पुण्य सप्ताह - मंगलवार



पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 49:1-6

1) दूरवर्ती द्वीप मेरी बात सुन¨। दूर के राष्ट्रों! कान लगा कर सुनो। प्रभु ने मुझे जन्म से पहले ही बुलाया, मैं माता के गर्भ में ही था, जब उसने मेरा नाम लिया।

2) उसने मेरी वाणी को अपनी तलवार बना दिया और मुझे अपने हाथ की छाया में छिपा लिया। उसने मुझे एक नुकीला तीर बना दिया और मुझे अपने तरकश में रख लिया

3) उसने मुझे से कहा, “तुम मेरे सेवक हो, मैं तुम में अपनी महिमा प्रकट करूँगा“।

4) मैं कहता था, “मैंने बेकार ही काम किया है, मैंने व्यर्थ ही अपनी शक्ति खर्च की है। प्रभु ही मेरा न्याय करेगा, मेरा पुरस्कार उसी के हाथ में है।“

5) परन्तु जिसने मुझे माता के गर्भ से ही अपना सेवक बना लिया है, जिससे मैं याकूब को उसके पास ले चलँू और उसके लिए इस्राएल को इकट्ठा कर लूँ, वही प्रभु बोला; उसने मेरा सम्मान किया, मेरा ईश्वर मेरा बल है।

6) उसने कहाः “याकूब के वंशों का उद्धार करने तथा इस्राएल के बचे हुए लोगों को वापस ले आने के लिए ही तुम मेरे सेवक नहीं बने। मैं तुम्हें राष्ट्रों की ज्योति बना दूँगा, जिससे मेरा मुक्ति-विधान पृथ्वी के सीमान्तों तक फैल जाये।“

सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 13:21-33,36-38

21) यह कहते-कहते ईसा का मन व्याकुल हो उठा और उन्होंने कहा, मैं तुम लोगो से यह कहता हूँ तुम में से ही एक मुझे पकडवा देगा।

22) शिष्य एक दूसरे को देखते रहे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि वे किसके विषय में कह रहे हैं।

23) ईसा का एक शिष्य, जिसे वे प्यार करते थे, उनकी छाती के सामने लेटा हुआ था।

24) सिमोन पेत्रुस ने उस से इशारे से यह कहा, ’’पूछो तो, वे किसके विषय में कह रहे हैं?’’

25) इसलिये वह ईसा की छाती पर झुककर उन से बोला, ’’प्रभु! वह कौन है?’’

26) ईसा ने उत्तर दिया, ’’मैं जिसे रोटी का टुकडा थाली में डुबो कर दूँगा वही है’’। और उन्होंने रोटी डुबो कर सिमोन इसकारियोती के पुत्र यूदस को दी।

27) यूदस ने उसे ले लिया और शैतान उस में घुस गया। तब ईसा ने उस से कहा, ’’तुम्हे जो करना है, वह जल्द ही करो’’।

28) भोजन करने वालों में केाई नहीं समझ पाया कि ईसा ने उस से यह क्यों कहा।

29) यूदस के पास थैली थी, इसलिये कुछ लोग यह समझते थे कि ईसा ने उस से यह कहा होगा कि हमें पर्व के लिये जो कुछ जो कुछ चाहिए, वह खरीदना या गरीबों को कुछ दान देना।

30 टुकड़ा लेकर यूदस तुरन्त बाहर चला गया। उस समय रात हो चली थी।

31) यूदस के चले जाने के बाद ईसा ने कहा, अब मानव पुत्र महिमान्वित हुआ और उसके द्वारा ईश्वर की महिमा प्रकट हुई।

32) यदि उसके द्वारा ईश्वर की महिमा प्रकट हुई, तो ईश्वर भी उसे अपने यहाँ महिमान्वित करेगा और वह शीघ्र ही उसे महिमान्वित करेगा।

33) बच्चों! मैं और थोडे ही समय तक तुम्हारे साथ हूँ। तुम मुझे ढूँढोगे और मैंने यहूदियों से जो कहा था, अब तुम से भी वही कहता हूँ - मैं जहाँ जा रहा हूँ, वहाँ तुम नहीं आ सकते।’’

36) सिमोन पेत्रुस ने उन से कहा, ’’प्रभु! आप कहाँ जा रहे हैं’’? ईसा ने उसे उत्तर दिया, ’’मैं जहाँ जा रहा हूँ, वहाँ तुम इस समय मेरे पीछे नहीं आ सकते। तुम वहाँ बाद में आओगे।

37) पेत्रुस ने उन से कहा, ’’प्रभु! मैं इस समय आपके पीछे क्यों नही आ सकता? मैं आपके लिये अपने प्राण दे दूँगा।’’

38) ईसा ने उत्तर दिया, ’’तुम मेरे लिये अपने प्राण देागे? मैं तुम से यह कहता हूँ मुर्गे के बाँग देने से पहले ही तुम मुझे तीन बार अस्वीकार करोगे।

📚 मनन-चिंतन

इस दुनिया में जन्मे हर एक व्यक्ति को प्रभु ने चुना है और उन के लिए एक योजना बनायी है। हम एक व्यक्ति को एक विशेष भूमिका है निभाने के लिए। इसलिए आज के पहला पाठ में इसायाह 49:1 वचन कहता है प्रभु ने मुझे जन्म से पहले ही बुलाया, मैं माता के गर्भ में ही था, जब उसने मेरा नाम लिखा। यह ज्ञान प्रभु येसु को हुई थी। इस कारण से इस दुनिया में रहकर येसु की एक ही इच्छा थी कि पिता की इच्छा के अनुसार जीवन बिताना है। योहन के सुसमाचार में 4:34 में येसु स्पष्ट रूप में कहते है कि जिसने मुझे भेजा, उसकी इच्छा पर चलना और उसका कार्य पूरा करना, यही मेरा भोजन है।

येसु को मालूम था कि पिता की इच्छ उनके लिए क्या था। पिता की इच्छा येसु के लिए यह था कि येसु सारी मानवजाती केलिए प्रायश्चित के रूप में क्रुस पर मर जाये। येसु यह मालूम करने के बावजूद भी पिता की इच्छा के प्रति अपने आपको पूर्ण रूप से समर्पित करते है। पिता की इच्छा के अनुसार जीवन अर्पित करने के कारण पिता ईश्वर ने येसु का नाम सारे नामों में सबसे श्रेष्ट नाम बना दिया। जिससे ईसा का नाम सुन कर आकाश, पृथ्वी तथा अधोलोक के सब निवासी घुटने टेकें।

प्यारे विश्वासियों हमारे लिए भी ईश्वर की एक योजना है। हमें उस योजना को परखना है और उसके अनुसार जीवन व्यतित करना है। चाहे वह योजना कितना भी दुःख दर्द से भरा क्यों न हो, हम वही इच्छा के अनुसार जीवन में आगे बढ़े। क्योंकि यही हमारे लिए सबसे अच्छा है। याद रखना कि जहॉ पर प्रभु हमारे लिए नींव डाली है केवल वहॉ पर ही हम हमारे जीवन को बना सकते है और जहॉ नींव नहीं है वहॉ पे हम जीवन बना नहीं पायेंगे। आइए ईश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन बिताने की शक्ति प्रभु से हर रोज़ मॉगते हुए हम प्रतिदिन अपना जीवन बिताये और इस एक मात्र जीवन को हम सुन्दर बनाये।


-फादर शैलमोन आन्टनी


📚 REFLECTION


God has chose every person who is born in this world. God has a plan for everyone, therefore every person has a distinguished role to play in this world. In the first reading Isa 49:1 says the Lord called me before I was born, while I was in my mother’s womb he named me. This knowledge was there in Jesus. Therefore as Jesus was in this world his only wish was to follow the will of the Father; for he says in Jn 4:34 my food is to do the will of the Father who sent me and to complete his work.

Jesus knew what was the will of God for him. This was the will of God the Father for Jesus that He dies on the cross as an atonement for the sins of the world. Jesus after knowing this also offers himself willingly to the will of the Father. For having done the will of the Father, God the Father exalts the name of Jesus above every other name. so that at the name of Jesus every knee should bend, in heaven and on earth and under the earth.

Friends, God has a plan for our lives too. We need to realize it and live according to that will. No matter how painful and agonizing the will of God is, it is the best for us to go through that will of God in our lives. Then God the Father will lift up our names too. Remember, we cannot build our lives where God has not laid foundation for us. So we can build only where God has laid foundation for us. If then, let us today onwards walk on the path of God and start building our lives on the foundations that God has laid for us. Thus let us make our only life here on earth most wonderful.

-Fr. Shellmon Antony


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Praise the Lord!