पास्का का छठवाँ सप्ताह - शुक्रवार



पहला पाठ : प्रेरित-चरित 18:9-18

9) प्रभु ने किसी रात को दर्शन दे कर पौलुस से यह कहा, ’’डरो मत, बल्कि बोलते जाओ और चुप मत रहो।

10) मैं तुम्हारे साथ हूँ। कोई भी तुम पर हाथ डाल कर तुम्हारी हानि नहीं कर पायेगा; क्योंकि इस नगर में बहुत-से लोग मेरे अपने हैं।’’

11) पौलुस लोगों को ईश्वर के वचन की शिक्षा देते हुए वहाँ ड़ेढ़ बरस रहा।

12) जिस समय गल्लियो अख़ैया का प्रान्तपति था, सब यहूदी मिल कर पौलुस को पकड़ने आये और उसे न्यायालय ले जाकर

13) उन्होंने यह कहा, ’’यह व्यक्ति ईश्वर की ऐसी पूजा-पद्धति सिखलाता है, जो संहिता से भिन्न हैं’’।

14) पौलुस अपनी सफाई में बोलने ही वाला था कि गल्लियों ने यहूदियों से यह कहा, ’’यहूदियों! यदि यह अन्याय या अपराध का मामला होता, तो मैं अवश्य धैयपूर्वक तुम लोगों की बात सुनता।

15) परन्तु यह वाद-विवाद शिक्षा, नामों और तुम्हारी संहिता से सम्बन्ध रखता है। यह मामला तो तुम लोगों का है। मैं ऐसी बातों का न्याय करना नहीं चाहता।’’

16) और उसने उन्हें न्यायालय से बाहर निकलवा दिया।

17) तब सब यहूदियों ने सभागृह के अध्यक्ष सोस्थेनेस को पकड़ कर न्यायालय क सामने पीटा, किन्तु गल्लियों ने इसकी कोई परवाह नहीं की।

18) पौलुस कुछ समय तक कुरिन्थ में रहा और इसके बाद वह भाइयों से विदा ले कर प्रिसिल्ला तथा आक्विला के साथ, नाव से सीरिया चला गया। उसने किसी व्रत के कारण केंखयै में सिर मुंड़ाया।

सुसमाचार : सन्त योहन 16:20-23

20) मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ ’’तुम रोओगे और विलाप करोगे, परंतु संसार आनंद मनायेगा। तुम शोक करोगे किन्तु तुम्हारा शोक आनन्द बन जायेगा।

21) प्रसव निकट आने पर स्त्री को दुख होता है, क्योंकि उसका समय आ गया है; किन्तु बालक को जन्म देने के बाद वह अपनी वेदना भूल जाती है, क्योंकि उसे आनन्द होता है कि संसार में एक मनुष्य का जन्म हुआ है।

22) इसी तरह तुम लोग अभी दुखी हो, किन्तु मैं तुम्हे फिर देखूँगा और तुम आनन्द मनाओगे। तुम से तुम्हारा आनन्द कोई नहीं छीन सकेगा।

23) उस दिन तुम मुझ से कोई प्रश्न नहीं करोगे। मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- तुम पिता से जो कुछ माँगोगे वह तुम्हें मेरे नाम पर वही प्रदान करेगा।

📚 मनन-चिंतन

आज २२ मई है आज से हम पेंटेकॉस्ट की तैयारी स्वरूप पवित्र आत्मा के आदर में नोवीना की शुरुआत करते हैं। प्रभु येसु ने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर ली है, पिता द्वारा दी हुई ज़िम्मेदारी। अब उनकी बारी थी, अब उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी पहचाननी और पूरी करनी है। यह संसार की ज़िम्मेदारी नहीं है इसलिए संसार खुश है, उसने प्रभु येसु को नहीं पहचाना है, लेकिन शिष्य शोक मनायेंगे क्योंकि प्रभु उनके दूर जा रहे हैं, फिर चाहे वह थोड़े हाई समय के लिए क्यों ना हो। कभी-कभी किसी की अनुपस्थिति भी उनकी उपस्थिति महसूस करने का बड़ा कारण बन जाती है। ईश्वर की अनुपस्थिति बड़ी दुखदायी है, शोक उत्पन्न करने वाली है, ख़ासकर उनके के लिए जो ईश्वर को प्यार करते हैं, और अपने जीवन में ईश्वर की उपस्थिति के आदी हैं। जिन्होंने ईश्वर की उपस्थिति को अपने जीवन में अनुभव नहीं किया है, उन्हें ईश्वर की अनुपस्थिति बिल्कुल भी नहीं खलेगी। चूँकि संसार ने प्रभु को स्वीकार नहीं किया इसलिए उसकी अनुपस्थिति से उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा लेकिन शिष्य प्रभु को प्यार करते थे इसलिए उन्हें दुःख सहना था। क्या हमें कभी प्रभु की अनुपस्थिति से कष्ट हुआ है। आइए हम प्रार्थना करे कि हम कभी भी ईश्वर से अलग ना हों। आमेन।

- फादर जॉन्सन बी. मरिया (ग्वालियर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION

Today we begin the Novena to the Holy Spirit as a preparation for Pentecost. Jesus had completed his task, now it was their turn. They had to realise their responsibility, others who belong to the world, have no problem they will be happy, but the disciples will be sad. Absence sometimes is very powerful tool to realise the presence. Sometimes we ourselves effect this and sometimes God makes us to realise it. Absence of God is painful especially for those who are used to the presence of God. Those who have not experienced the presence of God for them it matters less, because the world has not accepted Jesus, the world wouldn’t miss him. It will not be sad when he is absent. Because the disciples loved Jesus they had to undergo the pain of missing him, even if it was for a little while. Let us pray to Lord that we may never part from the Lord. Amen.

-Fr. Johnson B.Maria (Gwalior)


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Praise the Lord!