7) मसीह ने इस पृथ्वी पर रहते समय पुकार-पुकार कर और आँसू बहा कर ईश्वर से, जो उन्हें मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थना और अनुनय-विनय की। श्रद्धालुता के कारण उनकी प्रार्थना सुनी गयी।
8) ईश्वर का पुत्र होने पर भी उन्होंने दुःख सह कर आज्ञापालन सीखा।
9 (9-10) वह पूर्ण रूप से सिद्ध बन कर और ईश्वर से मेलखि़सेदेक की तरह प्रधानयाजक की उपाधि प्राप्त कर उन सबों के लिए मुक्ति के स्रोत बन गये, जो उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।
25) ईसा की माता, उसकी बहिन, क्लोपस की पत्नि मरियम और मरियम मगदलेना उनके कू्रस के पास खडी थीं।
26) ईसा ने अपनी माता को और उनके पास अपने उस शिष्य को, जिसे वह प्यार करते थे देखा। उन्होंने अपनी माता से कहा, ’’भद्रे! यह आपका पुत्र है’’।
27) इसके बाद उन्होंने उस शिष्य से कहा, ’’यह तुम्हारी माता है’’। उस समय से उस शिष्य ने उसे अपने यहाँ आश्रय दिया।
कल हमने प्रभु के क्रूस विजय का पर्व मनाया और आज हम दुखित माता मरियम का पर्व मानते हैं, जिनका दुःख येसु के क्रूस से जुड़ा हुआ था। जब हमारे कोई करीबी लोग पीड़ित होते हैं तब हमें भी दुख होता है । जब बच्चे बीमार होते हैं, तो माता-पिता पीड़ा से गुजरते हैं। इसके विपरीत, जब माता-पिता बीमार हो जाते हैं, तो उनके वयस्क बच्चे भावनात्मक रूप से उनके संघर्षों में शामिल हो जाते हैं। येसु की माँ मरियम की पीड़ा और दुख उनके पुत्र के कष्टों और दुखों से जुड़े हुए हैं। आज के सुसमाचार में धर्मी सिमियोन, मरियम के जीवन और उनके पुत्र के जीवन के इस अंतर्संबंध पर प्रकाश डालता है । वह मरियम के बेटे के बारे में कहता है कि वह एक ऐसा चिन्ह है जिसे अस्वीकार कर दिया जायेगा और तुरंत माता मरियम के बारे में कहता है कि एक तलवार उनके हृदय को आघात करेगी ।
माइकल एंजेलो की प्रसिद्ध मूर्ति जिसे पिएता, कहते हैं, जिसमें मरियम, येसु की पवित्र लाश को अपनी गोद में लिए, दिखाई गयी है। इस कलाकारी में येसु के दुख और मृत्यु और माँ मरियम के दुखों के अंतर्कलह की पूर्ण अभिव्यक्ति देखने को मिलती है । येसु के दुखों को सबसे करीबी से मरियम ने ही समझा व अनुभव किया इसलिए जब-जब येसु को दर्द हुआ और पीड़ा हुई, माँ ने उसका अनुभव खुद की रूह और बदन में किया। जैसा कि पहले पाठ में येसु मसीह के बारे में कहा गया है कि उन्होंने पृथ्वी पर रहते समय पुकार-पुकार के और आँसू बहाकर ईश्वर से प्रार्थना और अनुनय विनय की; वही मरियम के बारे में कहा जा सकता है येसु के साथ कलवारी की राहों पर माँ ने भी पुकार-पुकारकर और आँसू बहकर प्रार्थना की। मरियम अपने बेटे के प्रति वफादार थी, भले ही उसके लिए उन्हें येसु की क्रूस पीड़ा में भागीदार होना ही क्यों न पड़ा हों।
येसु के चेले होने के नाते, हम मरियम की ओर अपनी निगाहें करें , जो क्रूस-मार्ग और कलवारी तक येसु के दुखों में सहभागी हुई , वैसे ही हमें भी हमारे जीवन में आने वाले दुखों को मरियम की तरह ईश्वर की योजना जानकर सहर्ष स्वीकार करना चाहिए।
✍ - फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)
Yesterday we celebrated the Victory of the Cross and today we celebrate the feast of ‘Our Lady of Sorrows.’ When some of our close people suffer, we also feel sad. When the children are ill, the parents go through suffering. Conversely, when parents become ill, their adult children become emotionally involved in their conflicts. The suffering and sorrows of Mary are associated with the sufferings and sorrows of her son Jesus. In today's gospel the righteous Simeon throws light on this interrelationship of the sorrows of Mary's life and her son's life. He tells of Jesus that he was a symbol that would be rejected and immediately he tells of Mother Mary that a sword would strike her heart.
The famous statue of Michelangelo, called Pieta, depicts Mary, with the holy corpse of Jesus, in her lap. In this artwork, the full expression of the discord of the suffering and death of Jesus and the sufferings of Mother Mary is seen. Mary was the one who understood and experienced the sufferings of Jesus most closely, so whenever Jesus underwent pain, Mother experienced it in her own soul and body. The first reading of today tells us of Jesus, “He offered up prayers and supplications, with loud cries and tears, to the one who was able to save him from death.” (Heb 5:7) The same can be said about Mother Mary who walked along, the road of Calvary, and cried and prayed with tears. Mary was loyal to her son, even if she had to share in the passion and death of Jesus.
As disciples of Jesus, let us look at Mary, who participated in the sufferings of Jesus on the road of Calvary, until his death on the Cross, likewise, we should gladly accept the sufferings of our life, knowing that it is the plan of God for our life, just like Mary did.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)