31 मई

एलिजबेथ से कुवारी मरियम की भेन्ट - पर्व

पहला पाठ : सफ़न्याह का ग्रन्थ 3:14-18

14) सियोन की पुत्री! आनन्द का गीत गा। इस्राएल! जयकार करो! येरुसालेम की पुत्री! सारे हृदय से आनन्द मना।

15) प्रभु ने तेरा दण्डादेश रद्द किया और तेरे शत्रुओं को भगा दिया है। प्रभु तेरे बीच इस्राएल का राजा है।

16) विपत्ति का डर तुझ से दूर हो गया है। उस दिन येरुसालेम से कहा जायेगा-’’सियोन! नहीं डरना, हिम्मत नहीं हारना। तेरा प्रभु-ईश्वर तेरे बीच है।

17) वह विजयी योद्धा है। वह तेरे कारण आनन्द मनायेगा, वह अपने प्रेम से तुझे नवजीवन प्रदान करेगा,

18) वह उत्सव के दिन की तरह तेरे कारण आनन्दविभोर हो जायेगा।’’ मैं तेरी विपत्ति को दूर करूँगा, मैं तेरा कलंक मिटा दूँगा।

अथवा - पहला पाठ : रोमियों 12:9-16

9) आप लोगों का प्रेम निष्कपट हो। आप बुराई से घृणा तथा भलाई से प्र्रेम करें।

10) आप सच्चे भाइयों की तरह एक दूसरे को सारे हृदय से प्यार करें। हर एक दूसरों को अपने से श्रेष्ठ माने।

11) आप लोग अथक परिश्रम तथा आध्यात्मिक उत्साह से प्रभु की सेवा करें।

12) आशा आप को आनन्दित बनाये रखे। आप संकट में धैर्य रखें तथा प्रार्थना में लगे रहें,

13) सन्तों की आवश्यकताओं के लिए चन्दा दिया करें और अतिथियों की सेवा करें।

14) अपने अत्याचारियों के लिए आशीर्वाद माँगें- हाँ, आशीर्वाद, न कि अभिशाप!

15) आनन्द मनाने वालों के साथ आनन्द मनायें, रोने वालों के साथ रोयें।

16) आपस में मेल-मिलाप का भाव बनाये रखें। घमण्डी न बनें, बल्कि दीन-दुःखियों से मिलते-जुलते रहें। अपने आप को बुद्धिमान् न समझें।

सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 1:39-56

39) उन दिनों मरियम पहाड़ी प्रदेश में यूदा के एक नगर के लिए शीघ्रता से चल पड़ी।

40) उसने ज़करियस के घर में प्रवेश कर एलीज़बेथ का अभिवादन किया।

41) ज्यों ही एलीज़बेथ ने मरियम का अभिवादन सुना, बच्चा उसके गर्भ में उछल पड़ा और एलीज़बेथ पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गयी।

42) वह ऊँचे स्वर से बोली उठी, ’’आप नारियों में धन्य हैं और धन्य है आपके गर्भ का फल!

43) मुझे यह सौभाग्य कैसे प्राप्त हुआ कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आयीं?

44) क्योंकि देखिए, ज्यों ही आपका प्रणाम मेरे कानों में पड़ा, बच्चा मेरे गर्भ में आनन्द के मारे उछल पड़ा।

45) और धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विश्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा हो जायेगा!’’

46) तब मरियम बोल उठी, ’’मेरी आत्मा प्रभु का गुणगान करती है,

47) मेरा मन अपने मुक्तिदाता ईश्वर में आनन्द मनाता है;

48) क्योंकि उसने अपनी दीन दासी पर कृपादृष्टि की है। अब से सब पीढि़याँ मुझे धन्य कहेंगी;

49) क्योंकि सर्वशक्तिमान् ने मेरे लिए महान् कार्य किये हैं। पवित्र है उसका नाम!

50) उसकी कृपा उसके श्रद्धालु भक्तों पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनी रहती है।

51) उसने अपना बाहुबल प्रदर्शित किया है, उसने घमण्डियों को तितर-बितर कर दिया है।

52) उसने शक्तिशालियों को उनके आसनों से गिरा दिया और दीनों को महान् बना दिया है।

53) उसने दरिंद्रों को सम्पन्न किया और धनियों को ख़ाली हाथ लौटा दिया है।

54) इब्राहीम और उनके वंश के प्रति अपनी चिरस्थायी दया को स्मरण कर,

55) उसने हमारे पूर्वजों के प्रति अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपने दास इस्राएल की सुध ली है।’’

56) लगभग तीन महीने एलीज़बेथ के साथ रह कर मरियम अपने घर लौट गयी।


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