1) ईश्वर ने आप लोगों को बुलाया है। आप अपने इस बुलावे के अनुसार आचरण करें - यह आप लोगों से मेरा अनुरोध है, जो प्रभु के कारण कै़दी हूँ।
2) आप पूर्ण रूप से विनम्र, सौम्य तथा सहनशील बनें, प्रेम से एक दूसरे को सहन करें
3) और शान्ति के सूत्र में बँध कर उस एकता को बनाये रखने का प्रयत्न करते रहें, जिसे पवित्र आत्मा प्रदान करता है।
4) एक ही शरीर है, एक ही आत्मा और एक ही आशा, जिसके लिए आप लोग बुलाये गये हैं।
5) एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास और एक ही बपतिस्मा।
6) एक ही ईश्वर है, जो सबों का पिता, सब के ऊपर, सब के साथ और सब में व्याप्त है।
7) मसीह ने जिस मात्रा में देना चाहा, उसी मात्रा में हम में प्रत्येक को कृपा प्राप्त हुई है।
11) उन्होंने कुछ लोगों को प्रेरित, कुछ को नबी, कुछ को सुसमाचार-प्रचारक और कुछ को चरवाहे तथा आचार्य होने का वरदान दिया।
12) इस प्रकार उन्होंने सेवा-कार्य के लिए सन्तों को नियुक्त किया, जिससे मसीह के शरीर का निर्माण तब तक होता रहे,
13) जब तक हम विश्वास तथा ईश्वर के पुत्र के ज्ञान में एक नहीं हो जायें और मसीह की परिपूर्णता के अनुसार पूर्ण मनुष्यत्व प्राप्त न कर लें।
9) ईसा वहाँ से आगे बढ़े। उन्होंने मत्ती नामक व्यक्ति को चुंगी-घर में बैठा हुआ देखा और उस से कहा, ’’मेरे पीछे चले आओ’’, और वह उठकर उनके पीछे हो लिया।
10) एक दिन ईसा अपने शिष्यों के साथ मत्ती के घर भोजन पर बैठे और बहुत-से नाकेदार और पापी आ कर उनके साथ भोजन करने लगे।
11) यह देखकर फरीसियों ने उनके शिष्यों से कहा, ’’तुम्हारे गुरु नाकेदारों और पापियों के साथ क्यों भोजन करते हैं?’’
12) ईसा ने यह सुन कर उन से कहा, ’’नीरोगों को नहीं, रोगियों को वैद्य की ज़रूरत होती है।
13) जा कर सीख लो कि इसका क्या अर्थ है- मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।’’
हम सब डॉक्टर लोगों से परिचित हैं। आज नहीं तो कल हमें ज़रूर डॉक्टर की ज़रूरत पड़ सकती है, क्योंकि हम सभी कभी न कभी बीमार पड़ जाते हैं। आज के सुसमाचार में, येसु एक लोकप्रिय कहावत का उपयोग करते हुए कहते हैं, "नीरोगों को नहीं, रोगियों को वैध्य की ज़रूरत होती है। येसु यहाँ, यह घोषणा कर रहे हैं कि उनकी सेवकाई का मुख्य ध्यान उन लोगों की ओर नहीं है जो पूर्ण हैं अथवा जो ठीक हैं, पर उन लोगों की तरफ है जो टूटे हुए हैं, जो बिखरे हुए हैं।
एक तरह से देखा जाए तो किसी न किसी रूप में हम भी अपनी आध्यात्मिकता में टूटे, बिखरे और बीमार हैं। और यदि हम आत्मिक रूप से बीमार हैं तो हमें ज़रूर एक आत्मिक डॉक्टर की ज़रूरत है। साधारण तोर पर डॉक्टर मरीज़ की तलाश में नहीं आता, मरीज़ डॉक्टर के पास जाता है। पर प्रभु येसु ऐसे डॉक्टर हैं जो मरीज़ की तलाश में जाते हैं। येसु हम पापियों के, पाप के इलाज के लिए पहले पहल करता है, वो हमारी तलाश में आता है।
उन्होंने नाकेदार मत्ती को उनकी पापमय ज़िन्दगी से बुलाने की पहल की। और उन्होंने लोगों के सामने यह घोषित किया कि वे धर्मियों को नहीं पापियों को बुलाने आये हैं। येसु हमें तलाश रहे हैं। शायद हम से पहले वे हमें ढूढ़ने निकल पड़े हैं। हमें ज़रूरत है उनकी आवाज़ सुनने की - "मेरे पीछे चले आओ अथवा मेरा अनुसरण करो।" क्या हम मत्ती की तरह अपनी पुरानी ज़िन्दगी को छोड़कर येसु का अनुसरण करने के लिए तैयार हैं? मत्ती ने एक बार अपनी पुरानी ज़िन्दगी को अलविदा कहा, अपने कर वसूली के पेशे को अलविदा कहा, लोगों को ठगने को अलविदा कहा, अय्याशी की ज़िन्दगी को अलविदा कहा तो फिर कभी भी उन राहों पर वे वापस नहीं गए। हम भी हमारे बुराई के रास्तों को छोड़ें, येसु के पीछे, उनके नक़्शे कदम पर चलें, जैसे मत्ती ने येसु से दोस्ती की वैसे हम भी उनसे दोस्ती करें; येसु को अपने घरों में आमंत्रित करें और येसु को अपने जीवन का साथी बना लें, अभिन्न अंग बना लें।
✍ - फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)
IWe are all familiar with doctors. If not today, then tomorrow we may need a doctor, because we all fall sick at some time or the other. In today's gospel, Jesus uses a popular, saying, It is the sick who need the doctor not those who are well" Here, Jesus is declaring that the main focus of his ministry is not on those who those who are complete or who are fine, but those who are broken, who are scattered.
In one way or another, we are broken, scattered and sick in our spirituality. And if we are spiritually ill, we definitely need a spiritual doctor. On a simple basis, the doctor does not come in search of the patient; the patient goes to the doctor. But Lord Jesus is such a doctor who goes in search of the patient. Jesus takes the initiative to search for the lost sinners to cure them of their sins. He took the initiative to call Matthew, the tax collector from his sinful life. And he declared in front of the people that he had come to call the sinners, not the righteous. Jesus is looking for us. We need to hear his voice - "follow me." Are we ready to follow Jesus like Matthew, leaving our old life? Matthew once said goodbye to his old life, said goodbye to his profession, said goodbye to the cheating people, said goodbye to his lose living, then he never went back on those paths. Let us also leave our paths of evil, follow Jesus, walk on his footsteps; befriend Jesus as Mathew did; Invite Jesus to our homes and make Jesus a constant companion and integral part of our life. Amen
✍ -Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)