1) इस्राएलियों मैं जिन नियमों तथा आदेशों की शिक्षा तुम लोगों को आज दे रहा हूँ, उन पर ध्यान दो और उनका पालन करो, जिससे तुम जीवित रह सको और उस देश में प्रवेश कर उसे अपने अधिकार में कर सको, जिसे प्रभु, तुम्हारे पूर्वजों का ईश्वर तुम लोगों को देने वाला है।
5) देखो, मैं अपने प्रभु-ईश्वर के आदेश के अनुसार तुम लोगों को नियमों तथा आदेशों की शिक्षा दे चुका हूँ। तुम जो देश अपने अधिकार में करने जा रहे हो, वहाँ उनके अनुसार आचरण करो।
6) उनका अक्षरषः पालन करो और इस तरह तुम अन्य राष्ट्रों की दृष्टि में समझदार और बुद्धिमान समझे जाओगे। जब वे उन सब आदेशों की चर्चा सुनेंगे, तो बोल उठेंगे ’उस महान् राष्ट्र के समान समझदार तथा बुद्धिमान और कोई राष्ट्र नहीं है’।
7) क्योंकि ऐसा महान राष्ट्र कहाँ है, जिसके देवता उसके इतने निकट हैं, जितना हमारा प्रभु-ईश्वर हमारे निकट तब होता है जब-जब हम उसकी दुहाई देते हैं?
8) और ऐसा महान् राष्ट्र कहाँ है, जिसके नियम और रीतियाँ इतनी न्यायपूर्ण है, जितनी यह सम्पूर्ण संहिता, जिसे मैं आज तुम लोगों को दे रहा हूँ?
9) ’’सावधान रहो। जो कुछ तुमने अपनी आँखों से देखा है, उसे मत भुलाओ। उसे जीवन भर याद रखो और अपने पुत्र पौत्रों को सिखाओ।
(17) ’’यह न समझो कि मैं संहिता अथवा नबियों के लेखों को रद्द करने आया हूँ। उन्हें रद्द करने नहीं, बल्कि पूरा करने आया हूँ।
(18) मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- आकाश और पृथ्वी भले ही टल जाये, किन्तु संहिता की एक मात्रा अथवा एक बिन्दु भी पूरा हुए बिना नहीं टलेगा।
(19) इसलिए जो उन छोटी-से-छोटी आज्ञाओं में एक को भी भंग करता और दूसरों को ऐसा करना सिखाता है, वह स्र्वगराज्य में छोटा समझा जायेगा। जो उनका पालन करता और उन्हें सिखाता है, वह स्वर्गराज्य में बड़ा समझा जायेगा।
आज के दोनों पाठ आज्ञाओं के पालन के बारे में हमें समझाते हैं। मूसा इस्राएलियो से कहते है कि मैं जिन नियमों तथा आदेशों की शिक्षा तुम लोगों को आज दे रहा हॅू, उन पर ध्यान दो और उनका पालन करो, जिससे तुम जीवित रह सको और उस देश में प्रवेश कर उसे अपने अधिकार में कर सको, जिसे प्रभु, तुम्हारे पूर्वजों का ईश्वर तुम लोगों को देने वाला है। (विधि विवरण 4:1) सुसमाचार में येसु कहते है कि जो उन छोटी-से-छोटी आज्ञाओं में एक को भी भंग करता और दूसरों को ऐसा करना सिखाता है, वह स्वर्गराज्य में छोटा समझा जायेगा। जो उनका पालन करता और उन्हें सिखाता है, वह स्वर्गराज्य में बड़ा समझा जायेगा। (मत्ती 5:19)।
प्यारे विश्वासियों, हमें इस दुनिया में क्या केलिए जीना है? हमारे जीने का क्या लक्ष्य होना है? आज के दोनों पाठ साफ साफ हमें बताते है कि हमें स्वर्गराज्य प्रप्त करने केलिए जीना है। एक बार एक शास्त्री ने येसु से पूछा - गुरूवर, अनन्त जीवन का अधिकारी होने केलिए मुझे क्या करना चाहिए? और येसु ने उन से पूछा कि संहिता में क्या लिखा है?(लूकस 10:25-26) एक धनी युवक ने भी यही प्रश्न येसु से पूछा, तब भी येसु ने कहा आज्ञाओं का पालन करना। (मारकुस 10:17-19) प्यारे विश्वासियों, हमारे दैनिक जीवन में हम लोग अपने आप से और अन्य लोगों से बहुत प्रश्न पूछते है- जैसे कि वो पाने केलिए क्या करना होगा, ये मिलने केलिए क्या करना होगा आदि। इसके साथ हमें ये भी पूछना होगा कि अनन्त जीवन का अधिकारी होने केलिए मुझे क्या करना चाहिए?
अगर हम प्रेरितों एवं आदिम ईसाई समूह को देखे तो हमें पता चलेगा कि उनके जीवन का एक ही मकसद था कि अनन्त जीवन पाना। धर्मग्रन्थ में कई जगह में इसका ज़िक्र है- इस पृथ्वी पर हमारा कोई स्थायी नगर नहीं। हम तो भविष्य के नगर की खोज में लगे हुए हैं। (इब्रानियों 13:14); संत पेत्रुस कहते है कि हम यहॉ पर परदेशी और प्रवासी है (1पेत्रुस 2:11) हम उसकी प्रतिज्ञा के आधार पर एक नये आकाश तथा एक नयी पृथ्वि की प्रतीक्षा करते है। (2पेत्रुस 3:13) संत पौलूस कहते है- हमारा स्वदेश तो स्वर्ग है और हम स्वर्ग से आने वाले मुक्तिदाता प्रभु ईसा मसीह की राह देखते रहते हैं। (फिलिप्पियों 3:20) आईए हम भी इसी प्रकार अनन्त जीवन प्रप्त करने लिए अपना जीवन बिताये।
✍ -फादर शैलमोन आन्टनी
In today’s both the readings speak to us about the importance of obeying the commandments of God. Deut 4:1 so now, Israel, give heed to the statutes and ordinances that I am teaching you to observe, so that you may live to enter and occupy the land that the Lord, the God of your ancestors, is giving you. In the Gospel we read Mt 5:19 therefore whoever breaks one of the least of these commandments, and teaches others to do the same, will be called least in the kingdom of heaven; but whoever does them and teaches them will be called great in the kingdom of heaven.
Friends, what is the aim of our life? What for do we live in this world? Today’s both the readings say to us that we need to live for attaining kingdom of God. Lk 10:25-26 a lawyer stood up and asked Jesus what must I do to inherit eternal life? Jesus said to him what is written in the law. Mk 10:17-19 a rich young man asked Jesus what should he do to inherit the eternal life. And Jesus said to him obey the commandments. In our daily life we ask many questions- what should I do to get that thing, this thing etc so also we need to ask this most important question that what must I do to inherit the eternal life.
If you look into the life of the apostles and the early Christian community they had only one aim in life to inherit the eternal life. Heb 13:14 for here we have no lasing city, but we are looking for the city that is to come. St. Peter says 1pet 2:11 we are all aliens and exiles in this world. 2Pet 3:13 in accordance with his promise, we wait for new heavens and a new earth, where righteousness is at home. Philip 3:20but our citizenship is in heaven, and it is from there that we are expecting a Saviour, the lord Jesus Christ. Come, let us also live to inherit the kingdom of God.
✍ -Fr. Shellmon Antony