12) प्रेरित जैतून नामक पहाड़ से येरुसालेम लौटे। यह पहाड़ येरुसालेम के निकट, विश्राम-दिवस की यात्रा की दूरी पर है।
13) वहाँ पहुँच कर वे अटारी पर चढ़े, जहाँ वे ठहरे हुए थे। वे थे-पेत्रुस तथा योहन, याकूब तथा सिमोन, जो उत्साही कहलाता था और याकूब का पुत्र यूदस।
14) ये सब एकहृदय हो कर नारियों, ईसा की माता मरियम तथा उनके भाइयों के साथ प्रार्थना में लगे रहते थे।
26) छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाजरेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,
27) जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।
29) वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।
30) तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, ’’मरियम! डरिए नहीं। आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।
31) देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।
32) वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,
33) वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।’’
34) पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, ’’यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।’’
35) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, ’’पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
36) देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;
37) क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।’’
38) मरियम ने कहा, ’’देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।’’ और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
ईश्वर हमसे प्यार करता है। ईश्वर हमसे प्यार करता है और हमें उस प्यार का अनुभव करने और उसे मनाने के लिए विभिन्न माध्यम देता है। पवित्र रोजरी माला की माँ का पर्व, जिसे हम आज मनाते है, हमारे प्रति ईश्वर का प्रेम का एक सुंदर उदाहरण है। आज के पाठ इस त्यौहार की दृष्टी से चुने गये हैं। आज का सुसमाचार में हम माता मरियम की भक्ति का और विशेष रूप से प्रणाम मरिया प्रार्थना का आधार पाते हैं। मरियम को सम्बोधित करते हुए स्वर्गदूत कहता है: "प्रणाम मरिया, प्रभु की कृपापात्री, प्रभु आपके साथ है"। "प्रणाम मरिया" पूर्ण रूप से बाइबिल पर आधारित एक प्रार्थना है।
संत पोप जॉन पॉल द्वितीय ने पवित्र रोजरी माला विनती को अपनी पसंदीदा प्रार्थना बताया। माता मरियम के साथ हम पवित्र रोजरी माला में येसु के जीवन के मूलभूत रहस्यों पर मनन-चिंतन करते हैं। पवित्र रोजरी माला के दौरान हम माता मरियम के ह्रदय के द्वारा येसु की उपासना करतेहैं।
कलीसिया के इतिहास में कठिन और विरोध की परिस्थितियों में विश्वासियों ने माला विनती द्वारा अपने विश्वास में बने रहे। आप लोगों ने अनुभव किया होगा कैसे लॉकडाउन के इन दिनों में पवित्र रोजरी माला की भक्तिमय प्रार्थना अपने विश्वास को जीने और उसे सक्रिय और जीवंत बनाये रखने में कितने मदत किये हैं।
क्या आप येसु को और अधिक प्यार करना चाहते हैं? यदि हाँ, तो अपनी रोजरी माला लेकर माता मरियम के पास जाईये। हे मरियम, पवित्र रोजरी माला की माँ, हमारे लिए विनती कर !
✍ - फादर जोली जोन (इन्दौर धर्मप्रांत)
God loves us. God loves us and gives us various means to experience and celebrate that love. The feast of Our Lady of the Rosary, which we celebrate today, is a beautiful expression of God’s love for us. The readings are taken in view of this feast. The gospel passage of the annunciation to Mary contains the invocations in honour of Mary, “Hail Mary, full of grace, the Lord is with you”. “Hail Mary” is such a biblical prayer!
Saint Pope John Paul II described the rosary as his favourite prayer. In praying the rosary we reflect on the fundamental mysteries of the life of Jesus along with Mary. It is loving Jesus with the heart and mind of Mary.
During the hard times in the history of the church faith was kept alive by the recitation of the holy rosary by many people. It may be your experience that during these lockdown days rosary has played a great role in living and keeping alive our faith in a prayerful and devotional way.
Do you want to love Jesus more? Then go to Mother Mary and learn at her lap with your rosary in hand! Our Lady of the Rosary, pray for us!
✍ -Fr. Jolly John (Indore Diocese)