18) प्रभु ने मुझे सावधान किया, तो मैं जान गया; उसने उनका षड्यन्त्र मुझ पर प्रकट किया।
19) मैं तो वध के लिए ले जाये जाने वाले मेमने के सदृश भोला-भाला था। मैं नहीं जानता था कि वे यह कहते हुए मेरे विरुद्ध षड्यन्त्र रच रहे थे, “हम वह हरा-भरा वृक्ष काट गिरायें। हम उसे जीवितों की दुनिया से उठा दें, जिससे उसका नाम लेने वाला कोई न रहे।“
20) विश्वमण्डल के प्रभु! तू न्यायी है। तू मनुष्य के हृदय की थाह लेता है। मैं उन पर तेरा प्रतिशोध देखूँगा, क्योंकि मैंने अपना मामला तेरे हाथों सौंप दिया है।
40) ये शब्द सुन कर जनता में कुछ लोगों ने कहा, ‘‘यह सचमुच वही नबी है’’।
41) कुछ ने कहा, ‘‘यह मसीह हैं’’। किन्तु कुछ लोगों ने कहा, ‘‘क्या मसीह गलीलिया से आने वाले हैं?
42) क्या धर्मग्रन्थ यह नहीं कहता कि दाऊद के वंश से और दाऊद के गाँव बेथलेहेम से मसीह को आना है?’’
43) इस प्रकार ईसा के विषय में लोगों में मत भेद हो गया।
44) कुछ लोग ईसा को गिरफ़्तार करना चाहते थे, किन्तु किसी ने उन पर हाथ नहीं डाला।
45) जब प्यादे महायाजकों और फरीसियों के पास लौटे, तो उन्होंने उन से पूछा, ‘‘उसे क्यों नहीं लाये?’’
46) प्यादों ने उत्तर दिया, ‘‘जैसा वह मनुष्य बोलता है, वैसा कभी कोई नहीं बोला’’।
47) इस पर फरीसियों ने कहा, ‘‘क्या तुम भी उसके बहकावे में आ गये हो?
48) क्या नेताओं अथवा फरीसियों में किसी ने उस में विश्वास किया है?
49) भीड़ की बात दूसरी है। वह संहिता की परवाह नहीं करती और शापित है।’’
50) निकोदेमुस, जो पहले ईसा से मिलने आया था, उन में एक था। उसने उन से कहा,
51) ‘‘जब तक किसी की सुनवाई नहीं हुई और यह पता नहीं लगा कि उसने क्या किया है, तब तक क्या यह हमारी संहिता के अनुसार उचित है कि किसी को दोषी ठहराया जाये?’’
52) उन्होंने उसे उत्तर दिया, ‘‘कहीं आप भी तो गलीली नहीं हैं? पता लगा कर देख लीजिए कि गलीलिया में नबी नहीं उत्पन्न होता।’’
53) इसके बाद सब अपने-अपने घर चले गए।
प्रभु येसु कृपा से भरे हुए थे। इसलिए उनके शबदों में भी कृृपा भरी हुई थी। आज के सुसमाचार में हम पढते है कि महायाजकों और फ़रीसियों ने येसु को गिरफतार करने केलिए प्यादे को भेजा। जब प्यादे येसु को गिरफतार करने पहूचे तो येसु लोगों को शिक्ष दे रहे थे। येसु के शबद कृपा की अभिषेक से भरा हुआ था इसलिए प्यदे गिरफतार करना भूल गये और येसु की शिक्षा सुनने में डूब गये। और प्यादे येसु को गिरफतार न करके वापस आ गये। तब महायाजको और फ़रीसियों ने उन से पूछा येसु को क्यों नहीं लाये? तब प्यादों ने उत्तर दिया, जैसा वह मनुष्य बोलता है वैसा कभी कोई नहीं बोला। संत लूकस के सुसमाचार में 4:18 से हम देखते है कि येसु जब सभागृह पहूचे तो उन्हें नबी इसायस की पुस्तक दी गयी। पुस्तक खोल कर ईसा ने पढा। पढने के बाद वह उसे सेवक को दे कर बैठ गये। और वचन कहता है वाक्य 22 में सब उनकी प्रशंसा करते रहे। वे उनके मनोहर शब्द सुनकर अचम्भे में पड़ जाते थे।
येसु के समान हम भी एक शुद्ध जुबान अपनाने केलिए प्रार्थना करें। वचन हमें समझाता है मत्ती 15रू17:18 कि जो मुह में जाता है वह नहीं, बल्कि जो मुह से आता वह हमें आशुद्ध करते है। संत पौलूस हमें समझाते है एफेसियों 4:29 आपके मुख से कोई अश्लील बात नहीं, बल्कि ऐसे शब्द निकलें, जो अवसर के अनुरूप दूसरों के निर्माण तथा कल्याण में सहायक हों। एफेसियों 5:3 से संत पौलूस कहते है जैसा कि सन्तों केलिए उचित है, आप लोगों के बीच किसी प्रकार के व्यभिचार और अशुद्धता अथवा लोभ की चर्चा तक न हो। और न भद्वी, मूर्खतापूर्ण या अश्लील बातचीत; क्योंकि यह अशोभतीय है-बल्कि आन ईश्वर को धन्यवाद दिया करें। कलोसियों 4:6 आपकी बातचीत सदा मनोहर और सुरूचिपूर्ण हो और आप लोग प्रत्येक को समुचित उत्तर देना सीखें।
ईश्वर को हम धन्यवाद दे क्योंकि ईश्वर ने हमें बोलने कि शक्ति दी है। आईस हम यह कृपा प्रभु की महिमा केलिए इस्तेमाल करें। स्तोत्र 34:2 मै हर समय प्रभु को धन्य कहॅूगा; मेरा कण्ठ निरन्तर उसकी स्तुति करेगा। हम यही प्रार्थना करे स्तोत्र 141:3 प्रभु मेरे मुख पर पहरा बैठा, मेरे होंठो के द्वार की रखवाली कर। मेरे ह्रदय को बुराई की ओ झुकने न दे। हम संत मत्ती 12: 36-37 का यह वचन याद रखें न्याय के दिन मनुष्यों को अपनी हर निकम्मी बात का लेखा देना पड़ेगा, क्योंकि तुम अपनी ही बातों से निर्दाे या दाषी ठहराये जाओगे।
✍ -फादर शैलमोन आन्टनी
Jesus was filled with the grace therefore his words were also filled with the grace. in today’s gospel we hear that the chief priests and the Pharisees sent police to arrest Jesus. As they came to arrest Jesus, Jesus was teaching the people. Hearing the graceful words of Jesus, the police forgot about everything, and they sat down and listened to Jesus. Jesus finished his session and went away and the police also went back. As they reached the Pharisees and the chief priests asked them why they didn’t arrest Jesus. And they said “Never ahs anyone spoken like this.” In the Gospel of St. Luke we read that Jesus went to a synagogue and he was given the scripture of Isaiah and Jesus read it and said today this passage is fulfilled in your hearing. After that Jesus went and sat down and the Word of God says that in Lk 4:22 “all spoke well of him and were amazed at the gracious words that came from his mouth.
Like Jesus we too should have a gracious mouth. The word of God says in Mt 15 that what goes in to the mouth does not defile a person, but what come out that defiles a person. St. Paul reminds us in many places about the importance of having gracious words. Eph 4:29 Let no evil talk come out of your mouths, but only what is useful for building up as there is need, so that your words may give grace to those who hear. Eph 5:3-4 But fornication and impurity of any kind, or greed, must not even be mentioned among you, as it is proper among saints. Entirely out of place is obscene, silly, and vulgar talk; but instead, let there be thanksgiving. Col 4:6 Let your speech always be gracious, seasoned with salt, so that you may know how you ought to answer everyone.
Lets thank the Lord for he has blessed us with the ability of speech. Therefore let us use our mouth for the glory of God. Ps 34:2 says I will bless the Lord at all times; his praise shall continually be in my mouth. Let us pray with the psalmist 141:3 set a guard over my mouth O Lord, keep watch over the door of my lips. Always remember the word of God in Mt 12;36-37 I tell you, on the day of judgment you will have to give an account for every careless word you utter. For by your words you will be justified and by your words you will be condemned.
✍ -Fr. Shellmon Antony