत यूसुफ माता मरियम को उनके एक साथ रहने के पहले ही गर्भवती पाते हैं तथा वे चुपके से उनका परित्याग करने की सोच रहे थे। तब स्वर्गदूत स्वप्न में उन्हें दिखाई देते हुये कहते हैं कि वे मरियम को स्वीकार करने से न डरे, क्योंकि उनका गर्भ पवित्र आत्मा से है। स्वर्गराज्य के आगमन की घोषणा करते हुये तथा अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करते हुये नाज़रेत के सभागृह में प्रभु येसु ने नबी इसायाह की पुस्तक खोलकर वह स्थान निकाला, जहाँ लिखा है, ’’प्रभु का आत्मा मुझपर छाया रहता है क्योंकि उसने मेरा अभिषेक किया है’’ (लूकस 4:18)। प्रभु ने पुस्तक बंद कर दी। सभागृहों के सब लोगों की आँखें उन पर टिकी हुई थी। तब उन्होंने कहा, ’’धर्मग्रंथ का यह कथन आज तुम लोगों के सामने पूरा हो गया है’’। (लूकस 4:21)
प्रभु येसु पवित्र आत्मा से परिपूर्ण थे। पवित्र आत्मा ही पिता और पुत्र को जोड़ते हैं। पिता और पुत्र की एकता तथा पारस्परिक प्रेम की शक्ति पवित्र आत्मा है। अपने जीवन काल में प्रभु ने ही अपने शिष्यों को आश्वासन दिया था कि मैं तुम्हें अनाथ छोड़कर नहीं जाऊँगा। (योहन 14:18) उन्होंने कहा, ’’मैं पिता से प्रार्थना करूँगा और वह तुम्हें एक दूसरा सहायक प्रदान करेगा, जो सदा तुम्हारे साथ रहेगा। वह सत्य का आत्मा है।’’ (योहन 14:16-17)
प्रेरित-चरित में हम पाते हैं कि शिष्यों ने इस पर विश्वास किया तथा इस कथन को वास्तविकता में तब्दील होते पाया। माता मरियम के साथ मिलकर प्रेरित पवित्र आत्मा के उतरने के लिये लगातार प्रार्थना करते रहे। आगे हम कलीसिया के इतिहास में पाते हैं कि ’’आत्मा में बपतिस्मा’’ का अनुभव प्रेरितों के साथ ही खत्म नहीं हुआ। लोगों को बपतिस्मा देने के बाद, जब प्रेरितों ने उनपर हाथ रखा, तब लोगों पर पवित्र आत्मा उतरे (देखिए प्रेरित-चरित 8:17; 10:44)। पवित्र आत्मा आदिम कलीसिया में अपनी उपस्थिति का सभी विश्वासियों को अनुभव कराते थे। कई लोग पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर भविष्यवाणी करते थे, चमत्कार दिखाते थे, रोगियों को चंगा करते थे, अन्य भाषायें बोलते थे तथा प्रभावशाली ढंग से स्वर्गराज की घोषणा करते थे। पवित्र आत्मा बपतिस्मा प्राप्त सभी विश्वासियों को अपना मंदिर बनाते हैं तथा उनमें उपस्थित रहकर ईश्वर के राज्य के अनुकूल कार्य करने की शक्ति प्रदान करते हैं। काथलिक कलीसिया में दृढ़ीकरण संस्कार के द्वारा विश्वासी पवित्र आत्मा से विशेष रूप से अंकित किये जाते हैं।
पवित्र आत्मा को कई लोग ’अज्ञात ईश्वर’ भी कहते हैं। इसका कारण यह है कि पवित्र आत्मा को कई लोग भूल जाते हैं। पुराने व्यवस्थान में हम इस्राएली जनता के जीवन से संबंधित घटनाओं का विवरण पाते हैं। इन घटनाओं में हम देखते हैं कि पिता ईश्वर इस्राएलियों के बीच उपस्थित रहकर उनको मार्गदर्शन देते हैं तथा उनकी मदद करते हैं। प्रभु येसु ने अपने जीवनकाल में लोगों को ईश्वर का मानवीय अनुभव कराया। कई लोगों की प्रवणता यह है कि वे पिता ईश्वर तथा पुत्र ईश्वर को याद करते हैं परन्तु जिस पवित्र आत्मा को पिता और पुत्र विश्वासियों के साथ रहने के लिये प्रदान करते हैं उन्हें वे भूल जाते हैं। वास्तव में पवित्र आत्मा ही हमें यह अनुभव कराते हैं कि हम सचमुच ईश्वर की संतान है। पवित्र आत्मा की शक्ति से ही हम ईश्वर को ’अब्बा’ कहकर पुकार सकते हैं। (देखिये रोमियों 8:15-16) पवित्र आत्मा हमारी दुर्बलता में हमारी मदद करते हुये हमें प्रार्थना करना सिखाते हैं। ’’हमारी अस्पष्ट आहों द्वारा आत्मा स्वयं हमारे लिये विनती करता है।’’ (रोमियों 8:26) ख्रीस्तीय जीवन में पवित्र आत्मा की इतनी बड़ी भूमिका होने के बावजूद भी विश्वासी इन्हें भूल जाते हैं। ख्रीस्तीय जीवन को गंभीरता से न लेने के कारण ही हम पवित्र आत्मा को भूल जाते हैं।
आत्मा में बपतिस्मा के नये अनुभव की शुरुआत काथलिक कलीसिया में फरवरी, सन् 1967 में हुई जब अमरिका के डुकैन्से विश्वविद्यालय (Duquesne University) में प्रार्थनारत विद्यार्थियों का एक समूह एक नये पेन्तेकोस्त के अनुभव के लिये प्रार्थना कर रहा था। इस में से अधिकांश लोगों को आत्मा में बपतिस्मा का अनुभव हुआ और उन्होंने अपने इस अनुभव को दूसरों के साथ प्रार्थना में बांटा। उनके इस अनुभव के कारण वे प्रार्थना तथा येसु के साथ अपने व्यक्तिगत संबंधों में नवीन बन गये। अब वे अत्याधिक उत्साह तथा उमंग के साथ अपने काथलिक विश्वास में और अधिक ज्ञान अर्जित करने तथा येसु के संदेश को दूसरों तक पहुँचाने में पवित्र आत्मा के वरदानों का उपयोग करने लगे। इस तरह के प्रयासों का कलीसिया में बेहद गहरा प्रभाव पड़ा तथा परिणामस्वरूप अमेरिका में राष्ट्रीय सेवा समिति (National Service Committee) तथा इटली में अंतराष्ट्रीय काथलिक करिश्माई नवीनीकरण सेवा (International Catholic Charismatic Renewal Services) का गठन हुआ। आत्मा में बपतिस्मा के नवीनीकरण ने लाखों लोगों के हृदयों को छुआ। दुनिया भर के लाखों-करोडों लोग पिछले चालीस वर्षों से इस ईश्वरीय अनुभव की गवाही देते आ रहे हैं। ’’आत्मा में बपतिस्मा’’ के अनुभव के बाद ख्रीस्तीय विश्वासी अपनी पल्लियों, समाज तथा मिशनरी कार्यों में अधिक तंमयता तथा कत्र्तव्यनिष्ठा के साथ जुड़ते जा रहे हैं।
संत पापा योहन पौलुस द्वितीय ने इस नवीनीकरण को ’’कलीसिया को पवित्र आत्मा का वरदान बताया’’ (संत पापा याहन पौलुस की अन्तरर्राष्ट्रीय काथलिक करिश्माई नवीनीकरण कार्यालय के सदस्यों के साथ भेंट, 12 मार्च 1992)। सन् 2004 को पेन्तेकोस्त की पूर्व संध्या पर संत पापा ने कहा, ’’करिश्माई नवीनीकरण आन्दोलन के कारण हज़ारों ख्रीस्तीय- स्त्री तथा पुरूष, युवा एवं वयस्क आदि ने अपने जीवन में पेन्तेकोस्त को जीवंत वास्तविकता के रूप में पुनः पाया है। मैं आशा करता हूँ कि पेन्तेकोस्त की आध्यत्मिकता कलीसिया में प्रार्थना, पवित्रता, भाईचारे तथा सुसमाचार के प्रचार प्रसार को फैलाएगी।’’ काथलिक करिश्माई नवीनीकरण आन्दोलन के अंतर्गत विश्वासी पुनः उस अनुभव को पाना चाहते हैं जिसे ईश्वर ने पेन्तेकोस्त के दिन प्रेरितों को दिया था। हालाँकि प्रेरितों का अनुभव अनोखा था तथा कलीसिया में उनकी भूमिका अनन्य है, विश्वासियों का यह विश्वास तथा आशा है कि ईश्वर आज भी प्रार्थनारत विश्वासियों पर पवित्र आत्मा भेजकर उन्हें सुसमाचार की घोषणा करने की शक्ति प्रदान करते हैं। करिश्माई नवीनीकरण पवित्र आत्मा की शक्ति से विश्वासी की येसु एवं कलीसिया के प्रति व्यक्तिगत वचनबद्धता को दृढ़ एवं नूतन बनाता है। जैसा कि पेंतेकोस्त के दिन हुआ था। (पे्ररित चरित 2) यही वचनबद्धता कलीसिया के हर वास्तविक नवीनीकरण का केन्द्र रहा है।
इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब कलीसिया अपने रास्ते से भटकती दिखी या उसमें सांसारिकता बलवत् होती दिखी, तब-तब पवित्र आत्मा की शक्ति अपने वरदानों के साथ उसपर उतरी तथा कलीसिया का मार्गदर्शन करती गई।
सन् 1972 में मेलाईस (बेल्जियम) के महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल लियो जोसफ ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान स्वयं व्यक्तिगत रूप से ख्रीस्तीय नवीनीकरण का अनुभव किया। उनके इस अनुभव ने उनके जीवन को पूरी तरह बदल दिया। अपने अनुभव के बारे में बताते हुये वे कहते हैं, ’’करिश्माई नवीनीकरण आन्दोलन एक आन्दोलन न होकर पवित्र आत्मा का गतिमान होना है जो हर ख्रीस्तीय विश्वासी या याजक तक पहुँच सकता है।’’ संत पापा पौलुस छठवें ने कार्डिनल लियो जोसफ को करिश्माई नवीनीकरण का नेतृत्व करने तथा उसको प्रोत्साहित करने का निमंत्रण दिया।
सन् 1975 में संत पापा पौलुस छठवें ने व्यक्तिगत रूप से नवीनीकरण की वार्षिक बैठक ’विश्व सम्मेलन’’ (World Congress) को रोम में आयोजित करने का न्यौता दिया। इस सम्मेलन में लगभग 10,000 हज़ार लोगों ने भाग लिया। इस सभा को सम्बोधित करते हुये संत पापा ने कहा, ’’तेजी से सांसारिक बनती इस दुनिया के लिये इससे ज़रूरी कोई बात नहीं कि वह उस आध्यात्मिक नवीनीकरण की गवाह बने जिसे पवित्र आत्मा संसार के विभिन्न प्रकार के क्षेत्रों में उत्पन्न कर रहे हैं। ये कैसे दुनिया तथा कलीसिया के लिये आध्यात्मिक नवीनीकरण का अवसर नहीं हो सकता है? और क्यों कोई इसके बने रहने की हर संभव कोशिश नहीं करे?’’ संत पापा योहन पौलुस द्वितीय ने करिश्माई नवीनीकरण के समूह से अपनी एक मुलाकात के दौरान कहा, ’’पवित्र आत्मा जो वरदान देना चाहता है उसके लिये सदैव कृपापूर्ण रूप से उपलब्ध रहो।’’
द्वितीय वतिकान महासभा के बाद इस करिश्माई नवीनीकरण आन्दोलन की शुरुआत पवित्र आत्मा का कलीसिया के लिये विशेष वरदान है। बपतिस्मा की प्रतिज्ञाओं को पूर्ण रूप से जीने, ईश्वर पिता की दत्तक संतान की बुलाहट के अनुसार जीवन जीने तथा बाइबिल की शिक्षा को पवित्र आत्मा के प्रकाश में जीने की विश्वासियों की इच्छा की अभिव्यक्ति काथलिक करिश्माई आन्दोलन में हमें देखने को मिलती है। लोगों में पवित्रता के प्रति बढ़ती लालसा जो उनके व्यक्तिगत जीवन तथा कलीसिया में स्पष्ट झलकती है इस आन्दोलन का सबसे प्रमुख फल है।
संत पापा पौलुस छठवें एवं योहन पौलुस द्वितीय के उत्साहवर्धन से संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, दक्षिण अमेरिका तथा यूरोप के धर्माध्यक्षों ने अपने परिपत्रों के द्वारा इस नवीनीकरण आन्दोलन का समर्थन एवं उत्साहवर्धन किया।
करिश्माई नवीनीकरण को भारत में लाने का श्रेय श्री मीनू इंजीनियर को जाता है। मीनू इंजीनियर जो पारसी थे, फोर्डहाम महाविद्यालय, अमेरिका में अपनी पढ़ाई कर रहे थे। वहाँ वे करिश्माई प्रार्थना के दौरान इतने प्रभावित हुए कि वे स्वयं काथलिक बन गये तथा अपने इस अनुभव को अन्यों के साथ बांटने के लिये सन् 1972 में करिश्माई नवीनीकरण को भारत लाये। शुरुआत में इस प्रार्थना समूह में केवल चार लोग, फादर फियो मसकारेनहांस, सिस्टर ओल्गा, मीनू एवं लुज़ मरिया इंजीनियर थे। यह समूह हर सोमवार को प्रार्थना के लिये मुम्बई में एक निष्चित जगह पर मिला करता था। जल्दी ही यह करिश्माई प्रार्थना अन्य क्षेत्रों में फैल गयी। करिश्माई प्रार्थना को कई लोगों एवं समूहों का सहयोग एवं प्रोत्साहन मिला। धीरे-धीरे करिश्माई नवीनीकरण मुम्बई के अलावा पुणे, गोवाहाटी, दिल्ली आदि जगहों पर फैल गया।
इस तरह एक छोटे से समूह से शुरुआत होने के बाद भी ये आन्दोलन भारत के कौने-कौने में फैल गया है। भारत में विभिन्न जगहों पर करिश्माई नवीनीकरण केन्द्रों की स्थापना हुई है तथा कई पुरोहित एवं लोकधर्मी इस आन्दोलन की अगुवाई कर अपना योगदान दे रहे हैं।
इस सन्दर्भ में हम केरल के मुरिंगूर (पोट्टा) शहर में स्थित डिवाइन रिट्रीट सेन्टर की भूमिका भूल नहीं सकते हैं। यह दुनिया का सबसे बडा काथलिक आध्यात्मिक साधना केन्द्र है। इसकी शुरुआत विन्सेन्शियन धर्मसमाज द्वारा सन् 1977 में हुई। इस धर्मसमाज के सन् 1950 से चले आ रहे प्रवचन तथा आध्यात्मिक साधना की प्रक्रिया को मज़बूती देने के मकसद से इस केन्द्र की स्थापना की गई थी। सन् 1990 से इस कार्य में काफी प्रगति आई है। वर्ष भर, इस केन्द्र में 7 भाषाओं में साप्ताहिक आध्यात्मिक साधना होती है। यह कार्य करोड़ों ख्रीस्त भक्तों के लिए लाभदायक सिद्ध हुआ है।
यह कहना उचित होगा कि करिश्माई नवीनीकरण आन्दोलन ने काथलिक कलीसिया में नयी जान फूँक दी है। लोगों में येसु के प्रति एक नयी ऊर्जा एवं उत्साह आ गया। लोगों का स्वयं के प्रति गहरा ज्ञान, प्रार्थना में नयी शक्ति एवं अर्थ, धर्मग्रंथ के प्रति प्रेम, कलीसिया के प्रति आदरभाव, संस्कारों तथा पूजन-विधि में लगन, कलीसिया के अधिकारियों के प्रति सम्मान, माता मरियम के प्रति भक्ति, आदि उल्लेखनीय परिवर्तन है जो करिश्माई नवीनीकरण आन्दोलन के परिणामस्वरूप कलीसिया एवं विश्वासियों में देखने को मिलते है।
प्रश्नः
1. पवित्र आत्मा की भूमिका के बारे में पवित्र बाइबिल क्या कहती है?
2. पवित्र आत्मा को कुछ लोग ’अज्ञात ईश्वर’ क्यों कहते हैं?
3. आत्मा में बपतिस्मा के नये अनुभव की शुरुआत काथलिक कलीसिया में कब और कैसे षुरू हुई?
4. करिश्माई आन्दोलन के मुख्य उद्देश्य क्या-क्या हैं?
5. करिश्माई नवीनीकरण आंदोलन को बढ़ावा देने के लिये संत पापाओं ने क्या किया?
6. करिश्माई नवीनीकरण को भारत में लाने का श्रेय किसको जाता है? क्यों?
7. करिश्माई नवीनीकरण से विश्वासियों को क्या-क्या आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं?
दलों में चर्चा कीजिए:-
1. करिश्माई साधना में भाग लेने पर लोगों में जो नवस्फूर्त्ति आती है, उस स्फूर्त्ति को बनाये रखने तथा अपने जीवन को स्थायी रूप से बदलने के उपायों पर चर्चा कीजिए।
2. करिश्माई साधना में आपके अनुभवों को एक दूसरे के साथ बाँटिए।