22) उनके विरोध में भीड़ भी एकत्र हो गयी। तब न्यायकर्ताओं ने कपड़े उतरवा कर उन्हें कोड़े लगाने का आदेश दिया।
23) उन्होंने पौलुस और सीलस को खूब पिटवाया और कारापाल को बड़ी सावधानी से उनकी रखवाली करने का आदेश दे कर उन्हें बन्दीगृह में डलवा दिया।
24) कारापाल ने ऐसा आदेश पा कर उन्हें भीतरी बन्दीगृह में रखा और उनके पैर काठ में जकड़ दिये।
25) आधी रात के समय जब पौलुस तथा सीलस प्रार्थना करते हुए ईश्वर की स्तुति गा रहे थे और कैदी उन्हें सुन रहे थे,
26) तो एकाएक इतना भारी भूकम्प हुआ कि बन्दीगृह की नींव हिल गयी। उसी क्षण सब द्वार खुल गये और सब कैदियों की बेडि़याँ ढ़ीली पड़ गयीं।
27) कारापाल जाग उठा और बन्दीगृह के द्वार खुले देख कर समझ गया कि क़ैदी भाग गये हैं। इसलिए उसने तलवार खींच कर आत्महत्या करनी चाही,
28) किन्तु पौलुस ने ऊँचे स्वर से पुकार कर कहा, ’’अपनी हानि मत कीजिए। हम सब यहीं हैं।’’
29) तब कारापाल चिराग मँगा कर भीतर दौड़ा और काँपते हुए पौलुस तथा सीलस के चरणों पर गिर पड़ा।
30) उसने उन्हें बाहर ले जा कर कहा, ’’सज्जनों, मुक्ति प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?’’
31) उन्होंने उत्तर दिया, ’’आप प्रभु ईसा में विश्वास कीजिए, तो आप को और आपके परिवार को मुक्ति प्राप्त होगी’’।
32) इसके बाद उन्होंने करापाल और उसके सब घरवालों को ईश्वर का वचन सुनाया।
33) उसने रात को उसी घड़ी उन्हें ले जा कर उनके घाव धोये। इसके तुरन्त बाद उसने और उसके सारे परिवार ने बपतिस्मा ग्रहण किया।
34) तब उसने पौलुस और सीलस को अपने यहाँ ले जा कर भोजन कराया और अपने सारे परिवार के साथ आनन्द मनाया; क्योंकि उन्होंने ईश्वर में विश्वास किया था।
5) अब मैं उसके पास जा रहा हूँ, जिसने मुझे भेजा और तुम लोगो में कोई मुझ से यह नहीं पूछता कि आप कहाँ जा रहे हैं।
6) मैंने तुम से यह कहा है, इसलिये तुम्हारे हृदय शोक से भर गये हैं।
7) फिर भी मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ तुम्हारा कल्याण इस में है कि मै चला जाऊँ। यदि मैं नहीं जाऊँगा, तो सहायक तुम्हारे पास नहीं आयेगा। यदि मैं जाऊँगा, तो मैं उसे तुम्हारे पास भेजूँगा।
8) जब वह आयेगा, तो पाप, धार्मिकता और दंण्डाज्ञा के विषय में संसार का भ्रम प्रमाणित कर देगा-
9) पाप के विषय में, क्योंकि वे मुझ में विश्वास नहीं करते
10) घार्मिकता के विषय में, क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ और तुम मुझे और नहीं देखोगे;
11) दण्डाज्ञा के विषय में, क्योंकि इस संसार का नायक दोषी ठहराया जा चुका है।
प्रभु येसु ने इस संसार से जाने से पूर्व अपने शिष्यों को एक सहायक भेजने की प्रतीज्ञा की थी। वह सहायक कोई ओर नहीं परंतु पवित्र आत्मा है, सत्य का आत्मा जो प्रभु येसु के विषय में साक्ष्य देता है।
पवित्र आत्मा हम सभी के लिए एक सहायक के रूप में दिया गया है परंतु हममें से अधिकतर लोग उस सहायक को अपने जीवन में कार्य करने नहीं देते इस कारण हम येसु को पहचान नहीं पाते और उनको अपने जीवन में साक्ष्य नहीं दे पाते। पवित्र आत्मा उतरने से पूर्व शिष्य डरें हुए थे, प्रभु के वचनों को सहीं तरह से नहीं समझ पाते थे, पवित्र आत्मा के आगमन के बाद हीं शिष्यों ने प्रभु की कहीं हुई हर बात को समझा तथा निडरता पूर्वक येसु का साक्ष्य लोंगों के सामने प्रकट किया।
आज के युग में कलीसिया हर प्रकार से सम्पन्न है परंतु कमी है तो सिर्फ पवित्र आत्मा को कार्यांवित करने की। आईये हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि जो पवित्र आत्मा का वरदान हमने दृढकरण संस्कार द्वारा ग्रहण किया है हम उनको पूर्ण रीति से समझें और पवित्र आत्मा को अपने जीवन में कार्य करने दें। आमेन!
✍फ़ादर डेनिस तिग्गाBefore leaving, Jesus assured the disciples of sending the helper to them. That helper is none other but Holy Spirit himself, the Spirit of truth who witnesses Lord Jesus.
We have received the Holy Spirit as a helper but many of us do not allow the Holy Spirit to work in our lives that is the reason we do not recognize Jesus and couldn’t be able to give his witness through our lives. Before descending of the Holy Spirit the disciples were afraid, were not able to understand Jesus’ words fully; it is after the coming of the Holy Spirit the disciples understood the meaning of every word spoken by Jesus and gave the witness of Jesus with boldness.
In present time the Church is affluent with many things but only thing which she lacks is allowing the Holy Spirit to work. Let’s pray to the Lord the gift of Holy Spirit which we received during the time of Sacrament of Confirmation, we may understand the mystery of it in fuller sense and allow the Holy Spirit to work in our lives. Amen!
✍ -Fr. Dennis Tigga