1) बेथलेहेम एफ्राता! तू यूदा के वंशों में छोटा है। जो इस्राएल का शासन करेगा, वह मेरे लिए तुझ में उत्पन्न होग। उसकी उत्पत्ति सुदूर अतीत में, अत्यन्त प्राचीन काल में हुई है।
2) इसलिए प्रभु उन्हें तब तक त्याग देगा, जब तक उसकी माता प्रसव न करे। तब उसके बचे हुए भाई इस्राएल के लोगों से मिल जायेंगे।
3) वह उठ खडा हो जायेगा, वह प्रभु के सामर्थ्य से तथा अपने ईश्वर के नाम प्रताप से अपना झुण्ड चरायेगा। वे सुरक्षा में जीवन बितायेंगे, क्योंकि वह देश के सीमान्तों तक अपना शासन फैलायेगा
4) और शांति बनाये रखेगा। जब अस्सूरी लोग हमारे देश पर आक्रमण करेंगे और हमारी भूमि में घुसपैठ करेंगे, तब हम उनके विरुद्ध सात चरवाहों और आठ शासकों को नियुक्त करेंगे।
28) हम जानते हैं कि जो लोग ईश्वर को प्यार करते हैं और उसके विधान के अनुसार बुलाये गये हैं, ईश्वर उनके कल्याण के लिए सभी बातों में उनकी सहायता करता है;
29) क्योंकि ईश्पर ने निश्चित किया कि जिन्हें उसने पहले से अपना समझा, वे उसके पुत्र के प्रतिरूप बनाये जायेंगे, जिससे उसका पुत्र इस प्रकार बहुत-से भाइयों का पहलौठा हो।
30) उसने जिन्हें पहले से निश्चित किया, उन्हें बुलाया भी है: जिन्हें बुलाया, उन्हें पाप से मुक्त भी किया है और जिन्हें पाप से मुक्त किया, उन्हें महिमान्वित भी किया है।
(1) इब्राहीम की सन्तान, दाऊद के पुत्र, ईसा मसीह की वंशावली।
(2) इब्राहीम से इसहाक उत्पन्न हुआ, इसहाक से याकूब, याकूब से यूदस और उसके भाई,
(3) यूदस और थामर से फ़़ारेस और ज़़ारा उत्पन्न हुए। फ़़ारेस से एस्रोम, एस्रोम से अराम,
(4) अराम से अमीनदाब, अमीनदाब से नास्सोन, नास्सोन से सलमोन,
(5) सलमोन और रखाब से बोज़़, बोज़ और रूथ से ओबेद, ओबेद से येस्से,
(6) येस्से से राजा दाऊद उत्पन्न हुआ। दाऊद और उरियस की विधवा से सुलेमान उत्पन्न हुआ।
(18) ईसा मसीह का जन्म इस प्रकार हुआ। उनकी माता मरियम की मँगनी यूसुफ से हुई थी, परंतु ऐसा हुआ कि उनके एक साथ रहने से पहले ही मरियम पवित्र आत्मा से गर्भवती हो गयी।
(19) उसका पति यूसुफ चुपके से उसका परित्याग करने की सोच रहा था, क्योंकि वह धर्मी था और मरियम को बदनाम नहीं करना चाहता था।
(20) वह इस पर विचार कर ही रहा था कि उसे स्वप्न में प्रभु का दूत यह कहते दिखाई दिया, "यूसुफ! दाऊद की संतान! अपनी पत्नी मरियम को अपने यहाँ लाने में नहीं डरे,क्योंकि उनके जो गर्भ है, वह पवित्र आत्मा से है।
(21) वे पुत्र प्रसव करेंगी और आप उसका नाम ईसा रखेंगें, क्योंकि वे अपने लोगों को उनके पापों से मुक्त करेगा।"
(22) यह सब इसलिए हुआ कि नबी के मुख से प्रभु ने जो कहा था, वह पूरा हो जाये -
(23) देखो, एक कुँवारी गर्भवती होगी और पुत्र प्रसव करेगी, और उसका नाम एम्मानुएल रखा जायेगा, जिसका अर्थ हैः ईश्वर हमारे साथ है।
हम सबों की ज़िन्दगी में माँ की भूमिका बहुत ही अहम होती है। माँ के बिना हमारा सँसार अधूरा रहता है, हमारी खुशियाँ अधूरी रहती है। जब हम छोटे थे तो माँ की उपस्तिथि हममें हिम्मत व आश्वासन देती थी कि मेरा माँ है तो मैं सुरक्षित हूँ।
आज हमारे लिए बड़ी ख़ुशी का दिन है क्योंकि आज हम हमारी स्वर्गिक माँ का जन्मदिन मना रहे हैं जिन्हें ईश्वर ने जन्म से ही पवित्र ठहराया और अपने एकलौते बेटे की माँ बनने के लिए तैयार किया। येसु को इस संसार में आने की तैयारी कई सालों पूर्व हो चुकी थी, जिसके बारे में आज के सुसमाचर में संत मत्ती हमें बतलाते हैं। प्रभु की वंशावली में सब प्रकार के लोग शामिल हैं : धर्मी, अधर्मी, धोखेबाज, हत्यारे, कवी, राजा, भीतरी लोग, और बाहरी लोग सब येसु के आगमन की तयारी करते हैं। पूर्वजों में ज़रूर कमियां-घाटियां थी पर ईश्वर ने अपने बेटे के लिए एक निष्कलंक गर्भ को चुना। जी हाँ येसु की वंशावली में बाकि सब मानवीय पिता से उत्पन्न हुए पर येसु के बारे में लिखा है - "याकूब से मरियम का पति युसूफ, और मरियम से येसु उतपन्न हुए, जो मसीह कहलाते हैं। " (मत्ती 1:16) पवित्र बाइबल यह स्पष्ट करती है कि येसु का जन्म किसी पुरुष से न होकर, पवित्र आत्मा के सामर्थ्य से हुआ। मरियम ने कहा -" देख मैं प्रभु की दासी हूँ आपका कथन मुझमे पूरा हो। " ऐसा कहकर उन्होंने अपने जीवन को पूर्ण रूप से ईश्वर को सौंप दिया और अपने आप को आत्मा के अभिषेक के लिए पूरी तरह से खोल दिया। उस पूर्ण समर्पण व खुलेपन में आत्मा उनपर भरपूरि से उतरा और ईश्वर का बेटा येसु उनकी कोख में आ गया।
आज हम सब को आत्मा के अभिषेक की ज़रूरत है। आत्मा से भरकर ही हम येसु के सच्चे अनुयाई बन सकते हैं। आत्मा से भरकर ही मरियम ने येसु को पाया, आत्मा से भरकर ही येसु ने सेवकाई की शुरुआत की और आत्मा से भरकर ही चेलों ने प्रचार प्रारम्भ किया। तो आइये हम हमारी स्वर्गीय माता की तरह बिना किसी शर्त के खुद को ईश्वर के लिए समर्पित करें और एक आत्मामय जीवन जियें और अपने जीवन में हमेशा येसु से भरपूर रहें।
✍ - फादर प्रीतम वसुनिया (इन्दौर धर्मप्रांत)
Mother's role is very important in the life of all of us. Without mother, our world remains incomplete, our happiness remains incomplete. When we were young, Mother's presence used to give us courage and assurance that I am safe, if I have a mother. Today is a very happy day for us because today we are celebrating the birthday of our heavenly mother, whom God had sanctified since birth and prepared her to be the mother of his only son. Jesus made a preparation of many years to come into this world, about which St. Matthew tells us in today's Gospel. The genealogy of the Lord includes all sorts of people: the righteous, the unrighteous, the traitors, the murderers, the poet, the king, the insider, and the outsiders all prepare for the arrival of Jesus. The ancestors certainly had their own weaknesses, but at the end God chose a spotless womb for his son. Yes, in the lineage of Jesus, all the others were born of a human father, but it is written about Jesus - and Jacob the father of Joseph the husband of Mary, of whom Jesus was born, who is called the Messiah (Matthew 1:16) Holy Bible makes it clear that Jesus was born, not of man, but by the power of the Holy Spirit. Mary said – “Here am I, the servant of the Lord; let it be with me according to your word.” By saying this, she surrendered her life completely to God and opened herself completely for the anointing of the Holy Spirit. In that complete surrender and openness, the Spirit came upon him and the son of God, Jesus, came into her womb. Today we all need the anointing of the Holy Spirit. Only by being filled with the Holy Spirit will we become true followers of Jesus. Mary found Jesus only when she was filled with Spirit; Jesus started his puplic ministry only by filling with Holy Spirit. The disciples started preaching only when they were filled with Spirit. So, like our heavenly mother, let us surrender ourselves unconditionally to God and live a spirit in the Spirit so that our life may become Christ centered like Mother Mary.
✍ -Fr. Preetam Vasuniya (Indore Diocese)