चालीसा काल का पाँचवाँ सप्ताह, सोमवार



पहला पाठ :दानिएल का ग्रन्थ 13:1-9,15-17,19-30, 33-62

1) योआकिम नामक व्यक्ति बाबुल का निवासी था।

2) उसका विवाह हिलकीया की पुत्री सुसन्ना से हुआ था।

3) वह अत्यन्त सुन्दर और प्रभु-भक्त थी, क्योंकि उसके माता-पिता धार्मिक थे और उन्होंने अपनी पुत्री को मूसा की संहिता के अनुसार पढाया-लिखाया था।

4) योआकिम बहुत धनी था और उसके घर से लगी हुई एक सुन्दर वाटिका थी। यहूदी उसके यहाँ आया-जाया करते थे, क्योंकि वह उन में सब से अधिक प्रतिष्ठित था।

5) उस वर्ष लोगों ने जनता में से दो नेताओं को न्यायकर्ताओं के रूप में नियुक्त किया था। उनके विषय में प्रभु ने कहा था, ’’बाबुल में अधर्म उन नेताओं से प्रारभ हुआ, जो न्यायकर्ता थे और जनता का शासन करने का ढोंग रचते थे’’।

6) वे योआकिम के यहाँ आया करते थे और जिनका कोई मुकदमा रहता, वे सब उनके पास आते थे।

7) जब दोपहर के समय लोग चले जाते, तो सुसन्ना अपने पति की वाटिका में टहलने आया करती थीं।

8) दोनों नेता उसे प्रतिदिन वाटिका में जाते और टहलते देखते थे और उन में सुसन्ना के लिए प्रबल काम-वासना उत्पन्न हुई।

9) उनका मन इतना विकृत हो गया कि उन्होंने स्वर्ग की ओर नहीं देखा और नैतिकता के नियम भुला दिये।

15) वे उपयुक्त अवसर की ताक में ही थे कि सुसन्ना दो नौकनारियों के साथ अपनी आदत के अनुसार वाटिका में घुस गयी।

16) उस दिन बहुत गरमी थी, इसलिए वह स्नान करना चाहती थी। उन दोनों नेताओं को छोड़कर, जो छिप कर उसे ताक रहे थे, वहाँ कोई नहीं था।

17) उसने अपनी नौकरानियों से कहा, ’’जा कर तेल और महरम ले आओ और वाटिका का फाटक बन्द कर दो, जिससे मैं स्नान कर सकूँ’’।

19) नौकरानियाँ बाहर गयी ही थी कि दोनों नेता उठ कर सुसन्ना के पास दौडते हुए आये और उस से बोले,

20) ’’देखो, वाटिका का फाटक बन्द है, कोई भी हमें नहीं देखता। हम तुम पर आसक्त हैं।

21) हमारे साथ रमण करना स्वीकार करो, नहीं तो हम तुम्हारे विरुद्ध यह साक्य देंगे कि कोई युवक तुम्हारे साथ था और इसलिए तुमने अपनी नौकरानियों को बाहर भेज दिया।’’

22) सुसन्ना ने आह भर कर, ’’मुझे कोई रास्ता नहीं दिखता। यदि मैं ऐसा करूँगी, तो प्राणदण्ड के योग्य हो जाऊँगी। यदि मैं ऐसा नहीं करूँगी, तो आपके हाथों से नहीं बच पाऊँगी।

23) फिर भी प्रभु के सामने पाप करने की उपेक्षा निर्दोष ही आपके हाथ पड जाना मेरे लिए अच्छा है।’’

24) इस पर सुसन्ना ऊँचे स्वर से चिल्लाने लगी;

25) किन्तु दोनों नेता उसके विरुद्ध चिल्लाने लगे और उन में से एक ने दौड कर वाटिका का फाटक खोल दिया।

26) जब घर के लोगों ने वाटिका में चिल्लाने की आवाज सुनी, तो यह देखने के लिए कि सुसन्ना को क्या हुआ, वे दौडते हुए आये और पाश्र्व फाटक से वाटिका में प्रवेश कर गये।

27) जब नेताओं ने अपना बयान दिया, तो नौकरों को बडा धक्का लग गया; क्योंकि सुसन्ना पर इस प्रकार का अभियोग कभी नहीं लगाया गया था।

28) दूसरे दिन, जब जनता उसके पति योआकिम के यहाँ एकत्र हो गयी थी, तो वे दुष्ट नेता सुसन्ना को प्राणदण्ड दिलाने का षड्यंत्र रच कर आ पहुँचे।

29) उन्होंने जनता के सामने कहा, ’हिलकीया की पुत्री, योआकिम की पत्नी, सुसन्ना को बुला भेजो’’। लोगों ने उसे बुला भेजा।

30) वह अपने माता-पिता, अपने बच्चों और अपने सब कुटुम्बियों के साथ आयी।

33) उसके सन्बन्धी और जितने भी लोग उसे देखते थे, वे सब-के-सब के रोते थे।

34) उन दो नेताओं ने सभा में खडे हो कर उसके सिर पर अपने हाथ रख दिये।

35) वह रोती हुई स्वर्ग की और देखती रही; क्योंकि उसका हृदय ईश्वर पर भरोसा रखता था।

36) नेताओं ने यह कहा, ’’जब हम अकेले वाटिका में टहल रह थे, तो यह दो नौकरानियों के साथ वाटिका में आयी। इसने वाटिका को फाटक बन्द करा दिया और नौकरानियों को बाहर भेजा।

37) तब एक युवक, जो छिपा हुआ था, पास आ कर इसके साथ लेट गया।

38) हम वाटिका के एक कोने से यह पाप देखकर दौडते हुए उनके पास आये और हमने दोंनों को रमण करते देखा।

39) हम उस युवक को नहीं पकड़ पाये; क्योंकि वह हम से बलवान था और वाटिका का फाटक खोल कर भाग गया।

40) हमने इसे पकड़ लिया और पूछा कि वह कौन है, किन्तु इसने उसका नाम बताना अस्वीकार किया।

41) हम इन बातों के साक्षी हैं।’’ सभा ने उन पर विश्वास किया, क्योंकि वे नेता और न्यायकर्ता थे। लोगों ने सुसन्ना को प्राणदण्ड की आज्ञा दी।

42) इस पर सुसन्ना ने ऊँचे स्वर से पुकार कर कहा,

43) ’’शाश्वत ईश्वर! तू सब रहस्य और भविय में होने वाली घटनाएँ जानता है। तू जानता है कि इन्होंने मेरे विरुद्ध झूठी गवहाी दी है। इन्होंने जिन बुरी बातों का अभियोग मुझ पर लगाया है, मैंने उन में से एक भी नहीं किया- फिर भी मुझे मरना होगा।’’

44) ईश्वन ने उसकी सुन ली। जब लोग उसे प्राणदण्ड के लिए ले जा रहे थे,

45) तो ईश्वर ने दानिएल नामक युवक में एक दिव्य प्रेरणा उत्पन्न की।

46) वह पुकार कर कहने लगा, ’’मैं इसके रक्त का दोषी नहीं हूँ’’।

47) इस पर सब लोग उसकी ओर देखने लगा और बोले, ’’तुमहारे कहने का अभिप्राय क्या है?’’

48) उसने उन में खडा हो कर कहा, ’’ इस्राएलियों! आप लोगों की बुद्धि कहाँ है, जो आप जाँच और पूरी जानकारी के बिना इस्राएल की पुत्री को प्राणदण्ड देते हैं?

49) आप न्यायालय लौट जायें, क्योंकि इन्होंने इसके विरुद्ध झूठी गवाही दी है।’’

50) इस पर लोग तुरन्त लौट गये और नेताओं ने दानिएल से कहा, ’’आइए, हमारे बीच बैठिए और हमें अपनी बात बताइए; क्योंकि ईश्वर ने आप को नेताओं-जैसा अधिकार प्रदान किया है’’।

51) दानिएल ने उन से कहा, ’’इन दोनों को एक दूसरे से अलग कर दीजिए और मैं इन से पूछताछ करूँगा’’।

52) जब दोनों को अलग कर दिया गया, तो दानिएल ने एक को बुला कर उस से कहा,

53) ’’अधर्म करते-करते तेरे बाल पक गये हैं। अब तुझे अपने पुराने पापों का दण्ड मिलने वाला है। तू निर्दोषों को दण्ड दे कर और दोशियों को निर्दोष ठहरा कर अन्यायपूर्वक विचार किया करता था, जब कि प्रभु ने कहा है- तुम निर्दोष और धर्मी को प्राणदण्ड नहीं दोंगे। अब यदि तूने इसे देखा

54) तो हमें बता कि तूने किस वृक्ष के नीचे दोनों को एक साथ देखा’’। उसने उत्तर दिया, ’’बाबुल के नीचे’’।

55) दानिएल ने कहा, ’’इतना बडा झूठ बोल कर तूने अपना सिर गँवा दिया है! ईश्वर के दूत को ईश्वर से यह आदेश मिल चुका है कि वत तुझे दो टुकड़े कर दे’’।

56) दानिएल ने उसे ले जाने की आज्ञा दे कर दूसरे को बुला भेजा और उस से कहा,

57) ’’तू यूदा का नहीं, कनान की सन्तान है। सौदर्य ने तुझे पथभ्रष्ट किया आर वासना ने तरा हृदय दूशित कर दिया है। तुम लोग इस्राएल की पुत्रियों के साथ इस प्रकार का व्यवहार करते थे और वे डर के मारे तुम्हारा अनुरोध स्वीकार करती थी। किन्तु यह यूदा की पुत्री है, जो तुम्हारे अधर्म के सामने नहीं झुकी है।

58) तो, मुझे बता- तूने किस वृक्ष के नीचे दोनों को साथ देखा?’’ उसने उत्तर दिया, ’’बलूत के नीचे’’।

59) इस पर दानिएल ने कहा, ’’तूने भी इतना बडा झूठ बोलकर अपना जीवन गँवा दिया है! ईश्वर का दूत हाथ में तलवार लिये, प्रतीक्षा कर रहा है। वह तुझे दो-टुकडे कर देगा और तुम दोंनों का सर्वनाश करेगा।’’

60) तब समस्त सभा ऊँचे स्वर से जयकार करते हुए ईश्वर की स्तुति करने लगी, जो अपने पर भरोसा रखने वालों की रक्षा करता है।

61) दानिएल ने उनके अपने शब्दों द्वारा दोनों नेताओं की गवाही असत्य प्रमाणित की थी, इसलिए लोग उन पर टूट पड़े और

62) उन्हौंने मूसा की संहिता के अनुसार उन दुष्टों को वह दण्ड दिया, जिसे वे अपने पड़ोसी को दिलाना चाहते थे और लोगों ने दोनों का वध कर डाला। इस प्रकार उस दिन एक निर्दोष महिला की जीवन-रक्षा हुई।

सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 8:1-11

1) और ईसा जैतून पहाड़ गये।

2) वे बड़े सबेरे फिर मंदिर आये। सारी जनता उनके पास इकट्ठी हो गयी थी और वे बैठ कर लोगों को शिक्षा दे रहे थे।

3) उस समय शास्त्री और फरीसी व्यभिचार में पकड़ी गयी एक स्त्री को ले आये और उसे बीच में खड़ा कर,

4) उन्होंने ईसा से कहा, ‘‘गुरुवर! यह स्त्री व्यभिचार करते हुए पकड़ी गयी है।

5) संहिता में मूसा ने हमें ऐसी स्त्रियों को पत्थरों से मार डालने का आदेश दिया है। आप इसके विषय में क्या कहते हैं?’’

6) उन्होंने ईसा की और परीक्षा लेते हुए यह कहा, जिससे उन्हें उन पर दोष लगाने का काई आधार मिले। ईसा झुक कर उँगली से भूमि पर लिखते रहे।

7) जब वे उन से उत्तर देने के लिए आग्रह करते रहे, तो ईसा ने सिर उठा कर उन से कहा, ‘‘तुम में जो निष्पाप हो, वह इसे सब से पहले पत्थर मारे’’।

8) और वे फिर झुक कर भूमि पर लिखने लगे।

9) यह सुन कर बड़ों से ले कर छोटों तक, सब-के-सब , एक-एक कर खिसक ईसा अकेले रह गये और वह स्त्री सामने खड़ी रही।

10) तब ईसा ने सिर उठा कर उस से कहा, ‘‘नारी! वे लोग कहाँ हैं? क्या एक ने भी तुम्हें दण्ड नहीं दिया?’’

11) उसने उत्तर दिया, ‘‘महोदय! एक ने भी नहीं’’। इस पर ईसा ने उस से कहा, ‘‘मैं भी तुम्हें दण्ड नहीं दूँगा। जाओ और अब से फिर पाप नहीं करना।’’

📚 मनन-चिंतन

आज के दोनों पठों में व्यभिचार में पकडे गये दो महिलावों के बारे मंे सुनते है। पहला पाठ में हम सुसन्ना के बारे में सुनते है। सुसन्ना ने व्यभिचार नहीं किया था, लेकिन उन पर दो नेताओं द्वारा झूठा अभियोंग लगाया गया था। सुसन्ना ने ईश्वर से प्रार्थना की और ईश्वर ने धर्मि दानिएल को प्ररणा दी और इस प्रका दानिएल के द्वारा सुसन्ना निर्दाेष है करके स्थपित किया गया और उन दोषी नेताओं को प्रण दण्ड दिया गया। लेकिन सुसमाचार में हम एक स्त्री के बारे में सुनते है जिनको व्यभिचार के पाप करते हूए पकडा गया। और भीड़ उसको पत्थर से मार डालने के लिए सडक पर लेके आयी, और युसु की परीक्ष लेने के लिए और उन पर दोष लगाने का कोई आधार मिलने के लिए, शास्त्री और फरीसीयों ने येसु से पूछा कि गुरूवर यह स्त्री व्यभिचार करते हुए पकड़ी गयी है। संहिता में मूसा ने हमें ऐसी स्त्रियों को पत्थरों से मार डालने का आदेश दिया है । आप इसके विषय में क्या कहते हैं?

अगर येसु उन सें कह दिया होता कि पत्थरों से मार डालो तो येसु अपनी शिक्षाओं जैसे प्यार क्षमा दया आदि के विरूद्ध जाते और अगर येसु उन से कह दिया होता कि उनको नहीं मारो, तो संहिता का भी विरूद्ध जाते। इस उलझने वाले स्थिति में येसु एक सुन्दर जवाब उस क्रोधी भीड़ को देते है कि तुम में जो निष्पाप हो, वह इसे सब से पहले पत्थर मारे। और सुसमाचार में कहा गया है कि यह सुनकर बड़ों से ले कर छोटों तक, सब के सब, एक एक कर खिसक गये। इस प्रकार येसु ने उस सत्री को बचाया और येसु ने उन से कहा कि मैं भी तुम्हें दण्ड नहीं दॅुगा। जाओ और अब से फिर पाप नहीं करना। यहॉ पे येसु के यह वचन पर ध्यान देना उत्तम होगा (संत मत्ती 7ः1-2) दोष नहीं लगाओ, जिससे तुम पर भी दोष न लगाया जायेय क्यों कि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जायेगा और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जायेगा।

प्यारे विश्वासियों, चालिसा काल हमें दूसरा की पापों कि ओर नहीं बल्कि हमारे पापों की ओर देखने का काल है। हमें पापों के प्रति पश्चात्ताप करके उचित फल उत्पन्न करने का समय है (संत मत्ती 3ः8) साथ ही साथ दूसरों के पापों केलिए पाप क्षमा याचना करने का समय है। ताकी हम सबों का आध्यात्मिक उन्नती हो। राजा दाऊद के समान (स्तोत्र 11ः12)हम भी प्रार्थना करें हे ईश्वर हमारे पापों पर दृष्टि न डाल, हमारा अपराध मिटाने की कृपा कर। ईश्वर हमारा ह्रदय फिर शुद्ध कर ओर हमारा मन फिर सुदृढ़ बना।


-फादर शैलमोन आन्टनी


📚 REFLECTION


In today’s both the readings we hear about the women who were caught in committing adultery. In the first reading we hear about Susanna. Susanna did not commit the sin of adultery, but the leaders accused her falsely. Susanna prayed to the Lord and the Lord inspired Daniel the righteous one. Because of the interference of Daniel Susanna was found innocent. And therefore those two leaders were given death punishment.

But in the Gospel we hear about a woman who was caught red handed in committing adultery. And the crowd brought her to the street to stone her to death. Before that in order to test Jesus and to find a fault in him asked him about his opinion in this case. The Pharisees said to Jesus: this woman is caught in committing adultery. And the law of Moses says to stone such persons to death. What do you say?

If Jesus had said that stone her to death then Jesus would have gone against his teaching- love, forgiveness etc. But if Jesus had said not to kill her, then he would have gone against the Law of Moses. However in this complicated situation Jesus comes up with a noble and beautiful answer: Let anyone among you who is without sin be the first to throw a stone at her. And the word of God tells us that when they heard it, they went away, one by one, beginning with the elders. And Jesus told her neither do I condemn you. Go your way and from now on do not sin again. It is fitting to pay attention to the saying of Jesus in Mt 7:1-2 Do not judge, so that you may not be judged. For with the judgment you make you will be judged and the measure you give will be the measure you get.

Friends, season of lent is not a time to look into the sins of others and judge them, but it’s a time to look into the sins of oneself and bear fruit of repentance (Mt 3:8). At the same time do penance for others sins as well. So that everyone grows spiritually. Like the king David let us also pray to God: Ps 51:10 create in me a clean heart O God and put a new and right sprit within me.

-Fr. Shellmon Antony


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Praise the Lord!