चालीसा काल का पहला सप्ताह, शनिवार



पहला पाठ : विधि-विवरण 26:16-19

16) "आज तुम्हारा प्रभु-ईश्वर इन नियमों तथा आज्ञाओं का पालन करने का आदेश दे रहा है। तुम उन पर चलते रहोगे और सारे हृदय और सारी आत्मा से इनका पालन करते रहोगे।

17) आज तुम्हें प्रभु से यह आश्वासन मिला की वह तुम्हारा अपना ईश्वर होगा - बशर्ते तुम उसके मार्ग पर चलो, उसके नियमों, आदेशों तथा आज्ञाओं का पालन करो और उसकी बातों पर ध्यान दो।

18) तुमने प्रभु को यह आश्वासन दिया कि तुम उसकी अपनी प्रजा होगे, जैसा कि उसने तुम से कहा है, बषर्ते तुम उसकी सभी आज्ञाओं का पालन करो।

19) उसने जितने राष्ट्र बनाये, उन सब से अधिक तुम्हें सम्मान, ख्याति तथा महिमा प्रदान करेगा और तुम प्रभु की पवित्र प्रजा होगे, जैसा कि उसने तुम से कहा है।"

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 5:43-48

(43) "तुम लोगों ने सुना है कि कहा गया है- अपने पड़ोसी से प्रेम करो और अपने बैरी से बैर।

(44) परन्तु में तुम से कहता हूँ- अपने शत्रुओं से प्रेम करों और जो तुम पर अत्याचार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो।

(45) इस से तुम अपने स्वर्गिक पिता की संतान बन जाओगे; क्योंकि वह भले और बुरे, दोनों पर अपना सूर्य उगाता तथा धर्मी और अधर्मी, दोनों पर पानी बरसाता है।

(46) यदि तुम उन्हीं से प्रेम करत हो, जो तुम से प्रेम करते हैं, तो पुरस्कार का दावा कैसे कर सकते हो? क्या नाकेदार भी ऐसा नहीं करते ?

(47) और यदि तुम अपने भाइयों को ही नमस्कार करते हो, तो क्या बडा काम करते हो? क्या गै़र -यहूदी भी ऐसा नहीं करते?

(48) इसलिए तुम पूर्ण बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है।

📚 मनन-चिंतन

आज के संसार में लोग किसी की पहचान उसकी योग्यता से करते हैं। बहुत सारी डिग्रीयां हासिल कर कोई खुद को साबित करने की कोशिश करता है तो कोई शारीरिक रूप से खुद को मोटा - तगड़ा बना के; कोई खुद को बहुत धार्मिक सिद्ध करके तो कोई बड़ा नाम कामके। आज इंसान अपने आप में एक, 'पूर्णता' तलाशता है। आधुनिक प्रतियोगी जीवन में 'पूर्णतावादी' लोगों की कमी नहीं। जब हम किसी से कहते हैं कि वह 'पूर्णतावादी' है, तो हमारा मतलब है कि वे चाहते हैं कि हर चीज हर लिहाज से सही हो। किसी भी प्रकार की गलती या त्रुटि के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। हम यह सोचते हैं कि पूर्णतावादियों के साथ रहना या काम करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि वे खुद से और दूसरों से बहुत ऊंची व बड़ी - बड़ी मांग करते हैं।

प्रभु येसु आज के सुसमाचार में अपने अनुयायों को पूर्ण बनने का आह्वान करते हैं। "पूर्ण बनो जैसे तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है। " पर प्रभु येसु ने यहाँ पूर्ण शब्द को एक अलग अर्थ दिया है । संत लूकस के सुसमाचार में इसी बात को निम्नानुसार बताया गया है- "दयालु बनें, जैसे तुम्हारा सवर्किग पिता दयालु हैं'।" ईश्वर की पूर्णता उनके दयालु - प्रेम में निहित है। ईश्वर परिपूर्ण है जिस तरह ईश्वर दयालु है हमें उसी तरह परिपूर्ण होना है। येसु ने जिस दयालु प्रेम का आह्वान किया, वह बिना किसी सीमा का प्रेम है। यह उन लोगों को शामिल करने के लिए एक समावेशी प्रेम है जो हमारे दुश्मन हैं, जो हमें बीमार चाहते हैं, जो हमें नुकसान पहुंचाना चाहते हैं।

पूर्ण बनने के लिए के लिए हमें चाहिए कि हम मावीय तरीकों से नहीं पर दिव्य तरीके प्यार करें। और हमें दिव्य अथवा ईश्वरीय तरीके से प्यार करना है तो हमें उसके लिए अपने अंदर ईश्वर के अंश की ज़रूरत होगी। पवित्र आत्मा ही हममें ईश्वर के गुणों की वृद्धि कर सकता है। यह केवल आत्मा ही है जो हमें ईश्वर के सामान दयालु बनने और ईश्वर जैसे प्रेम करने के लिए सशक्त कर सकता है। आमेन


-फादर प्रीतम वसूनिया (इन्दौर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION


We tend to use the terms ‘perfect’, ‘perfection’ and ‘perfectionist’ in a very particular way. When we say of someone that he or she is a ‘perfectionist’ we mean that they want everything to be right in every respect. There must be no room for mistake or error of any kind. We tend to think that perfectionists can be difficult to live with or work with because they are so demanding of themselves and of others. When Jesus uses the term ‘perfect’ in today’s Gospel reading, he uses it in a rather different sense. When Jesus says to his disciples ‘be perfect just as your heavenly Father is perfect’ he is using the term ‘perfect’ in a different way to how we tend to use it. Sometimes there is more than one version of a saying of Jesus in the Gospels. Today’s Gospel reading is from Matthew, but Luke’s version of that saying of Jesus goes as follows, ‘Be merciful, just as your Father is merciful’.

God’s perfection consists in his merciful love. To be perfect as God is perfect is to be merciful in the way that God is merciful. A merciful person has a different connotation for us to a perfectionist. The merciful love that Jesus calls for is a love without limits. It is an inclusive love to the point of including those who are our enemies, those who wish us ill, who seek to damage us. Jesus declares that this is nothing less than a divine love. We might ask, ‘How could Jesus ask humans to love in a divine way?’ We need a divine resource to love in a divine way and that divine resource is the Holy Spirit. Saint Paul refers to the Holy Spirit as the Spirit of God’s love. It is only the Spirit who can empower us to love as God loves, to be merciful as God is merciful.

-Fr. Preetam Vasuniya (Indore)


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Praise the Lord!