30 नवंबर

प्रेरित सन्त अन्द्रेयस - पर्व

पहला पाठ: रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 10:9-18

9) क्योंकि यदि आप लोग मुख से स्वीकार करते हैं कि ईसा प्रभु हैं और हृदय से विश्वास करते हैं कि ईश्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया, तो आप को मुक्ति प्राप्त होगी।

10) हृदय से विश्वास करने पर मनुष्य धर्मी बनता है और मुख से स्वीकार करने पर उसे मुक्ति प्राप्त होती है।

11) धर्मग्रन्थ कहता है, ‘‘जो उस पर विश्वास करता है, उसे लज्जित नहीं होना पड़ेगा’’।

12) इसलिए यहूदी और यूनानी और यूनानी में कोई भेद नहीं है- सबों का प्रभु एक ही है। वह उन सबों के प्रति उदार है, जो उसकी दुहाई देते है;

13) क्योंकि जो प्रभु के नाम की दुहाई देगा, उसे मुक्ति प्राप्त होगी।

14) परन्तु यदि लोगों को उस में विश्वास नहीं, तो वे उसकी दुहाई कैसे दे सकते हैं? यदि उन्होंने उसके विषय में कभी सुना नहीं, तो उस में विश्वास कैसे कर सकते हैं? यदि कोई प्रचारक न हो, तो वे उसके विषय में कैसे सुन सकते है?

15) और यदि वह भेजा नहीं जाये, तो कोई प्रचारक कैसे बन सकता है? धर्मग्रन्थ में लिखा है - शुभ सन्देश सुनाने वालों के चरण कितने सुन्दर लगते हैं !

16) किन्तु सबों ने सुसमाचार का स्वागत नहीं किया। इसायस कहते हैं- प्रभु! किसने हमारे सन्देश पर विश्वास किया है?

17) इस प्रकार हम देखते हैं कि सुनने से विश्वास उत्पन्न होता है और जो सुना जाता है, वह मसीह का वचन है।

18) अब मैं यह पूछता हूँ - ‘‘क्या उन्होंने सुना नहीं?’’ उन्होंने सुना है, क्योंकि उनकी वाणी समस्त संसार में फैल गयी है और उनके शब्द पृथ्वी के सीमान्तों तक।

सुसमाचार : सन्त मत्ती 4:18-22

(18) गलीलिया के समुद्र के किनारे टहलते हुए ईसा ने दो भाइयों को देखा-सिमोन, जो पेत्रुस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रेयस को। वे समुद्र में जाल डाल रहे थे, क्योंकि वे मछुए थे।

(19) ईसा ने उन से कहा, ’’मेरे पीछे चले आओ। मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊँगा।’’

(20) वे तुरंत अपने जाल छोड़ कर उनके पीछे हो लिए।

(21) वहाँ से आगे बढ़ने पर ईसा ने और दो भाइयों को देखा- जे़बेदी के पुत्र याकूब और उसके भाई योहन को। वे अपने पिता जे़बेदी के साथ नाव में अपने जाल मरम्मत कर रहे थे।

(22) ईसा ने उन्हें बुलाया। वे तुरंत नाव और अपने पिता को छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।


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