3) अब्राम ने साष्टांग प्रणाम किया और ईश्वर ने उस से यह कहा,
4) ''तुम्हारे लिए मेरा विधान इस प्रकार है - तुम बहुत से राष्ट्रों के पिता बन जाओगे।
5) अब से तुम्हारा नाम अब्राम नहीं, बल्कि इब्राहीम होगा, क्योंकि मैं तुम्हें बहुत-से राष्ट्रों का पिता बनाऊँगा।
6) तुम्हारे असंख्य वंशज होंगे। मैं तुम लोगों को राष्ट्रों के रूप में फलने-फूलने दूँगा। तुम्हारे वंशजों में राजा उत्पन्न होंगे।
7) मैं तुम्हारे लिए और तुम्हारे बाद तुम्हारे वंशजों के लिए पीढ़ी-पर-पीढ़ी अपना चिरस्थायी विधान निर्धारित करूँगा-मैं तुम्हारा और तुम्हारे बाद तुम्हारे वंशजों का ईश्वर होऊँगा।
8) मैं तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को वह भूमि प्रदान करूँगा, जिस में तुम निवास करते हो, अर्थात् कनान का समस्त देश। उस पर सदा के लिए तुम लोगों का अधिकार होगा और मैं तुम्हारे वंशजों का ईश्वर होऊँगा।''
9) प्रभु ने इब्राहीम से यह भी कहा, ''तुम को और तुम्हारे बाद तुम्हारे वंशजों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी मेरे विधान का पालन करना चाहिए।
52) यहूदियों ने कहा, "अब हमें पक्का विश्वास हो गया है कि तुम को अपदूत लगा है। इब्राहीम और नबी मर गये, किन्तु तुम कहते हो- ‘यदि कोई मेरी शिक्षा पर चलेगा, तो वह कभी नहीं मरेगा’।
53) क्या तुम हमारे पिता इब्राहीम से ही महान् हो? वह मर गये और नबी भी मर गये। तुम अपने को समझते क्या हो?’’
54) ईसा ने उत्तर दिया,"यदि मैं अपने को महिमा देता, तो उस महिमा का कोई महत्व नहीं होता। मेरा पिता मुझे महिमान्वित करता है।
55) उसे तुम लोग अपना ईश्वर कहते हो, यद्यपि तुम उसे नहीं जानते। मैं उसे जानता हूँ। यदि मैं कहता कि उसे नहीं जानता, तो मैं तुम्हारी तरह झूठा बन जाता। किन्तु मैं उसे जानता हूँ और उसकी शिक्षा पर चलता हूँ।
56) तुम्हारे पिता इब्राहीम यह जान कर उल्लसित हुए कि वह मेरा आगमन देखेंगे और वह उसे देख कर आनन्दविभोर हुए।’’
57) यहूदियों ने उन से कहा, "अब तक तुम्हारी उम्र पचास भी नहीं, तो तुमने कैसे इब्राहीम को देखा है?’’
58) ईसा ने उन से कहा, "मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- इब्राहीम के जन्म लेने के पहले से ही मैं विद्यमान हूँ’’।
59) इस पर लोगों ने ईसा को मारने के लिए पत्थर उठाये, किन्तु वह चुपके से मन्दिर से निकल गये।
इब्राहिम सभी विश्वासियों के पिता है जिन्हें विश्वास के पिता के नाम से जाना जाता है। आज का पहला पाठ इब्राहिम की बुलाहट के विषय पर आधारित है। इब्राहिम के बुलाहट की शुरुआत तब हुआ जब ईश्वर ने अब्राम को बुलाकर अपना देश, अपना कुटुम्ब और अपने पिता का घर छोड़कर उस देश जाने को, जिसे वे दिखाना वाले थे (उत्पत्ति 12:1)। ईश्वर वचनों का आज्ञा पालन उन्हें नई जगह, पुत्र इसहाक का आर्शीवाद और विधान की स्थापना और राष्ट्रों का पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ये क्षण इस्राएलियों/यहुदियों के जीवन के महत्वपूर्ण क्षण थे इस कारण इब्राहिम को सबसे महान समझा जाता था। जब येसु ने कहा यदि कोई मेरी शिक्षा पर चलेगा, तो वह कभी नहीं मरेगा, कुछ यहुदियों को यह बात पर गुस्सा आया और उन्होने उनकी तुलना इब्रहिम से करते हुए यह जताना चाहा कि इब्राहिम एक ऐसे इंसान थे जिन्होने ईश्वर की इच्छा सदैव पूरी की, बहुत सारे नबियों ने ईश्वर के वचनों का पालन किया परन्तु इनमें से अब कोई भी जीवित नहीं है, सबकी मृत्यु हो चुकी है तो येसु के अपने उस कथन का क्या नुवें है? जो कहता है कि जो कोई मेरी शिक्षा पर चलेगा, वह कभी नहीं मरेगा।
हम सब जानते हैं कि जिस किसी व्यक्ति ने इस संसार में जन्म लिया हैं उनको मर कर इस संसार से जाना पडे़गा। क्या यह बात येसु को मालूम नहीं थी? येसु को अवश्य यह बात मालूम थी। अतः जब येसु ने कहा, ‘‘यदि कोई मेरी शिक्षा पर चलेगा, तो वह कभी नहीं मरेगा ’’ यहॉं पर येसु शरीरिक मृत्यु के विषय पर नहीं परन्तु आध्यात्मिक मृत्यु के विषय के बारे में उल्लेख करते है। यहॉं पर हमें यह ज्ञात होता है कि दो प्रकार की मृत्यु हैं एक शारीरिक और दूसरी आत्मिक। जो जीवित हैं वे शारीरिक रूप में मृत्यु को प्राप्त तो नहीं किये हैं परन्तु क्या हम आत्मिक रूप से जीवित हैं यह येसु के लिए चिंता का विषय है और हमारे लिए विचार करने का विषय। आत्मिक रूप से मृत लोग अंधकार में रहते हैं, हर प्रकार की बुराई और पाप करते हैं, उनके लिए पाप एक साधारण सी बात हो चुकी है।
हम मनन चिंतन करें- क्या हम आत्मिक रूप से जीवित हैं? क्या हम शारीरिक रूप से जीवित और आत्मिक रूप से मृत हैं? क्या हम मरें हुए के समान जी रहें है? कभी कभी हमारा ख्रीस्तीय जीवन, आराधना, तथा प्रार्थना भी शारीरिक तक ही सीमित रह जाती है और आत्मिकता स्तर तक नहीं बढ़ पाती है? येसु योहन 4:24 में कहते हैं, ‘‘ईश्वर आत्मा है। उसके आराधकों को चाहिए कि वे आत्मा और सच्चाई से उसकी आराधना करें।’’ हम सब येसु की शिक्षा पर चलकर ही आत्मिक रूप से जीवित रह सकते हैं। हम सब केवल शरीरिक रूप से जीवित रहने के लिए ही नहीं परन्तु आत्मिक रूप से भी जीवित और ज्वलंत रहने के लिए बुलाये गयें है, जिससे हम उसकी आत्मा को संसार में प्रकाशित कर सकें।
✍ - फादर डेन्नीस तिग्गा
Abraham is Father of all believers also known as Father of Faith. Today’s first reading is about the call of Abraham. The call of Abraham get started when God called Abram to leave the country, his kindred and his father’s house and go to that place where God will show (Gen 12:1). The obedience to God’s word led him to the new place, blessing of child Issac and the establishment of the covenant and becoming of the Father of all nations. These were the remarkable moments in the life of Israelites/Jews and henceforth Abraham was regarded as the greatest of all. When Jesus said that whoever keeps my word will never see death. Some Jews were annoyed and they compared him with Abraham who was the person who always obeyed God there were many prophets who listened to the Word of God, obeyed the word of God but none of them are alive, all of them died. Then what is the base of Jesus statement? Who says that whoever keeps my word will never see death.
We all know that whoever took birth in the world has to die and go from this world. Does not Jesus know that? Surely Jesus knew that. So when Jesus said that whoever keeps my word will never see death, here Jesus is not referring to physical death but to the spiritual death. Here we come to know that there are two kinds of death one is physical and another is spiritual. Those who are alive have not attained the physical death but are we spiritually alive that is the concern of Jesus and the thing for us to reflect. Spiritually dead people live in darkness, does all kinds of evil and sin, for them sin has become the normal thing.
Let us reflect. Are we spiritually alive? Are we physically alive and spiritually dead people? Are we living like dead people? Sometimes our Christian life, worship, prayer too become only physically and could not grow spiritually. Jesus says in John 4:24 “God is spirit and those who worship him must worship in spirit and truth.” We can be spiritually alive only by keeping the word of Jesus. All of us are called not only to live physically but also spiritually alive, radiating the spirit of Jesus to the world.
✍ -Fr. Dennis Tigga