चालीसा काल का पहला सप्ताह, शुक्रवार



पहला पाठ : एज़ेकिएल 18:21-28

21) “यदि पापी, अपना पुराना पापमय जीवन त्याग कर, मेरी सब आज्ञाओं का पालन करता और धार्मिकता तथा न्याय के पथ पर चलने लगता है, तो वह अवश्य जीवित रहेगा, मरेगा नहीं।

22) उसके सब पापों को भुला दिया जायेगा और वह अपनी धार्मिकता के कारण जीवित रहेगा।

23) प्रभु-ईश्वर का यह कहना है- क्या मैं दुष्ट की मृत्यु से प्रसन्न हूँ? क्या मैं यह नहीं चाहता कि वह अपना मार्ग छोड़ दे और जीवित रहे?

24) किन्तु यदि भला मनुष्य अपनी धार्मिकता त्याग कर दुष्ट की तरह घृणित पाप करने लगता है, तो क्या वह जीवित रहेगा? उसकी समस्त धार्मिकता को भुला दिया जायेगा और वह अपने अधर्म तथा पाप के कारण मर जायेगा।

25) “तुम लोग कहते हो कि प्रभु का व्यवहार न्यायसंगत नहीं हैं। इस्राएलियो! मेरी बात सुनो। क्या मेरा व्यवहार न्यायसंगत नहीं है? क्या यह सही नहीं है कि तुम्हारा ही व्यवहार न्यायसंगत नहीं हैं।

26) यदि कोई भला मनुष्य अपनी धार्मिकता त्याग कर अधर्म करने लगता और मर जाता है, तो वह अपने पाप के कारण मरता है।

27) और यदि कोई पापी अपना पापमय जीवन त्याग कर धार्मिकता और न्याय के पथ पर चलने लगता है, तो वह अपने जीवन को सुरक्षित रखेगा।

28) यदि उसने अपने पुराने पापों को छोड़ देने का निश्चय किया है, तो वह अवश्य जीवित रहेगा, मरेगा नहीं।

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 5:20-26

(20) मैं तुम लोगों से कहता हूँ-यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फ़रीसियों की धार्मिकता से गहरी नहीं हुई, तो तुम स्वर्गराज्य में प्रवेश नहीं करोगे।

(21) "तुम लोगों ने सुना है कि पूर्वजों से कहा गया है- हत्या मत करो। यदि कोई हत्या करे, तो वह कचहरी में दण्ड के योग्य ठहराया जायेगा।

(22) परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ-जो अपने भाई पर क्रोध करता है, वह कचहरी में दण्ड के योग्य ठहराया जायेगा। यदि वह अपने भाई से कहे, ’रे मूर्ख! तो वह महासभा में दण्ड के योग्य ठहराया जायेगा और यदि वह कहे, ’रे नास्तिक! तो वह नरक की आग के योग्य ठहराया जायेगा ।

(23) "जब तुम वेदी पर अपनी भेंट चढ़ा रहे हो और तुम्हें वहाँं याद आये कि मेरे भाई को मुझ से कोई शिकायत है,

(24) तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ कर पहले अपने भाई से मेल करने जाओ और तब आ कर अपनी भेंट चढ़ाओ।

(25) "कचहरी जाते समय रास्ते में ही अपने मुद्दई से समझौता कर लो। कहीं ऐसा न हो कि वह तुम्हें न्यायाकर्ता के हवाले कर दे, न्यायाकर्ता तुम्हें प्यादे के हवाले कर दे और प्यादा तुम्हें बन्दीग्रह में डाल दे।

(26) मैं तुम से यह कहता हूँ- जब तक कौड़ी-कौड़ी न चुका दोगे, तब तक वहाँ से नहीं निकल पाओगे।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में, प्रभु येसु अपने शिष्यों को एक गहरी धार्मिकता में जीने का आह्वान करते हैं। एक ऐसी धार्मिकता जो शास्त्रियों और फरीसियों की धार्मिकता से हटकर और गहरी हो। मूसा की संहिता में लिखा है - "हत्या मत करो" । प्रभु येसु इस शिक्षा से भी गहरी शिक्षा देते हुवे कहते है कि शारीरिक हत्या तो गुनाह है ही पर उससे अधिक हमें उस अंतर्निहित मनोवृत्ति और भावनाओं को हमारे अन्दर से निकालना है जो हमें एक दूसरे को मारने या घायल करने के लिए प्रेरित करती है। यीशु ने हमें आमंत्रित किया है कि हम हत्या जैसे गुनाह की तह तक जाएँ और पता करें कि लोग ऐसा क्यों करते हैं।

येसु हमारे दिल और दिमाग के नवीकरण के लिए कहते है; इसका मतलब सच्चे 'पश्चाताप' या 'मनपरिवर्तन' से हैं। और ऐसा परिवर्तन हम खुद ही अपने में नहीं ला सकते उसके लिए ईश्वर की कृपा और पवित्र आत्मा की ज़रूरत है। इसके बिना एक गहरा परिवर्तन हममें नहीं आ सकता। आइये हम ईश्वर के आत्मा से प्रेरित होकर जीने के लिए खुद को ईश्वर के सुपुर्द करें व अपने अंदर आत्मा को काम करने दें ताकि हमारे अंदर एक गहरा परिवर्तन आ सके। आमेन।


-फादर प्रीतम वसूनिया (इन्दौर धर्मप्रान्त)


📚 REFLECTION


In today’s Gospel reading, Jesus calls his disciples to a virtue that goes deeper than the virtue of the scribes and Pharisees. One of the ten commandments of the Jewish Law was ‘You shall not kill’. However, the call of Jesus goes deeper than that; it looks beyond the action of killing to the underlying attitudes and emotions which lead people to kill or injure each other. Jesus invites us to look below the surface of what people do to why they do it. He calls for a renewal of the heart and mind; that is what we mean by ‘repentance’ or ‘conversion’. That deep-seated renewal that Jesus calls for is not something we can bring about on our own.

We need the Holy Spirit to work that kind of deep transformation within ourselves. A prayer that has been traditional within the church acknowledges that very clearly: ‘Come Holy Spirit, fill my heart, and kindle in me the fire of your love’. It is a prayer I have always found myself drawn to. It calls on the Holy Spirit to recreate deep within us the love which shaped the person of Jesus; it calls on the Spirit to form in us the roots of that deeper virtue which Jesus speaks about in today’s gospel reading.

-Fr. Preetam Vasuniya (Indore)


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Praise the Lord!