51) "हठधर्मियो! आप लोग न तो सुनना चाहते हैं और न समझना। आप सदा ही पवित्र आत्मा का विरोध करते हैं, जैसा कि आपके पूर्वज किया करते थे।
52) आपके पूर्वजों ने किस नबी पर अत्याचार नहीं किया? उन्होंने उन लोगों का वध किया, जो धर्मात्मा के आगमन की भविष्यवाणी करते थे।
53) आप लोगों को स्वर्गदूतों के माध्यम से संहिता प्राप्त हुई, किन्तु आपने इसका पालन नहीं किया और अब आप उस धर्मात्मा के विश्वासघाती तथा हत्यारे बन गये हैं।"
54) वे स्तेफ़नुस की बातें सुन कर आगबबूला हो गये और दाँत पीसते रहे।
55) स्तेफ़नुस ने, पवित्र आत्मा से पूर्ण हो कर, स्वर्ग की ओर दृष्टि की और ईश्वर की महिमा को तथा ईश्वर के दाहिने विराजमान ईसा को देखा।
56) वह बोल उठा, "मैं स्वर्ग को खुला और ईश्वर के दाहिने विराजमान मानव पुत्र को देख रहा हूँ"।
57) इस पर उन्होंने ऊँचे स्वर से चिल्ला कर अपने कान बन्द कर लिये। वे सब मिल कर उस पर टूट पड़े
58) और उसे शहर के बाहर निकाल कर उस पर पत्थर मारते रहे। गवाहों ने अपने कपड़े साऊल नामक नवयुवक के पैरों पर रख दिये।
59) जब लोग स्तेफ़नुस पर पत्थर मार रहे थे, तो उसने यह प्रार्थना की, "प्रभु ईसा! मेरी आत्मा को ग्रहण कर!"
60) तब वह घुटने टेक कर ऊँचे स्वर से बोला, "प्रभु! यह पाप इन पर मत लगा!" और यह कह कर उसने प्राण त्याग दिये।
1) साऊल इस हत्या का समर्थन करता था। उसी दिन येरुसालेम में कलीसिया पर घोर अत्याचार प्रारम्भ हुआ।
30) लोगों ने उन से कहा, "आप हमें कौन सा चमत्कार दिखा सकते हैं, जिसे देख कर हम आप में विश्वास करें? आप क्या कर सकते हैं?
31) हमारे पुरखों ने मरुभूमि में मन्ना खाया था, जैसा कि लिखा है- उसने खाने के लिए उन्हें स्वर्ग से रोटी दी।"
32) ईसा ने उत्तर दिया, "मै तुम लोगों से यह कहता हूँ- मूसा ने तुम्हें जो दिया था, वह स्वर्ग की रोटी नहीं थी। मेरा पिता तुम्हें स्वर्ग की सच्ची रोटी देता है।
33) ईश्वर की रोटी तो वह है, जो स्वर्ग से उतर कर संसार को जीवन प्रदान करती है।"
34) लोगों ने ईसा से कहा, "प्रभु! आप हमें सदा वही रोटी दिया करें"।
35) उन्होंने उत्तर दिया, "जीवन की रोटी मैं हूँ। जो मेरे पास आता है, उसे कभी भूख नहीं लगेगी और जो मुझ में विश्वास करता है, उसे कभी प्यास नहीं लगेगी।
ईश्वर का प्रचार करना निर्दयी तथा कठोर हृदय वाले लोगों के बीच कभी भी आसान काम नहीं रहा। विरोध तथा अत्याचार सुसमाचार की घोषणा का अभिन्न अंग है। प्रवक्ता ग्रंथ चेताते हुये कहता है, ’’पुत्र! यदि तुम प्रभु की सेवा करना चाहते हो, तो विपत्ति का सामना करने को तैयार हो जाओ। तुम्हारा हृदय निष्कपट हो, तुम दृढ़संकल्प बने रहो, विपत्ति के समय तुम्हारा जी नही घबराये। जो कुछ तुम पर बीतेगा, उसे स्वीकार करो तथा दुःख और विपत्ति में धीर बने रहो; क्योंकि अग्नि में स्वर्ण की परख होती है और दीन-हीनता की घरिया में ईश्वर के कृपापात्रों की।’’(प्रवक्ता 2:1,4-5)
स्तेफनुस को यहूदियों के घोर विरोध का सामना करना पडा। उन्होंने न तो स्तेफनुस की बात माना और न ही उन्हें कार्य करने दिया। स्तेफनुस उन्हें ’हठधर्मी कहता है जो पवित्र आत्मा का विरोध करते हैं।’ स्तेफनुस की प्रज्ञा, अनुग्रह, विश्वास, चमत्कारों एवं चिन्हों के बावजूद भी वे उनका निंरतर विरोध करते रहे। यह एक वास्तविकता है जब हम धर्मान्ध एवं कटट्र पंथी लोग से बात करते हैं तो हमारा दमन किया जाता है। स्तेफनुस जो सत्य तथा पश्चाताप का प्रचार कर रहा था उससे विरोधियों में खलबली मच गयी। स्तेफनुस के प्रचार ने उन्हें सच्ची धार्मिकता तथा उनके पापों की पहचान करवायी किन्तु अपने अंहकार के कारण वे केवल विरोध ही करते रहे। जब वह इसमें विफल रहे तो उन्होंने स्तेफनुस पर ही आक्रामण कर दिया। यह विरोधियों का सामान्य तरीका होता है। जब वे किसी को हरा नहीं सकते तो चाहे धुरर्ता से या फिर हिंसा से वे व्यक्ति को दबाने का प्रयत्न करते हैं। स्तेफनुस के विरूद्ध इन्होंने इन दोनों का प्रयोग किया।
स्तेफनुस के मेधावी तथा यशस्वी गवाही का अंत उनकी पत्थरों से मार कर हत्या के रूप में होता है। उन्होंने स्तेफनुस को मार तो दिया किन्तु उनके पवित्र एवं साहसी जीवन का संदेश आज भी हमारे बीच जीवित है।
✍फादर रोनाल्ड वाँनProclaiming God in the midst of hard-hearted people has never been an easy task. Opposition and persecution are the integral parts of the proclamation. Book of Sirach forewarns us, “My child, if you aspire to serve the Lord, prepare yourself for an ordeal… Whatever happens to you, accept it, and in the uncertainties of your humble state, be patient, since gold is tested in the fire, and the chosen in the furnace of humiliation.” (Sirach 2:1,4-5)
Stephen faced rigid resistance from the Jews. They neither accepted his arguments nor his allowed him to have his ways. Stephen called the Jews ‘Stiff-necked people who resisted the Holy Spirit.’ Inspite of the Stephen’s wisdom, grace, faith, miracles and power people remained opposed to him. It is a fact that when we talk to religious blinded and hardened sinners we need to be prepared for opposition. The truth that Stephen preached convicted these men of their sins and threatened their pride so they tried to refute it. when that failed, they attacked the messenger. This is a common ploy of the adversaries.When you can’t defeat the message, go after the messenger, either by deceit or by violence. These men used both against Stephen.
The glorious and sagacious witnessing of Stephen finally culminated in stoning of Stephen. Although he died but not before he had the beatic vision of Jesus sitting at the right hand of the Father. They succeeding in killing Stephen but his life and message lives on even today.
✍ -Fr. Ronald Vaughan