पास्का का पाँचवाँ सप्ताह - गुरुवार



पहला पाठ : प्रेरित-चरित 15:7-21

7) जब बहुत वाद-विवाद हो चुका था, तो पेत्रुस ने उठ कर यह कहा: ’’भाइयो! आप जानते हैं कि ईश्वर ने प्रारम्भ से ही आप लोगों में से मुझे चुन कर निश्चय किया कि गै़र-यहूदी मेरे मुख से सुसमाचार का वचन सुनें और विश्वास करें।

8) ईश्वर मनुष्य का हृदय जानता है। उसने उन लोगों को हमारे ही समान पवित्र आत्मा प्रदान किया।

9) इस प्रकार उसने उनके पक्ष में साक्ष्य दिया और विश्वास द्वारा उसका हृदय शुद्ध कर हम में और उन में कोई भेद नहीं किया।

10) जो जूआ न तो हमारे पूर्वज ढोने में समर्थ थे और न हम, उसे शिष्यों के कन्धों पर लाद कर आप लोग अब ईश्वर की परीक्षा क्यों लेते हैं?

11) हमारा विश्वास तो यह है कि हम, और वे भी, प्रभु ईसा की कृपा द्वारा ही मुक्ति प्राप्त करेंगे।’’

12) सब चुप हो गये और वे बरनाबास तथा पौलुस की बातें सुनते रहे, जो उन चिन्हों तथा चमत्कारों के विषय में बता रहे थे, जिन्हें ईश्वर ने उनके द्वारा ग़ैर-यहूदियों के बीच दिखाया था।

13) जब वे बोल चुके थे, तो याकूब ने कहा, ’’भाइयो! मेरी बात सुनिए।

14) सिमोन ने हमें बताया कि प्रारम्भ से ही ईश्वर ने किस प्रकार ग़ैर-यहूदियों में अपने लिए एक प्रजा चुनने की कृपा की।

15) यह नबियों की शिक्षा के अनुसार ही है; क्योंकि लिखा है:

16) इसके बाद में लौट कर दाऊद का गिरा हुआ घर फिर ऊपर उठाऊँगा। मैं उसके खँड़हरों का पुननिर्माण करूँगा और उसे फिर खडा़ करूँगा,

17) जिससे मानव जाति के अन्य लोग- अर्थात् सभी राष्ट्र, जिन्हें मैंने अपनाया है- प्रभु की खोज में लगे रहें। यह कथन उस प्रभु का है, जो ये कार्य सम्पन्न करता है।

18) ये कार्य प्राचीन काल से ज्ञात हैं।

19) ’’इसलिए मेरा विचार यह है कि जो ग़ैर-यहूदी ईश्वर की ओर अभिमुख होते हैं, उन पर अनावश्यक भार न डाला जाये,

20) बल्कि पत्र लिख कर उन्हें आदेश दिया जाये कि वे देवमूर्तियों पर चढ़ाये हुए माँस से, व्यभिचार, गला घोंटे हुए पशुओं के माँस और रक्त से परहेज़ करें;

21) क्योंकि प्राचीनकाल से नगर-नगर में मूसा के प्रचारक विद्यमान हैं और उनकी संहिता प्रत्येक विश्राम-दिवस को सभागृहों में पढ़ कर सुनायी जाती है।

सुसमाचार : योहन 15:9-11

9) जिस प्रकार पिता ने मुझ को प्यार किया है, उसी प्रकार मैंने भी तुम लोगों को प्यार किया है। तुम मेरे प्रेम से दृढ बने रहो।

10) यदि तुम मेरी आज्ञओं का पालन करोगे तो मेरे प्रेम में दृढ बने रहोगे। मैंने भी अपने पिता की आज्ञाओं का पालन किया है और उसके प्रेम में दृढ बना रहता हूँ।

11) मैंने तुम लोगों से यह इसलिये कहा है कि तुम मेरे आनंद के भागी बनो और तुम्हारा आनंद परिपूर्ण हो।

📚 मनन-चिंतन

संहिता की सबसे बड़ी आज्ञा है अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे ह्दय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो। प्यार दो लोगों के बीच में होता है। अगर प्रेम एक ही जन करें तो वह एकतरफा प्रेम हो जाता है। प्रभु ईश्वर ने अपना प्रेम अपने पुत्र को इस संसार के लिए अर्पित कर दर्शाया तथा प्रभु येसु ने अपने प्राण को हमारे लिए बलिदान देते हुए हमरे प्रति अपने प्रेम को प्रकट किया। ईश्वर निरंतर हमसे प्रेम करता आया है और निरंतर हम से प्रेम करता रहेगा क्योंकि वह सत्यप्रतिज्ञ ईश्वर है।

इस संसार में प्रभु ने हमारे लिए सबकुछ दे डाला और हमारे लिए अपने प्रेम को प्रदर्शित किया है। हमारा प्रेम प्रभु के प्रति किस प्रकार का है? क्या हम उनको उसी प्रकार प्यार करते है जैसे वह हम से करता है? शायद नहीं, इस संसार में रहते समय शायद हम इस संसार से इतने प्रभावित हो जाते है कि हम ईश्वर के प्रेम को नहीं पहचान पाते और हम ईश्वर को छोड़ संसारिक चिजों से प्यार करने लग जाते है।

आज प्रभु हम सबसे आहवान कर रहा है कि हम उसके प्रेम में दृढ़ बने रहे। जिस प्रकार प्रभु ने हमसे प्यार किया है हम भी उसी के समान दूसरों को प्यार कर सकें। आईये आज के वचनों के द्वारा हम ईश्वर से यहीं आशिष के लिए प्रार्थना करें। आमेन!

फ़ादर डेनिस तिग्गा

📚 REFLECTION


Greatest commandment of the law is to Love the Lord your God with all your heart, and with all your soul, and with all your mind. Love happens between the two persons. If only one person loves then it remains as one-sided love. Lord God has shown is love by giving his only Son to the world and Lord Jesus expressed his love by giving his life for us. God has been continually loving us and will continue to love us because he is the truthful God and his love is steadfast.

God has given everything for us and showed his love to us. What kind of love do we have towards God? Do we love Him as He loves us? May be not, living in this world we are so fascinated by the world that we are unable to recognize his love and we start loving the worldly things instead of God.

Today God is calling us to abide in his love. As God has loved us similarly we may be also able to love others. Let’s seek this blessing of God through today’s word. Amen!

-Fr. Dennis Tigga


Copyright © www.jayesu.com
Praise the Lord!