1) साऊल इस हत्या का समर्थन करता था। उसी दिन येरुसालेम में कलीसिया पर घोर अत्याचार प्रारम्भ हुआ। प्रेरितों को छोड़ सब-के-सब यहूदिया तथा समारिया के देहातों में बिखर गये।
2) भक्तों ने, स्तेफ़नुस पर करुण विलाप करते हुए, उसे कब्र में रख दिया।
3) साऊल उस समय कलीसिया को सता रहा था। वह घर-घर घुस जाया करता और स्त्री-पुरुषों को घसीट कर बन्दीगृह में डाल दिया करता था।
4) जो लोग बिखर गये थे, वे घूम-घूम कर सुसमाचार का प्रचार करते रहे।
5) फि़लिप समारिया के एक नगर जा कर वहाँ मसीह का प्रचार करता था।
6) लोग उसकी शिक्षा पर अच्छी तरह ध्यान देते थे, क्योंकि सब उसके द्वारा दिखाये हुए चमत्कारों की चर्चा सुनते या उन्हें स्वयं देखते थे।
7) दुष्ट आत्मा ऊँचे स्वर से चिल्लाते हुए बहुत-से अपदूतग्रस्त लोगों से निकलते थे और अनेक अद्र्धांगरोगी तथा लंगड़े भी चंगे किये जाते थे;
8) इसलिए उस नगर में आनन्द छा गया।
35) उन्होंने उत्तर दिया, "जीवन की रोटी मैं हूँ। जो मेरे पास आता है, उसे कभी भूख नहीं लगेगी और जो मुझ में विश्वास करता है, उसे कभी प्यास नहीं लगेगी।
36) फिर भी, जैसा कि मैंने तुम लोगों से कहा, तुम मुझे देख कर भी विश्वास नहीं करते।
37) पिता जिन्हें मुझ को सौंप देता है, वे सब मेरे पास आयेंगे और जो मेरे पास आता है, मैं उसे कभी नहीं ठुकराऊँगा ;
38) क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, बल्कि जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पूरी करने के लिए स्वर्ग से उतरा हूँ।
39) जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा यह है कि जिन्हें उसने मुझे सौंपा है, मैं उन में से एक का भी सर्वनाश न होने दूँ, बल्कि उन सब को अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँ।
40) मेरे पिता की इच्छा यह है कि जो पुत्र को पहचान कर उस में विश्वास करता है, उसे अनन्द जीवन प्राप्त हो। मैं उसे अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दूँगा।"
स्तेफनुस की पत्थर मार कर हत्या करने की घटना का सामाज के सामाजिक तथा धार्मिक ढांचे पर बडा असर हुआ। येरूसालेम की कलीसिया पर व्यापक तौर पर अत्याचार होने लगा जिसका परिणाम यह हुआ कि ख्रीस्त विश्वास आसपास के इलाकों में बिखर गये। साउल उन लोगों में प्रमुख था जो कलीसिया या ख्राीस्तीय पर अत्याचार कर रहा था। यह वही साउल था जो उन लोगों के कपडें देख रहा था जो स्तेफनुस को पत्थर मार रही थी। ऐसा प्रतीत होता है कि जो उच्चस्तरीय तर्क, प्रज्ञा तथा चमत्कार एवं चिन्ह जो स्तेफनुस ने प्रदर्शित किये उनसे लोगों के हृदयों पर कोई खास असर नहीं पडा। साउल तो इस घटना के बाद और भी अधिक जोश से ख्राीस्तीयों पर अत्याचार कर रहा था।
साउल के हृदय परिवर्तन की घटना बाद में होती है जब वह दमिश्क जा रहा था। यह इस बात को साबित करता है कि मनुष्य या पापी का मन परिवर्तन तर्क, ज्ञान या चमत्कारों से नहीं बल्कि प्रभु की इच्छा से होता है।
इससे यह तात्पर्य नहीं है कि स्तेफनुस का जीवन एवं त्याग व्यर्थ या नाकाफी थे। उनका अपना असर तथा उददेश्य था किन्तु किसी का हृदय केवल ईश्वर के प्रभुत्व में आता है। ऐसा बताया जाता है कि संत मोनिका ने अपने पुत्र अगस्टीन के हृदय परिवर्तन के लिये लगभग 25 साल तक प्रार्थना की किन्तु इसका उस पर कोई प्रभाव पडता नहीं दिख रहा था। किन्तु एक दिन अचानक ईश्वर की दया से अगस्टीन का जीवन प्रभु की ओर अभिमुख हुआ। उनके मन परिवर्तन में उनकी मां मोनिका की प्रार्थनाओं का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण किन्तु अन्त में ईश्वर की इच्छा पर ही परिणाम निर्भर करता हैं।
स्तेफनुस की मृत्यु के उपरांत भीषण अत्याचार के कारण कलीसिया आसपास के इलाकों में बिखर गयी जिससे प्रभु में विश्वास की गवाह चारों ओर फैल गये थे। ईश्वर अपने कार्य करने के लिये रहस्यमय साधनों से चमत्कार करता है। चाहे धर्मी युवा ही मर जाये या विधर्मी दीर्घ आयु प्राप्त करे यह ईश्वर के प्रभुत्व के दायरे में आता है। हमारा मिशन तो यही है कि हम पूरी तंमयता के साथ प्रभु द्वारा सौंपे गये दायित्व को निभा सके तथा परिणााम का जिम्मा ईश्वर पर छोड दे। हम चाहे स्तेफनुस के समान शहादत प्राप्त करे या प्रभु के संक्षरण में जीते रहे पर हम स्तेफनुस के समाने विजेता का मुकुट अवश्य पहने।
✍फादर रोनाल्ड वाँनThe stoning of Stephen had an immediate andenormousbearing on the social and religious setting of the society. Church in Jerusalem experienced a massive persecution which resulted in the Christians getting scattered in and around the area. Saul was one of prominent names among those who persecuted the church. It was same Saul who was looking after the clothes of those who were stoning Stephen. It appears that superiour logic and wisdom which Stephen displayed, the great wonders and signs he performed did not break through the hardness of their hearts and of Saul in particular. For Saul continued to vigorously persecute the Church.
It was later on when Saul was on the way to Damascus that he encountered the Lord and got converted. It proves that the logic, wisdom and even miracles are not enough to convert sinners. Only God’s might power can do that as happened with Paul.
This does mean that the life and sacrifice of Stephen were inefficient. It had its own impact and purpose but to move the hearts of someone it is only in the mighty domain of God.It is said the St. Monica prayed for more than 25 years for the conversion of her son Augustine but it seemed to have no effect on him. However, one day the Lord in his mercy moved the heart of Augustin he was converted to Jesus and his work.
After Stephen’s death, first the church was scattered through persecution, resulting in a more widespread witness. God works in mysterious ways to perform His wonders! Whether the godly die young by violent deaths, and the wicked live long and prosper, is God’s sovereign business. Our mission is to be faithful to His Great Commission and leave the results to Him. Let us pray and ask God to give us the godly character of Stephen so that we will be courageous witnesses for Jesus Christ. Leave the results to Him. Whether we lose our life as a martyr or whether God protects us, we will, like Stephen, wear the victor’s crown.
✍ -Fr. Ronald Vaughan