5:15) हाँ, मैं अपने निवासस्थान के पास तब तक लौट कर रहूँगा, जब तक वे अपने पापों पर पश्चात्ताप कर मेरी कृपा ढूँढने न आयें इस दुर्दशा में वे मुझे खोजते रहेंगे।
6:1) ’’ आओ! हम प्रभु के पास लौटें। उसने हम को घायल किया, वही हमें चंगा करेगा; उसने हम को मारा है, वही हमारे घावों पर पट्टी बाँधेगा।
2) वह हमें दो दिन बाद जिलायेगा; तीसरे दिन वह हमें उठोयेगा और हम उसके सामने जीवित रहेंगे।
3) आओ! हम प्रभु का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करें। उसका आगमन भोर की तरह निश्चित है। वह पृथ्वी को सींचने वाली हितकारी वर्षा की तरह हमारे पास आयेगा।’’
4) एफ्राईम! मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ? यूदा! मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ? तुम्हारा प्रेम भोर के कोहरे के समान है, ओस के समान, जो शीघ्र ही लुप्त हो जाती है।
5) इसलिए मैंने नबियों द्वारा तुम्हें घायल किया। अपने मुख के शब्दों द्वारा तुम्हें मारा है;
6) क्योंकि मैं बलिदान की अपेक्षा प्रेम और होम की अपेक्षा ईश्वर का ज्ञान चाहता हूँ।
9) कुछ लोग बड़े आत्मविश्वास के साथ अपने को धर्मी मानते और दूसरों को तुच्छ समझते थे। ईसा ने ऐसे लोगों के लिए यह दृष्टान्त सुनाया,
10) ‘‘दो मनुष्य प्रार्थना करने मन्दिर गये, एक फ़रीसी और दूसरा नाकेदार।
11) फ़रीसी तन कर खड़ा हो गया और मन-ही-मन इस प्रकार प्रार्थना करता रहा, ’ईश्वर! मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ कि मैं दूसरे लोगों की तरह लोभी, अन्यायी, व्यभिचारी नहीं हूँ और न इस नाकेदार की तरह ही।
12) मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूँ और अपनी सारी आय का दशमांश चुका देता हूँ।’
13) नाकेदार कुछ दूरी पर खड़ा रहा। उसे स्वर्ग की ओर आँख उठाने तक का साहस नहीं हो रहा था। वह अपनी छाती पीट-पीट कर यह कह रहा था, ‘ईश्वर! मुझ पापी पर दया कर’।
14) मैं तुम से कहता हूँ-वह नहीं, बल्कि यही पापमुक्त हो कर अपने घर गया। क्योंकि जो अपने को बड़ा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा; परन्तु जो अपने को छोटा मानता है, वह बड़ा बनाया जायेगा।’’
प्यारे विश्वासीयों आज के सुसमाचार द्वारा प्रभु येसु हमें ये सिखाते है कि हमारी प्रार्थना सुनने केलिए हमें प्रभु के सामने विनम्र होना बहुत अनिवार्य है । हमारे पापों केलिए पश्चाताप मिलने के लिए हमें विनम्र होना बहुत जरूरी है । वचन कहता है कि जो विनम्र है उसकी सुनवाई होती है और उसकी पुकार मेघों को चीर कर ईश्वर तक पहॅूचजी है। (प्रवक्ता 35:20); दानिएल के ग्रन्थ में कहते है कि स्वर्गदूत ने दानिएल से कहा- दानिएल डरो मत, क्योंकि जब से तुम ईश्वर पर ध्यान दे कर विनम्रतापूर्वक समझने का प्रयत्न करने लगे, तब से तुम्हारी प्रार्थनाएॅ सुनी गयीं और उत्तर के रूप में मैं आ गया हॅू। (दानिएल 10:12)
इस दृष्टिन्त में फ़रीसी आत्मविश्वास के साथ अपने को धर्मी समझकर ईश्वर से प्रार्थना करते है इस कारण से पाप क्षमा नहीं मिलती है। जब कि नाकेदार ईश्वर से कुछ दूरी पर खडा रहा। उसे स्वर्ग की ओर ऑख उठाने तक का साहस नहीं हो रहा था। वह अपनी छाती पीट पीट कर यह कह रहा था, ईश्वर मुझ पापी पर दया कर। इस कारण से वह पापमुक्त हो कर वह अपने घर चला गया।
फ़रीसी की गलती यह थी कि वह अपने आपको नाकेदार से तुलना किया। जबकी नाकेदार ने अपने आपको ईश्वर के साथ तुलना किया। ईश्वर निषपाप है, पूर्ण है इसलिए हम लोगों को हमेशा अपने आप को ईश्वर से तुलना करना है। तब हमें मालूम होगा कि हम पापी है। सब संत लोगों ने यही किया था इसलिए आध्यत्मिक रूप में बहुत उन्नती हासिल करने के बावजूद भी अपने आपको ईश्वर से तुलना किया और ईश्वर के सामने अपने आपको विनम्र बनाया। वचन कहता है कि प्रभू के सामने दीन-हीन बनें और वह आप को ऊॅचा उठायेगा। (याकूब 4:10) आप शक्तिशाली ईश्वर के सामने विनम्र बने रहें, जिससे वह आप को उपयुक्त समय में ऊपर उठाये। (1पेत्रुस 5:6) आईए हम विनम्र बनकर प्रभु की ओर जाये।
✍ -फादर शैलमोन आन्टनी
Today through the Gospel Jesus is teaching us that our prayers will be heard by God only when we humble ourselves. It is important that we humble ourselves in order to get forgiveness for our sins and failures. The Word of God says in Sirach 35:21 the prayer of the humble pierces the clouds, and it will not rest until it reaches its goal. In the book of Daniel 10:12 the angel said to Daniel – Do not fear, Daniel, for from the first day that you set your mind to gain understanding and to humble yourself before your God, your words have been heard, and I have come because of your words.
In today’s Gospel, the Pharisee claims to be righteous and prays to God; as a result he does not get the forgiveness of sins. Whereas the tax collector accepts that he is a sinner and therefore he stand away from the presence of God and he is not looking at heaven because he is a sinner and he beats he chest and says Lord have mercy. Therefore for he gets forgiveness of sins and he goes home joyfully.
Here the mistake of the Pharisee is he is comparing himself with the tax collector. But the tax collector compared himself with God who is righteous. God is sinless and therefore we need to compare ourselves with God who is perfect then only we will be able to grow and reach that perfection. All the saints did the same therefore they always felt that they are sinners in comparison to God. This will help us to humble ourselves before God. The Word of God says in James 4:10humble yourselves before the Lord, and he will exalt you; and in 1Pet 5:6 humble yourselves therefore under the mighty hand of God, so that he may exalt you in due time. Jesus also says in Mt 11:29 learn from me for I am meek and humble of heart. Come let’s humble ourselves before God.
✍ -Fr. Shellmon Antony